तो देखें , कि चेहरे क्या बयां करते हैं
तुम लिखो फ़ेसबुक , हम ब्लॉग लिखेंगे ..
रविवार की सुबह सुबह जब इतनी बेहतरीन बातों को पढने , उस पर कुछ कहने का अवसर मिले तो समझ जाना चाहिए कि सचमुच इतवार ! तेरा कहना ही क्या ……। उनमें से कुछ के शब्दों को हमेशा की तरह सहेज़ कर रख लिया है मैंने , देखिए आप भी
नेता साले हरामखोर तो हर जगह हैं लेकिन क़्वालिटी और विजन का अंतर है। हैदराबाद और लखनऊ के विकास के अंतर प्रमाण हैं।
मदर्स डे पर सारी दुनिया में कुछ लोग ग्रीटिंग्स खरीदते रहे ...और कुछ उसकी आलोचना करते रहे ....वहीँ एक दिल वाले ने बच्चों की मम्मा को प्यार से एक मोगरे का गजरा देकर निहाल कर दिया .. :)
फेसबुक पर ब्लॊकी-करण के अपने झाम, झटके और रोमांच हैं।
अक्सर आपके स्टेटस पर दो आदमी संवाद कर रहे होते हैं, जो एक दूसरे को ब्लॊक किये होते हैं। ब्लॊक-संवाद टाइप का। आप पर जिम्मेदारी होती है कि आप दोनों लोगों की ब्लॊक-मानसिकता की कद्र करते हुए उन्हें एक दूसरे की बात संप्रेषित करें। ऐसा करते हुए आपका रवैया निहायत ‘गैरजानिबदाराना’ होना चाहिए नहीं तो आप उनमें से किसी की भी ब्लॊक-मानसिकता के शिकार हो सकते हैं।
ब्लॊकी-करण को एक उपयोगी और पसंदीदा कार्यवाही समझने वाले लोग अनिवार्यतः एक और प्रोफाइल रखते हैं। यानी दो प्रोफाइल, एक जिससे ब्लॊक करना है और दूसरी जिससे ब्लॊक किए लोगों को देखते रहना है। और काम की बात दिख जाने पर ‘मित्रों से सूचना मिली/जानकारी पहुँची/ऐसी चर्चा है’ - ऐसा लिखते हुए आपको यथोचित जवाब भी देना है। यह आपका ब्लॊक-धर्म है। इस तरह आप जिसे ब्लॊक किए होते हैं, उसके और नजदीक चले जाते हैं। यह ब्लॊक-मित्रता भी कम प्रगाढ़ नहीं होती।
तिरहुत से दिल्ली तक के लोगों को न्योता दिया गया। करीब 5 लाख लोगों के लिए खाना तैयार हुआ। करीब 200 रसोइए ने खाना तैयार किया। करीब 10 एकड में पंडाल लगाये गये::::::इन वाक्यों को पढ कर ऐसा नहीं लग रहा है जैसे हम किसी राजा महाराजा के घर में हो रहे किसी समारोह का ब्योरा पढ रहे हैं। कल जब इस प्रकार की जानकारी मिली तो हमें भी यही लगा, लेकिन----।
अभी तक रहा, खास लोगों का ही देश यह,
आओ आम आदमी का, देश ये बनायें हम।
सोते हैं अभी भी आम आदमी अनेकों यहाँ,
मित्रों आओ मिलकर, उनको जगायें हम,
लूटा देश को हमारे, भ्रष्ट राजनेताओं ने,
सत्ता से हटाके इन्हें, जेल पहुँचायें हम।
अब तक नहीं आम आदमी की कदर जो,
उसी आम आदमी की, सत्ता यहाँ लायें हम।।.
खुद पर विजय प्राप्त करना लाखों शत्रुओं पर विजय पाने से बेहतर है
काश! आज के दिन की तरह हरदिन मां को प्यार और सम्मान मिलता।
खतरा ऐसे लोगोँ केँ सिर पर सदैव मंडराता रहता है , जो उससे डरते हैँ ।
माँ तुझे प्रणाम....... मैं जो कुछ भी हूँ और जो कुछ बनना चाहता हूँ, उसके लिए अपनी देवी स्वरूपा (गोलोकवासिनी ) माँ का ऋणी हूँ,
भुने हुए आलू और धनिया की चटनी... वाह... कोई जवाब नहीं भाई..... खुद की बनाई हो तो फ़िर तो कहना ही क्या..
(प्यार, मोह और असमंजस)
मैं प्यार करती हूँ तुमसे
जब छोड़कर जाना चाहोगे, जाने दूँगी,
पर प्यार करती रहूँगी
किसी और को चाहूँगी, तब भी चाहूँगी तुम्हें,
तुम्हारे बगैर भी जिऊंगी, तुम्हें याद करते हुए।
पर तुम्हें...मुझसे मोह है,
इसलिए तुम मुझे कभी छोड़ न पाओगे,
तुम जुड़े रहोगे मेरे साथ यूँ ही
जब हमारे बीच प्यार नहीं रह जाएगा तब भी,
और मैं न रहूँ..., तो जाने क्या होगा?
कभी सोचती हूँ मेरा प्यार बेहतर है
कभी मन कहता है तुम्हारा मोह भला।
एक बार बहुत पहले इक्जाम देने बोकारो गया था... दिन भर कुछ खास खाया नहीं था, स्टेशन पर एक जगह जलेबी बिकती दिखी... हमने उससे पूछा ताज़ी है, उसने बोल ताज़ी के चक्कर में कहाँ पड़े हैं भैया गरम खोजिये गर्म मिलेगी...
पिछले दो मिनट में कोयल की पाँच कुहुक सुनाई दे चुकी हैं। मतलब? अख्तर खान अकेला के स्टेटस नाजिल हो रहे हैं।
बेचारे इमरान खान को सिर फुड़वा के भी कोई फ़ायदा नहीं हुआ ,
नवाज़ शरीफ़ के भागों छीका फूटने की ख़बरे आने लगी हैं (मुशर्रफ़ का भगवान मालिक)
पाकिस्तान से मिले रहे ताज़ा रूझानों के मुताबिक पाक तालिबान, लश्कर ए तैयब्बा से सात के मुकाबले तीन बम धमाकों से आगे चल रहा है।
ख़ुशी में हूँ या ग़म में हूँ ... नहीं पड़ता फरक कोई ...
मगर भर आती हैं आँखें ... जो माँ कहती है "कैसी हो" ...
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फेसबुक से अच्छे दोस्त फूलपुर इलाहाबाद के है ,मिलने पर पान भी खिलाते हैं दूर होने पर फोन भी करते हैं |
माँ तो बस माँ होती है
बच्चों की जहाँ (जहान) होती है..
आज सभी माँओं को मेरा बहुत बहुत नमन ! जो अपनों के साथ है उन्हें भी जो अपनों से दूर कहीं वृद्धाश्रम में , किसी अस्पताल में या फिर किसी और के पास है उन सभी को .
माँ सिर्फ एक होती है और वह हर हाल में वन्दनीय ही होती है . उसके दोषों को खोजने का हक हमें नहीं है क्योंकि वह हमारे तन , मन की निर्मात्री होती है और अपने खून से सींच कर हमें जन्म देती है. उसके दूध के कर्ज से तो उऋण होना संभव ही नहीं है. आज का दिन माँ के पास न भी रहें , मजबूरी होती है लेकिन कम से कम उसको जैसे संभव हो बात जरूर करें .
ट्राफिक सिग्नल पर...
