Quantcast
Channel: फ़ेसबुक .....चेहरों के अफ़साने
Viewing all 79 articles
Browse latest View live

ई प्रेम दिवस है कि प्रेम चोपडा दिवस .कोई समझाओ तो बे ...

$
0
0







  • चारों ओर शोर ,घनघोर , दुनिया मना रही है , भेलनटाईन डे ,
    ई प्रेम दिवस है कि प्रेम चोपडा दिवस .कोई समझाओ तो बे ...

    बहुत चना जोर गरम मना रहा है लोग





सचमुच शादीशुदा इंसान के लिये वैलेंटाईन सैलेंटाईन जैसे सारे उत्सव कोई मायने नहीं रखते। ऑफिस से जल्दी आ गया कि संग चाय वाय पियेंगे, गप्पा गोष्टी करेंगे और घर आकर देखता हूं कि ताला लगा है और श्रीमती जी चक्की पर आटा पिसाने गई हैं :)
 

दुष्ट बादल....huhh

लो आज फिर बारिश होने लगी
जब भी तुम दूर जाते ह़ो
बारिश होने लगती है
माना की मन उदास है
तन्हाई है
तकलीफ भी है
पर ये भी कोई बात है भला
तुम्हारी ग़ैर-हाज़री में
ये बादल
सेंध लगा कर
बस चले आते हैं
ये भी नहीं समझते की
ठण्ड में रुखसार पे
नमकीन पानी
बहुत जलन करता है
दुष्ट बादल....huhh
 

हाँ, नहीं, पता नहीं...
इन चार लफ्जों में गोया हम सबकी ज़िन्दगानियाँ उलझी हुई हैं.
 
  • खाली बगीचे से मन
    हाथों में सुर्ख गुच्छे
    संकीर्ण दिलों के बीच
    बड़ा सा दिल बने तकिये
    महंगे स्वाद हीन पकवान.
    और
    खाली होती जेबों के मध्य
    दिवस तो मन रहा है
    पर
    प्रेम नदारद है.
 
 

अँधेरे में रहने वालो ,अँधेरे का राज़ ना खोलो
कांच के सपने टूट ना जाएँ ,आहिस्ता -आहिस्ता बोलो|
 

माना कि मन की बात लिखना जरुरी है
माना कि जीवन की बात लिखना जरुरी है
पर इन सबसें भी ऊपर उठ कर आशा
अपने वतन की बात लिखना जरुरी है
माना कि सावन की बात लिखना जरुरी है
माना कि बसंत की बात लिखना जरुरी है
पर वक्त की नब्ज को पकड़ कर आशा
अब परजातंत्र की बात लिखना जरुरी है
 
 

ये है हमारी लोकतान्त्रिक संस्थाओ के हाल. देश की सर्वोच्च संस्था हो या किसी शहर की. केंद्र का मंत्री हो या एक पार्षद, सब जगह कमोबेश यही हाल है. कानून और जनता का किसी को डर नहीं . हम को लोकतान्त्रिक परम्परोअ की नाम पर चुप कराने वाला यह वर्ग खुद कितना अनुशाशन हीन और बेखौफ है, सब के सामने है. अपने हक की आवाज उठाने वाले हर सक्श को डरा धमका कर चुप कर दिया जाता है. कोई नहीं चाहता की आम जन की स्तिथि में सुधार हो. गरीबो की भूख मिटे, उन्हें तन ढकने को कपडा और सर छुपाने को आसरा मिले. चुनावो में बरसाती मेंढको की तरह आते नेता, चुनाव ख़त्म होते ही विलुप्त हो जाते है. लम्बे चौड़े वादे और लच्छे दर भाषण, बस यही है लोकतंत्र. और फिर चालू होती है पांच साल तक न ख़तम होने वाली लूट. सब कुछ जानते बूझते भी पंगु बन देखते रहते है हम. क्या जरुरत है इन विधाई संस्थाओ की. जनता के ऊपर बोझ है यह. लोकतंत्र के नाम पर हमारे खून पसीने की कमाई की यूँ बर्बादी क्यों ???
 

उनके जैसा ...
-----------
लाख हिदायतों के बाद भी
हुआ इतना ही है
कि वो
मेरे जैसे नहीं हो जाए
पर, हाँ
उनके कुछ कहे बगैर ही
देखो
मैं बिलकुल उनके जैसा
कठोर, निर्दयी हो गया हूँ !!
 
 

छत्तीसगढ़ और मध्यप्रदेश को परस्पर जोड़ने वाली रायपुर-भोपाल महानदी एक्सप्रेस रेल सेवा वर्षों से बंद है. यह उपयोगी रेलगाड़ी फिर शुरू की जानी चाहिए और इसे रायपुर-भोपाल होते हुए इंदौर-उज्जैन तक चलाया जाना चाहिए . इससे दोनों राज्यों के हजारों लोगों को काफी राहत मिलेगी . छत्तीसगढ़ के लोग महाकाल के दर्शनों के लिए रायपुर से सीधे विक्रमादित्य की नगरी उज्जैन पहुँच सकेंगे . अभी रायपुर से इंदौर -उज्जैन के लिए कोई सीधी रेल-सेवा नहीं है. रेल बजट नजदीक आ रहा है. रेलमंत्री से दोनों राज्यों की जनता का अनुरोध है कि महानदी एक्सप्रेस को पुनर्जीवित कर यह सेवा भोपाल से आगे इंदौर-उज्जैन तक बढ़ा दी जाए . रेल मंत्रालय को जरा भी घाटा नहीं होगा ,क्योंकि आज कल हर मौसम में सभी गाडियां खचाखच भरी होती हैं.
 

  • अपने होंठ सिकोड़कर बोलती हो तुम
    -- तुम्हें तो कोई पुजारी होना चाहिए था
    और चली जाती हो झल्लाकर
    धीरे-धीरे पानी भर जाता है
    उन पैरों के निशान में जो अब जा चुके हैं...
 

  • कल उत्तर प्रदेश विधानसभा का तीसरे चरण का मतदान है.आप सभी साथियों! से अपील है कि आप मतदान बूथ तक जाकर मतदान में जरुर हिस्सा लें. याद रखिए, आप मतदान के द्वारा लोकतंत्र के भविष्य को और अधिक बेहतर बना सकते हैं.
     
     

फ़ेसबुक के कुछ कतरे ....

$
0
0











‎'' वेस्टइंडीज के किसी विचारक् ने एक बार कहा था कि भाषा का चुनाव अपने लिए एक दुनिया का चुनाव करना होता है और हालांकि मैं किसी दुनिया के ऊपर भाषा के कल्पित प्रभुत्व को नहीं मानता, पर भाषा का चुनाव करते समय ही किसी साहित्यकार के सामने खड़े सबसे अहम् सवाल का जवाब मिल जाता है कि मैं किस के लिए लिख रहा हूँ. मेरा पाठक कौन है.
अगर केन्या का कोई लेखक अंग्रेजी में लिखता है तो बेशक उसका कथ्य कितना भी क्रन्तिकारी क्यों न हो, वह निश्चय ही केन्या के किसानों, मजदूरों तक नहीं पहुँच पाता और न उसका इनके साथ सीधा संवाद ही बन पाता है. - न्गूगी वा थ्यांगो ''
Santosh Chaturvedi saab' kee wall se, thanks!
 


आज हमरी रायबरेली मा वोट पर रही है , बहुत मुश्किल है कांगरेस के बरे अबकी दई !
हम तो जा नहीं पायेन मुदा सब लोग नीक मनई क वोट दें !
 


मंजिलों से दूर बेवजह चल पड़े हम मयखाने में
आई पुलिस पड़ा छापा हम मिले तहखाने में
 



  • कान्हा आज भी रोता है कभी-कभी राधा की याद में... :-/
 
 

  • प्रधानमंत्री पद की इससे ज्‍यादा दुगर्ति क्‍या हो सकती है कि जनता सुनने को न आये.. यही अटल की सभा मे लोगो को खड़े होने की जगह नही मिलती थी.. इतने मे भी क्या का्ंग्रेस 22 सीट भी बचा पाने का दावा कर सकती है ? 
     


    काम करो ऐसा, कि पहचान बन जाये;
    हर कदम ऐसा चलो, कि निशान बन जाये!
    यहाँ ज़िन्दगी तो सभी काट लेते हैं;
    ज़िन्दगी जियो ऐसी, कि मिसाल बन जाये!
     


    चंद दिनों पहले sms के जरिये 'एक बच्ची की डायरी' मिली | आप भी पढिये
    : 15 जून - में माँ की कोख में आ गयी हूँ.....|
    : 17 जून - में एक टिशु बन चुकी हूँ.....|
    : 30 जून - माँ ने बाबा से कहा कि तुम बाप बनने वाले हो.....|
    : माँ और बाबा बहुत खुश है...|
    : 15 सितम्बर - में अब अपने दिल कि धडकन महसूस कर सकती हूँ.....|
    : 14 अक्टुबर - अब मेरे नन्हे-नन्हे हाथ-पैर है, मेरा सिर हे.....|
    : 13 नवम्बर - आज मेने खुद को अल्ट्रासाउंड मशीन की स्क्रीन पर खुद को देखा | वाह में एक लडकी हूँ....|
    : 14 नवम्बर - में मर चुकी हूँ | में मार दी गयी, क्योंकि में एक लडकी थी |

    लोग माओं बीबियों और प्रेमिकाओं से मोहब्बत करते है,
    तो फिर बेटियां क्यों कत्ल कर दी जाती है....................?

    डायरी की आखिरी लाइन पढ़ते हुए जो आलम हुआ उसे में बयाँ नही कर सकता हु |

     


    अंत में नागार्जुन जी की एक मजेदार कविता:

    पाँच पूत भारत माता के, दुश्मन था खूंखार
    गोली खाकर एक मर गया, बाकी रह गये चार
    चार पूत भारत माता के, चारों चतुर प्रवीन
    देश निकाला मिला एक को, बाकी रह गये तीन
    तीन पूत भारत माता के, लड़ने लग गए वो
    अलग हो गया उधर एक, अब बाकी बच बच गए दो
    दो बेटे भारत माता के, छोड़ पुरानी टेक
    चिपक गया है एक गद्दी से, बाकी बच गया है एक
    एक पूत भारत माता का, कंधे पर है झंडा
    पुलिस पकड़ के जेल ले गई,
    बाकी बच गया अंडा!
     


    यूपी चुनाव ने एक नई परिभाषा गढ़ी है, पहले खुर्शीद अब बेनी प्रसाद वर्मा के आगे क्या चुनाव आयोग बेचारा साबित हो रहा है या फिर चुनाव आयोग में शेषण जैसे चुनाव आयुक्त की कमी हो गई है जो खुल्ले सांढ़ बनते जा रहे राजनेताओं पर नकेल नहीं कस पा रही है. अपने आप में स्वतंत्र और स्वायत जवाबदेह चुनाव आयोग को नेता हों या मंत्री अपने दायित्वों का निर्वहन करते हुए मतदान और मतगणना तक जानता के प्रति जवाबदेह होते हुए तमाम निर्णय लेने होंगे सामने कोई भी मंत्री संतरी हो,
     

    • जब मालूम हो गया मेरा देवता पत्थर है
      किसलिए माथा रगड़कर मुनाजात करूंगा

      इस जन्म का तो कोटा पूरा हो गया बेचैन
      अब तो अगले जन्म प्यार के ख्यालात करूंगा
     


    बिंदिया चमकेगी .... चूड़ी खनकेगी ...... आसपास कहीं नजदीक ही आर्केस्ट्रा हो रहा है ... कोई लड़की गा रही है .... बहुत गजब का गा रही है .... आवाज, लय और सुर बहुत जोरदार और मस्त है .... हम सुनते हैं .... शुभ रात्रि मित्रवर .... जय श्री कृष्ण ... जय जय श्री राधे
     



    • सबकी सुनता है फिर अपनी कहता हु
      शायद यही गलती करता हु ....सबको सच्चा समझता हु
      सीधीबात कहता हु ...इसी लिए सबको खलता हु
      कल्पनाओ में नही जीता ...तर्क की बाते करता हु ...
      मेरे दोस्त तुम आज नही तो कल समझोगे ....
      में यथार्थ के धरातल पर रहता हु ....शायद यही गलती करता हु ....
      तुम्हे अपना समझता हु ...इसी लिए मुखर हो कहता हु ...
      हजारों मिल जाएँगे दिल्लगी ठिठोली करने वाले .....चोराहे में
      पर दर्पण ना मिलेगा .... .चोराहे में
      तुम्हे अपना समझता हु ...इसी लिए मुखर हो कहता हु ...
      शायद यही गलती करता हु ....****************
     


    जय जवान, जय किसान

    85 %किसानो वाले उत्तर प्रदेश में किसानो के मुद्दे गायब और भारत की 1 प्रतिशत से कम आबादी वाले और उसकी सेना की 10 % हिस्सेदारी वाले उत्तरखंड में सैनिको के मुद्दे गायब थे. वाह री!! राजनीति किसान और जवान दोनों गायब बस हर जगह बेनी, माया, मुलायम, राहुल, उमा व् सलमान है हाजिर, कोई लखनऊ में तो कोई नयी दिल्ली में मौज करेगा,यूँ ही चल रहा है ऐसे ही चलेगा किसान मर रहे देश में और सरहद पर जवान मरेगा!!
     



    • रूह तक नीलाम हो जाती है, बाज़ार-ऐ-इश्क मैं !
      इतना आसान नहीं होता, किसी को अपना बना लेना !!



    वो पूछे हमसे यार ये फसेबूक क्या बवाल है ?????
    हमने भी झन्ना कर बोल दिया ये वो शहर है जो कभी नही सोता और ना सोने देता है ;-)
     

    जिसपर लिखना मुश्किल लगे समझिए सबसे ज्यादा पसंद है.
     

    कल एक षोडशवर्षीय कन्या को "नरसों" शब्द का अर्थ समझाया। दरअसल उसे "परसों" शब्द ही पता नहीं था, तो नरसों क्या खाक समझती। बड़े धैर्य से उसे "Day after tomorrow के बाद आने वाला दिन" कहकर समझाया कि "नरसों" किसे कहते हैं।

    हालांकि वह "या या या, आई नो… आई नो" कहती रही, परन्तु मुझे शक है कि जब कभी उस कन्या को "नरसों" शब्द का उपयोग करने की जरुरत पड़ेगी, तब भी वह वही कहेगी, जैसा मैंने उसे समझाया।

    मेरे सौभाग्य से उसने यह नहीं पूछा कि "क्या नरसों का अगला दिन सरसों" होगा? वरना मुझे "सरसों और नरसों" के बीच का अन्तर समझाने के लिए उसे पंजाब तक ले जाना पड़ता… :)
    ============
    अंग्रेजी के बढ़ते वर्चस्व के कारण आम बोलचाल वाली हिन्दी के कई शब्द विलुप्ति की कगार पर हैं जबकि उर्दू के शब्द तो खत्म ही हो चुके…
     
    तू ने क़सम मैकशी की खाई है "ग़ालिब"
    तेरी क़सम का कुछ ऐतबार नहीं है
     
     

    आदम के हौवा के रिश्तों की दुनिया ओ दुनिया रे!!
    ग़ालिब के मोमिन के ख्वाबों की दुनिया,
    मजाजों के उन इन्क़लाबों की दुनिया..
    फैज़ फिराकों, साहिर मखदूम, मीरे के जौकों की दागों की दुनिया!!
    ये दुनिया अगर मिल भी जाए तो क्या है!!

    मौसम महीना आया बौराने का , कल से सुरताल में फ़कीरा गाएगा ,
    रे फ़ागुन आ गया अंगना मोरे ,कल से जोगी फ़िर , जोगीरा गाएगा ...

    ..तैयारी करिए हो , मंडली , ढोल मंजीरा ले के तैयार रहो
    जी

कम्बख्त इच्छायें भी तरावट मांगती हैं :)....फ़ेसबुक से कुछ कतरे

$
0
0






आइए देखें कि , दोस्त इन दिनों , फ़ेसबुक पर क्या लिख पढ और देख सुन रहे हैं ...इन कतरों से जानते हैं

एक मित्र के लिए, जिसे होले बहुत पसंद है - सुप्रभात



  • मैं उनकी आँखों से सपने देखता हूँ,
    मेरी आँखें उन्हें जो देखती हैं !
     

    आज मेरी माँ की लाडो बेटी का जन्मदिन है. हालाँकि इस बात पर हमारा झगड़ा अभी तक चल ही रहा है. वो क्या है ना कि इसमें भी नम्बर वन टू थ्री फोर का मामला है. थ्री फोर में कोई टेंशन नहीं है. लेकिन वन और टू को लेकर हममें अब तक कोई समझौता नहीं हुआ है. मजे कि बात ये है कि क्रमानुसार देखे तो नंबर थ्री यानी कि मैं और नंबर फोर यानी कि मेरी सबसे प्यारी व नकचढ़ी बहन निकिया (निशि) में नम्बर वन के लिए द्वंद्व बना हुआ है. खैर आज मुझे जो खुशी हो रही है उसे तो मैं फेसबुक में सबको बताना चाहूंगी, निक्की तुम्हारे केक का पूरा हिस्सा आज मैं खाऊँगी, और तो और पूरी सब्जी खीर ये सब भी तुम्हारावाला हिस्सा भी आज मेरे हिस्से में आ गया है. फोन पे इन सबकी भीनी-भीनी महक भेज दूँगी आज उसी से संतोष कर लेना.....आज पापा के दोनों बगल में मैं ही बैठूंगी...... और तुम मुझे ठेल ठेल कर कोई कोशिश नहीं कर सकती... वैसे मुझे डर है इतना सब सुनने के बाद तुम जल्दी से टिकट करा के बेंगुलुरु से घर आ जाओगी, वैसे भी सभी तुम्हारा बेसब्री से इंतज़ार कर रहे है. we all miss you very much on your day....... happy birthday to my नकचढ़ी sis!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!
     

    तेरे बगैर किसी चीज की कमी नहीं
    तेरे बगैर तबीयत उदास रहती है
    रात तो रात है
    धूप भी रात लगती है.......
     
     

    प्यार की डगर पे लडको तुम दिखाओ चल के...
    ये लडकियाँ हैँ तुम्हारी आशिक तुम्हीं हो कल के
     
    सौ हेमंत
    सौ बसंत
    सौ शरद
    बदलने के बावजूद
    कभी कभी
    जलता ही
    रह जाता है
    मन का मौसम
    ग्रीष्म की तरह
    जाने क्यों ?