फूल,खिलौने बेचते बच्चे
कार के शीशे पोछते बच्चे
अपने बच्चों की मानिंद
अपने क्यूँ नजर नहीं आते
शायद ,एक "माँ" होके भी
मुझे "माँ" के मायने नहीं आते !
s-roz
कमाल करती है उसकी बातों की लज़्ज़त
नमक खिला देती है चीनी का नाम लेकर :-)
पाकिस्तान से चुनावी रुझान में इमरान खान और नवाज शरीफ कुछ यूँ आगे पीछे चल रहे हैं जैसे विवाह में चार फेरे में वर आगे और बाकी के तीन फेरे में कन्या आगे... ;)
यदि आप एक रंग होते तो कौन-सा रंग होना चाहते ?
ई लो भैया, संडे का पेसल चुटकुला … आजम की तलाशी में अमेरिका का नुकसान। अगर अमेरिका को पता होता तो इन्हें नहीं करता कच्छा उतार हलकान। मिल गया मिल गया नया फ़ार्मुला, जब जब अमेरिका का करना हो नुकसान, तब तब नेता जी की तलाशी कराओ श्रीमान ………
कैसे ये कहे तुम से ह्मे प्यार है कितना ...
आँखों की तलब बढती देखे तुम्हे जितना ....:)))
फेसबुक वैचारिक अखाडा है...लोगोँ के विचारोँ की उठा-पटक चलती रहती है !!
तुम ने तो सोचा होगा, मिल जाएँगे बहुतेरे चाहने वाले................
ये भी ना सोचा कभी कि, फर्क होता है चाहतों में भी !!
अगर देश के सभी वर्तमान और भूतपूर्व मुख्य मंत्रियों, मंत्रियों, सांसदों, विधायकों, सचिवों,संयुक्त सचिवों और अन्य वरिष्ठ अधिकारीयों की समप्त्तियों को निष्पक्ष जाँच की जाए तो......?????
देश के प्रधानमंत्री की कथित ईमानदारी दूसरों के बईमान कंधों की मोहताज बन कर रह गई है .
बेजान से इस शहर में
लंबीं घुमावधार सड़कों पर
सासाें का भ्रम तोड़ती
तेज रफ़्तार कारें अगर न होतीं ?
सहरा की रेत में दफ़्न
होने का गुमां लगता़़़ ़ ...........दुबई के नाम......रजनी मोरवाल ११ मई
मुख-पुस्तक के कुछ मुखडे ……..
Gyan Dutt Pandey
वो कहते हैं कि एक रोटी कम खाओ और एक मील रोज और चलो तो दस साल ज्यादा जियोगे। आईडिया बुरा नहीं है!
सनातन कालयात्री
कल घंटा भर एक सज्जन को सुनने के पश्चात अचानक यह अनुभव किया कि पूर्वार्द्ध में जिन माँगों को लेकर वे बहुत ही अधीर थे, उत्तरार्द्ध में उन सबको एक एक कर खारिज कर दिये। मैं केवल उतना ही बोला जितना कि वार्तालाप के जारी रहने के लिये आवश्यक हो और आवश्यक रुचि भी दिखाई। जाते समय बहुत ही संतुष्ट दिखे जब कि मैं अब तक शॉक में हूँ कि वे किस लिये आये थे? कहीं सज्जनता में मैं टाइमपासी का शिकार तो नहीं हो गया!
Neeraj Badhwar
क्या पवन बंसल का भांजा आडवाणी साहब का 'पीएम इन वेटिंग' कंफर्म करवा सकता है?
Prashant Priyadarshi
सिनेमा अच्छी होनी चाहिए, मशालेदार तो चिली चिकेन भी होता है!!!
Abhishek Kumar
निमिषा : तुम जब से ब्लॉग बनाये हो तो कुछ भी लिख देते हो और हमको कभी समझ में नहीं आता... ट्रैफिक के शोर में प्यार के तीन शब्द???...हे भगवान..इसका मतलब क्या हुआ?क्यों लिखे थे ये? कौन बोलता है ये शब्द...और कैसा कौन सा शब्द....ट्रैफिक में तो खाली होर्न सुनाई देता है...तुम शब्द कहाँ से सुन लेते हो भैया?..तुम्हारा ब्लॉग सब कैसे पढ़ लेता है..ये सब फ़ालतू बात को पढ़कर तुम्हारा ब्लॉग पर इत्ता लोग कुछ कुछ लिखता भी है....हमको तो टाईम बर्बाद करना लगता है...
मैं : तुमको समझ में नहीं आएगा बाबु....अभी तो तुम बच्ची हो न रे..
निमिषा : हम अभी अभी बड़े हुए हैं..हमको पता चल जाएगा तुम बताओ चुपचाप
मैं : तुम अभी बड़ी हुई है या बड़ी हो रही है?
निमिषा : चुप रहो...हम बड़े हो नहीं रहे..(फिर कुछ देर सोचकर कहती है)हम बड़े हो चुके हैं..हम अकेले ऑटो पे बैठ कर जा सकते हैं....वहां(वनस्थली, उसका कॉलेज) सारा काम अकेले करते हैं...और भी बहुत कुछ करते हैं तो हम बड़े हो चुके हैं तुम हमको बच्ची मत बोलो नहीं तो बात नहीं करेंगे.
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(पिछले साल की एक बात)
Prabhat Ranjan
जिस आदमी के नेता बनने की खबर मात्र से एक पार्टी में इस कदर अफरा-तफरी मच गई हो, सोचिये अगर वह कहीं धोखे से प्रधानमन्त्री बन गया तो देश का क्या हाल होगा!
Amitabh Meet
शेर मेरे भी हैं पुरदर्द, वलेकिन 'हसरत' !
'मीर' का शेवा-ए-गुफ़्तार कहाँ से लाऊँ ?
Suresh Chiplunkar
जो "बुद्धिजीवी" आज नरेंद्र मोदी और भाजपा का रास्ता रोकने की कोशिश कर रहे हैं...
यही लोग कल UPA-3 के भ्रष्टाचार और आतंकवाद पर घड़ियाली आँसू भरे स्टेटस लिखते दिखाई देंगे...
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नोट :- बुद्धिजीवी = अपनी बुद्धि बेचकर (या गिरवी रखकर) जीविका कमाने वाले...
सुप्रभात मित्रों...
Vani Geet
यह पहेली भी खूब रही कि नदी ने पत्थरों को तराशा या नदी को पत्थरों ने किनारों में बाँधा !
Vandana Gupta
यूँ तो पी जाती गरल भी
और रह जाती ज़िन्दा भी
मगर
बरसेगी कभी तो कोई बूँद मेरे नाम की
इस आस में युग युगान्तरों से बैठी है
मेरी प्यास .....ओक बन ...........मोहब्बत के मुहाने पर
क्योंकि
ये कोई सूदखोर का ब्याज नहीं जो चुकाने पर खत्म हो जाये
मोहब्बत की किश्तें तो जितनी चुकाओ उतनी ही बढा करती हैं
Sunita Shanoo
कुछ देर उनसे बात हो
ख्वाबों में ही सही,
बस मुलाकात हो
सुप्रभात दोस्तों
Anup Shukla
फ़ेसबुक पर किसी भी स्टेटस पर आत्मविश्वासपूर्वक सटीक टिप्पणी/लाइक करने का एकमात्र उपाय है कि आप टिप्पणी/लाइक करने के तुरंत बाद उस पोस्ट को पढ़ना शुरु कर दें। पहले पढ़कर टिप्पणी/लाइक करने में पढ़ने के साथ आपका आत्मविश्वास कम होता जायेगा।
Suman Pathak
पहले लगता था ..
अपनी इच्छाओं को मारकर एक खुबसूरत रिश्ता तो बनाया जा सकता है पर एक खुबसूरत ज़िन्दगी नहीं ..
पर अब लगता है कि अपनी इच्छाओं के साथ जीकर खुश होने से अगर अपनों को दुःख पहुंचे तो शायद उस ख़ुशी का भी कोई महत्व नहीं ...
सच है के इन्सान को कुछ सीखने के लिए दूसरों के पास जाने की ज़रुरत नहीं ... समय के साथ हर ज्ञान खुद बा खुद इन्सान में आ जाता है .. ..
Deepti Sharma
यू. पी. बोर्ड दसवीँ में तीन लाख 42 हज़ार छात्र हिन्दी में फेल ।
उफ़...
Kajal Kumar
लगता है कि आडवाणी, केंद्र के केशुभाई बनने की तैयारी में हैं
Kailash Sharma
कितना सूना है घर का हर कोना,
एक आवाज़ को तरसता है.
....कैलाश शर्मा
![]()
Vivek Singh
आडवाणी जी का नाम प्रधानमंत्रियों की लिस्ट में यूँ ही लिखवाकर मामला रफादफा क्यों नहीं कर देते.......
Abhishek Cartoonist
आदमी का उतावलापन तो देखो ... ज्येष्ठ माह में ही बरसात मांग रहा है ..... हे भगवान् !
देवेन्द्र बेचैन आत्मा
आज सुबह चार बजे उठे। आस पास के पाँच और लोगों को जो रोज मार्निंग वॉक करने जाते हैं, जुटाकर तीन मोटर साइकिल से सूर्योदय से पहले दशाश्वमेध घाट गये। दशास्वमेध से तुलसी घाट तक पैदल वॉक किया। खूब जमकर फोटोग्राफी करी। गंगा स्नान किया। तैराकी की। (अधिक नहीं तैर पाया..चलने के बाद थक चुका था। :( ) नहाकर बाबा विश्वनाथ का दर्शन किया। दर्शन के बाद चौक चौराहे में कचौड़ी-जिलेबी का नाश्ता किया, मगही पान जमाया और साढ़े नौ बजे तक सारनाथ वापस।
कोई लाख कहे गंगा घाट पर खूब गंदगी है, गंगा मैली हो गई है लेकिन आज भी सूर्योदय से पहले घाटों पर टहलने और गंगा स्नान करने में जो आनंद है उसे शब्दों में व्यक्त नहीं किया जा सकता। ऑपरेशन 'सुबहे बनारस' सफल रहा।
Girish Mukul
मेरे महबूब का साथ मिला जब से मुझे
मेरे होने का एहसास मिला तब से मुझे !
दूर आती पाजेब की सुन के छन छन-
उसके आने का आभास मिला तब से मुझे !!
Ajit Wadnerkar
दूषत जैन सदा शुभगंगा।
छोड़ हुगे यह तुंग तरंगा।।
महाकवि केशवदास की उक्त पंक्ति का भाव है कि जैनी अगर गंगा की निन्दा करते हैं तो करते रहें, सिर्फ इसी वजह से क्या हम उत्ताल लहरों वाली गंगा को पूजना छोड़ देंगें? मैं नहीं जानता कि जैन वांङ्मय की किस धारा में गंगा की निन्दा है। हाँ, गंगा तीरे यानी काशी में तेईसवे तीर्थंकर पार्श्वनाथ हुए थे। अहिंसा विचार के मद्देनज़र देखे रामायण का एक प्रसंग है कि तो वनगमन के दौरान सीता ने गंगा पार करते वक्त भयवश देवी गंगा यह प्रार्थना की थी कि सकुशल लौट आने पर वे उन्हें मांस का चढ़ावा देंगी। क्या यह वजह है निन्दा की ? जैन, बौद्ध और अनादि काल से चले आ रहे जातियों के सांस्कृतिक संघर्ष में न जाने कितनी हिंसा हुई, लहू से गंगा गाढ़ी नहीं हुई, बल्कि हिंसा की गहनता को तरह बना दिया। सागर की अतल गहराई में पहुँचा दिया। गंगा तो आज खुद हिंसा की शिकार है। हजारों साल पहले की पुण्य सलिला की निंदा भी क्या हिंसा नहीं ? अगर हिंसा ही वजह थी तब आज की गंगा को प्रदुषित करने वाले तमाम धर्मावलम्बियों के विरुद्ध कैसी कार्रवाई होनी चाहिए?
Xitija Singh
देवदार पुकार रहे हैं ... :)))))))))))))) —
feeling excited at off to SHIMLA ... .
Awesh Tiwari
मैदान चाहे क्रिकेट का हो या फिर राजनीति का ,विदाई एक ही तरीके से होती है ,आडवाणी को देखकर मुझे गांगुली और अजहर याद आ रहे हैं
Geeta Gaba Geet
मेरे महबूब का साथ मिला मुझे जब से
खुश रहने के बहाने मिले तब से ..
Bhawesh Jha
हम भी तम्हें उँचाइयों पर दिख गए होते..
अगर हम भी थोड़ा-सा बिक गए होते
Mayank Saxena
कभी बारिश, कभी मिट्टी में मैं सन जाता हूं
तुम्हारे पास आ के बच्चा बन जाता हूं
हज़ार बार मैं इनकार करता हूं सबको
तुम्हारी आंख झपकने से ही मन जाता हूं
जब दर्द अल्फ़ाज़ बन जाते हैं
Arun Chandra Roy
यदि हम वाकई उत्तराखंड के हादसे से चिंतित हैं, विचलित हैं तो बिजली की खपत तुरंत कम कर दीजिये ताकि देश को नदियों पर बाँध बनाने की जरुरत ही न पड़े . उर्जा आधारित अर्थव्यवस्था से प्रकृति को अंततः नुक्सान ही है. अभी उत्तराखंड है , कल हिमाचल होगा परसों कश्मीर .... अपना ए सी बंद कीजिये, टीवी वाशिंग मशीन सब रोकिये . बल्ब भर से काम चलाईये . सोच कर देखिये, कल यदि टिहरी बाँध को कुछ हुआ तो दिल्ली के पांच मंजिले मकान तक डूब जायेंगे . यह सबसे उपयुक्त समय है स्वयं जागने का और सरकारों को जगाने का. सरकारी दफ्तरों, कारपोरेट कार्यालयों , बंगलो में सेंट्रली ए सी के खिलाफ विरोध कीजिए .. वरना राजधानी और शहरो की सुविधों की कीमत पहाड़ो को चुकानी होगी .