    आशा पांडे ओझा
     


    जय हो ढोंगी बाबा की :)

    १. हर मजनू को उसकी लैला से प्यार का इजहार करने का एक सुनहरा अवसर दिया जाएगा.. :D
     
    उसने कहा सुन
    अहद निभाने की ख़ातिर मत आना
    अहद निभानेवाले अक्सर मजबूरी या
    महजूरी की थकन से लौटा करते हैं

    तुम जाओ और दरिया-दरिया प्यास बुझाओ

    जिन आँखों में डूबो
    जिस दिल में भी उतरो
    मेरी तलब आवाज़ न देगी

    लेकिन जब मेरी चाहत और मेरी ख़्वाहिश की लौ
    इतनी तेज़ और इतनी ऊँची हो जाये
    जब दिल रो दे
    तब लौट आना

    | फराज़
     
    भूख से इन्सान पैदा होता है. उम्र भर उसे भूख सताती है- प्रेम की, रोटी की, शांति की. भूख और प्यास हमारे सबसे बड़े भुत हैं. मैं सबसे पहले इन भूतों से मुक्ति पाना चाहता हूँ. दूसरी मुक्ति मुझे आप से आप मिल जाएगी.
    - कुर्तुल एन हैदर (आग का दरिया)
     


    चिलचिलाती धूप में डेढ़ किलोमीटर का आफ्टरनून वॉक करके एक जगह पहूंचा हूँ। इतनी कम दूरी के लिये कोई टैक्सी वाला आने तैयार ही नहीं हुआ। एक को पूछा, दूसरे को ...तीसरे को और पूछते पूछते सबके ना करने के बीच जब मंजिल करीब दिखी तो पैदल ही 'दाब' दिया :)

    भयंकर गर्मी के बीच रास्ते में पानी का टैंकर जाता दिखा जिसके होज पाईप से पानी लीक हो रहा था। मन किया टैंकर वाले को कीमत अदा कर गाड़ी साईड में लगवाऊं और टैंकर के वाल्व खोल उसके बंबे के मोटे पानी से खूब तरी लूँ :)

    कम्बख्त इच्छायें भी तरावट मांगती हैं :)
     
    मैं चलता हूं
    मतलब अखबारों के पास रुकता हूं
    कुछ खबरें पकड़ता हूं
    कुछ खबरों में खुद को जकड़ता हूं
    आप सोच रहे होंगे कि
    मैं क्‍यों इतना अकड़ता हूं
    अकड़ अकड़ कर हो जाता हूं मैं ढीला
    खबरों का मन और मानस में
    बनाता हूं एक खूबसूरत मजबूत टीला
    फिर उस टीले पर सबको चढ़ाता हूं
    मैं तो उतर आता हूं
    आप सबको वहीं पर छोड़ आता हूं।

    तैयार रहिए
    कुछ न कहिए
    सुनते रहिए
    पसंद करिए
    टिप्‍पणी कहिए
    विचारों में करवट
    तरावट महसूसिए

    पुस्‍तक मेले की सोचिए
     
     
    मित्रता अनुरोध भेजने वाले उन मित्रों के प्रति खेद है, जिनका आग्रह चाह कर भी स्वीकार कर पाना अनेकानेक कारणों से संभव नहीं।
    सबसे पहला तो यह कि गत लगभग साढ़े तीन माह में 2 हज़ार से अधिक लोगों को अनफ़्रेंड करने के बाद भी मेरी मित्रता सूची में 4000 + का आंकड़ा पहले ही पूरा हो चुका है, अधिकतम 5000 तक नहीं ले जा सकती क्योंकि कुछ अवकाश बना रहना चाहिए। ऐसे में मैं चाह कर भी मनवांछित लोगों को पढ़ नहीं पाती।
    प्रतिदिन 6-से 10 लोगों को ( जिन्होने वर्ष भर से कभी कोई संवाद नहीं किया या जिनकी प्रोफाईल से कुछ संदिग्ध प्रतीत होता है) को सूची से हटाने के बाद ही किन्हीं नए मित्रों को जोड़ा जा पा रहा है। किन्तु अधिकांश का आग्रह अस्वीकार करना पड़ता है।
    ऐसे मित्र बुरा न मानें। वे मित्रतासूची में न होकर भी नेट पर जुड़े रह सकते हैं क्योंकि मेरे अधिकांश अपडेट सार्वजनिक होते हैं, हर कोई उन्हें पढ़ सकता है उन पर अपनी प्रतिक्रिया लिख सकता है। अतः संवाद में कोई समस्या नहीं।
    सब्स्क्रिप्शन का विकल्प भी खुला है, इसके द्वारा सभी अपडेट आपको आपकी प्रोफाईल में मिल सकते हैं। सब्स्क्राईब करने में कोई अड़चन अथवा सीमा नहीं है। मैं अपनी प्रोफाईल को पेज़ बनाने अथवा एक और नई प्रोफाईल बनाने के फिलहाल पक्ष में नहीं हूँ। अतः यह मेरी सीमा है। क्षमा कीजिएगा।
     


    पिछले एक घंटे से गोरखपुर से नई दिल्ली के लिए रिज़र्वेशन के प्रयास में लगा हूं. आइआरसीटीसी की सूचना के मुताबिक 26 मई की तारीख में अभी काफ़ी बर्थ शेष हैं, लेकिन पूरा प्रॉसेस होने के बाद पासवर्ड वेरीफिकेशन की जगह कोई डिब्बा ही नहीं बन रहा है. कम से कम 10 बार कोशिश कर चुका हूं, पर नतीजा निल. ये है कांग्रेसी पारदर्शिता. अकसर ऐसा ही होता है. आप क्या कर लेंगें
    एक आंचलिक -पूर्वांचली शब्द है -समौरी -जिसका अर्थ है समवयी लोग -मित्रगण क्या इस शब्द की व्युत्पत्ति को प्रकाशित कर सकेगें!
     
     

    Sudha upadhyaya
    हम चुप हैं की खलल न पड़े चुप्पी में
    आप चुप हैं की सबकुछ कहा जा चुका है
    वे भी चुप हैं की जवाब देने के लिए उनके पास कुछ भी नहीं
    आवो बात कर लें इसी बारे में
    जिसे लेकर इतने लम्बे अरसे तक हम चुप रहे ...
     

चेहरों की बातें ……..फ़ेसबुक

$
0
0





इन दिनों कमाल धमाल रूप से ब्लॉगिंग् में और कहें कि ब्लॉग पोस्टों में इस बात की खूब चर्चा हो रही है कि फ़ेसबुक की तीव्रता और उसकी आक्रामक शैला ने कहीं न कहीं ब्लॉगिंग से उसके धुरंधरों को खींच कर अपनी तरफ़ कर लिया है । जो कभी दिन रात ब्लॉगिंग में रमे उलझे रहते थे अब फ़ेसबुक पर लगाता स्टेटस अपडेट और बहस विमर्श , बतकुच्चन , और टिप्पणियों में व्यस्त हैं । हमने यही सोच कर तो इस ब्लॉग को बनाया था , तो चलिए देखते हैं कि हमारे अंतर्जालिए दोस्त फ़ेसबुक पर आज क्या पढ देख लिख कह रहे हैं ……………



फेसबुक ने करवाई घर में चोरी!!
संभव है ?



आज फ़िर लिट्टी चोखा है, बहुत ही ज्यादा पसंद का हो गया है।


  • Parveen Chopraमैंने इस लिट्टी चोखे के बारे में इतना सुन लिया है..विनोद दुवा के शो में भी ...और भी बहुत जगह पर। मुझे इसे खाने की बहुत इच्छा है। काश, मैं इसे खा पाऊं .... मिलेगा तो दिल्ली में ही मिलेगा। वैसे यह जो खाकी रंग की चीज़ दिख रही है, यह क्या है, यह तो मीठी होगी?

ईमानदारी की तरह घट रही हैं बेटियां
 
 

जीवन का पृष्ठ क्या दिया अपना , तुम तो हाशिये तक फ़ैल गए
मुस्कुराने के चंद शब्द ढूंढे हमने , और शे'र . तुम्हारे सज गए ..


जिसने भी मैगी का आविष्कार किया है मैं उस महानुभाव के लिए नोबेल पुरस्कार की सिफारिश करता हूं। रसोई बनाने में नाकाबिल मुझ जैसे आलसियों के लिए वरदान है मैगी। आह मैगी, वाह मैगी
 

जो धरती से अम्बर जोड़े
उसका नल प्लंबर तोड़े
 

अब खबर वो है जो छपती नहीं,
और जो छपता है, वो यशो गान है.

आप सभी का इतना प्यार और अपनापन पाकर अभिभूत हूं। ईश्वर से एक ही प्रार्थना है कि आने वाले वर्षों में भी आपका प्यार ऐसे ही मेरे जीवन का हिस्सा बने रहे।
 

एक वाकया है जैनेद्र और राहुल सांकृत्यायन में इस बात पर बहस हो रही थूी भगवान है या नहीं , जैनेन्द्र का मानना था भगवान है ,राहुल का कहना था भगवान नहीं है, दोनों ने पक्ष-विपक्ष में खूब तर्कदिए। यह बहस बहुत लंबी चली,घंटों खर्च हो गए। अंत में अज्ञेय ने हस्तक्षेप किया और कहा भगवान था और मर गया। दोनों पक्ष बड़े खुश हुए।


कभी पढ़ा था "सत्यं ब्रूयात, प्रियं ब्रूयात" इसके आगे था "न ब्रूयात सत्यं अप्रियम"...जब सत्य अप्रिय हो तो क्या करना चाहिए? चुप रह जाना चाहिए?
 
कैनवास पर कभी जिंदगी को पेंट करने की कोशिश नहीं करनी चाहिए ,जिंदगी चलती रहती है ,जबकि पेंटिंग स्थिर होती है |कुछ यूँही जिंदगी भी महज एक कविता नहीं हो सकती !कविता लिख जाने के बाद, समय के किसी छोर पर खामोश बैठी रहती है ,जबकि जिंदगी नयी गजलों ,नए गीतों नए शब्दों की तलाश में आगे बढ़ जाती है

अब तो ई संसद बड़ी मुखर है जी ......छुईमुई जो है सो है :)
Pankaj Dixitके पोस्टर...
 

शहर का आबो-हवा अब कुछ इस कदर बदल गया है ,
कि दुप्पटे की तलाश में ,हवा का दम निकल गया है !!!!
 
कुछ दिन हुए मेरे फोन से सारे कॉन्टेक्ट डिलीट हो गए हैं. अभी मेरे फोन में सिर्फ उनका ही नंबर है जिनसे मुझे बात करनी थी या फिर उनके जिन्हें मुझसे बात करनी थी. सो कृपया उलाहना देना बंद करें कि मैंने उनसे उनका नंबर नहीं माँगा या उन्हें पिछले कुछ दिनों से फोन नहीं किया. क्योंकि इतने दिनों में वे सभी उलाहना देने वाले भी तो मुझे फोन नहीं किये हैं, जरूरत तो आपको भी मेरी नहीं थी!!

मेरा यह स्टेटस उनके लिए नहीं है जिन्हें इस बात की समझ है, और जिन्हें यह पढ़ कर बुरा लग रहा हो, मुझे उनकी परवाह नहीं है.. आजिज आ चुका हूँ ऐसे उलाहने सुन-सुन कर.
 
 

मैं तो हर मोड़ पर तुझको दूँगा सदा
मेरी आवाज़ को दर्द के साज़ को तू सुने ना सुने

मुझे देखकर कह रहे हैं सभी मोहब्बत का हासिल है दीवानगी
प्यार की राह में फूल भी थे मगर मैने काँटे चुने

जहाँ दिल झुका था वहीं सर झुका मुझे कोई सजदों से रोकेगा क्या
काश टूटें ना वो आरज़ू ने मेरी ख़्वाब जो हैं बुने
 

जेठ की दुपहरी

जेठ की तपती दुपहरी
आग जो बरसा रही
बर्फ़ की चादर लपेटे
ठंढ भी शरमा रही ।

स्याह लावा हर सड़क पर
बस पिघलता जा रहा
चीख प्यासे पाखियों की
दिल को अब दहला रही ।

दूर तक दरकी है धरती
घाव बस सहला रही
सोत पानी का दिखा कर
आंख को भरमा रही।

हर नदी अब भाप बन कर
धुंध में मिल जा रही
तलहटी की रेत भी अब
भय से बस थर्रा रही ।
0000
हेमन्त कुमार
 

आप्तवाक्य> फेसबुकीय मूर्खता जन्मसिद्ध अधिकार है; पर उसका दुरुपयोग नहीं होना चाहिये। शुभ रात्रि।
 

समाज-विज्ञान के नियमानुसार मँहगाई और नैतिकता में व्युत्क्रमानुपाती सम्बन्ध है अर्थात आम जन-जीवन में मँहगाई जितनी बढ़ेगी नैतिकता उसी अनुपात में घटेगी - अतः हे वर्तमान सरकार के कर्णधारों यदि संभव हो तो नैतिक-मूल्यों पर दया करते हुए मँहगाई को घटाने की दिशा में सच्चे मन से कदम उठायें अन्यथा भारतवासी आपलोगों को जल्द ही वर्तमान जिम्मेवारी से मुक्त करते हुए शीघ्र गद्दी से उठा देंगे
 
 
तो आज के लिए इतना ही ...अब मिलेंगे कल कुछ और चेहरों के साथ 

हर चेहरा कुछ कहता है

$
0
0







मैं बहुत कुछ लिखना चाहता हूं, मगर कमजोरी...वह स्‍थायी थकावट, जो मेरे ऊपर तारी रहती है, कुछ करने नहीं देती। अगर मुझे थोड़ा-सा सुकून भी हासिल हो, तो मैं वो बिखरे हुए खयालात जमा कर सकता हूं, जो बरसात के पतंगों की तरह उड़ते रहते हैं, मगर...अगर...अगर करते ही किसी रोज मर जाउंगा और आप भी यह कहकर खामोश हो जाएंगे, मंटो मर गया।...मंटो तो मर गया, सही है... मगर अफसोस इस बात का है कि मंटो के यह खयालात भी मर जाएंगे, जो उसके दिमाग में महफूज हैं।
--मंटो ने अहमद नदीम कासिमी को 12 फरवरी, 1938 को एक ख़त में लिखा।



सूरत बदल गई पर दिल तो वही पुराना,
हम तो समझ रहे पर नासमझ ज़माना !
 



एक बड़ा तबका निजी और समाजिक जीवन में तमाम सफलताओं के बावजूद इस बात को लेकर दुखी रहता है कि वो जो बनना चाहता था वो बन नही पाया .
 
 



कद्रदान मुझ जैसे मिला हो कोई तो बताओ ?
कद मेरा तुमसे पहले न बड़ा था ,न बड़ा है !
सुप्रभात !
 

  • विवेक और बुद्धि के अभाव में नेता कुछ भी कर सकते हैं......... 
 
 
किस्मत का हाल भी है तेरी जुल्फ के जैसा

अपनी कोशिशों से तो बस ये उलझा ही करे


रिश्तों के बदले सीन, हीर मिले मजनूं से

और लैला से मुलाकात तो अब रांझा ही करे


दारु मिल जाये उसे, तो खेंच ले अकेला ही

दुख हों अगर पास, तो उनको वो सांझा ही करे


एयर इंडिया का पायलेट है या सुब्रहण्यम स्वामी

जो मिल जाये उसे, उससे वो जूझा ही करे


दूर रहना आलोक से, खतरनाक से हैं

उन्हे तो रोज ही खुराफात सूझा ही करे


इश्क की पहेली के हल होते ही नहीं

जो भी बूझे, उम्र भर बूझा ही करे
 
आदमी विज्ञापन ,
आदमी इंटरनेट ,
आदमी है घोटाला
आदमी कुछ नहीं साइबर का एक शोला
नाचता , हांफता , दौड़ता सा आदमी
निरंतर बैचेन , बेलिहाज़
अब पूंजी में बदल गया है आदमी
चंचल पूंजी ...
हर समय अस्थिर ...
न जाने हम कि अब क्या है आदमी
हमारी पकड़ से तो अब बाहर है आदमी
आदमी है एक पहेली
वो न सुलझी है न सुलझा है आदमी |
 
 

  • कभी कभी ये नादान शब्दों के घेरे हमारे जज्बातों को समेट नहीं पाते, ये एहसास यूँ ही बारिश के रंग में घुलकर बहते रहते हैं इन गलियारों में... जाने क्यूँ अचानक से इस बारिश में सांस लेने में तकलीफ होने लगती है, जैसे ऑक्सीजन इन पानियों में भीगकर कुछ और ही बन गया है...
     

    दोस्तो ! इस बार गर्मियों की छुट्टियों में कहां जाना चाहिये ? ज़रा मशवरा दीजिए ।

तारो के तेज में चन्द्र छिपे नहीं

सूरज छिपे नहीं बादल छायो

चंचल नार के नैन छिपे नहीं

प्रीत छिपे नहीं पीठ दिखायो

रण पड़े राजपूत छिपे नहीं

दाता छिपे नहीं मंगन आयो

कवि गंग कहे सुनो शाह अकबर

कर्म छिपे नहीं भभूत लगायो।


कवि गंग
चिलचिलाती धुप
सुलगती जमीन
और आग उगलता आसमान
ऐसे ठीक दुपहरिया में
किसी वीराने में जाकर
एकदम से मस्त होकर
सुहानी मौसम का आनंद महसुसना
कितना मनमोहक
बोलो भला
पगला गया है क्या
मरने का उपाय सुझा रहे हो का

हे हे
दिखावे पे ना जाओ
अपनी अकल लगाओ
 
 
 

‎... मूलत: यह मातृत्त्व से घृणा है जो कि पुरुष के प्रति अभिव्यक्त होती है। - समझावन साव के एक गम्भीर आलेख की अंतिम पंक्ति।
 

एक उम्र जीती है हमने .....एक उम्र हार के ..। ;)
 

जरा सोचिए......देश के भविष्य का वास्ता देकर एक नारा दिया गया था ...... दो या तीन बच्चे, होते हैं घर में अच्छे । इस पर देश वासियों ने अमल किया भी, नहीं भी । कारण कुछ भी रहे हों, तीन बच्चे... अच्छे होते तो थे.... पर घर में, सफर में नहीं । अब नारा देने वालों ने मुसीबत कम करने में मदद की और दूसरा सीधा सपाट सा नारा ठोंक दिया... हम दो, हमारे दो । जी हां, हम दो, हमारे दो । इसके बाद, चैन से सो...हरकत बंद, तीसरे पर प्रतिबंध । यह नारा कुछ ठीक लगा । सफर में रंग रहे । दो बच्चों का संग रहे । मियां बीवी के गिले शिकवे समाप्त । परिवार की इस मिली-जुली उपलब्धि को फिफ्टी-फिफ्टी बांट कर चलो मजे से, सफर हो या सैर सपाटा । परिवार, न बढ़ा, न घटा । जनसंख्या भी जहां की तहां । मगर मेरे देश के लल्लुओं ने कोई कसर नहीं छोड़ी और बड़े परिवार को संभालने में चारा तक खा गये । नतीजा..... नारा, न रहा ।
 

आमिर ख़ान के साथ 'दिल पे लगी और बात बनी' सुनिए। सभी हिंदी भाषी राज्‍यों में अभी ग्‍यारह बजे से। ये कार्यक्रम टीवी शो सत्‍यमेव जयते का फॉलोअप है। अगर अभी चूक जायें तो विविध भारती पर दिन में साढ़े तीन बजे सुनिएगा।



मैंने यहाँ कोई एक बात लिखी..उसी आशय की कोई बात किसी और ने कही दूसरी जगह पढ़ी ..उसने कहा ..कि उसने तो ये बात कही और पढ़ी ..ये आपकी नहीं है जब कि मैंने कही से पढ़ के नहीं लिखी थी..जानती हूँ कि मै अपनी जगह पे सही हूँ.फिर भी सवाल ये है कि --- एक ही विचार/बात क्या दो लोगो के दिमाग में नहीं आ सकती ?

एक पुरानी, घिसी-पिटी कहानी को नए अंदाज में किस तरह कहा जा सकता है, निर्देशक हबीब फैज़ल ने 'इशकजादे' में इसी कौशल को दिखाया है। फिल्म में किलो के भाव में गोलियां चली हैं, लेकिन मुंबइयां फिल्मों की तरह इन गोलियों के अंधड़ में मरता एक भी नहीं है। उत्तर प्रदेश के एक छोटे से शहर को केंद्र में रखकर लिखी इस कहानी में पुलिस नाम की चिड़िया दूर दूर तक नहीं दिखायी देती। लेकिन, पर्दे पर जो भी दिखायी देता है, उसे भरोसे लायक बनाने में अर्जुन कपूर और परिणिती चोपड़ा ने शिद्दत से कोशिश की है। फिल्म पैसा वसूल है, लेकिन बच्चों को न दिखाएं तो बेहतर है :-)



आज शाम को जबरदस्त गोलगप्पा पार्टी होगा..... घर में ही बनेगा और फ़िर नो लिमिट का गैरैन्टी.... :-)


जब कोई पूरे होशो-हवास में यह कह रहा हो कि फ़लां को फ़लां अपराध के लिए सरे-आम गोली मार देनी चाहिए, फ़ांसी पर लटका देना चाहिए, सामाजिक बहिष्कार कर देना चाहिए......तो तुरंत समझ जाना चाहिए कि वह फ़ासीवादी-तालिबानी मानसिकता का अहंकारी व्यक्ति है और लोकतंत्र और उदारता का चोला उसने किसी मजबूरी या रणनीति के तहत पहन रखा है। अपनी बात को अंतिम सत्य मानने वाले ऐसे किसी समूह के हाथ में सत्ता दे देने का मतलब है कि भविष्य में आप भ्रष्टाचार या अन्य किसी बुराई की अपनी तरह से व्याख्या करने की स्वतंत्रता भी खो देने वाले हैं।


शंकर ने एक कार्टून बनाया जब अम्बेडकर और नेहरु दोनों ज़िंदा थे. मुझे पूरा यकीन है कि इन दोनों ने इस कार्टून को पसंद किया होगा. मगर इस पर ही दलित राजनीति शुरू हो गई. सरकार ने तुरंत माफी मांग ली. किताब से हटा दो, यह फतवा भी इशु हो गया. कल संसद में जो हुआ उस पर ही एक कार्टून बनना चाहिए.



हँसी आती है मुझे तेरी हर बात से
बेतुकी जो होती हमेशा शुरुआत से


इश्क में दिल सबसे ज्यादा संक्रमित होता है इसलिए डिटोल का इस्तेमाल अवश्य करें...



  • खुद को जानना सबसे कठिन काम होता है. आदमी अपना चेहरा कभी नहीं देख पाता, अगर आइना, पानी, कैमरा या ऐसी ही चेहरा दिखाने वाली दूसरी वस्तुएँ इस दुनिया में ना हों तो.
    हम खुद में क्या सोचते हैं, ये हमीं जानते हैं, पर हमारे दूसरों के प्रति व्यवहार का आकलन दूसरे लोग ही ज्यादा ठीक से कर पाते हैं.

चेहरों की गुफ़्तगू , चेहरों के अफ़साने

$
0
0

 

 

अक्सर दोस्तों को ये कहते देखते सुनता हूं कि फ़ेसबुक ने ब्लॉगिंग का बेडा गर्क करके रख दिया है । ब्लॉगिंग की थमी रफ़्तार के लिए फ़ेसबुक ही जिम्मेदार है आदि आदि । यही सोच कर इस ब्लॉग को बनाया कि , ब्लॉगजगत तक फ़ेसबुक पर कही सुनी जा रही बातों को , साझा किए जा रहे वाक्यों , संदर्भों को ब्लॉगजगत के पाठकों तक पहुंचाया जाए ताकि ये देखा महसूस किया जाए कि क्या सच में ही फ़ेसबुक सिर्फ़ समय की बर्बादी भर है , क्या सच में ही वहां कुछ भी सार्थक , औचित्यपूर्ण नहीं हो रहा है , आइए देखते हैं कि आज वहां मित्र/दोस्त क्या लिख पढ रहे हैं

 

Gyan Dutt Pandey

कल शाम रामबाग स्टेशन गया था। वापसी मे‍ सड़क के किनारे यह गुम्मा सैलून दिखा और उसके पास विज्ञापन - डा. कुमार बवासीर को एक टीके से जड़ से खत्म करते हैं।

डा. कुमार को बायो साइन्सेज मे नोबेल पुरस्कार मिलना चाहिये। नहीं?

  
     
    • Mahfooz Ali

      गुड मोर्निंग फ्रेन्ड्स... हमारे यहाँ (गोरखपुर में) दो कहावत है...

      १. बाप पदे ना जाने और पूत शंख बजावे (बाप पादना नहीं जानता है और पूत शंख बजा रहा है)

      २. बाप चमार, बेटा दिलीप कुमार.

      यह दो कहावतें बहुत सारे फेसबुकियों और ब्लौगर्ज़ पर बिलकुल फिट बैठती है...(पर्सनल क्सपीरियंस)

      (मैं अपने तानों से बहुत सारे फेसबुकर्ज़ को खो रहा हूँ, पता नहीं क्यूँ लोग यह सोचते हैं कि मैंने उनके लिए लिखा है. थैंक्स गौड.. वो लोग मेरे दोस्त नहीं हैं.)

     

    Pankaj Narayan

    आज फिर से सुबह ने सूरज के लिए दरवाज़ा खोला और मैंने नये दरवाज़ों के लिए अपनी आंखें खोली...

      
     

    Prem Chand Gandhi

    उसका होना भी क्‍या होना है

    जिसे पाना है

    न खोना है

    बस इतना होना है कि

    आंसुओं के झरने में

    ग़म का पैरहन धोना है....

    *'छोटा खयाल' शृंखला से*

      
     

    GK Awadhiya

    मैं यह नहीं कहूँगा कि मैं 1000 बार असफल हुआ, मैं यह कहूँगा कि ऐसे 1000 रास्ते हैं जो आपको असफलता तक पहुँचाते हैं। - थॉमस एडिसन

      
     

      

    अनिल पुसदकर

    पेट्रोल के दाम बढाये जाने के विरोध में मैंने साइकल चलाई.एक ही चक्कर लगाया और नेताओं की तरह फोटो भी खिंचवा ली और फेसबुक मे अपनी दीवार पर पोस्टर की तरह चिपका भी दी.अधिकांश लोगों पसंद भी की लेकिन कुछेक लोगों ने नाराजगी भी जताई.उनका कहना था कि महंगाई मैं तो पेट्रोल गाडी चलाता ही नही तो फिर विरोध क्यों?फिर चार चक्के से सीधे दो चक्के पर आना कुछ जमा नही.मुझे भी लगा की बात तो सही है चार चक्के से सीधे दो चक्के पर आने की बजाय बीच का रास्ता निकाला जाये.अब बीच का रास्ता यानी तीन चक्के की सवारी.या तो आटो या रिक्शा!दोनो ही चलाना अपने बस का नही था.फिर याद आया कि अपने पास तीन चक्के वाली सवारी चलाते हुये एक तस्वीर भी है सो सोचा कि दुनिया भर के पोस्टर हमारी दीवार पर लोग चिपका कर चले जाते हैं तो क्यों ना एक पोस्टर हम खुद अपना भी चिपकाते चलें.लिजिये मज़ा इस पोस्टर का और बताईये कैसा लगा!

       
     

    Satish Saxena

    मुझे याद है ,थपकी देकर,

    माँ अहसास दिलाती थी !

    मधुर गुनगुनाहट सुनकर

    ही,आँख बंद हो जाती थी !

    आज वह लोरी उनके स्वर में, कैसे गायें मेरे गीत !

    कहाँ से ढूँढूँ ,उन यादों को,माँ की याद दिलाते गीत !

      
     

    Ajay Brahmatmaj

    कुछ व्‍यक्ति मिलने के सालों बाद दुख का कारण बनते हें। उनका मुखौटा बहुत मोटा और गहरा होता है। वक्‍त के साथ मुखौटा उतरता है तो घिनौना रूप नजर आता है। कल ऐसा ही कुछ हुआ। बहुत दुखी हूं। क्‍यों मिला और क्‍यों मिलवाया उन्‍हें दोस्‍तों से ? आठ महीने में दो व्‍यक्ति नजरों से गिरे। उन्‍हें सख्‍त चोट आई होगी। बावजूद इन दुखों के विश्‍वास कायम है नए लोगों में।

      
     

    Shambhu Kumar Jha

    शीशा हो तो तोड़ भी देता

    पत्थर दिल को क्या छेड़ूँ

    अपना दिल ही बागी निकला

    पहले उसको तो घेरूँ

    नफरत की दीवार

    खड़ा करने को इतना आतुर हूँ

    घाव की मोती पिरो पिरोकर

    दिनभर उसको ही फेरूँ

       
     

    Kavi Yoginder Moudgil

    aaj ki panktiyan.....

    प्रिंट मीडिया

    हो या इलेक्ट्रोनिक मीडिया

    ख़बरों का संसार

    टीवी या अखबार

    कुछ भी देख लो मेरे यार

    विज्ञापनों ने बदल दी देश की हवा

    एनलार्ज, ब्रेस्ट टोनर, उभार और उभारने की दवा

    विज्ञापनों कि रेल-पेल

    एनर्जिक ३१, सांडा, मस्त कलंदर, जापानी तेल

    इन सबको इतनी मात्रा में इतने विस्तार में

    पढ़ कर लगता है

    देश का पुरुषार्थ कहीं खो गया

    और पूरा देश कहीं हिजड़ा तो नहीं हो गया

    और शायद हो ही गया है

    तभी तो कोई मुंह नहीं खोलता

    भरे चोराहे पर हत्या हो जाये या बलात्कार

    भरे दफ्तर रिश्वत का गरम बाज़ार

    भरे घर में दहेज़ हत्या, भ्रूण हत्या,

    गालियां मंडित अनाचार

    कोई कुछ नहीं बोलता

    कोई कुछ नहीं बोलता

    --योगेन्द्र मौदगिल

        
     

    Padm Singh

    एक क्लासिकल भजन सुन रहा था.... "मनमोहना बड़े झूठे"

    .....अब तक कनफ्यूज़ हूँ ये भजन किसके लिए लिखा गया है ?

      
     

    श्याम कोरी 'उदय'

    कलम मेरी 'उदय', उन मगरुरों के लिए नहीं चलती

    सच ! जो, खुद को कलम के देवता समझते हैं !!

      
       
      • डॉ. सरोज गुप्ता

        जल जलकर आज भी वैसे ही पिघलता है मोम ,

        तुमने पत्थर को पिघलाने के लिए तिल्ली जलाई होगी !

        सुप्रभात !

        
       

      Rajiv Taneja

      बछिया मेरी..सुबह शाम रोती है गाँव में

      चरते चरते छाला जो पड़ गया....पाँव में

        
       

      Vipin Rathore

      पेट्रोल पम्प पर नोटिस बोर्ड:

      डर तो सबको लगता है, लेकिन डर के आगे जीत है! आइये और कार में पेट्रोल डलवाईए!

        
       

      Kajal Kumar

      अब फ़ि‍क्‍सरों को साल भर का आराम...

        
       

      पी के शर्मा

      आजकल खबरें आ रही हैं कि..... मंगल पर पानी था......आगे आने वाले समय में आने वाली खबरें होंगी..... पृथ्‍वी पर पानी था...

         
       

      Yagyesh Mani Tripathi

      चेन्नई वाले यह सोचकर मैच हार गए की जीतने वाली टीम को जो कार मिलेगी वो 'पेट्रोल कार' है ...

      शायद धोनी भी अंतिम ओवर में ब्रावो को यही समझा रहे थे.... :P

        
       

      Options

      रजनीश के झा

      शाहरुख़ खान की धमकी काम आई, इस बार के के आर चैम्पियन नहीं बनेगा तो मैं आई पी एल की अपनी टीम बेच दूंगा ;-)

        
       

      Vineet Kumar

      आजतक शाहरुख की तारीफ में ऐसे लोट रहा है,मानो ये रन शाहरुख ने ही बनाए हों. खिलाड़ियों पर कोई बात नहीं हो रही. आइपीएल ने क्रिकेट को मालिक प्रधान बना दिया है, खिलाड़ी टट हो गया है. शाहरुख की टीटीएम,ताबड तोड़ तेल मालिश शुरु..

        
       

      चंदन भारत

      जो चीजें घरों में रहती थी वो अब हर चीज अब बाजारू है

      पहले बाजारों में दूध बिकता था अब गली गली में दारु है|

        
       

      Vk Shekhar

      सोचने से कोई राह मिलती नहीं

      चल दिए हैं तो रस्ते निकलने लगे

        
       

      Grijesh Kumar

      तू ही था जिसपर मुझे नाजिश था कभी

      आज तेरे ख्याल भी खामोश फीके हैं

        
       

      Neeraj Badhwar

      अच्छा होता अगर मुम्बई में अपने ख़राब बर्ताव के साथ-साथ शाहरुख रा वन के लिए लोगों से माफी मांग लेते!

        
       

      धीरेन्द्र अस्थाना

      हर साँस पे आती थी याद, उसकी हंसीं अदा !

      मालूम न था के तन्हाईयों में खंजर बनेंगीं !!

      बोलते बतियाते चेहरे ..........

      $
      0
      0



      चलिए आज देखते हैं कि कौन कहां क्या देख पढ सुन रहा है अंतर्जाल के उस मंच पर जिसे मुख पुस्तक कहा जाता है ..



      ये चि‍त्र दि‍ल्‍ली के एक मॉल का है...
      यहॉं आटा-चक्‍की तो पहुँच गई, बस दातुत भी पहुँचती ही होगी ☺


      पूजा ने एक बार कभी अपने ब्लॉग में सही लिखा था :

      "होता है न जब आप सबसे खुश होते हो...तभी आप सबसे ज्यादा उदास होने का स्कोप रखते हो."




      पिछले साल भी कहा था "आजादी की लड़ाई है", फ़िर से इस साल.. जनता कन्फ़यूज हो गई है आजादी की कितनी लड़ाई लड़नी पड़ेगी ।



      • समय के साथ चलने के मुहावरे सुन कर जब बोर होने लगा, तब समय ने ही खड़ा होना सिखाया। खड़ा होने पर जब कोई रास्ता दिखाई नहीं दे रहा था, तब पांवों में आंखों का जन्म हुआ और धरती ने चलना सिखाया। चलते हुए जब समझा कि मंज़िल दूर है, तब धरती को दूसरे छोर पर छूते आसमान ने उड़ना सिखाया।




      आज सुबह से ही मीडिया वाले रामदेव और अन्ना के एक मंच पर आने से दुखी और परेशान लग रहे थे.उनकी हर कोशिश यही थी कि किसी तरह वह यह साबित कर दें कि रामदेव और टीम अन्ना में बहुत मतभेद हैं और यह मिलन बस आज ही समाप्त हो जाएगा. हर चेनल ने कुछ ऐसे बंदे इकट्ठे कर रहे थे जो वही कह रहे थे जो चेनल वाले चाहते थे. पर यह संभव नहीं हो पाया. रामदेव और आना ने घोषणा कर दी कि उन्हें कोई ताकत अलग नहीं कर सकती. बेचारा बिका हुआ मीडिया अपने खरीदारों को खुश नहीं कर पाया.



      पत्नी की याद में

      मैं एक उलझी लट हूँ तुम्हारी
      जिसे सुलझाना भूल गई हो
      मैं तुम्हारी आँखों का बिखर गया काजल हूँ
      जिसे निखारना भूल गई हो
      मैं मांग भराई के समय माथे तक फैल गया सिंदूर हूँ
      जिसे अब सिंदूरदान में रखने की जरूरत नहीं है
      मैं तुम्हारी वो रात हूँ
      जिसके तमाम तारों पर तुमने खुद घने बादल मढ़ दिए हैं
      मैं तुम्हारा वो बिछुआ हूँ जो धान के खेत में गिर गया.....




      कुछ है की हवा का रुख बदला सा है
      क्या कहीं लोगों का जमीर जगा सा है
      क्या बदलते हालात भरोसे के लायक हैं?
      या की ये सब बस हवा सा है.......................रत्ने




      My new laptop Sony vaio VPCEH36EN/Black




      चार अक्षर चालीस छपेंगे
      घट बढ़ गड़बड़ मोल भरेंगे
      इस धंधे की माया ऐसी
      मोल तोल मे झोल करेंगे

      ©यशवन्त माथुर


      ये भ्रम भी अच्छी नहीं साहब
      वक्त गुजरने से गम नहीं गुजरते




      लो मैं आ गया..........................

      ये रात ये तन्हाई,
      ये दिल के धड़कने की आवाज़,
      ये सन्नाटा
      ये डूबते तारों की
      खामोश गज़लख्वानी,
      ये वक्त की पलकों पर
      सोती हुई वीरानी
      ज़ज्बात-ए-मुहब्बत की
      ये आखिरी अंगड़ाई
      बजती हुई हर जानिब
      ये मौत की शहनाई
      सब तुम को बुलाते हैं
      पल भर को तुम आ जाओ
      बंद होती मेरी आँखों में
      मुहब्बत का
      इक ख़्वाब सजा जाओ.




      • हर्ष , फिर विषाद / पनकौवे पर सवार / नौका मछलीमार । (बाशी )




      मै जो देख रहा हूँ , वो बिना चश्मे के....और आप ?


       Profile Picture
      मुझे ये पंकज की लिखी सबसे बेहतरीन पोस्ट में से एक लगती है..कुछ भी कहना आसान नहीं है इस पोस्ट पर..कई बार पढ़ चूका हूँ इसे अब तक..पिछले कुछ दिनों से पंकज के ब्लॉग के चक्कर लगाता रहा हूँ..सच में यार, बहुत दिन हो गए..अब कुछ तो लिखो..I really miss your blog posts Pankaj
      pupadhyay.blogspot.com
      फ़ोन पर एक लंबे सन्नाटे के बाद मैंने कहा, रिजर्वेशन करवा देता हूँ। ’रहने दो, इंटरसिटी से ही आ जाऊंगा।’ मैंने कहा ’दिक्कत होगी।’ ’नहीं होगी! रहने दो।’



      यूं मैं कुछ नहीं
      यूं तो तू भी कुछ नहीं
      पर तू जो है, मैं हूं जितना भी
      हम हैं, बस हैं।
      यही तोलते हुए,
      जो था, सुनहरा था
      जो है, बुरा है,
      होना चाहिए जो, वो होगा ही नहीं
      निकलते जाते हैं हाथ से सब लम्हे
      एक-एक कर
      कभी तो तराजुओं को अलग रख यूं ही कुछ बटोर लें
      सीपियों और मोतियों के बिना भी रेत मौजूद रहती है।
      दिल में चंद घरौंदे बनाने की ख़ातिर ज़रूरी है,
      समंदर की नीली चादर के कुछ भीगे क़तरे।


      अश्क जिनको हंसी में छुपाकर पीने आ गए
      समझो उनको जीने के तमाम करीने आ गए
      आशा

      बाय दोस्तों 9 बजे की बस से कोटा रवानगी






      इस्पीक इंगलिस !

      श्रीमती टीमटाम को गम था कि
      कभी न पढी अंग्रेजी.
      कसक निकाली बचुवा को
      भेज के स्कूल अंग्रेजी में.

      अब बचुवा का रोज देख
      कंठ लंगोट,
      टीमटाम देवी समझे अपने को मेम.

      इंगरेजी सब्द सीखे देवी ने
      बचुवा से,
      फिर सीखा उनको जोडना.

      भिखारी आया द्वारे पें,
      तो लगा कि मौका अच्छा
      अभ्यास का.

      बोलना था उससे कि
      “बोलें बिखारियों से,
      हम सिर्फ अंग्रेजी में”.
      बोल दिया,
      “वी बेगर्स
      इस्पीक ओनली इंगलिस”


      सदियों -युगों से टूटे हुए पुल को जोड़ने की कवायद में !




      भ्रष्टाचार, अकड़, बेशर्मी, बेईमानी

      बेतक्ल्लुफ़ी से काम क्यों नही लेती

      मेरे प्यारे भाईयो, देश वासियो, भारत के लोगो

      मोहतरमा प्रधानमम्मी ये सब क्या है

      आप हमारा नाम क्यों नही लेती



      भ्रष्टाचार और कालधन के विरुद्ध लड़ाई का एक और पड़ाव... जन्तर मन्तर 3 जून 2012
      Photo: भ्रष्टाचार और कालधन के विरुद्ध लड़ाई का एक और पड़ाव... जन्तर मन्तर 3 जून 2012



      फ़ेसबुक की बातें

      $
      0
      0



      लघुकथा
      उसके आँसू....
      वो एक कोने मे बैठ कर बुरी तरह रो रही थी. लोग उसे समझा रहे थे मगर वह रोये चली जा रही थी.
      उसका देख कर आसपास खड़े लोगों की आँखें भी नम हो गयीं. क्या करें, कैसे समझायें इसको. जो आता है, एक दिन जाता है.
      एक ने पूछा- ''आखिर ये है कौन, और किसके गम में फूट-फूट कर रो रही है?''
      दूसरे ने उदास स्वर में कहा-'' इसका नाम है 'ग़ज़ल' . यह मेहंदी हसन की मौत पर आंसू बहा रही है.''