दिनेशराय द्विवेदी
"साम्यवादी शासन" शब्द को सारी किताबो से मिटा दो। ऐसी कोई चीज नहीं होती। यह शब्द पूंजीवादी सिद्धान्तकारों की देन है। सारे साम्यवादी विचारक पूंजीवाद से सर्वहारा तानाशाही के दौर से गुजरते हुए साम्यवादी समाज की ओर जाने की बात करते हैं। वर्गीय समाज में कोई भी जनतंत्र अधूरा सच है। उस की कोई भी व्यवस्था शोषक वर्गों के लिए जनतंत्र और शेष के लिए तानाशाही होती है। कोई भी कथित जनतंत्र जनता का जनतंत्र नहीं हो सकता है, और न है। पूंजीवाद के सामंतवाद के साथ समझौते के दौर में पूंजीवाद ने स्वयं अपने विकास को अवरुद्ध किया है। इस कारण अब पूंजीवाद के विकास और सामन्तवाद को पूरी तरह ध्वस्त करने की जिम्मेदारी भी सर्वहारा और उस के मित्र वर्गों के जिम्मे है। यही कारण है कि "जनता की जनतांत्रिक तानाशाही" जैसीा राज्य व्यवस्था का स्वरूप सामने आया है। राज्य के इस स्वरूप मे उपस्थित 'पूंजीवादी सामंती व्यवस्था के शोषकों पर जनता के श्रमजीवी वर्गों की तानाशाही" को पूंजीवाद संपूर्ण जनता पर तानाशाही कहता है। आज बहुत लोग यही कह रहे हैं जो नयी बात नहीं है। यह पूंजीवादी प्रचारकों की ही जुगाली है। दुनिया में कहीं भी साम्यवादी वर्गहीन समाज स्थापित नहीं हुआ है। पर उस की स्थापना उतनी ही अवश्यंभावी है जितना की इस दुनिया में पूजीवाद का वर्चस्व स्थापित होना अवश्यंभावी था।
Swati Bhalotia
तुम्हारे शब्दों के बीच होती है सड़कें
मैं बसा लेती हूँ शहर पूरा
उन शहरों में होते हैं तुम्हारे सामीप्य से भरे घर
तुम्हारे शब्दों के बीच होती हैं नौकाएँ
मैं बाँध लेती हूँ नदी पूरी
उन नदियों में होती है रवानगी तुम तक पहुँच आने की
तुम्हारे शब्दों के बीच होती हैं सीढियाँ
मैं चढ़ती जाती हूँ पेड़ों से भी आगे
उन पत्तों के बीच होते हैं ताज़ा लाल सेब जिन्हें पीछे छोड़ देती हूँ मैं
तुम्हारे शब्दों के बीच होता है प्रेम-स्पर्श
मैं भर लेती हूँ हर हिस्सा अपना
उन पलों में बरस जाती है सिहरन तुम्हारे होठों के पँखों पर
Kajal Kumar
मध्यवर्ग के पास जैसे-जैसे पैसा आ रहा है, धार्मिक पर्यटन खूब बढ़ रहा है.
लोग पहले , जीवन में एक बार हो आने की अभिलाषा पालते थे, अब हर साल चले रहते हैं
Shashank Bhardawaj
चुन्नू की माय नहीं रही..छोर गयी हमर साथ भगवान शंकर के द्वार पर...
बोल था इ 65 साल की उमर मे कहा जाओगी केदारनाथ..बहुत पहाड़ है...दिक्कत होगी..नहीं मानी जिद कर गयी ...
हम तो बाबा के दर्शन को जाएँगी ही...
का करते
दूनो बुढा बुढही चले...
बोल वहा खच्चर ले लेते हैं...पर न मानी बोली तीरथ यातरा पर आये हैं...बाबा अपने पंहुचा देंगा ...शंकर..शंकर का जाप करते करते चढ़ ही गए...भगवान के द्वारे....
केदारनाथ मंदिर मे दर्शन कर ही रहे थी की...पता नहीं का हुवा.कहा से जलजला आया....
बह गयी...बहुत कोशिश की हाथ न छूटे...छूट गया..........................
चली गयी........................................................
अब हमहू जयादा दिन के नहीं हैं..चले जायेंगे ...भगवान शंकर के ही पास..............
उस बुढिया के बिना मन नहीं लगता है बिटवा...........................
Sunil Mishra Journalist
पहाड़, जंगल काट कर घर बनाते है...नदी, तालाब, समंदर पाट कर घर बनाते है...
ऐसे घर से बेघर होना ही पड़ता है........................दुनिया भर के शास्त्र बताते है.
Prem Chand Gandhi
अगर देश के तमाम मंदिरों में बेवजह जमा पड़े सोने और चांदी के आभूषणों को नीलाम कर देवभूमि उत्तराखण्ड के पुनर्निर्माण लगा दिया जाए तो किसी के सामने हाथ फैलाने की ज़रूरत नहीं पड़ेगी। आखिर देवी-देवताओं का धन देवी-देवताओं के ही काम नहीं आएगा तो फिर किसके काम आएगा... आस्थावान लोगों को भी इससे शायद ही कोई आपत्ति होगी...
यह बात मैं इसलिए कह रहा हूं कि पिछले दिनों राजस्थान के एक प्रसिद्ध मंदिर के प्रबंधन से जुड़े व्यक्ति ने बताया कि मंदिर के पास हज़ारों टन सोना-चांदी है, लेकिन सरकार इसे बेचने नहीं देती।
Rajbhar Praveen Kumar
इंसान अकेलापन भी तभी महसूश करता है जब उसे किसी के साथ रहने की आदत पड़ चुकी होती है.....!!
सतीश पंचम
डीडी नेशनल पर पहाड़ी इलाके में बनी फिल्म नमकीन देख रहा हूँ। नदी और उस पर बने पुल को देख जेहन में फिल्म की बजाय हालिया आपदा कौंध जा रही है कि - यह पुल या इस जैसा पुल भी बह गया होगा, वह दुकान भी :(
Praveen Pandey
काम वही जो मन भाता है,
राग हृदय का गहराता है,
बच्चों को समझो, ओ सच्चों,
लिखा नहीं पढ़ना आता है।
Neeraj Badhwar
मोदी की आलोचना इसलिए हो रही है कि वो उत्तराखंड क्यों गए, राहुल की इसलिए कि वो क्यों नहीं गए। बेहतर यही होगा कि हर नेता प्रभावित इलाके के आधे रास्ते से यू टर्न लेकर लौट आए।
Prashant Priyadarshi
ना किसी की आंख का नूर हूँ , न किसी के दिल का करार हूँ ,
जो किसी के काम ना आ सके , मैं वो एक मुश्त -ए -गुबार हूँ..
Prashant Priyadarshi
ना किसी की आंख का नूर हूँ , न किसी के दिल का करार हूँ ,
जो किसी के काम ना आ सके , मैं वो एक मुश्त -ए -गुबार हूँ..
Ankur Shukla
पुनर्वास का मतलब यह नहीं है कि दान किया और मुह फेर लिया। उजड़ो को बसाने के लिए उनकी दैनिक आमदनी को जिंदा करना होगा। सैलाब आने से पहले ईश्वर की बड़ी कृपा थी इनपर। पर्यटन वृक्ष को हरा -भरा करने के लिए उसकी जड़ को मजबूत करना ज़रूरी हो गया है. जड़ मज़बूत होगी वृक्ष हरा-भरा होगा, तभी तो फल मिलेगा। जय शिव
Amitabh Meet
बरहमी का दौर भी किस दरजा नाज़ुक दौर है
उन के बज़्म-ए-नाज़ तक जा जा के लौट आता हूँ मैं
Arvind K Singh
सेना और अर्ध सैन्य बलों के जवानों को सलाम..
पूरे देश से सेना के लिए दुआएं दी जा रही हैं...हमारी सेना जिन पर भारत के नागरिकों के टैक्स की एक लाख करोड़ रुपया से अधिक राशि हर साल खर्च होती है..कारगिल तो अपनी ही जमीन से पाकिस्तानियों को निकालने की जंग थी..बाकी लंबे समय से सेना आंतरिक सुरक्षा और प्राकृतिक आपदाओं में लोगों की मदद करती है...उनके पास ऐसी आपात हालत से निपटने के लिए तमाम साधन, संसाधऩ और विशेषज्ञता है...बेशक प्राकृतिक आपदाओं में भारतीय सशस्त्र सेनाओं और हमारे अर्ध सैन्य बलों के जवानों ने ऐतिहासिक भूमिका हर मौके पर निभायी है...मैं कई बार सोचता हूं कि अगर ऐसी आपदाओं में सेना और अर्धसैन्यबलों के जवानों को नहीं लगाया जाये आपदा प्रबंधन की राज्य सरकारों की टीम के भरोसे तो शायद ही कोई पीडित बच सकेगा...उत्तराखंडजैसी जगहों पर प्रमुख सामरिक सड़कों को बनाने का काम सीमा सड़क संगठन के जो मजदूर करते हैं, उनकी भूमिकाओं को भी कमतर आंकना ठीकनहीं...उनके बदौलत ही जाने कितने लोग बाहर आ सके है...इन सबको सलाम...
अजय कुमार झा
प्राकृतिक आपदाओं पर कभी किसी का जोर नहीं रहा , और न ही रहेगा , हां जिस तरफ़ से प्राकृतिक आपदाओं की रफ़्तार पूरे विश्व में बढ रही है उससे ये ईशारा तो मिल गया है कि भविष्य की नस्लें ही वो नस्लें होंगी जो अपनी और धरती की तबाही के मंज़र की गवाह बन पाएंगी , खैर ये तो जब होगा तब होगा , मगर जिस देश में अरबों खरबों रुपए के घोटाले होते हों , उस देश के लोगों द्वारा अब तक वो मुट्ठी भर लोग नहीं पहचाने चीन्हे जा सके जो कम से कम ऐसे समय पर जान भी बचा पाने लायक माद्दा नहीं रखते ...साठ साल का समय कम नहीं होता .......अफ़सोस कि भ्रष्ट राजनीतिज्ञों की जो फ़सल आज लहलहा रही है उसे इसी समाज ने , हमने , आपने अपने हाथों से बोया है ।
तो आज तुमने ये कहा …………
Manish Seth
कुछ लोगों का कहना है कि उनका मन फेसबुक से ऊब चुका है...
और ये बताने के लिए वो........दिनभर फेसबुक पर ही रहते हैं.....:)))))
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Amitabh Meet
ज़मान: सख्त कम आज़ार है बजान-ए-'असद'
वगर्न: हम तो तवक़्क़ो' ज़ियाद: रखते हैं !
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Ajit Wadnerkar
कुछ किस्मत के साँड जगत में होते हैं
संघर्षों के जुए न जाते जोते हैं
बेनकेल वो घूम घूम कर खेतों में
खाते हैं, जो दुनियावाले बोते हैं
-बच्चन
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अंजू शर्मा
स्मृतियाँ बदलाव को
नकारने की आदी हैं
और जीवन बदलाव का .....
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Girish Pankaj
यहाँ-वहाँ छाये हैं शातिर, सज्जन बेचारे लगते हैं
प्रतिभाशाली लोग यहाँ पर किस्मत के मारे लगते हैं
मुस्काते हैं आज माफिया क्या समाज, क्या लेखन में
अच्छे लेखक और विचारक हर बाज़ी हारे लगते हैं
चापलूस लोगों के हिस्से अब तो सारा वैभव है
ऐसे लोगों की मुट्ठी में कैद यहाँ तारे लगते हैं
तुम तो अच्छे हो लेकिन क्या इससे कोई बात बने
आज अधिकतर बुरे लोग ही हमको उजियारे लगते हैं
बहुत हो गया दब न सकेगी भीतर की ज्वाला 'पंकज'
देखो-समझो क्यों बस्ती में बार-बार नारे लगते हैं
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Priyanka Rathore
रिमझिम गिरे सावन ...... सुलग सुलग जाए मन ....!
Udita Tyagi
अपनी यादों से कहो इक दिन की छुट्टी दें मुझे
इश्क के हिस्से में भी....... इतवार होना चाहिये
Munawwar rana
Pratibha Kushwaha
कविता लिखना किसी मानसिक पीड़ा से गुजरना होता है। एक बड़े कवि ने मुझे बताया है। क्या वाकई!!
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Swaraj Karun
शहरों में आज-कल बारिश भी वार्ड स्तर पर होने लगी है . किसी एक वार्ड में बादल बरस रहे हों ,तो ज़रूरी नहीं कि पूरे शहर में बारिश हो रही होगी . .उस दिन देर रात काम खत्म कर दफ्तर से निकलने ही वाला था कि बौछारें पड़ने लगी . गाड़ी में एक किलोमीटर तक बारिश का नजारा दिखा ,लेकिन उसके बाद दो किलोमीटर तक पूरी सड़क सूखी पड़ी थी. घर के नज़दीक पहुंचा तो मोहल्ले में रिमझिम बरसात हो रही थी. एक दिन तो और भी दिलचस्प नजारा देखने को मिला - ट्राफिक सिग्नल पर गाड़ी रूकी तो सबने देखा -चौराहे के उस पार बारिश हो रही है और इस पार है तेज धूप और सूखी सड़क .दिनों-दिन बिगड़ते पर्यावरण की वज़ह से अब शहर भी वृष्टि छाया के घेरे में आते जा रहे हैं .हालत वाकई चिंताजनक है,लेकिन चिंतित कौन है ? सब मजे में हैं और मौन हैं !
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Mridula Pradhan
जब नींव-रहित,
कच्चे-पक्के
संबंधों के अलाव,
भौतिक रस-विलास के
सौजन्य से......
बढ़-चढ़ कर
फैलने लगते हैं,
तब......
दूर से देखते हुए
ठोस,
भावनात्मक
रिश्तों का वज़ूद,
क्रमश:
खोने लगता है.......
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Ashish Maharishi
जिन भी संपादकों को नए और युवा पत्रकार ''अनपढ़'' लगते हैं, वे खुद में झांक कर एक बार जरूर देखें। क्या वो वाकई संपादक कहलाने लायक बचे हैं?
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Saroj Singh
हे केदार .......
यदि तुम, खोल देते जटाओं के द्वार
समां लेते उनमे उफनती नदियों के धार
तुम तो विष पीने वाले नील कंठ हो
फिर क्यों नहीं डूबतों को लिया उबार
कैसे मौन हो देखते रहे यह हाहाकार
तुम्हारे भवन को सुरक्षित देख ...
लोगों की तुमपर आस्था और गहरी हुई है
किन्तु, मैं असमंजस में हूँ ......
तुम्हारे सुरक्षित रहने पर आश्वस्त होऊं
या अनगिन मानवों के मरने पर शोक मनाऊं ?
सूतक मिटने पर तुम फिर पूजे जाने लगे हो
किन्तु मेरे मन में छाया सुतक मिटता ही नहीं !!
~s-roz~
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Darpan Sah
उम्र बेहिसाब है,
थोड़ी सी शराब है.
ज़िन्दगी की चाह में,
ज़िन्दगी ख़राब है.
तुम नहीं तो कुछ नहीं,
सीधा सा हिसाब है.
इसकी बात क्यूँ सुनें,
वक्त क्या नवाब है?
आईने से पूछो तो,
"मूड क्यूँ खराब है?"
मौत ग़म के शेल्फ़ की,
आख़िरी किताब है.
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Vaibhav Kant Adarsh
जो कहतें हैं ज़िन्दगी बिकती नहीं..... उन्हें
दवाइयों की दुकानों पे लगी कतारें दिखाओ
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Vivek Dutt Mathuria
नीम ने छोडी है जब से अपनी चौपाल,
गांव के गलियारे जुहू चौपाटी हो गए।
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Ashvani Sharma
आषाढ़ी आकाश से,टपकी पहली बूँद
कोई जीवन पी गया,छत पर आँखें मूँद
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प्रमेन्द्र प्रताप सिंह
एक बेहतरीन इंसान अपनी जुबान से ही पहचान जाता है, वर्ना अच्छी बातें तो दीवारों पर भी लिखी होती हैं।
चेहरे जो बयां करते हैं
सलिल वर्मा
मेरी आदत खराब है...
मैं कमेन्ट करते वक्त जब भी कभी कई शे'र लिखता हूँ, तो शायर का नाम नहीं लिखता...