      Hari Jaipur was tagged in India Against Congress's photo.



      भूगोल की किताबों में कभी पढ़ा था कि रबर की खेती भूमध्यरेखीय क्षेत्र, अमेजन, वर्षा वनों , हिल आदि में ज्यादा होती है लेकिन देख रहा हूँ सबसे अच्छा रबर रायसेना हिल्स क्षेत्र में पाया जाता है....जिसकी गुणवत्ता इतनी उच्च स्तर की है कि सजा पाये शख्स की मौत भी रबर की तरह अगली फसल आने तक खिंचा उठती है :)



      हसरतें दिल की, तो कब की टूट के बिखर गईं हैं 'उदय'
      अब ... ये कौन है, जो खामों-खां दस्तक दे रहा है वहां ?




      वो गिल्ली डंडा , वो कंचे, वो इमली के चिंये , वो कटी पतंग , वो बहती नाक और वो सरकती नेकर और वो चुरा कर खाना मलाई दूध की , बहुत कुछ याद आता है बचपन का , पर कमबख्त अब वो बचपन लौट कर नहीं आता है |


      आज फिर सजे हैं दिल पे उदासियों के मेले
      आज फिर एक बार मेरे मन की नहीं हुई :-(




      प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह हाल ही में जब वर्मा से लौट रहे थे तो रास्ते में पत्रकारों ने पूछा था कि आप क्या राष्ट्रपति पद की दौड़ में हैं, उस समय उन्होंने कहा था कि मैं अपने पद पर खुश हूँ।



      हम ना बदलेंगे वक़्त की रफ़्तार के साथ,
      हम जब भी मिलेंगे अंदाज़ पुराना होगा |



      • इस करुणा कलित हृदय में अब विकल रागिनी बजती
        क्यों हाहाकार स्वरों में वेदना असीम गरजती
        क्यों शून्य क्षितिज से आती लौट प्रतिध्वनि मेरी ? ... 'प्रसाद'

        होता है रोज दिल पर� बेचैन गम का अटैक
        क्यों मेरी बातों में सारे शिट होते पैक
        क्यों जाती है मोबाइल पर हर काल खाली मेरी? ...'उत्तराधुनिक कवि'



      ‎26 जनवरी की परेड में सलूट लेने के अलावा राष्‍ट्रपति‍ का काम होता क्‍या है.... अरे भई कोई भी बने, चैनल काहे पगलाए पड़े हैं....



      रहिमन अही संसार में
      सब सुन मिलिए धय
      न जाने केही रूप में
      नारायण मिल जाए




      इक जमाना लगता है जुड़ने में
      तुम इक पल का खेल समझते हो
      पकते पकते पकता है कोई रिश्ता
      जिसे तुम इक झटके में तोड़ देते हो ............रत्नेश



      वर्तमान वित्त मंत्री को प्रधान मंत्री ,एवं वर्तमान प्रधान मंत्री को राष्ट्रपति बनने हेतु मेरी अग्रिम शुभकामनाएँ !



      सच में हमारे देश का इलेक्ट्रानिक मीडिया बहुत ज्यादा तेज़ है.जभी तो राष्ट्रपति क चुनाव हुआ नही है और सवाल पूछने लग गये है कि अगला प्रधानमंत्री कौन?



      • आपके और हमारे चहेते गायक नहीं रहे.दरअसल ऐसी शख्सियत को महज़ गायक कहना भी उचित नहीं है.मेंहदी साहब हमारे जीवन का हिस्सा थे और ऐसे में उनका न रहना हमें हमारी रूह से जुदा करता है :-(

        ...तुम कहीं नहीं गए,शामिल मेरी साँसों में हो,
        रंजिश ही सही पास मेरे,लौट आओ तुम !



      लीजिये मुलायम - ममता की बैठक के बाद 3 नाम आए है राष्ट्रपति पद के लिए :-
      1॰ डा ॰ ए पी जे अब्दुल कलाम
      2 ॰ डा ॰ मनमोहन सिंह
      और
      3 ॰ सोमनाथ चेटर्जी

      काँग्रेस के दोनों नाम यानि ... हमीद अंसारी और प्रणव मुखर्जी ... को खारिज कर दिया गया है !


      प्रणव मुखर्जी को राष्ट्रपति बनवाने के पीछे कही अमेरिका की लौबिग तो नहीं है ....? वित्तमंत्री के रूप में उन्होंने देश की जनता के साथ जो व्यवहार किया है वह पूरी तरह से अमेरिकी आर्थिक नीतियों के प्रति पूर्ण प्रतिबद्धता को दर्शाता है .....अगर ऐसा है , तो बेहद अफसोसजनक ही कहा जायेगा .....हे राम



      पापा कहते हे, बेटा बड़ा नाम करेगा . . . :)) 

      चेहरों की बतकही …………

      $
      0
      0

       

       

      • Gyan Dutt Pandey

        भविष्य उन निरक्षर लोगों का है, जो लाइक बटन में दक्ष होंगे!

    • Neeraj Badhwar
      अब ममता दुआ कर रही होंगी कि काश कलाम माओवादी होते तो 'लड़ने' के लिए तैयार हो जाते!
    •  

       

      • Awesh Tiwari

        कितनी अजीब बात है, जिन व्यक्तियों के पीछे हम अपने जीवन के सबसे खूबसूरत क्षण बर्बाद कर देते हैं, हम अक्सर उन्ही को याद किया करते हैं

       

       

       

    • Pushkar Pushp

      फेसबुक अब केसबुक में तब्दील हो रहा है. कई ऐसे मामले सामने आ रहे हैं जिसमें फेसबुक की वजह से पति - पत्नी के बीच तलाक की नौबत आ गयी. इसके अलावा ऐसे मामलातों की तो भरमार है जिसमें रियल लाईफ की दोस्ती वर्चुअल स्पेस यानी फेसबुक पर आकर खत्म हुई.

    •  

       

       

       

       

       

       

    • अंशुमाली रस्तोगी

      अब इश्क में दिल से ज्यादा मोबाइल की सुननी पड़ती है.

    •  

       

       

       

    • Vivek Dutt Mathuria

      अब भरोसा करें भी तो किस पर,

      यहाँ तो हम भरोसे के मारे हुए है .

    •  

    • Sanjay Bali

      लड़ाई के मैदान में ही हमेशा बहादुरी देखने को नहीं मिलती है। यह आपके दिल में भी देखने को मिल सकती है , अगर आपमें अपनी आत्मा की आवाज को आदर देने की हिम्मत जग जाती है।

    •  

       

       

      • Vandana Gupta

        मगर नहीं बन पातीं पत्थर, कागज ,मिटटी , हवा या खुशबू ज़िन्दगी की

        ना पत्थर बनी

        ना कागज ना मिटटी

        ना हवा ना खुशबू

        बस बन कर रह गयी

        देह और देहरी

        जहाँ जीतने की कोई जिद ना थी

        हारने का कोई गम ना था

        एक यंत्रवत चलती चक्की

        पिसता गेंहू

        कभी भावनाओं का

        कभी जज्बातों का

        कभी संवेदनाओं का

        कभी अश्कों का

        फिर भी ना जाने कहाँ से

        और कैसे

        कुछ टुकड़े पड़े रह गए

        कीले के चारों तरफ

        पिसने से बच गए

        मगर वो भी

        ना जी पाए ना मर पाए

        हसरतों के टुकड़ों को

        कब पनाह मिली

        किस आगोश ने समेटा

        उनके अस्तित्व को

        एक अस्तित्व विहीन

        ढेर बन कूड़ेदान की

        शोभा बन गए

        मगर मुकाम वो भी

        ना तय कर पाए

        फिर कैसे कहीं से

        कोई हवा का झोंका

        किसी तेल में सने

        हाथों की खुशबू को

        किसी मन की झिर्रियों में समेटता

        कैसे मिटटी अपने पोषक तत्वों

        बिन उर्वरक होती

        कैसे कोरा कागज़ खुद को

        एक ऐतिहासिक धरोहर सिद्ध करता

        कैसे पत्थरों पर

        शिलालेख खुदते

        जब कि पता है

        देह हो या देहरी

        अपनी सीमाओं को

        कब लाँघ पाई हैं

        कब देह देह से इतर अपने आयाम बना पाई है

        कब कोई देहरी घर में समा पाई है

        नहीं है आज भी अस्तित्व

        दोनों है खामोश

        एक सी किस्मत लिए

        लड़ रही हैं अपने ही वजूदों से

        मगर नहीं बन पातीं

        पत्थर, कागज ,मिटटी , हवा या खुशबू ज़िन्दगी की

        यूँ जीने के लिए मकसदों का होना जरूरी तो नहीं ...........

       

       

       

      • Padm Singh

        मुझे 3 जी का डोंगल वाला नेट लेना है... इस्तेमाल 3 से 5 GB ... कौन सा वाला बेहतर रहेगा ?

       

       

      • Manaash Grewal
        “अक़्सर ऐसा होता है कि हमें अपने ढ़ोंग का अहसास नहीं हो पाता। हम अपनी गंभीरता के आवरण को बनाए रखने के लिए और बढ़ती उम्र की नैतिकता के नाम पर प्रेम कविताओं को पसंद करने या उन पर टिपण्णी करने से बचना चाहते हैं। लेकिन क्या प्रेम से बचा जा सकता है? जब हम समाज की अराजकताओं पर प्रहार करते हैं, समाजवाद के निर्माण का स्वप्न देखते हैं और जब अपने बचपन एवं युवावस्था को एक आह लेकर याद करते हैं, तो साथ ही हम स्वीकार कर रहे होते हैं; -प्रेम और उसकी सार्वभौमिकता को। दर‍असल यह एक किस्म की ग़ुलामी है जिसका हमें भान नहीं हो पाता। मैं अपनी आवारगी और मुक्तता से दुआ करूंगा कि कोई भी उम्र मुझे प्रेम की सराबोरिता से दूर ना करें। यही प्रेम है, मेरी आज़ादी है और सार्वभौमिकता की तरफ़ बढ़ते मेरे क़दमों की आहट भी। क्योंकि हर एक महान रचना के पीछे, एक उतनी ही विशाल और महान चाहत छुपी होती है। मृत्यु जो सार्वभौमिकता की दास है, न केवल उसे उसकी दासता से मुक्त करवाना है बल्कि यह भी पता लगाना है कि आखिरकार मृत्यु जैसी विशाल रचना के पीछे कौनसी और किसकी चाहत काम कर रही है? दलित के झोपड़े से लेकर दूर कहीं अनंत में किसी तारे के सुपरनोवा विस्फोट का प्रेम ही सार है।”
        -- मनास ग्रेवाल।

       

       

       

      • Suman Pathak
        सब कुछ है पास ..
        फिर भी इंतज़ार क्या है..
        यूँ दूर कुछ धुन्ध सा..
        दिखता क्या है...
        मंज़िल नहीं है मेरी ..
        मन की कोई ख्वाहिश..
        सफ़र में ये तमाशा क्या है...

       

    • Lalit Sharma

      डोकरा तुमने ठीक नहीं किया :(

      डोकरा तुमने ठीक नहीं किया :(

    •  

       

      • Ratnesh Tripathi
        मन की प्रशन्नता जब द्वन्द के बादल से टकराती है
        बहुत सारे अर्थ अनर्थ हो जाते हैं
        इस जड़वत हो चुके संसारी रिश्तों में
        घुटने लगता है मन
        खोजता है फिर वो टकराहट
        जिससे की टूट जाए ये रिश्ते
        और बरस पड़े बादल
        ताकि बह जाएँ संसारी रिश्ते
        और ..........जन्म ले नया कोंपल
        ताकि मन फिर प्रसन्न हो सके
        और द्वन्द जड़वत हो जाये .....................रत्नेश

       

       

       

      • Pushkar Pushp

        धारावाहिक 'अफसर बिटिया' का नाम बदलकर 'जासूस बिटिया' कर देना चाहिए. BDO मैम आजकल कुछ ज्यादा ही जासूसी करने लग गयी है. ऐसी जासूसी किसी BDO के द्वारा पहले नहीं देखी. अब धारावाहिक के निर्देशक अति कर रहे हैं.

       

       

      • Amrendra Nath Tripathi

        बहुत कुछ मीडिया के तात्कालिक-दिखाऊ भावुक-वायवीय संस्कारों से प्रेरित होकर हिन्दी की वर्तमान दशा से दुखी को 'हा हिन्दी, हा हिन्दी' का रूदन सुनने में आता रहता है. अक्सरहा लगता है कि यह पढ़े लिखों की चोचलेबाजी भी है, जो खुद अपने बच्चों का भविष्य अंगरेजी माध्यम में देखते हैं, और उपदेश हिन्दी-हित का देते हैं. इसमें मुझे मध्यवर्गीय उत्तरभारतीयों का दोहरा चरित्र दिखता है जिसकी चिंता और कर्म/व्यवहार में धरती और आकाश के बीच का अंतर होता है. लेकिन वह दूर क्षितिज में दोनों के मिलने की काव्यात्मक कल्पना में खुश रहता है, खुद को मागालते में रखे वह इसी खुशी की जद्दोजहद में लगा रहता है! (हिन्दी को कैरियर के रूप में लेने वाले भी इस निष्कर्ष से बावस्ता होते रहते हैं कि 'हिन्दी पढ़ के कौन अपना भविष्य बर्बाद करे!, जिसमें सच्चाई भी है) देखने में आता है कि हिन्दी न आकाश तक छहर सकती है न धरती पर पसर सकती है, यह इसका दुर्भाग्य है. आकाश पर अंगरेजी है और धरती पर लोकभाषाएं. जो धरती पर लोकभाषाएं हैं वे इसके(हिन्दी के) क़दमों के नीचे हैं और यह खुद अंगरेजी के क़दमों के नीचे है. दुर्भाग्य से यह त्रिशंकु स्थिति में है, और कर्मनाशा में नहाना अपन का धर्म/दायित्व/जरूरत/नियति/खुशी!(जो भी शब्द दे लीजिये)

        कुछ गलबतियां

        $
        0
        0

         

         

         

        आज दोस्तों की बतकहियां , गलबतियां ,चुहल , चुटकियां , कहा सुना सब दिखाते हैं आपको देखिए ……………….

         

         

      •  

        Gyan Dutt Pandey

        अगर यह संशय हो कि फ़लाने नेता सेकुलर हैं या नहीं, तो उनका डीएनए टेस्ट करवा लेना चाहिये - कोर्ट के आदेश पर। शायद उससे तय हो सके!

      •  

         

         

         

        • Lalit Sharma

          बरसात की फ़ूहारों से बीज जाग उठे, अंगडाई ली और कोपलें फ़ूट पड़ी। इस हफ़्ते में धरती हरियाली की चादर ओढ कर सावन की प्रतीक्षा करगी। जब सावनी हिंडोले डलेगें, सावन की फ़ूहारों के साथ पींगे मार मार कर झूलना होगा………… सुप्रभात मित्रों

         

         

         

        • गिरिजेश भोजपुरिया

          Animal Farm में कम्युनिस्ट कुशासन के बारे में पढ़ा था - All are equal but some are MORE EQUAL.

          अब पूँजीवाद प्रतीक फेसबुक सुझा रहा है - All are friends but some are CLOSE FRIENDS. बोले तो 'more friends' ... मलाई काटने वाले एक ही भाषा बोलते हैं।

         

         

         

         

          • Satish Pancham

            इस वक्त बनारस पर आधारित शानदार कार्यक्रम डीडी भारती पर देख रहा हूँ। केदारनाथ सिंह दिख चुके हैं, रांड़, सांड़, सीढ़ी, बीएचयू भी दिख चुके हैं....देखते हैं आगे और कौन नजर आते हैं।

         

         

        • Sudha Upadhyaya
          नहीं
          जानती कौन हूँ मैं ...
          रुदाली या विदूषक ,
          मृत्यु का उत्सव मनाती ,
          बुत की तरह शून्य में ताकते लोगों में संवेदना जगाती
          इस संवेदन शून्य संसार में मुझी से कायम होगा संवाद
          भाषा की पारखी दुनिया में मैं तो केवल
          भाव की भूखी हूँ .....
          फिर फिर कैसे संवाद शून्य संवेदन में भर दूं स्पंदन .....डॉ सुधा उपाध्याय

         

         

          • Dev Kumar Jha

            Mausam mastana....... Chal kahi door nikal jaayein.....

         

         

         

        • अंशुमाली रस्तोगी

          फेसबुक के प्रेमी भी क्या खूब हैं दिन भर इसकी या उसकी दीवार पर चढ़ते-उतरते रहते हैं...बढ़िया है..

         

         

        • Suman Pathak

          चैन से जीने के लिए..."नहीं" बोलना सीखना बहुत ज़रूरी है...हम लोगो का लिहाज करते हुए कभी कभी ना करने में बड़ा हिचकते हैं...ऐसे में लोग हमारा फायदा उठाने लगते हैं... :(

         

         

         

        • Sonal Rastogi

          आँखों की नमी का सबब ना पूछो तो बेहतर

          भाप की बूंदे है जो पलकों पे उभर आती है

          ज़रा मिले तन्हाई तो मचलती है ऐसे

          कोरों को छोड़ कर गालों पर उतर जाती है ...सोनल रस्तोगी

         

         

         

      • Gyan Dutt Pandey

        जेबकतरे पहले जेबकतरे ही हुआ करते थे। अब तो वे सभी व्यवसायों में पैठ गये हैं। और कुछ तो उल्टे उस्तरे से मूड़ने की काबलियत रखते हैं!

      •  

         

        • Vivek Dutt Mathuria

          डा.बी. आर. अम्बेडकर ने कहा था '' कांग्रेस एक धर्मशाला के सामान है,जो मूर्खों ,धूर्तों, मित्र और शत्रु, साम्प्रदायिक और धर्मनिरपेक्ष, सुधारवादी और कट्टरपंथी, पूंजीवादी और पूंजीवाद विरोधी सभी लोगों के लिए खुली हुई है.''

          राष्ट्रपति पद को लेकर प्रणव मुखर्जी को मिल रहे समर्थन पर डा. अम्बेडकर की उक्ति सटीक बैठ रही है ....

         

         

         

        • Sanjay Bengani

          कथित "हिन्दु हृदय सम्राट" माननीय बाला साहेब ठाकरे ने "हिन्दु और राष्ट्रवादी" विचारों को ताक पर रख कर पिछले राष्ट्रपति चुनावों में संकिर्ण क्षेत्रियवाद के तहत 'मराठी' व्यक्ति का समर्थन किया. और देश ने सबसे बेहुदा राष्ट्रपति झेला. एक बार फिर ठाकरे वैसा ही करने जा रहे है. ठाकरे जी, प्रणव जीते या हारे, इतिहास में आप किस तरफ दिखाई देंगे इस पर विचार किया है?

         

         

         

      • Gautam Rajrishi

        किसी का भी लिया नाम तो आयी याद तू ही तू...

      •  

         

        • Anil Kumar Yadav

          सड़कों पर भागमभाग किसी को सबर नहीं।

          काफी दिनों से धीरेश सैनी की खबर नहीं।

          बड़बड़ाहटों में छिपे हुए हैं टोटके फिजूल के।

          दो अरब से ऊपर हाथ है पर एक नजर नहीं।

         

         

         

         

      • Yagnyawalky Vashishth

        मत पूछ कि क्‍या हाल है मेरा तेरे आगे ...ये देख कि क्‍या रंग है तेरा मेरे आगे ...