वज़ह ये कि कई मर्तबा शे'र याद होता है - पर शायर का नाम नहीं...
और दूसरी वज़ह ये कि मुझे अपनी बात कहना होती है...
.सबसे ज़रूरी बात ये कि मेरी शायरी तो तमाम शायरों की हीरों सी चमकती शायरी के बीच कोयले सी अलग ही दिखाई दे जाती है... इसलिए अपने शे'र (?) में भी अपना नाम नहीं लिखता!!
Amit Kumar Srivastava
अरसा हुआ ,हिचकी नहीं आई ।
Isht Deo Sankrityaayan
इस जहां की नहीं हैं तुम्हारी आंखें ............... (मने कुछ एलियन टाइप का मामला है का?)
Vineet Kumar
समागम में जाने की जहमत उठाने के बजाय सीधे टीवी देखते रहने से कृपा आनी शुरु हो जाती है..अब भी अलग से ये बताने की जरुरत है कि टेलीविजन पाखंड और अंधविश्वास की वर्कशॉप चलाने का काम करता है.
Mridula Pradhan
मैं जगा-जगा सोता था.....
मेरी पलकों पर
तुम, करवटें बदलती थी,
मैं जहाँ कहीं होता था,
तुम्हारी सांस,
मेरी
सांसों में, चलती थी......
Shyamal Suman
हाल सुमन बेहाल है, किसको कहें कलेश।
दत्तक बेटा रो रहा, माता गयीं विदेश।।
Priyanka Rathore
रात का आखिरी पहर है .... शायद सुबह होने को है .... कभी सुना था ... रात का ढलना उसकी नियति है ...!
Sagar Nahar
गरज-बरस प्यासी धरती पर....
आहा! एक हफ्ते की तेज गर्मी के बाद बारिश.. भीगने का मन हो रहा है।
अरुण अरोरा
शेर को तुम्हारे करीब आने दो। जैसे ही वह तुम्हारे करीब आ जाए, उसे पकड़ लो!
शेर का तब तक पीछा करो, जब तक कि वह थक न जाए। जैसे ही वह थक जाए, उसे पकड़ लो!
भारतीय मीडिया का तरीकाबिल्ली को पकड़ो और उसे तब तक न्यूज में दिखाते रहो , जब तक कि वह देखने वाले तंग होकर उसे शेर ना मान ले !
निन्दक नियरे राखिये
बताइये भला?
चोर फाइलें लौटाने की सोच भी रहा हो तो बड़े आदमी की इतनी बड़ी धमकी के बाद कैसे लौटाये? लौटा कर मरना है क्या?
कोयला आवंटन घोटाले से जुड़ी महत्वपूर्ण फाइलों के गायब होने के मामले में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने आज राज्यसभा में कहा कि सरकार कुछ नहीं छिपा रही. अगर किसी ने फाइलें गायब की हैं तो उन्हें सजा मिलेगी.
Arpit Bansal
मिसाइल सीरिया की तरफ जाती है और शेयर बाजार धराशायी हो जाता है ! ये चक्कर क्या है ?
ज्योति राय
हमारे एक जानने वाले है , थोडा सा बाबा लोगों में और ज्यादा बाबागिरी में भरोसा है उन्हें l पिछले कुछ दिनों से बडे परेसान से है , जिस बाबा की शरण में जाते है उसी बाबा की पोल खुल जाती हैं .... मने पिछले एक साल से तीन तस्वीरें बदल चुकी हैं उनके पूजा घर में l सोच रहीं हूँ कल जाकर पता करूँ कि अब किस बाबा का नंबर है वैसे बता दूँ पिछली बार आसाराम की फोटू देखा था और इस पर थोडा शास्त्रार्थ भी हो गया था
आचार्य रामपलट दास
महत्वाकांक्षा का मोती निष्ठुरता की सीपी में पलता है ....... हमने तो पढ़ा था ; डी डी वंजारा साहेब ने नहीं पढ़ा शायद !
VK Boss
चलो जानू अब ..........झगड़ा खत्म भी करो !
झाड़ू पोचा मेने कर दिया पानी अब तुम भरो !!
B.d. Rai
आजकल हरेक टीवी चेनल पर फटाफट खबरों जैसे 30 सेकंड मे 100खबरे,200खबरे आदि का प्रसारण सुनकरयेसा लगता है की ये न्यूज़ वाले दर्शको को नादान समझते है।समाचारके एक वाक्य= एकखबर प्रसारण ऐसा की सरदर्द हो जाए। क्या यह उचित है?
Madhu Gupta
प्यार प्यार तो सब कहते हैं करता कोई नहीं
मरता मरता सब कहते हैं मरता कोई नहीं ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,मधु गुप्ता ,,,,,
Rekha Joshi
खूबसूरत थी जिन्दगी जब हाथो में हाथ था तुम्हारा
खूबसूरत थी जिंदगी जब प्यार भरा साथ था तुम्हारा
दे कर दर्द कहाँ चले गए हमे अपनी यादों में छोड़ के
पाते है हम चैन औ सुकून ख्याल आता है जब तुम्हारा
रेखा जोशी
Prashant Priyadarshi
आओ चलो तारों का क़त्ल कर कुछ दुआ मांगते हैं!!!
Bs Pabla
घरेलू और वैश्विक समस्यायों को 'रि-सेट'करने के लिए एक विश्वयापी युद्ध तो अवश्यंभावी लग रहा
Kajal Kumar
पाकिस्तान प्रधानमंत्री को ISI चलाती है,
अमरीकी राष्ट्रपति को कौन .... (?)
बेचैन आत्मा
साधू को नारी से निश्चित दूरी बना कर रहना चाहिए। वह चाहे बहन हो, माँ हो, बेटी हो या फिर पोती। नीयत का क्या है! कभी भी डोल सकता है।
...हरि ओम बोलना पड़ेगा। कानून को मानना पड़ेगा।
Anand G. Sharma
"असत्यमेव लभते" - "याss बेईमानी तेरा आसरा" - वाले आखिर कब तक झूठमूठ का "सत्यमेव जयते"का नकाब लगा कर रखते ?नकाब की जिन्दगी की भी कोई मियाद होती है या नहीं ?नकाब पुराना होने पर सड़ कर बदबू तो मारेगा ही और फिर सड़े गले नकाब से बीमारी होने के पहले उसे उतार फेंकना बिलकुल समझदारी का काम है |
Ranjana Singh
वो बोली की मीठी गोलियों के व्यापारी हमें सतरंगी गोलियाँ पकड़ाते हैं और हम उसे चूसते मगनमन उन तमाम दो कौड़ी के बाबाओं, नेताओं को बिना उनका चरित्र परखे अपना हीरो, अपना भाग्यविधाता बना सैकड़ों हजारों करोड़ का स्वामी बना देते हैं..
और मिडिया,, उसके लिए तो दोनों ही हाल में खेल मुनाफे का है.नाम/ब्राण्ड बना उसे भी भुनाती है और फिर बदनाम बना उससे कमा लेती है..और अंततः इन तमाम फ़ाइव स्टार फादरों,इमामों, बाबाओं ने जो विस्तृत अंधभक्त साम्राज्य खड़ा किया है,उसका उपयोग बड़ी ही सरलता से राजनेता अपने व्यक्तिगत हित साधना के लिए करते हैं..
डॉ. सुनीता
दूर-दूर और
सब कुछ दूर
होते-होते
हो गया इंसान
खुद से दूर
अब कितना होगा दूर
देखते रहिये
पहले घर-परिवार
गाँव-जवार
अंचल-क़स्बा
नगर-बाज़ार
अपने निजी रिश्ते-नाते से ...
बचा क्या..?
केवल...
...बातें बेवजह...बेचैन दिल-दिमाग का हाल...
डॉ.सुनीता
जयदीप शेखर
लगता तो नहीं है कि उनकी या उन-जैसे धर्मोपदेशकों का "आध्यात्मिक स्तर"ऊँचा उठा हुआ है- मुझे तो ये लोग बहुत ही मामूली लगते हैं- आध्यात्मिकता के नजरिये से... पता नहीं लोगों को इनमें क्या खासियत नजर आती है कि इनके पीछे भागते रहते हैं...
चेहरे छुट्टी कहां करते हैं …….
हां सच ही तो कहा है मैंने , ये चेहरे कहां छुट्टी करते हैं , दिन रात , सुबह शाम कुछ न कुछ बयां करते ही रहते हैं , जो लब बोलें तो कहानी खामोश रह जाएं तो अफ़साना । फ़ेसबुक इन चेहरो के कहने ;सुनने का अनोखा मिलन स्थल है । अलग अलग मूड में अलग अलग शैली में , अलग अलग तेवर और अंदाज़ में दोस्त जो भी कहते हैं मैं उन्हें सेह्ज़ लेता हूं इन पन्ने के लिए , कल होकर जब कोई दीवाना इस डायरी के पन्ने पलटेगा तो जाने कितने ही दोस्तों के कहे अनकहे , समझे अनबूझे किस्से और अफ़साने देख पाएगा , देखिए आप भी ………….
Rahul Singh
तस्वीर (गूगल से नहीं) खुद क्लिक की हुई.
Reeta Vijay
गलती किसी की नही होती गलत वक्त मे किए गये गलत फैसले इन्सान को गलत बनाके गलत राह पर छोड़ देते हैं !!!Manoj Kumar Jha
पलकों को जिद है बिजलियाँ गिराने की
मुझे भी जिद है वही आशियाँ बनाने की
अगर तुमको जिद है मुझको भुलाने की
तो मुझे भी जिद है तुमको अपना बनाने कीआचार्य रामपलट दास
रोशनी के लिए घर जलाने पड़े
रूठकर यों इधर से उजाला गयाPushkar Anand
उत्तर प्रदेश के दंगो पर राजनीति नहीं होनी चाहिए..! राजनीति करने के लिए गुजरात के दंगे हैँ..!Ashvani Sharma
वो सवाल थी
जवाब गायब थे
वो जवाब थी
सवाल गायब थेRaghvendra Awasthi
जितना सरल रहने की कोशिश करो
इम्तिहान उतने ही कठिन होते जाते हैं
राघवेन्द्र ,
अभी-अभी
Rajeev Kumar Jha
हम उस खिलौने की तरह थे और वो उस बच्चे की तरह,
.......जिन्हें प्यार तो था हमसे, मगर सिर्फ खेलने की हद तक..!!Danda Lakhnavi
दोहों के आगे दोहे.............
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अंट-संट लफ़्फ़ाजियाँ, हलचल...ऊंटपटाँग।
राजनीति में देखिए, लाल किले के स्वाँग॥
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सद्भावी- डॉ० डंडा लखनवी
प्रफुल्ल कोलख्यान
....
फुत्कार उठती है जगत-व्यापी लपट
खंडित महाकाल के अग्नि-गर्भ से
जिसके भीतर
कभी मंदिर बनता है
कभी मस्जिद
कभी गुरुद्वारा
तो कभी गिरजा
अजीब चक्कर है
जैसे जाल में
फँसे परिंदे
फरफराते हैं पंख
पुतलियों में थरथराते हैं प्राण
सोचता है दिमाग
पर स्वार्थ के अवगुंठनों को तोड़
उठता नहीं है हाथ
न्याय-अन्याय
उचित-अनुचित
ज्ञान-अज्ञान
सारे द्वंद्व जल रहे हैं एक साथ
.....
Kajal Kumar
आडवाणीश्री और सचिन को समझना चाहिए,
ज़िद की भी एक उम्र होती है, गांगुली न बनेंSonali Bose
"ठहरा है दिल में वो एक हसरत सा बन के.......कि नज़रोँ में है वो एक अश्क़ सा बन के?
लिखती हूँ जिसे तनहाईयोँ में... है कौन ये मेरे जैसा, मिलता है क्यूँ वो अजनबी बन के?''...........सोनाली......
Ashok Kumar Pandey
अपनी ही किसी रचना का यह हिस्सा यों ही
प्लीज़ अनीता...ताने मत दो यार.’ मैं जैसे उठने लगा तो उसने हाथ पकड़कर बिठा लिया. ‘अब अकड़ मुझ पर ही दिखाओगे पंडित जी. लड़कियों के साथ रिक्शे से घूमोगे और पकडे जाने पर थोड़ा टार्चर की इज़ाज़त भी नहीं दोगे तो यह तो ज़ुल्म है जहाँपनाह.’ उसकी आँखें इस क़दर शरारत से भरी हुईं थीं कि मुझे हंसी आ गयी और मैंने उसका हाथ अपने हाथों में लेना चाहा तो उसने सीधे मेरी आँखों में देखते हुए कहा, ‘यह अफसर नहीं मजूर की बेटी का हाथ है साहब. हर किसी के हाथ में यों ही नहीं जाता रहता. और जहां जाता है किसी और के लिए जगह नहीं छोड़ता. आज के बाद उस चुड़ैल के साथ घूमते-फिरते देखा न तो वहीँ चौराहे पर ऐसा तमाशा करुँगी कि एस डी एम साहब ट्रांसफर करा के झाँसी चले जायेंगे.’
कितनी धोखादेह होती हैं आँखें!सुनील कुमार प्रेमी
कोई पागल हुआ जाता है किसी की चाह में..और वो दुआ माँगती है कि कब इसे पागलखाने में जगह मिलेगी..
Mayank Saxena
आप राजेश को भी मार देते हैं और इसरार को भी...आप का गुस्सा इस बात का है कि आप के किसी अपने की जान ले ली गई...और इसीलिए आप किसी और के अपने की जान ले लेते हैं...आप का गुस्सा इसलिए ज़्यादा है कि जिस पर आप गुस्सा हैं उस का मज़हब आप से अलग है...इसलिए आप इंसानियत की हदें पार कर किसी की जान ले लेते हैं...इसके बाद आपको अपने मज़हब पर गर्व होता है...कोई हर हर महादेव का नारा लगाता आता है...तो कोई नारा ए तक़बीर लगाता है...सभी के हाथ खून से रंगे होते हैं और उन में बंदूकें और खंज़र होते हैं...लानत है आपके ऐसे मज़हब पर जो आपको इंसान तक बनना न सिखा पाया...चले हैं आप हिंदू और मुसलमां होने...मुजफ्फरनगर में जो कुछ हो रहा है, उसके पीछे सियासत है...2014 के चुनाव हैं...आप सब ये जानते-समझते हैं....लेकिन फिर भी आप के दिलों में इतनी हैवानियत है कि आप इंसान का ख़ून बहाने का लालच छोड़ नहीं पाते हैं...आप बाद में कह देंगे कि आप को बहकाया गया था...ज़रा सोचिए रोज़मर्रा की ज़िंदगी में तो आप बड़े चालाक हैं...आखिर कैसे कोई आपको किसी खास मौके पर बहका सकता है...जी हां, आप दरअसल अंदर से ऐसे ही हैं...कोई नेता आपका फ़ायदा नहीं उठाता है...आप ऐसे मौकों पर धर्म की आड़ लेते हैं...एक नागरिक के तौर पर दरअसल आप सियासतदानों से अलग नहीं हैं...सियासतदान आप से ही सीखते हैं...और आपको ही संतुष्ट करने के लिए मज़हब की सियासत करते हैं...दिक्कत तो आपके साथ ही है...बाद में सियासत को मत कोसिएगा...क्योंकि हाथ तो आप सभी के रंगे हुए हैं...इंसानियत के ख़ून से...