      •  

         

        • Rajiv Taneja

          गज़ब कि..........तेरे मेरे रिश्तों से ज़माना अनजान है

          शायद आँखें उसकी खुली नहीं और बन्द..दोनों कान हैं

         

         

         

        • Suresh Chiplunkar
          मित्रों… राष्ट्रपति चुनाव में जैसी राजनीति(?) हुई है, वह 2014 का स्पष्ट संकेत है…। और जैसा कि नज़र आ रहा है निम्न दो स्थितियों में से आप कौन सी स्थिति पसन्द करेंगे???
          1) 180-190 सीटों के साथ भाजपा "अपनी हिन्दूवादी शर्तों" के साथ सत्ता का दावा पेश करे, जिसे साथ आना हो आए वरना भाड़ में जाए (अर्थात 180-190 सीटों के साथ भाजपा विपक्ष में बैठे… )
          2) नीतीश, शरद यादव और मुलायम जैसे "लोटे" कांग्रेस के समर्थन से (यानी सोनिया के तलवे चाटते हुए) सत्ता में दिखाई दें… ताकि जल्दी ही मध्यावधि चुनाव हों…
          ==============
          प्रमुख सवाल यह है कि, क्या नरेन्द्र मोदी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित करके, जद(यू) जैसे सेकुलर भाण्डों को लतियाकर, भाजपा 180 सीटें भी नहीं ला सकेग़ी???
          और मान लो कि "हिन्दुत्ववादी राजनीति" करके यदि 180 सीटें आ गईं तो क्या तब भी भाजपा "अछूत" ही रहेगी???

          फ़ेसबुक पर होती बातें

          $
          0
          0

          आइए देखें कि आज दोस्त/मित्र अपनी फ़ेसबुक यानि मुखपुस्तक पर क्या लिख बांच रहे हैं ...........>>>>>

          क्या अब मुँह खोलेंगे P.M.!!


          • भारत का अबू हमज़ा सीमा पार जा पाक के आंतकियों को जब हिंदी सीखाता है तो क्या हम इसे दोनों देशों के बीच सांस्कृतिक आदान-प्रदान मान सकते हैं।



          गैंग्स आफ डिसबैलेन्सपुर

          बड़ी मुश्किल से खुद को “गैंग्स आफ वासेपुर” का रिव्यू लिखने से रोक पा रहा हूं। अब औचित्य नहीं है। अनुराग कश्यप चलती का नाम गाड़ी हो चुके हैं। स्पान्सर्ड रिव्यूज का पहाड़ लग चुका है। वे अब आराम से किसी भी दिशा में हाथ उठाकर कह सकते हैं- इतने सारे लोग बेवकूफ हैं क्या? फिर भी इतना कहूंगा कि दर्शकों को चौंकाने के चक्कर में कहानी का तियापांचा हो गया है।

          धांय-धांय, गालियों, छिनारा, विहैवरियल डिटेल्स, लाइटिंग, एडिटिंग के उस पार देखने वालों को यह जरूर खटकेगा कि सरदार खान (लीड कैरेक्टर: मनोज बाजपेयी) की फिल्म में औकात क्या है। उसका दुश्मन रामाधीर सिंह कई कोयला खदानों का लीजहोल्डर है, बेटा विधायक है, खुद मंत्री है। सरदार खान का कुल तीन लोगों का गिरोह है, हत्या और संभोग उसके दो ही जुनून हैं। उसकी राजनीति, प्रशासन, जुडिशियरी, जेल में न कोई पैठ है न दिलचस्पी है। वह सभासद भी नहीं होना चाहता न अपने लड़कों में से ही किसी को बनाना चाहता है। उसका कैरेक्टर बैलट (मतिमंद) टाइप गुंडे से आगे नहीं विकसित हो पाया है जो यूपी बिहार में साल-दो साल जिला हिलाते हैं फिर टपका दिए जाते हैं। होना तो यह चाहिए था कि रामाधीर सिंह उसे एक पुड़िया हिरोईन में गिरफ्तार कराता, फिर जिन्दगी भर जेल में सड़ाता। लेकिन यहां सरदार के बम, तमंचे और शिश्न के आगे सारा सिस्टम ही पनाह मांग गया है। यह बहुत बड़ा झोल है।

          कहानी के साथ संगति न बैठने के कारण ऊमनिया समेत लगभग सारे गाने बेकार चले गए हैं। ‘बिहार के लाला’ सरदार खान के मरते वक्त बजता है। गोलियों से छलनी सरदार भ्रम, सदमे, प्रतिशोध और किसी तरह बच जाने की इच्छा के बीच मर रहा है। उस वक्त का जो म्यूजिक है वह बालगीतों सा मजाकिया है और गाने का भाव है कि बिहार के लाला नाच-गा कर लोगों का जी बहलाने के बाद अब विदा ले रहे हैं। इतने दार्शनिक भाव से एक अपराधी की मौत को देखने का जिगरा किसका है, अगर किसी का है तो वह पूरी फिल्म में कहीं दिखाई क्यों नहीं देता



          बिगरी बात बने नहीं लाख करे किन कोय।
          रहिमन बिगरे दूध को मथे न माखन होय॥



          सेबेस्तियो सल्गादों की इस तस्वीर के साथ दुनिया भर के मेहनतकश मजदूरों को मेरा सलाम ,मुमकिन हो तो प्रार्थना के स्वर बदल दीजिए ,हमारी प्रार्थना जय मेहनतकश ,जय मजदूर होनी चाहिए |आइये इस तस्वीर के साथ पढ़ें नरेश अग्रवाल की ये कविता

          अभी सूरज भी नहीं निकला होगा
          और तुम जा जाओगे

          तुम्हारे जागते ही
          जाग जायेंगे
          ये पेड़-पक्षी और
          धूलभरे रास्ते

          तुम हॅंसते हुए
          काम पर बढ़ोगे
          और देखते ही देखते
          यह हॅंसी फैल जायेगी
          ईंट- रेत और सीमेंट की बोरियों पर
          जिस पर बैठकर
          हॅंस रहा होगा तुम्हारा मालिक

          वह थमा देगा तुम्हारे हाथों में
          कुदाल, फावड़े और बेलचे
          बस शुरू हो जायेगी
          तुम्हारी आज की लड़ाई

          इस लड़ाई में
          खून नहीं पसीना गिरेगा
          जिसे सोखती जायेगी धरती
          एक रूमाल बनकर बार-बार
          जीत होगी दो मुट्ठी चावल

          एक थकी हुई शाम
          घर लौटने का सुख
          और बच्चों की याद

          बच्चे कभी नहीं पूछेंगे
          तुम कौन सा काम करते हो
          वे समझ जायेंगे
          तुम्हारी झोली देखकर

          हमेशा की तरह
          तुम आज भी
          हार कर लौटे हो ।


          बड़का बड़का लीडर लोग "ते सब हंसे मष्ट करि रहहू" की मुद्रा में जमे हैं। बेचारे वीरभद्र सिंह को तो त्यागपत्र देना पड़ रहा है!


          हर तरफ हर जगह बे शुमार आदमी
          फिर भी तन्हाइयों का शिकार आदमी

          तन्हाइयाँ कई तरह की हैं

          आखिरकार पत्नी समेत वीरभद्र पर भ्रष्टाचार का आरोप हो गया तय ,
          जय हो , कांग्रेस की सरकार में करप्शन का खूब बना रहता है लय ,

          आउर जुलुम तो ई देखिए कि , भारत निरमान भी होता रहता है एकदम्मे से



          सुनो मुक्तिबोध, यहां सब 'अंधेरे में' हैं...


          ‎"पति " शब्द ....मेरे विचार से उचित नहीं ....मालिक होने का भ्रम पैदा कर देता है ....पतिव्रता होना .....गुलामी ...या वफादारी का सर्टिफिकेट है .....

          व्रत तो एक ही उत्तम है .......सत्य का अनुगमन करने का ....अगर सत्य को जीवन मे उतरने दिया जाय ..फिर किसी स्वांग की जरूरत भी नहीं ......और जब सभी सत्य पर होंगे तो सत्य हारेगा किससे ?..सत्य मेव जयते ही रहेगा ...बेकार के तमाम आडम्बर अपने आप स्वाहा हो जायेंगे ....

          मैं पति की बजाय साथी कहलाना ज्यादा पसंद करूँगा ...वाकई मे कोई किसी का मालिक कैसे हो सकता है ...जब सभी का मालिक एक है ....

          अपनी पत्नी के लिये भी जीवन-साथी शब्द का इस्तेमाल ही ज्यादा श्रेयस्कर है ....इसी बात पर एक गीत याद आया ....
          "जीवन साथी हैं .....दिया और बाती हैं ...."कोई मेरा मित्र ढूंढ कर इस गीत को यहाँ पोस्ट भी कर देगा ...ऐसा मेरा विश्वास है .....नमस्कार मित्रों !!!


          चिलचिलाती धूप में अक्सर कुछ लोगों को नाक से खून बहने की शिकायत होती है। इसे नकसीर भी कहा जाता है। यह मौसम के अनुसार शरीर में अधिक गर्मी बढ़ने से भी हो सकता है और कुछ लोगों को अधिक गर्म पदार्थ का सेवन करने से भी होती है।
          चिलचिलाती धूप में अक्सर कुछ लोगों को नाक से खून बहने की शिकायत होती है। इसे नकसीर भी कहा जाता है। यह मौसम के अनुसार शरीर में अधिक गर्मी बढ़ने से भी हो सकता है और कुछ लोगों को अधिक गर्म पदार्थ का सेवन करने से भी होती है।




          पन्नों को महकने के लिये शब्दों का इत्र तो चाहिये
          जीवन को चहकने के लिये मोहब्बत का कलरव तो चाहिये
          ये अजब पर्दानशीनी है तेरे मेरे बीच या रब
          तुझसे मिलन के लिये एक कसक तो कसकनी चाहिये


          • आखिर सोनिया और मुलायम के बीच ऐसी क्‍या सीक्रेट डील हुई है, जिसके कारण मुलायम ने ममता का साथ छोड़ दिया... क्या फिर से सीबीआई का दुरूपयोग तो नहीं होने वाला था? या फिर और कोई कारण है....



          चहूँ ओर ... अस्त-व्यस्त
          जनता त्रस्त
          मंत्री-अफसर मस्त
          सत्ताधारी मदमस्त
          और लोकतंत्र हुआ है पस्त
          कब होगा 'उदय' -
          इन भ्रष्टों का सूरज अस्त ?


          बचपन में एक कहावत पढ़ी थी ये आज भी उतनी ही सही यानि सोलह आने सच है - लोग अपने दुखों/परेशानियों से उतने दुखी नहीं हैं जितना दूसरों के सुख/तरक्की देखकर उन्हें खुजली होती है, या दूसरे शब्दों में (सरल भाषा में) कहें तो परेशानी होती है।



          तुम्हारी करवटों की सलवटें हम तक पहुँच गई
          सिसकिया हमारी उमड़ी और अम्बर से बरस गई ...सोनल

          ये एक चालीस का लोकल नहीं है ..........

          $
          0
          0




          .Twitter तो .एक चालीस का लोकल है सरबा ....एक कोमा का भी बढोत्तरी होते ही आपको ...कान के नीचे कट्टा लगा के कहेगा ....आप एक ठो कौमा फ़ालतू लगाए हैं ...आप चतुर नहीं है ..और ढेर चतुर बनिए :) । मन तो करता है कै बार कि कहें । काहे बे ई एक सौ चालीस का लिमिट कोन हिसाब से डिसाइड किए हो बे । फ़ेसबुक में ई लफ़डा नय है , इसलिए मित्र सखा दोस्त सब एक से एक अभिव्यक्ति देते हैं , बानगी देखिए






          • रामायण में कहा गया है कि जब भी आप अपने दूर के रिश्तेदार को अपने पास बुलाते हैं, तो उस जगह का नष्ट होना निश्चित है। उदाहराणर्थ - शकुनि



          ‎''इस देश पर मुस्लिमों ने कभी शाशन नहीं किया, शाशन करने वाले कुछ ख़ास खानदान थे, मुगलों के समय से लेकर आज तक शाशन करने वाला वर्ग असरफ, पठान, शेख खानदानों से ही आता रहा है, कभी मुस्लिम समाज के पिछड़े अर्जाल और अजलाफ समुदाय से लोगों को नेतृत्व में आगे लाने का प्रयास किसी राजनितिक दल ने नहीं किया. चाहे वह भाजपा हो, चाहे कांग्रेस या फिर लालू जी, मुलायम जी की पार्टी. जब नेतृत्व सौंपने की बात आती है तो वह असरफ और शेख के हिस्से ही जाती है. हमें सोचना होगा, यह क्यों है?''
          शीबा असलम फहमी


          भला उसकी नजर में बनना बेहतर है ... जो खुद भला हो ..... कमीनों की नजर में क्या भला बनना ..... खुदा की खैर है .... कि सारे कमीनों की नजर में भले हम नहीं ..... हा हा हा ..... टिचक्यूं


          मैं खयाल हूं किसी और का, मुझे सोचता कोई और है | मैं करीब हूं किसी और के, मुझे जानता कोई और है... [ सलीम कौसर ]



          कवि ने कविता की पहली पंक्ति का बिम्ब उठाकर दूसरी में धर दिया! पहली पंक्ति ने भागकर कवि के खिलाफ़ हेरा-फ़ेरी और उठाईगिरी की रिपोर्ट लिखा दी।



          • तीन दिन पहले इन्दौर में तीन लोगों ने ड्रग्स के नशे में, तीन साल की बच्ची के साथ दुष्कृत्य करने के बाद उसकी हत्या कर दी…

            अब भड़की हुई जनता उन तीनों दरिंदों के लिए फ़ाँसी की सजा माँग रहे हैं…

            लेकिन ऐसी माँग करने वालों को क्या पता कि यदि किसी तरह इन राक्षसों को फ़ाँसी की सजा हो भी जाए, तो "ऊपर" कोई न कोई "गाँधीवादी" रसोई वाली बाई मिल सकती है…


          बैठे बैठे ज़िन्दगी बरबाद ना की जिए,
          ज़िन्दगी मिलती है कुछकर दिखाने के लिए,
          रोके अगर आसमान हमारे रस्ते को,
          तो तैयार हो जाओ आसमान झुकाने के लिए |



          • बाढ़े खल बहु चोर जुआरा। जे लंपट परधन परदारा॥

            तुलसीदास जी ने उपरोक्त चौपाई चाहे जिस भी यु के लिए लिखा हो, किन्तु यह वर्तमान समय में चरितार्थ हो रहा है।


          हालिया फिल्मों में "पान सिंह तोमर" और "कहानी" ने जिस प्रकार मस्तिष्क पर अपनी छाप छोडी है, काश कि अनुराग भी इतने सृजनशील होने के बावजूद ,छोड़ पाते..उन्ही की बनायीं "ब्लैक फ्राइडे" और "उड़ान" अभी भी जेहन में एकदम ताजा है..



          कल नीरज जी ने एक बात अपने उद्बोधन में बहुत महत्वपूर्ण कही .....उन्होंने कहा कि हम तो तब की पैदाइश हैं जब देश आज़ाद नहीं था ...आजादी से पहले आदमी का इतना नैतिक पतन नहीं हुआ था ....जितना बाद में हुआ .......आज़ादी के बाद देश में राजनैतिक आंदोलन तो बहुत से हुए .....लेकिन सांस्कृतिक आंदोलन एक भी नहीं .......इस देश को सांस्कृतिक आंदोलन की जरूरत है .......:)))



          मेरी ज़िंदगी के साज़ पर तेरी आवाज़ ही बजती रहे
          हर सफर में हम हमक़दम, ये राह यूं गुजरती रहे...



          बैसाखियाँ न ढूंढो चलने को ज़िंदगी में,
          कदम उठाओ अपना, छोटा ही सही.
          .....कैलाश शर्मा



          मैं खुद से घबराता हुँ लिट्ल मैन , बेहद घबराता हुँ । क्योंकि हमसे मनुष्य जाति का भविष्य निर्भर करता है । मैं खुद से घबराता हुँ क्योँकि मैं इतना किसी चीज से नहीं भागते जितना कि स्वँय से । मैं रुग्न हुँ बहुत रुग्न लिट्ल मैन । इसमें हमारा दोष नहीं लेकिन इस रुग्नता को दुर करना हमारा दायित्व है । अगर हम दमन स्वीकार नहीं करते तो हम उत्पीड़कों से कभी दब नहीं सकते थे । काश हमें पता होता कि हमारे बिना उनका जीवन एक घँटा भी नहीं चल सकता है । हमारे मुक्तिदाता ने हमलोगों को सर्वहार वर्ग कहा , सताया हुआ कहा लेकिन उसने हमसे यह नहीं कहा कि हम अपने जीवन के लिए सिर्फ मैं ही जिम्मेवार हुँ । (एक लिट्ल मेन)



          ‎"कलम से जिरह"

          आज मेरी कलम नाराज़ हो गयी मुझसे
          बोली आज हड़ताल है
          कुछ नहीं लिखूंगी

          बस हम दोनों की जिरह शुरू....

          "थक जाती हूँ मैं
          तुम्हारे साथ घिसते घिसते
          ज़िन्दगी के किस्से भी तो
          अजीबोगरीब हैं
          ऊटपटांग बेसिरपैर की बातें
          कहते कहते
          गला सूख जाता है मेरा

          अरे वही रोज़मर्रा की चिकचिक
          तुम भी ना नाज़
          कुछ और शौक ना पाल लेतीं
          गातीं, नाचतीं, पेंटिंग करती
          जब देखो मुझे ही घिसती रहती हो

          जो गुज़र रहा है, गुज़र चुका है
          वही तो दर्ज करती हो
          नया क्या है?
          आत्माभिव्यक्ति के नाम पर
          मुझ बेचारी पर रोज़ ये ज़ुल्म

          तुम्हे शायद लगता होगा कि तुम
          अपने ज़ख्मों पे मरहम लगा रही हो
          पर नहीं जानती तुम
          कितनों के ज़ख्म कुरेदे हैं तुमने
          कितनी भूली बातें
          जबरन लौटा लाती हो तुम
          जिसे लोग जानबूझ कर अनदेखा करते हैं
          तुम वही परोस देती हो उनके समक्ष"

          कलम की कही में कुछ और ही दिखाई दिया
          खुद को तो वो देख ही नहीं पा रही
          अपनी क्षमता से अनभिज्ञ है

          बेवकूफ
          अपना महत्त्व नहीं जानती
          जब किताब में उकेरे जायेंगे
          इसके लिखे अक्षर
          और हो जायेंगे सच में 'अ-क्षर'
          तब समझेगी ये अपनी ताक़त
          अपने जीवन का मोल

          यूँ तो टेक्नोलोजी का ज़माना है
          जब हार जाएगी लैपटॉप से दौड़ में
          तब जानेगी शायद
          मैं इससे कितना प्यार करती हूँ
          क्यूँ रोज़ इसकी गर्दन
          फँसी रहती है मेरी उँगलियों में

          और ये बस मैं ही जानती हूँ
          मैं इसका साथ कभी नहीं छोडूंगी
          विराम भले ही दे दूं इसे
          कुछ समय को
          थक गयी है ना बहुत

          *naaz*




          नूरे इस्लाम ने समझा था मुनासिब पर्दा,
          शमा-ए-ख़ामोश को फ़ानूस की हाजत क्या है.



          आँगन आँगन देव विराजे, आँगन आँगन भाव-भजन हैं
          फिर जात-धर्म के मसलों पर, क्यूँ हम सब गूंगे-बहरे हैं ?


          फेसबुक की दीवारों से अपने दुखों-चिंताओं का माथा न फोड़ें...दीवारें और भी हैं...



          ईशा देओल ने शादी कर ली है...

          भारतीय सिनेमा में उनका यह अमूल्य 'योगदान' हमेशा याद किया जाएगा !




          बिखरने से डरता था

          वह

          सो

          हँसता नहीं था!

          कुछ तुम कहो , कुछ हम सुनें .........

          $
          0
          0








          आज का सत्यमेव जयते देखने के बाद स्वदेश फिल्म का एक डायलोग याद आ रहा है..
          "जो कभी नहीं जाती उसी को जाति कहते हैं..." काश कभी इस पंक्ति को गलत साबित होते हुए देख सकूं...



          आया केसर का मौसम :-
          चन्दन को केसर के साथ घिसकर इसका लेप माथे पर लगाने से, सिर, नेत्र और मस्तिष्क को शीतलता, शान्ति और ऊर्जा मिलती है, नाक से रक्त गिरना बन्द हो जाता है और सिर दर्द दूर होता है। शिशु को सर्दी हो तो केसर की 1-2 पखड़ी 2-4 बूंद दूध के साथ अच्छी तरह घोंटें, ताकि केसर दूध में घुल-मिल जाए। इसे एक चम्मच दूध में मिलाकर सुबह-शाम पिलाएँ। माथे, नाक, छाती व पीठ पर लगाने के लिए केसर जायफल व लौंग का लेप (पानी में) बनाएँ और रात को सोते समय लेप करें। कृमि नष्ट करने के लिए केसर व कपूर आधी-आधी रत्ती खरल में डालकर 2-4 बूंद दूध टपकाकर घोंटें और एक चम्मच दूध में मिलाकर बच्चे को 2-3 दिन तक पिलाएं। बच्चों को बार-बार पतले दस्त लगने को अतिसार होना कहते हैं। बच्चों को पतले दस्त लगने पर केसर की 1-2 पँखुड़ी खरल में डालकर 2-3 बूंद पानी टपकाकर घोंटें। अलग पत्थर पर पानी के साथ जायफल, आम की गुठली, सौंठ और बच बराबर बार घिसें और इस लेप को केसर में मिला लें। इसे एक चम्मच पानी में मिलाकर शिशु को पिला दें। यह सुबह शाम दें।
          आया केसर का मौसम :- चन्दन को केसर के साथ घिसकर इसका लेप माथे पर लगाने से, सिर, नेत्र और मस्तिष्क को शीतलता, शान्ति और ऊर्जा मिलती है, नाक से रक्त गिरना बन्द हो जाता है और सिर दर्द दूर होता है। शिशु को सर्दी हो तो केसर की 1-2 पखड़ी 2-4 बूंद दूध के साथ अच्छी तरह घोंटें, ताकि केसर दूध में घुल-मिल जाए। इसे एक चम्मच दूध में मिलाकर सुबह-शाम पिलाएँ। माथे, नाक, छाती व पीठ पर लगाने के लिए केसर जायफल व लौंग का लेप (पानी में) बनाएँ और रात को सोते समय लेप करें। कृमि नष्ट करने के लिए केसर व कपूर आधी-आधी रत्ती खरल में डालकर 2-4 बूंद दूध टपकाकर घोंटें और एक चम्मच दूध में मिलाकर बच्चे को 2-3 दिन तक पिलाएं। बच्चों को बार-बार पतले दस्त लगने को अतिसार होना कहते हैं। बच्चों को पतले दस्त लगने पर केसर की 1-2 पँखुड़ी खरल में डालकर 2-3 बूंद पानी टपकाकर घोंटें। अलग पत्थर पर पानी के साथ जायफल, आम की गुठली, सौंठ और बच बराबर बार घिसें और इस लेप को केसर में मिला लें। इसे एक चम्मच पानी में मिलाकर शिशु को पिला दें। यह सुबह शाम दें।

          अभी अभी तो सन्नाटा था, और अभी अभी है हो-हुल्लड़
          अरे, किसके बाप मर गए, औ किसको मिल गए हैं बाप ?


          मध्यप्रदेश में निवास करनेवाले साथियों से एक अपील. आज नई दुनिया जागरण ने मेरी पोस्ट "पापा डरी हुई गर्लफ्रैंड की तरह फोन करते हैं" प्रकाशित की है. अखबार बिना बताए न जाने कब और कहां पोस्ट छापते हैं, पता नहीं चलता है. लेकिन यहां मामला पापा से जुड़े इमोशन का है. मैं इसकी हार्ड कॉपी उन्हें पोस्ट करना चाहता हूं. बशर्ते इससे पहले आप मुझे पोस्ट करते हैं. कुल जमा 25 रुपये का खर्चा आएगा लेकिन वर्सुअल स्पेस की इस दोस्ती के आगे 25 रुपये क्या बड़ी चीज है ? वैसे आज सुबह-सुबह अमिता नीरव,नई दुनिया जागरण ने इसकी सॉफ्ट कॉपी मुहैया करा दी. उनका शुक्रिया.





          लालू को बधाई! मौजूदा दलों में अन्ना आन्दोलन को कोई श्रेय दे या न दे, मगर लालू महाशय ने "श्रेय" जरुर दिया!! "टाइम" में छपे आलेख के लिए.

          लालू के अनुसार "टाइम" में मनमोहन के खिलाफ छपे आमुख कथा के लिए अन्ना आन्दोलन जिम्मेवार! मनमोहन सरकार को "अंडर-एचीवर" बताया है "टाइम" ने.



          • बुरे दिनों का एक अच्छा फायदा है; . .. ... अच्छे - अच्छे दोस्त परखे जातें हैं!


          सूरज तुम हमेशा तपते क्यूँ हो?
          कभी मेरे साथ बैठ चखो
          चाँद की शीतलता का प्याला.....
          -अर्चना



          ‎''हमें लोग भंगी कहते हैं, गन्दा कहते हैं, भंगी समाज तो साफ़-सफाई का काम करता है. फिर यह कैसे हुआ? जो सफाई करने वाले हैं, वे कैसे गंदे हो गए.''

          विल्सन



          मनुष्य जन्म से शूद्र होता है...


          आमिर खान ने इस सप्ताह के सत्यमवे जयते कार्यक्रम में छुआछूत का मसला उठाया. 'रोटी और बेटी' में अब भी दलित वर्ग को छुआछूत का सामना करना पड़ता है. कार्यक्रम में ज़िक्र हुआ कि ये छुआछूत सिर्फ़ हिंदुओं में नहीं बल्कि मुसलमानों, सिखों और ईसाइयों में भी है. क्या आपने ये छुआछूत होते देखा है या अनुभव किया है, यहाँ रखिए अपनी राय. ये एक संवेदनशील मसला है इसलिए सभी पाठकों से अनुरोध है कि राय देते समय भाषा में इस मंच की गरिमा का ख़्याल ज़रूर रखिएगा. इस बहस को आगे बढ़ाइए और साथ में लगे शेयर के बटन को क्लिक करके दोस्तों के बीच भी ये बहस शुरू करिए-
          http://www.bbc.co.uk/hindi/india/2012/07/120708_aamir_satyamev_jayate_ms.shtml


          जातिवाद के खिलाफ लिखे किसी भी status को मिले कम like भी समाज में जातिवाद के होने का एक प्रमाण है!


           
          तुम
          बन जाओ
          एक किताब

          कहानी की मेरी

          मखमली ज़िल्द
          और
          अलिखित इबारतों वाली

          जिसे पढ़ पाऊँ
          मैं
          सिर्फ मैं

          पन्ना दर पन्ना

          कहीं मुस्कराऊँ,
          कहीं खो जाऊँ और
          कहीं आसूँ बहाऊं मैं..
          फिर थक कर
          तुम्हें छाती से लगाये

          सो जाऊँ मैं...

          -एक स्थापित लेखक हो जाऊँ मै!!

          -कुछ पहचान पा जाऊँ मैं!!

          -समीर लाल ’समीर’





          घनाक्षरी छंद
          प्रथम प्रयास
          . . . . . . . . . . . . . . . . . . . .
          दुनियाँ जिसकी शक्ति का करती गुणगान।
          देखो सीना तान खड़ा वो भारत देश है॥
          हिन्द महासागर को देखो चरण पखारे।
          हिम हिमालय माँ की लट और केश है॥
          काले गोरे लम्बे नाटे फूल हैं रंग बिरंगे।
          भाँति भाँति लोग यहाँ भाँति भाँति वेष है॥
          राज्य कई पर हर दिल में हिन्दुस्तानी है।
          भाषा कई कई पर होती मीठी पेश है॥


          हप्पी होलिडे पर आप सभी मित्रोजनो को नममस्कार कैसे बिता रहे इस छुट्टी को ?


          जौन एलिया तुम मर क्यों नहीं जाते :(


          दोस्तों, आज मेरी बिटिया अपना पहला वेतन लेकर जब घर आई तो उसके चेहरे की चमक में सब खो गए. और जब उसने वो सभी अपनी दादी को सौपा तो मेरी माँ की चमक में मेरी बिटिया भी खो गयी. .......................मेरे परिवार की ख़ुशी में आप सभी को शामिल करता हूँ ........


           
          आज फिर सुबह से ही धूप खिली है. लगता है मानसून भी रविवार को छुट्टी मना रहा है...


          फिर सावन रुत की पवन चली, तुम याद आये तुम याद आये
          फिर पत्तो की पाजेब बजी तुम याद आये,तुम याद आये...............!



          • ममता ने रीढ़ वाले नेताओं की खत्म होती प्रजाति पर चिंता जताई है !

            ...क्या उन्हें लगने लगा है कि इस दौड़ में भी तगड़ी स्पर्था है !!


          मैं शायर बदनाम .... मैं चला ... मैं चला ... राजेश खन्ना को समर्पित

          $
          0
          0
          राजेश खन्ना (29 December 1942 - 18 July 2012)
          "  बाबू मोशाय, हम सब तो रंगमंच की कठपुतलिया हैं ... जिसकी डोर उस ऊपर वाले के हाथों में है जहाँपनाह , कब कौन कहाँ कैसे उठेगा ये कोई नहीं जानता ... हा हा हा ... बाबू मोशाय जिंदगी और मौत उस ऊपरवाले के हाथ में है उसे ना आप बदल सकते हैं ना हम "  

          अपने बाबू मोशाए को जाते जाते भी यह सीख दे कर जाने वाला 'आनंद' आज सच मे चला गया ... फिर कभी भी लौट कर न आने के लिए ... और कमाल की बात यह कि हम रो भी नहीं सकते ... हमारे रोते ही फिर नाराजगी भरी आवाज़ सुनाई देगी ... "पुष्पा, मुझसे ये आसू नहीं देखे जाते, आई हेट टीयर्स ..." साथ साथ अपना दर्द भी वो बयां कर देगा ... " ये तो मै ही जानता हूं कि जिंदगी के आखिरी मोड़ पर कितना अंधेरा है ... मै मरने से पहले मरना नहीं चाहता ..."

          वैसे कितना सही कहता था न वो ... "  किसी बड़ी खुशी के इंतजार में हम अपनी ज़िन्दगी मे ये छोटे-छोटे खुशियों के मौके खो देते हैं... "

          सुनते है उस खुदा के घर जो देर से जाता है उसको सज़ा मिलती है ... पर यहाँ भी अपना हीरो आराम से बच निकलेगा यह कहते हुये ... "  मै देर से आता नहीं हूं लेकिन क्या करूं, देर हो जाती है इसलिए माफी का हकदार हूं, अगर फिर भी किसी ने ना माफ किया हो तो मै यही कहना चाहता हूं हम को माफी देदो साहिब... "
          राजेश खन्ना साहब के गुज़र जाने की खबर जैसे जैसे फैलती गयी लोगो की श्रद्धांजलि की जैसे एक बाढ़ सी आ गयी फेसबूक , ब्लॉग , ट्विटर, आदि पर ...
          फेसबूक पर हिन्दी ब्लॉग जगत ने कैसे इस महान कलाकार को अपनी श्रद्धांजलि पेश की उस की एक झलक हम आपको यहाँ दिखा रहे है !

          Zindagi kaisi hai paheli haai...R.I.P. Rajesh Khanna

          नफ़रत की दुनिया को छोड के प्यार की दुनिया में , खुश रहना मेरे यार ......जाने क्यों आज रह रह के यही गाना मेरे ज़ेहन में गूंज़ रहा है जबसे राजेश खन्ना के जाने की खबर सुनी है । ये ज़माना तुम्हें युगों तक याद रखेगा काका
          ‎"आनन्द" मरा नही करते
          अनन्त "सफ़र" पर चल देते हैं
          फिर चाहे "दाग " लगाये कोई
          "अमर प्रेम" किया करते हैं
          "आराधना " का दीया बन
          "रोटी " की ललक मे
          "अवतार " लिया करते हैं

          एक बेजोड शख्सियत
          जो आँख मे आँसू ले आये
          वो ही तो अदाकारी का परचम लहराये ……नमन !

          Sad to see two stalwarts of Hindi Film Industry (Dara Singh and then Rajesh Khanna) going away one after the other in quick succession ...
          बाबू मोशाय..... !!!
          मैं फिर आऊंगा रे...
          RIP !!! Rajesh khanna.... :-(
          अरे ,'आनंद' नहीं रहा :-(
          दिवंगत अभिनेता राजेश खन्ना जी को हार्दिक श्रद्धांजलि ।
          श्रध्‍दांजलि............
          आज फिर किशोर दा याद आए। उनकी आवाज काका पर जितनी फिट बैठती थी, उतनी शायद किसी और के न बैठी हो।


          अकेला गया था मैं हां, मैं न आया अकेलाSSSSSSSS


          जिंदगी के सफर में गुजर जाते हैं जो मुकाम

          और ऐसे ही सैकड़ों गीत, मैं किशोर दा के समझ के समझ के सुनता रहा, बाद में वीडियो देखे तो पता चला कि ये तो काका के लबों पर सजे थे...

          अब दोनों ही लिजेंड नहीं हैं और दोनों जिंदा है यादों में...

          बाबू मोशाय !
          ये दुनिया रंगमंच हैं.......... और हम तो रंगमंच की कठपुतलियाँ हैं........जिसकी डोर उपरवाले के हाँथ में है..........कब कौन उठेगा.........ये कोई नहीं जानता !

          बॉलीवुड के सुपरस्टार राजेश खन्ना को श्रद्धांजलि !
          बस आज तो फेसबुक राजेश खन्ना के नाम कर दो......इस सबक के साथ कि कोई भी हो एक दिन सब ने चले जाना है...कोई पहले कोई बाद में। रूप का,पैसे का,रुतबे का अहंकार मत करो....सब यहीं रह जाएगा।
          KAKA is no more.........May his soul rest in peace.
          सुबह आती है, रात जाती है
          सुबह आती है, रात जाती है यूँही
          वक़्त चलता ही रहता है रुकता नहीं
          एक पल में ये आगे निकल जाता है
          आदमी ठीक से देख पाता नहीं, और परदे पे मंजर बदल जाता है
          एक बार चले जाते हैं जो दिन-रात सुबह-शाम
          वो..फिर नहीं आते...वो..फिर नहीं आते..
          हिन्दी फिल्म इंडस्ट्री के पहले सुपर स्टार राजेश खन्ना को उन्हीं पर फिल्माए गीत के द्वारा श्रद्धांजलि >>>>
          कुछ लोग भले ही भूल जाते हैं..पर वे भुलाये नहीं भूलेंगे>>>>
          http://www.youtube.com/watch?v=1v1eNMuu-nk
          मुझे नहीं मालूम बेहद छोटी उम्र में आनंद देखकर मैं क्यों सुबक पड़ा था और फिल्म देखते वक्त उसके बच जाने की क्यों दुआएं कर रहा था |राजेश खन्ना को मैंने तभी से दूसरी दुनिया का रहने वाला कोई एक मान लिया था जब आनंद देखी थी |
          kAKA NAHI RAHE!
          वह राजेश खन्ना की अदाकारी का ही जलवा था कि अभी कुछ दिनों पहले आनंद फिल्म देख रहा था और साथ ही साथ भोजन भी चल रहा था। आनंद के प्राण त्यागने वाले सीन के बाद भोजन गले से नीचे नहीं उतरा, थाली सरका दी और मुंह-हाथ धोने वाश बेसिन की ओर चल पड़ा।

          पीछे से बेटी को कहते सुना "पापा लगता है बहुत बड़े फ़ैन हैं राजेश खन्ना के"।
          ‎"मौत तू एक कविता है,
          मुझसे एक कविता का वादा है मिलेगी मुझको
          डूबती नब्ज़ों में जब दर्द को नींद आने लगे
          जर्द सा चेहरा लिये जब चांद उफक तक पहुचे
          दिन अभी पानी में हो, रात किनारे के करीब
          ना अंधेरा ना उजाला हो, ना अभी रात ना दिन
          जिस्म जब ख़त्म हो और रूह को जब साँस आऐ
          मुझसे एक कविता का वादा है मिलेगी मुझको"

          अलविदा 'आनंद' - तुम बहुत याद आओगे ...
           
          राजेश खन्ना जी को पूरे हिन्दी ब्लॉग जगत की ओर से शत शत नमन और विनम्र श्रद्धांजलि |

          हिंदी तो उनका कुत्ता भी लिख लेता है .,

          $
          0
          0


          "
          इस देश में हिंदी को गरियाने , धकियाने , धमकाने वाले लोगों को तलाशने के लिए आपको ज्यादा मेहनत नहीं करनी पडती है । न ही ऐसा है कि वे किसी अहिन्दी भाषी प्रदेश या देश से आते हैं , न न न न वे अंग्रेज , ब्रिटिश  , फ़्रांसीसी आदि भी नहीं हैं , वे आपके हमारे बीच के अपने हमारे मित्र/सखा /दोस्त और परिचित ही हैं । भाषा साहित्य कोई भी बुरी खराब या छोटी बडी नहीं होती । हर भाषा का अपना महत्व , स्थान और मान है , सबको बोलने पढने लिखने और समझने वाले लोग हैं इसलिए हर भाषा का सम्मान किया जाना चाहिए । सबसे जरूरी बात ये कि यदि आपको सम्मान करने से कोफ़्त है तो भी कोई बात नहीं किंतु किसी भाषा का अपमान नहीं किया जाना चाहिए । किंतु यहां ये प्रवृत्ति बहुत तेज़ी से पनप रही है कि किसी एक भाषा की दुम पकड के उसका गुणगान करते हुए दूसरी भाषा को तुच्छ ,घटिया, निम्न साबित किया जाए और सोचिए कि यदि वो भाषा खुद राष्ट्रभाषा हिंदी हो तो । जी हां , ठीक समझ रहे हैं आप , ऐसा लगता है मानो किसी ने खींच के एक चाटा मुंह पर लगा दिया हो । अफ़सोस और खीज़ तब ज्यादा होती है जब वो आपके अपने ही दायरे के हों , फ़ेसबुकिए , ब्लॉगर हों ......देखिए कैसे ,"






          Photo: जुलाई 2006 में कादम्बिनी में मेरी एक कविता छपी थी जिसका रेम्युनरेशन 200 रुपये का चेक आया था. जिसे मैंने कैश न करा कर संभाल कर रख दिया था. बात दो सौ रुपये की नहीं है बात उस इज्ज़त की है जो कादम्बिनी ने दी. आज कोई कागज़ खोजते हुए यह चेक मिला. मुझे आज तक जितने भी चेक पत्रिकाओं से मिले हैं.. उन्हें मैंने कभी कैश नहीं कराया. ना ही कभी अपने अडोस-पड़ोस में किसी को दिखाया. लोग मज़ाक उड़ाते. पिछले पंद्रह सालों में अब तक जितने भी चेक मुझे मिले हैं सब ऐसे ही संभाल कर रखे हैं... क्यूंकि जो अमाउंट टोटल में बनती है वो ऐसा लगता है कि मेरा ही मज़ाक उड़ा रही है. मुझे क्लास बहुत पसंद है जिस तरह लौरेटो, ला-मार्टिनियर, कार्मल,के.वी., और नैनीताल/शिमला के स्कूलों में पढ़ी लड़कियों का एक क्लास होता है उसी तरह की क्लास पत्रिकाओं में ही छपना पसंद करता हूँ. और जितनी भी क्लास पत्रिकाएं हैं वो पैसा नहीं देतीं. अजीब अजीब पत्रिकाओं और अखबारों में तो मेरा जैंगो (माय लवली डौगी)  भी कविता कर के छपता था. कुछ भी कहो अंग्रेज़ी में कम अज़ कम क्लास तो है और पैसा भी डॉलर्स ($) में. अब तो मैं हिंदी में लिख कर हिंदी पर एहसान करता हूँ..

          ये हमारे फ़ेसबुक और हिंदी ब्लॉगर मित्र डॉ.महफ़ूज़ अली जी के कुछ हालिया फ़ेसबुक अपडेट्स हैं जिन्हें पढ कर सच में दुख और अफ़सोस हुआ , आपको कैसा लगा ????

          आज चेहरों ने फ़िर कुछ कहा है

          $
          0
          0







          ज़िन्दगी ..................तुम्हे मुझसे गिला और मुझे तुमसे ,फिर भी मुझे तुम्हारी जरुरत है और तुम्हे मेरी !!!!



          • मीडिया पोंकर रहा था - भीड़ नदारद! अब अचानक अण्णा का जादू चलने लगा? क्या जंतर मन्तर पर चाट पकौड़ी खाने जा रहे हैं लोग?




          दिल की बात किसके साथ ?
          माँ के साथ , पत्नी के साथ या दोस्त के साथ


          उसको थी पसंद शानो-शौकत
          मुझे लगा, शायद वो मेरी सादगी पे मरती है
          उसको थी पसंद, दौलत, पैसा
          मुझे लगा उसे सिर्फ चाहिये मेरे जैसा
          उसको थी आती, बातें बनानी
          मुझे लगा, वो कहती है दिल की
          वो तब भी जी सकती थी मेरे बिना,
          मुझे लगा वो अब भी करती है याद मुझे...(क्रमशः )

          • टीम अन्ना सरकार की तरह कुटिल नहीं है ....उसकी बातों में कोई फेर नहीं है .....उसको बैकफुट पर लाने के लिए फेर ढूंढे जा रहे है या आयतित किये जा रहे है.....जैसा कोई भूखा बिना किसी भूमिका के दो रोटी मांगता है ठीक अन्ना टीम भी भ्रष्टाचार पर अंकुश और शमन के लिए जनहित में लोकपाल ही तो मांग रही है कोई दिल्ली का ताज तो नहीं ....


          पिछले 55 साल से रोज पूजा करता हूं, क्योंकि मेरा यकीन है पूजा पर... जब तक जरूरत होगी टीम अन्ना के पक्ष में सड़कों पर उतरता रहूंगा- अनुपम खेर


          मुझे डर है अब तिवारी जी गुस्से में आकर कहीं "आल इंडिया पापा कांग्रेस" की स्थापना न कर दें ( दरसल वे पहले भी अपनी एक अलग कांग्रेस बना चुके हैं... ' तिवारी कांग्रेस' )



          • जो लोग इस आन्दोलन को अभी-भी हलके में ले रहे हैं ... वे संभल जाएं ... इस बार भ्रष्टाचारियों के दांव-पेंच काम नहीं आएंगे ... अन्ना और जनता की जीत होगी ... जय हो ! विजय हो !!

            एक शेर -
            इस बार, लड़ाई... आर-पार की है
            मारेंगे या मर जाएंगे, जय हिंद !!


          • आज समुद्रतट पर गई थी... विशालकाय सागर के सामने ऐसा लगता है हम अस्तित्वविहीन हैं...इन्सान तो सिर्फ कण मात्र है इस प्रथ्वी पर..लेकिन वो हमेशा अपने आप को superior समझता है ...


          गुटखा पर प्रतिबंध शराब पर क्यों नहीं ?

          क्योंकि गुटखा गरीब खाता है शराब अमीर पीता है ?



          तीन दिन वॉक पर नहीं जाओ तो क्या वजन बढ़ जाता है क्या ?



          यह आंदोलन है "जनलोकपाल" के लिए, "भीड" के लिए नही । इस आंदोलन का एकमात्र मकसद है "जनलोकपाल" पास करवाना, "भीड" जुटाना नहीँ ॥
          फिर 'भीड' को लेकर इतनी हाय-तौबा क्यूं ??
          जिसे 'भीड' की इतनी ही पडी है और बस 'भीड' की ही तलाश है, वो एक 'बंदर' और 'डमरु' लेकर सडक किनारे बैठ जाए..भीड खुद-व-खुद खिँची चली आएगी !!!


          गीत मेरे, सन्नाटे चीर जायेंगें, तनहाई में ये तेरे संग गायेंगे, गुनगुनाना जब फुसफुसा के इन्हें, तराने लबों पे तेरे तैर जायेंगें, जो न मुस्कुरा उठो गीत मेरे गा कर, जो तडप उटे न दिल गजल मेरी गा कर, तय है कि गीत मेरे तुझे शायर करेंगें, जब जब भी याद मेरे शेर करोगे, जिंदा हम तेरे वजूद में उतर आयेंगें, क्या हुआ जो हमको तुम न पा सके, जो चलोगे राह मेरी, तुममें सदा हम ही नजर आयेंगें

          कुछ बातें ख़ामोशी में ही अच्छी लगती हैं .... जैसे 'हम' और 'तुम' .....




          मैं बनूँ खुशबू पारिजात की
          महकी-महकी खुली पात की
          साँसों में तेरी समाई रहूँ
          ख्वाबों में तेरे छाई रहूँ
          -अर्चना


          हाथों में आने से पहले नाज दिखाएगा प्याला,
          अधरों पर आने से पहले अदा दिखाएगी हाला,
          बहुतेरे इनकार करेगा साकी आने से पहले;
          पथिक,न घबरा जाना,पहले मान करेगी मधुशाला।
          (बच्चन)
          ……………आज भी ताजा है बात।नहीं ?

          जिन्दगी और मौत दोनो सहमेँ सहमेँ से हैँ ... दम निकलने न पाये तो मैँ क्या करुँ ...।

          चेहरे जो बयां करते हैं ....

          $
          0
          0






          कल मैंने एक प्रस्ताव दिया था. कई मित्रों की उत्साहवर्धक प्रतिक्रियाएं आई हैं. आज उसे थोड़ा स्पष्ट रूप से सामने रख रहा हूँ.

          मेरा प्रस्ताव है कि दो वरिष्ठ कवियों के साथ बिलकुल नए कवियों की दो दिन की एक 'कविता-कार्यशाला' लगाई जाय. कार्यशाला में रचना प्रक्रिया, शिल्प, भाषा, परम्परा को लेकर अनौपचारिक माहौल में खुली बातचीत हो. साथ में हिन्दी की महत्वपूर्ण पत्रिकाओं के बारे में जानकारी और कुछ व्यवहारिक बातें भी हों. साथ में अंतिम दिन उन कवियों का एक सार्वजनिक काव्यपाठ भी होगा और ऐसे कुछ प्रयासों के बाद शार्टलिस्ट किये गए कवियों की चयनित कविताओं का एक संकलन भी प्रकाशित किया जाएगा.

          कार्यशाला हेतु चयन का तरीका यह कि इच्छुक कवि अपनी दस प्रतिनिधि कवितायें मुझे मेल कर दें जिन्हें मैं और कुछ वरिष्ठ कवि पढेंगे तथा उनमें से संभावनाशील लोगों को शामिल किया जाएगा. इस कार्यशाला का जो भी व्यय होगा वह प्रतिभागियों में बाँट दिया जाएगा.

          इच्छुक कवि अपनी रचनाएँ मुझे ashokk34@gmail.com पर भेज सकते हैं. आप सबके सुझाव भी आमंत्रित हैं.





          • ये कैसा मुल्क है 'उदय', जहां चोर-उचक्कों की बादशाहत है
            क्या गरीबों-मजलूमों के सिबाय, यहाँ कोई और नहीं रहता ?



            झमाझम बारिश के बीच राष्ट्रीय मीडिया चौपाल 2012 " में भाग लेने के लिए भोपाल जा रहे हैं | रायपुर से गिरीश पंकज, संजीत त्रिपाठी साथ होंगे, रास्ते में काव्य एवं व्यंग्य वर्षा की संभावना है। मिलते हैं एक शार्ट ब्रेक के बाद, कहीं जाईएगा नहीं, आता हूं शीघ्र ही लौट कर :))



            खबरिया चैनलों से बाबा रामदेव गायब !!!!
            .... क्या जनआंदोलन अप्रासंगिक हो गए ?
            .... क्या राजनीति सेटिंग और खरीद फरोख्त का पर्याय बन गयी है ?

             

            समझदार मंत्री अपने मुख्य चिंटू अफ़सर को बुलाते हैं. उसे समझाते हैं, "देखो, 2 लाख करोड़ के घपले का मौक़ा है. सबसे पहले स्विस बैंक में अपना खाता खोल लो. और देखो, खाता अपने नाम से नहीं, बीवी या साली के नाम से खोलना. वहीं से एनरूट करवा देंगे तुम्हारे लिए सौ करोड़. बाक़ी का मैडम के खाते में चला जाए, इसक पूरा इंतज़ाम बना देना. चुपचाप, किसी को किसी तरह ख़बर न हो. ख़याल रखना." और सब हो जाता है.

            उन मंत्रियों के बारे में आप स्वयं राय बनाएं जो मीडिया के सामने अपने अफ़सरों से कह दें, " देखो, काम करो. जनता का काम न रुके तो सौ-पचास तुम भी खा लो. कोई हर्ज नहीं है."

            मंत्री जी की सलाह के बाद, अब मैं खुलकर दिलों की चोरी किया करूंगा...क्योंकि चोरी करना बुरी आदत नहीं...
             

             

            ट्विटर से यह ऑफीशियल कथन है: माननीय जी कह रहे हैं - कस कर काम करो, थोड़ी चोरी मत करो।
             

            ‎(older post)

            जाते जाते..

            वो कह के गए ..

            "खुदा करे ...

            हम जैसा कोई ना मिले.."

            ऐ खुदा ..

            उनकी दुआ कबूल कर..

            कि..

            उन जैसा कोई ना मिले..

            --

            "SUMAN"

             

            बेअदबी है , तन्हा दिल की नुमाइश,
            जख्म महफ़िल में दिखाए नहीं जाते !
             
             
             

            दोस्तों अपन भी आज रात जयपुर अजमेर बांसवाडा चित्तोड गढ़ उदयपुर अहमदाबाद की यात्रा पर निकल रहे है .. अहमदाबाद में बेंगानी जी का आमंत्रण बहुत पुराना है सो सोचा इस बार कैश करा लिया जाए ....यात्रा सडक मार्ग से ....अनिल पुसदकर जी से प्रेरणा पाकर ....सोचा उनकी आधी यानि २००० किलोमीटर तो हम भी वाहन चालना कर ही डाले ...:)
             
             

            गुडगाँव की उबड खाबड सडको और धुल भरे रास्तो पर कंधे पर लैपटॉप और हाथ मैं आईफोन लिए साइकिल रिक्शे की सवारी , बुलंद भारत की बुलंद तस्वीर हमारी !
             
             
             

            दीवाने हैं आपके इस बात से इंकार नहीं
            कैसे कहें की हमे आप से प्यार नहीं
            कुछ तो कसूर है आपकी अदाओं का
            अकेले हम ही तो बस गुनाहकार नहीं
              


            क्या कहें तुझसे शिकवा बड़ा है जिंदगी
            और कहें तो भी फायदा क्या है जिंदगी
            माटी है आग है पानी है हवा है जिंदगी
            बाकी तो सांसों के सिवा क्या है जिंदगी
            रोनके दुनिया होगी ज़माने की सोच में
            मेरे लिए ढाई गज का टुकड़ा है जिंदगी
            मोत की किसे मालूम ये सब जानते हैं
            साँस जब तक है प्यारे ज़िंदा है जिंदगी
            जानता है आदमी पर कभी सोचता नहीं
            खाली हाथों के सफर का पता है जिंदगी
            ढल गया दिन अँधेरा होने को है आलम
            अँधेरे के पार ही तो नूरे खुदा है जिंदगी.



          कुछ कहते , कुछ सुनते .....ये चेहरे

          $
          0
          0












          ‎"मित्रता का अर्थ है - पारस्परिक ईमानदारी, भावनात्मक लगाव और मानसिक समदृष्टि "
          - पर ये तीनो होना चाहिए, कोई एक भी न हो तो शेष का अस्तित्व नहीं रह पता....!!
          शुभ दिन दोस्तों !!!!





          सुप्रभात के साथ फिर कुछ दिल से...
          झुकता नहीं है वो उसे मत बोल घमंडी.....
          ----------------------------
          तुम देवता नहीं हो इंसान समझ लो
          जाना है सबको एक दिन शमशान समझ लो
          ले कर के हाथ खाली आये थे जहाँ में
          भगवान् ने किया है धनवान समझ लो
          जिसने तुम्हें दिल से यहाँ दी हैं दुआएं यार
          उसका भी है तुम पे कोई अहसान समझ लो
          शैतान बहुत हैं यहाँ लड़ना है अकेले
          अब आयेगा न इस तरफ भगवान् समझ लो
          जो बोल के दिया तो लगे लूट की दौलत
          अब कह रहा है वो तो उसे दान समझ लो.
          झुकता नहीं है वो उसे मत बोल घमंडी
          खुद्दार है 'पंकज' की यही शान समझ लो


          कुछ दिनोँ पहले इस्लाम पर एक फिल्म बनी। भारत सहित अन्य देशोँ के मुस्लिम समाज ने हिँसक विरोध जताया । अब वाराणसी, इलाहाबाद, कानपूर तथा अन्य जगहोँ पर हिँदू समाज एक फिल्म 'Oh My God' का विरोध कर रहे है। तोड-फोड किए जा रहे है, पोस्टर फाडे जा रहे है, फिल्म के प्रदर्शन को जबरन रोका जा रहा है॥ फिल्म मेँ भगवान के अस्तित्व पर सवाल खडे किए गए है और आस्था के नाम पर किए जाने वाले अनैतिक तथा अव्यवहारिक कार्यो की आलोचना की गई है !! इससे पहले तस्लीमा नसरीम और सलमान रुशदी जैसे लेखकोँ ने अपने किताब मेँ इस्लाम के बारे मेँ कुछ आलोचनात्मक टिप्पणी किया । तस्लीमा को देश निकाला दिया गया ।सलमान पर फतवा जारी किया गया तथा इनके किताब को भारत सहित अनेक देशोँ मेँ बैन किया गया !! इन फिल्मोँ/किताबोँ का विरोध कितना वाजिब है ??
          लोगोँ का अपने धर्म और भगवान मेँ आस्था /विश्वास इतना कमजोर है कि वेँ किसी के आलोचना मात्र से हिँसक विरोध करने लगते है ?? धर्म के नाम पर किए जाने वाले कर्मकांड और धर्मग्रन्थोँ मेँ वर्षो पहले लिखी गई हर बात जरुरी तो नहीँ कि आज भी व्यवहारिक हो। बहुत अव्यवहारिक भी होते है॥ अगर इन अव्यवहारिक कर्मकांडो/बातोँ की आलोचना की जाती है, तो बजाए हिँसक होने के हमेँ इस पर गंभीरता से और खुले दिमाग से विचार नहीँ करना चाहिए ??

          प्राय: हिँसक विरोध की अगुवाई वैसे धर्मगुरु करते है जिन्होँने धर्म को धंधा बना दिया है। इन्हेँ डर होता है कि अव्यवहारिक कर्मकांडोँ की आलोचना से इनका धंधा चौपट हो सकता है। विरोध करने वाली भीड का एक बडा हिस्सा ना तो विवादित फिल्म देखे होते है, न विवादित किताब पढे होते है। उनमेँ से बहुतोँ को तो पता भी नहीँ होता कि फिल्म/किताब मेँ विवादित क्या है...फिर भी वेँ धर्म को धंधा बनाने वाले धर्मगुरुओँ के बहकावे मेँ आकर चल देते है हिँसक विरोध करने। मानोँ अपने धर्म और भगवान से ज्यादा आस्था इन्हेँ धर्म को धंधा बनाने वाले धर्मगुरुओँ मेँ है !!!

          क्या फिल्मकारोँ, कलाकारोँ, लेखकोँ, कार्टूनिस्टोँ, पत्रकारोँ को अपने क्रिएटिविटी प्रदर्शित करने की आजादी नहीँ दी जानी चाहिए...उनकी रचनात्मकता सीमित कर दी जाए ?? जैसे हमेँ बचपन मेँ स्कूलोँ मेँ चार विकल्प (विधालय, पुस्तक, मेला, न्यूजपेपर) मेँ से किसी एक पर निबंध लिखने को कहा जाता था...वैसे ही इन्हेँ भी विकल्पोँ की एक सूची थमा दी जाए कि आपको भी इन्हीँ विकल्पोँ मेँ से किसी पर फिल्म बनानी है/किताब लिखनी है...और साथ मेँ यह सख्त हिदायत भी दी जाए की उस फिल्म/किताब मेँ कुछ आलोचनात्मक नहीँ होना चाहिए ??





          सुनो बापू,
          सत्य और संयम के सभी प्रयोगों के प्रेत
          हर बरस निकल आते हैं अपनी कब्रों से,
          भटकते हैं, मूतते हैं उस दीवार पर,
          चिल्लाते हैं सेक्स, सेक्स और
          खुद ही अपनी सड़ांध से बेहोश हो
          सो जाते हैं
          बस एक साल के लिए............(एक कविता से ........)


          ‎25 साल पहले क्रिकेट के पिछे दिवानगी गजब की थी. जहाँ समय मिला यानी स्कूल की आधी-छूट्टी के समय में भी, जहाँ जगह मिली चाहे वह स्कूल का गलियारा हो और गेंद नहीं तो कपड़े को लपेट कर बनाया गया गोला हो, बेट नहीं तो लकड़ी सही, वह अभी न हो तो खाली हथेली ही सही मगर क्रिकेट खेलते थे. भारत की हार रोने के लिए बहुत थी. यह स्थिति थी हमारी और आज की पीढ़ी को देखता हूँ वह क्रिकेट में कम फूटबोल व अन्य खेलों में रूची ले रही है तो अच्छा लगता है. हाँ अपना क्रिकेट का बुखार तो कब का उतर चुका. धन्यवाद अजहरूद्दिन एंड पार्टी.





          माँ
          . . . . . . . . . . . . .
          माँ रूनियाँ है माँ मुनियाँ है
          झुनझुना की झुनझुनियाँ है
          माँ शक्ति है माँ भक्ति है
          वो ममता की अभिव्यक्ति है
          माँ प्यारी है माँ न्यारी है
          माँ से ही दूनियाँदारी है
          माँ दौलत है माँ पुँजी है
          आँचल में ममता गुँजी है
          माँ रोटी है माँ चावल है
          देती खुशियाँ वो पल पल है
          माँ धुप भी है माँ छाँव भी है
          माँ वैतरणी की नाव भी है
          माँ कोमल है माँ शीतल है
          वो हर कठिनाई की हल है
          माँ भाषा है माँ बोली है
          माँ से दीपावली होली है
          माँ दीपक है माँ बाती है
          वो स्नेह सदा बरसाती है
          माँ चुड़ी है माँ साड़ी है
          जीवन की अद्भुत गाड़ी है
          माँ थाली भी माँ प्याली भी
          गुड़िया के होंठ की लाली भी
          माँ चंदन है माँ टीका है
          बिन उसके जीवन फीका है
          माँ स्याही है माँ पन्ना है
          हर बचपन की तमन्ना है
          माँ चाहत है और चाह भी ही
          जीवन जीने की राह भी है
          माँ पगली है दीवानी है
          माँ की अनगिनत कहानी है
          माँ सिक्का और अठन्नी भी
          होंठों की हँसी चौवन्नी भी
          माँ नदियाँ है माँ गागर है
          ममता की गहरी सागर है
          माँ चुल्हा है माँ काठी है
          माँ ही बचपन की लाठी है
          माँ भुख भी है माँ प्यास भी है
          हर जज्ब की वो एहसास भी है
          हर रूप मेँ माँ हर रँग में माँ
          माँ माँ है माँ है माँ है माँ






          ‎@लोक में ऐसे प्रयोग प्रचलित हैं और कोई आवश्यक नहीं कि कहने वाला 'स्त्री' जाति के प्रति कोई पूर्वग्रह रखता हो।

          - गिरिजेश भोजपुरिया

          सहमत हूं। यहीं देखिये। मुंशी प्रेमचंद की कहानी पूस की रात में हलकू जब खेत में रखवाली करते हुए ठंड के मारे परेशान हो जाता है तो कहता है -

          "यह रांड पछुआ न जाने कहाँ से बरफ लिए आ रही है, उठूँ, फिर एक चिलम भरूँ"

          इस तरह के कई शब्द हैं जो किसी को जान बूझकर हत करने की भावना से नहीं कहे जाते, बस लोक प्रचलन में आ गये हैं।

          ("शब्द चर्चा ग्रुप" में रांड, रंडापा, रंडुआ पर चली बहस का अंश)

          https://groups.google.com/forum/?fromgroups#!topic/shabdcharcha/MKotdrSKm5I[1-25]





          इज्जत की रोटी
          आलोक पुराणिक

          एक बुजुर्गवार बताया करते थे कि घर छोड़कर रेस्ट्रॉन्ट में खाने-पीने वो लोग जाते हैं, जिनकी पत्नियां उन्हें घर में इज्जत के साथ खाना नहीं देतीं। सो बंदा बाहर रेस्ट्रॉन्ट में वेटरों को टिप वगैरह देकर इसके बदले उनसे इज्जत हासिल करने जाता है।


          अब बाहर और खासकर धांसू रेस्ट्रॉन्ट्स में भी खाकर इज्जत ना मिल रही है, ना बच रही है। भीख मांग कर खाने में और धांसू रेस्ट्रॉन्ट्स में खाने में बस यही फर्क रह गया है कि भीख मांगकर खाने में बेइज्जती कम होती है, सिर्फ एक ही लाइन में लगकर खाना मिल जाता है। जो देना है, एक बार में दे दे। धांसू रेस्ट्रॉन्ट में तीन-तीन, चार-चार बार लाइनों में लगो। पहली लाइन में लगकर बताओ क्या खाना है, रकम थमाओ, रसीद कटाओ। दूसरी लाइन में लगकर रसीद दिखाओ और खाना सप्लाई सेंटर से खाना पकड़ो। तीसरी-चौथी लाइन में तब लगिए अगर रोटी तीन के बजाय चार खानी हो, तो दोबारा रकम देकर रसीद कटाओ। इतनी लाइनों में लगकर शर्मदार बंदा सोचने लगता है कि अपने पैसे खर्च करके किसी राहत शिविर में खाना खा रहे हैं।



          उग्र युवा पीढ़ी को धैर्य, संयम की शिक्षा देने की एक तरकीब मैंने यह सोची है कि बेट्टे ऐसे रेस्ट्रॉन्ट्स में भरपेट खाना खाकर दिखाओ। इससे बंदे की चमड़ी मोटी हो जाती है, वह दुनिया को झेलने के काबिल हो जाता है। इस संबंध में रेस्ट्रॉन्ट दो तरकीबें अपनाते हैं। तरकीब नंबर एक तो यह कि रेस्ट्रॉन्ट वाले आपकी सीट के पास व्यग्र, प्रतिबद्ध खाने के इच्छुक सीटाकांक्षी छोड़ देते हैं, जो ऐसे घूरते हैं कि अबे उठ, कित्ता खाएगा बे। तरकीब नंबर टू, यह कि सीटाकांक्षी रेस्ट्रॉन्ट के गेट से बाहर लाइन में रहते हैं और झांक-झांककर अंदर वालों को बताते रहते हैं कि उठो तुम्हारी वजह से हम भूखे हैं। अपनी ही रकम से खरीदा गया खाना अपराध सा लगता है।


          मैं अपनी पत्नी को समझाता हूं कि बाहर खाना बहुत बेइज्जती का काम हो गया है अब। पत्नी साफ करती है, जमाना बदल गया है, अब इज्जत या रोटी में से किसी एक को ही चुन सकते हो।




          देखा है कई बार सूरत बदल-बदल के,
          नासमझ है आइना,वो नहीं बदलता !




          तू मोहब्बत से कोई चाल तो चल
          हार जाने का हौसला है मुझे

          ..फ़राज़



          वे जो अब हिन्दी ब्लॉग जगत की हलचल हुआ करते थे अब कहीं नहीं दिखते,किस बियाबान में खो गए?
          कैसे होंगे वे लोग? ईश्वर न करे उनके साथ कोई अनहोनी न हुई हो ...
          वे यहाँ भी तो नहीं दिखते :-( फानी दुनिया में कोई निशानी भी नहीं उनकी!



          मिज़ाज़ उनका कभी समझा नही जाता,
          कभी खुद में,कभी दुनियां मे नजर आते हैं,
          मुझमें शामिल हैं मेरी तनहाई की तरह...
          मुझसे मिलने भी वो महफ़िल में आते हैं....:)




          हमने तो सुना था, कि - सिर्फ... सरकार उनकी है ?
          पर,
          यहाँ तो -
          सारा मुल्क ...
          उनके .......... बाप की जागीर हमको लग रहा है ??




          उमरगुल की बत्ती गुल......अफरीदी को एक्सरे कराना पड़ेगा.......एक-दो और चोटिल पाकिस्तान के...........कोहली, प्यारे कोहली........अपने पड़ोसियों के साथ प्यार से पेश आना था ना.......इतना क्यों मारा...... ;)



          नाटककार, आलोचक, कवि और राजनेता साथी शिवराम की द्वितीय पुण्य तिथि पर आज साँय आशीर्वाद हॉल कोटा में श्रद्धांजलि सभा व परिचचर्चा का आयोजन किया गया। कार्यक्रम के आरंभ में 'विकल्प' अ.भा. जनवादी सांस्कृतिक सामाजिक मोर्चा के राष्ट्रीय अध्य़क्ष डॉ. रविन्द्र कुमार 'रवि', महामंत्री महेन्द्र 'नेह' साथियों के साथ गीत 'साथी मिल के चलो गाते हुए ....





          एक जंगल था । गाय, घोड़ा, गधा और बकरी वहाँ चरने आते थे । उन चारों में मित्रता हो गई । वे चरते-चरते आपस में कहानियाँ कहा करते थे । पेड़ के नीचे एक खरगोश का घर था । एक दिन उसने उन चारों की मित्रता देखी ।

          खरगोश पास जाकर कहने लगा - "तुम लोग मुझे भी मित्र बना लो ।"उन्होंने कहा - "अच्छा ।" तब खरगोश बहुत प्रसन्न हुआ । खरगोश हर रोज़ उनके पास आकर बैठ जाता । कहानियाँ सुनकर वह भी मन बहलाया करता था ।

          एक दिन खरगोश उनके पास बैठा कहानियाँ सुन रहा था । अचानक शिकारी कुत्तों की आवाज़ सुनाई दी । खरगोश ने गाय से कहा - "तुम मुझे पीठ पर बिठा लो । जब शिकारी कुत्ते आएँ तो उन्हें सींगों से मारकर भगा देना ।"

          गाय ने कहा - "मेरा तो अब घर जाने का समय हो गया है ।"तब खरगोश घोड़े के पास गया । कहने लगा - "बड़े भाई ! तुम मुझे पीठ पर बिठा लो और शिकारी कुत्तोँ से बचाओ । तुम तो एक दुलत्ती मारोगे तो कुत्ते भाग जाएँगे ।"घोड़े ने कहा - "मुझे बैठना नहीं आता । मैं तो खड़े-खड़े ही सोता हूँ । मेरी पीठ पर कैसे चढ़ोगे ? मेरे पाँव भी दुख रहे हैं । इन पर नई नाल चढ़ी हैं । मैं दुलत्ती कैसे मारूँगा ? तुम कोई और उपाय करो ।

          तब खरगोश ने गधे के पास जाकर कहा - "मित्र गधे ! तुम मुझे शिकारी कुत्तों से बचा लो । मुझे पीठ पर बिठा लो । जब कुत्ते आएँ तो दुलत्ती झाड़कर उन्हें भगा देना ।"गधे ने कहा - "मैं घर जा रहा हूँ । समय हो गया है । अगर मैं समय पर न लौटा, तो कुम्हार डंडे मार-मार कर मेरा कचूमर निकाल देगा ।"तब खरगोश बकरी की तरफ़ चला ।

          बकरी ने दूर से ही कहा - "छोटे भैया ! इधर मत आना । मुझे शिकारी कुत्तों से बहुत डर लगता है । कहीं तुम्हारे साथ मैं भी न मारी जाऊँ ।"इतने में कुत्ते पास अ गए । खरगोश सिर पर पाँव रखकर भागा । कुत्ते इतनी तेज़ दौड़ न सके । खरगोश झाड़ी में जाकर छिप गया । वह मन में कहने लगा - "हमेशा अपने पर ही भरोसा करना चाहिए ।"
          सीख - दोस्ती की परख मुसीबत मे ही होती है।


          किताबें बहुत पढी होंगी तुमने ,कभी कोई चेहरा भी तुमने पढा है

          $
          0
          0



          सोचता हूं कि इस  कंप्यूटर और उस पर उपलब्ध इन मंचों ने हमें खुद को अभिव्यक्त करने का न सिर्फ़ मौका दिया है बल्कि उन्हें व्यक्त करने के अलग अलग अंदाज़ भी दिए हैं । फ़ेसबुक पर हम स्टेटस और फ़ोटो भी भुकभुक कर देते हैं , ट्विट्ट एक चालीस की लोकल कट्टर है , लिंकदीन अलादीन का भाई है और , एक नयका आया है न क्या तो नाम है ससुरे का..छोडिए जो भी है , तो इन सब भी अपना अलग अलग आनंद है । ब्लॉगिंग का अलग और फ़ेसबुक का अलग ..जब फ़ेसबुक पर हम अपने तमाम ब्लॉग्स और पोस्ट को साझा कर सकते हैं तो फ़िर ब्लॉग्स पर फ़ेसबुक को क्यों नहीं , बस यही सोच कर इस ठिकाने को बना लिया । चलिए अब आपको दिखाते पढाते हैं कि फ़गुआ से पहले कौन क्या कह सुन रहा है ....


          रंगरेज़ मेरे तू रंग दे ...
          हाँ एक रंग में रंग दे ..
          सब प्रेम रंग में रंग दे ...
          --
          होली है ....

           
          जिसको पाया ही नहीं..उसको खोने से क्या डरना
           
           
          ये मैच ढाई दिन मे खत्म हो गया अगर बाकी बचे ढाई दिन में एक और मैच खेल लिया जाए तो आस्ट्रलिया चार मैचों की सीरीज पांच शून्य से भी हार सकता है।
           
           
          • हिंदी टप्पा
            ======
            उद्घाटन की पड़ी आजकल,.....उनको ऐसी चाट।
            बीवी की चोटी का फीता, कभी कभी-कभी दें काट॥
            कि मैं कोई झूठ बोलया? कि मैं कोई कुफर तोलिया?
            कोई... न!! भाई कोई न...!! भाई कोई न...!!
            ============
            सद्भावी-डॉ० डंडा लखनवी

           


          अजीबोगरीब स्थिति हो गयी है मेरी ,अभी देखहरू बन कर एक जने के यहाँ जाना है लड़का पसंद करने ,जबकि ये सब काम मुझे बेहद नापसंद है ,बहुत जरुरी है विवाह का अधिकार परिजनों के हाँथ से निकलकर लड़के -लड़कियों के हाँथ में चला जाए ,सारी टीटीमेबाजी तो ख़त्म होगी ही ,विवाह से जुडी विसंगतियां भी दक्खिन लग जाएँगी |
           

           

          मंज़िल जरा भी दूर नही थी उस निशान से,
          थक के गिरा था जहाँ परिन्दा उड़ान से,
          बारिश की दुआ इसलिए मैं माँगता नही कि-
          दरिया बहुत क़रीब है मेरे मकान से,
           
           
          जोली एल एल बी .....सच्चाई को दिखाती मूवी .....पास है जी पास
           

           

           

           

          अभी अभी एक मित्र ने बताया कि इटली ने दोनों नौसैनिकों को इसलिए वापस भेजा क्योंकि भारत की तरफ से धमकी दी गई थी कि अगर दोनों को तुरंत वापस नहीं भेजा गया तो भारत काटजू और बेनी प्रसाद वर्मा को वहां भेज रहा है ।इटली इतना बड़ा जोखिम लेने की स्थिति में नहीं था :-) :-)
           

           

           
          दिग्विजय सिंह का कहना है कि 33 साल के संजय ने जब अपराध किया तब वो बच्चे थे। मैं सोचता हूं राहुल गांधी ने किस हद तक बच्चों की परिभाषा बदल दी है।

          होली हो या दिवाली
          बढाती है हमारी ही जिम्मेदारी ,
          सब कुछ हो चाहे बंद
          हमारी वर्कशॉप (रसोई) में
          बढ़ जाती है कलाकारी .
          प्रोडक्शन और सप्लाई

          ओवर टाइम भी शुरू हो जाता .

          बदले में कुछ नहीं चाहिए ,

          सबको होली की शुभकामनाएं !

           
           
          • मैं सोना चाहता हूँ।
            ऐसी नींद जो आगोश में भर ले मुझे
            दीन-दुनिया की खबर हो ना मुझे,
            आँख से हर ख़्वाब खोना चाहता हूँ
            मैं सोना चाहता हूँ,मैं खोना चाहता हूँ।।

          •  
             

             

             

            ऐसा तो कही नही होता है
            उल्फत में एक ही रोता है
             हर हाल में इंसा सिसकेगा
            गर दर्द उसका इकलौता है

           
          लगभग एक साल से साइट पर लिखते रहने के बावजूद अभी तक ब्लॉग पर लिखने मोह बना हुआ है , मैंने ब्लॉग्स पर लिखना बिल्कुल बंद कर दिया था और तमाम ब्लॉग्स को भी रिडायरेक्ट करके साइट की तरफ़ मोड दिया गया था , किंतु पिछले दिनों से महसूस हो रहा है कि उस दुनिया को यूं छोडना ठीक नहीं है , जल्दी ही सभी ब्लॉग्स को पुन: सक्रिय करके वापसी करने का विचार बना रहा हूं और उससे भी ज्यादा ब्लॉग्स को पढने और उन पर टीपने की आदत को मांजने की भी ...ब्लॉगिंग जिंदाबाद , ब्लॉगर जिंदाबाद , ब्लॉग्स जिंदाबाद ।
           

          फ़ेसबुकिया फ़ागुन

          $
          0
          0

           

           

          ताऊ टीवी चैनल से ताऊ जी से मिला होली का पिरसाद …..ग्रहण करिए

          पिछले कुछ सालों में होली के आसपास लकडी पानी बचाने का घनघोर नारा लगाने का रिवाज़ चल निकला है , तो इसका भी तोड है न म्हारे फ़ोडू के पास , देखिए हमारे सूरमाओं ने होली पे हो हल्ला मचा के रख दिया है ..झेलिए इस फ़ेसबुकिया फ़ागुन को …………….

            
        • DrKavita Vachaknavee
          रंगों से खेले लगभग 15 वर्ष हो गए.... और चाह कर भी खेलना संभव नहीं। यहाँ तो अभी कल व परसों भी हिमपात का दिन है।
          होली आप सब के जीवन में अनन्त खुशियों के रंग भरे।
          अपने मित्रों परिजनों के साथ आप सौ बरस और रंग खेलें और आप पर बीस-पचास रंग हर बरस डलते रहें ... :) रंग भरी शुभकामनाएँ
            
        • Mridula Shukla
          सुबह से होली की धूम रही
          हम एक दुसरे के गालों पर लगा कर
          काले, हरे ,सियाह रंग
          एक दुसरे के चेहरों को कर बदरंग
          नाचते रहे ढोलकी की थाप पर
          ढोलकी भी गाता रहा
          "चिपका ले सैयां फेविकोल से "
          और बेचारा फाग
          दूर उदास खड़ा हमें देखता रहा
          मैंने बात की तो कहने लगा .......................
          अफ़सोस करूँ ये की मुझे भूल गए सब
          या यूँ कहूं की लोग मुझे जानते नहीं
          फाग .....(फागुन मैं होली पर गाया जाने एक विशेष गीत )
          मृदुला
            
        • अजय कुमार झा
          पी के भांग , खा के पुआ , इससे पहिले कि हम हो जाएं लमलेट , और हो जाए लेट,
          आप सबको होली ही रंगारंग मुबारकबाद है हो , अब चाहे घोलट जाए इंटरनेट ,
          साला पिछली तीन दिन से नाटक पसारे हुए ससुरा ..........
            
        • देवेन्द्र बेचैन आत्मा
          होली खेलकर आये तो देखा फेसबुक इतना धीमा चल रहा है कि एक फोटो लोड करने मे आधा घंटा लग जा रहा है। बोर हो गये अपन तो..:(
            
        • Sangita Puri
          बिहार और झारखंड में नॉनवेज खाने की होली आज है .. पूए और मिठाई खाने की कल
        • Anup Shukla
          "रंग बरसे भीगे चुनर वाली" इतने दिनों से बज रहा है कि सही में ऐसा होता तो गोरी को डबल निमोनिया हो गया होता। :)
             
                • Vandana Singh
                  एक बर्फीली परत हट जाए तो नव निर्माण या नव सृजन की सम्भावना अवश्यम्भावी है ।
                  क्या सचमुच....?
                  शायद होली का उत्सव ऐसी संभावनाओं का आधार है... जिसमें संभावनाओं और संबंधों की पुनर्स्थापना और नव स्थापना के साथ साथ स्वय पर आच्छादित हिम आवरण को त्याग कर एक संतुलन और तादात्म्य स्थापित किया जा सकता है । जीवन में रंग भरे जा सकते हैं ।
                  रंगोत्सव की अशेष शुभकामनाएं.....
                    
            • Chandi Dutt Shukla
              तमाम शोर, हुल्लड़, उल्लास और जोश के बीच उदासी कहीं दूर नहीं जाती। नीचे की ओर मुंह धंसाकर दिल के किसी कोने में कैद भर हो जाती है। जैसे ही, बैठे, अकेले - यादें, तनहाई और उदासी ख़तरनाक तरीके से तलवारें घुमाते आ जाते हैं, कतरा-कतरा चीरने :(
                    •   
                      Pramod Mishra
                      नशेड़ियो आज 28 तारीख की सुबह हो गई होली गई अब तो होश में आ जाओ
                       
            • DrArvind Mishra
              होली के फुटकर संस्मरण
              बात अंतर्जाल युग की ही है। मौसम भी कुछ ऐसा ही खुशनुमा था . एक शहर में कुछ काम था -पहुंचा तो मित्रों ने एक गेट टुगेदर रख लिया . कई उपस्थित हुए मगर किसी की अनुपस्थिति प्रमुख बन गयी .उनका कहना था कि उन्हें लोगों की भीड़ में मिलना पसंद नहीं ....बात आयी गयी हो गयी -फिर बहारे आयीं तो मैं अकेला उसी शहर पहुंचा . वे तब भी नहीं आयीं -फिर बात आयी गयी हुई . काफी बाद में उनसे मैंने पूछा क्या इतना विश्वास नहीं है मुझ पर तो बताया कि नहीं मुझ पर तो पूरा विश्वास है मगर उन्हें खुद पर ही भरोसा नहीं था -कहीं भटक जातीं तो ? लीजिये अब इस बात का भी कोई जवाब है ! :-) इस तरह एक फलसफे का अंत हो गया! :-)
              Viewing all 79 articles
              Browse latest View live