Vijay Krishna Mishra
मनमोहन सिंह जी अपनी 'खुली किताब'कृपया कर बंद कर लें, आपकी सरकार की काली करतुते हर कोई पढ़ रहा है ,,,,,,...
Ajit Singh
बचपन में एक चुटकुला सुना था। एक बड़ा होनहार लड़का था ....... उसने एक ही essay याद किया था .......my favourite teacher .........पर exam में essay आ गया .......बगीचे की सैर ...........पर लड़का बड़ा होनहार था सो उसने essay कुछ यूँ लिखा ....एक दिन मैं सुबह बगीचे में सैर करने गया . वहाँ देखा की जित्तू मास्साब भी सैर करने आये हुए थे ......और जित्तू मास्साब मेरे फेवरिट टीचर है ........और फिर हो गया शुरू और उसने पूरा फेवरिट टीचर वाला इससे चेप दिया ........... hahhhaaaa ....बढ़िया चुटकुला है .....पर चुटकुला है ........पर आज NDTV ने इस से भी ज़्यादा मजेदार चुटकुला सुनाया ............आज एक कार्यक्रम आ रहा था ....महिला सशक्तिकरण पे .......लाडली बिटिया पे ......हमारी बेटियाँ वगैरा वगैरा .............सो हमारे होनहार बच्चे के तरह NDTV ने कार्य क्रम कुछ यूँ दिखाया की 2002 में गुजरात में दंगा हुआ .......और इस इस तरह मुसलामानों को मारा गया .......और फिर इस तरह उन बेचारों को शरणार्थी बन के राहत शिविर में रहना पडा ........इस से होनहार बेटियों की पढाई छूट गयी .....फिर फलानी संस्था ने NGO बना के लड़कियों को पढ़ाना शुरू किया ...एक कोई मास्टर है ....कालिदास .......उसने केंद्र सरका की किसी योजना के तहत ट्रेनिंग ले के लड़कियों को पढ़ाना शुरू किया .......फलानी संस्था मदरसा चलाने लगी .......राज्य सरकार ने कुछ नहीं किया ........जुहा पूरा की गलिया टूटी हुई है .....सडकें गंदी हैं ......मोदी के राज्य में मुसलामानों का शोषण हो रहा है ....बेचारे मुसलामानों पे अत्याचार हो रहा है ........... मुसलामानों का सामाजिक बहिष्कार हो रहा है ......दबा के रखते हैं मुसलामानों को .......
चेहरों का फ़ैसला ………
Bhavesh Kumar Jha bhai inko baizzat bari kar do public dekj legi
आज सुबह जब मैंने फ़ेसबुक पर मित्रों से पूछा
आज दिल्ली बलात्कार कांड पर आरोपियों की सज़ा का निर्णय आ सकता है । मौजूदा कानूनों के अनुसार चारों को ही "मृत्युदंड या आजीवन कारावास"में से कोई एक सज़ा सुनाई जाएगी । मैं आप सबसे सिर्फ़ एक सज़ा चुनने को कहूंगा और ये भी कि सिर्फ़ यही सज़ा क्यूं । शाम को , इन्हें सुनाई गई सज़ा और उसका प्रभाव और जो सज़ा इन्हें नहीं दी गई , दोनों पर एक कानूनी पोस्ट लिखूंगा , मैं यहां आप सबकी राय भी लेना चाहता हूं ............आप देंगे न
Vipin Mehrotra
Life sentence because themain perpetrator of crime is going virtually scot free.
Raja Kumarendra Singh Sengar
फाँसी देने से अपराधियों को उनके कुकृत्य की सही सजा नहीं मिलेगी.....आजीवन कारावास हो ताकि वे पूरी उम्र अपने दुष्कर्म को याद कर अपने हश्र को देख, महसूस कर सकें...
Dinesh Raghuvanshi
AJAY JI, MAINE APNE WALL PAR JO LIKHA HAI VO ZAROOR DEKHNA SIR
Ramkumar Kumar
No jail no death.. Hath pavan kaat do aur chhod to mathe pe likh ke ............. Main. B...... Ri hun. Agr koi eske baad himat kr le to..
Shivam Misra
मैं कोई कानूनी जानकार नहीं हूँ पर मेरी राय मे मृत्युदंड से कुछ भी कम सज़ा देना इस तरह के अपराधियों के हौसले बुलंद करना होगा ! जेल मे वो क़ैद मे तो रहेंगे पर मौज मे रहेंगे ... अपने यहाँ की जेलों मे जिस तरह का माहौल है वो छिपा नहीं है ... पैसे के दम पर सज़ा हाल मज़ा बन जाती है !
Shah Nawaz
मृत्यु दंड, क्योंकि यह उस लड़की के साथ न्याय होगा!
Amit Kumar Srivastava
सिर्फ और सिर्फ 'मृत्यु दंड'
कारण ----जब कोई बलात्कार की घटना होती है तब संजीदे व्यक्ति के मन में तुरंत यह ख्याल आता है ,ऐसा उसकी बहन,बेटी , पत्नी, बहु के साथ भी हो सकता है और इस कल्पना मात्र से ही वह भयभीत और उससे उपजे क्रोध से विचलित / पागल सा हो जाता है । पीड़ित के विषय में घटना का नाट्य क्रम जानकार बस बेबस सा हो जाता है और तुरंत यही इच्छा होती है कि बलात्कारी को जान से मार दिया जाए । जितनी जल्दी हो उतनी जल्दी ऐसे अपराधी को जान से मार देना चाहिए तभी लोगो का नज़रिया बदल सकता है ,अपराधियों का भी और जनता का भी । आजीवन कारावास पाए हुए ,जीवित अपराधी के प्रति धीरे धीरे कहीं न कहीं ऐसा माहौल बनने लगता है ,समय के साथ ,कि उसे सहानुभूति मिलने लगती है । जबकि ऐसे अपराधी के प्रति किसी भी प्रकार की दया दिखाने वाले को भी सजा दी जानी चाहिए ।
"एक अलिखित व्यवस्था ऐसी भी होनी चाहिए कि ऐसे मामलों में कोई भी वकील इन अपराधियों की ओर से इनकी पैरवी न करे "।
Pradeep Nagar
हाथ पाँव काटने या नपुंसक करने की सजा अभी यहाँ नही है। । ।उम्रकैद देने से भी उनको तो सही सजा मिलेगी लेकिन बाकी समाज में सही सन्देश नही जायेगा । । क्यूंकि इस तरह के अपराध में सजा होने में सालो लगते थे । तो सबको ये ही लगता था के अगर रहने की बात है तो जेल में भी रह लेंगे । । और ये ही बात उम्रकैद में है क्यूंकि कोई कितना भी अपंग हो या कैद में हो जीना चाहता है और मेरे हिसाब से इन अपराधियों से जीने का अधिकार ही छीन लिया जाये । । तो मृत्युदंड
Kamlesh Kumar
मृत्यु दंड ही क्यों ? क्या इस से बड़ी सजा नहीं सोची जा सकती ?
Kamlesh Kumar
मेरे सोच के हिसाब से सर मुंडबा के हल्दी चुना और कालिख लगा के जूतें की माला पहना के गधे पर बीठा के एक सहर में घुमाया जय अगर बच गया तो दुसरे सहर में |
Suresh Kumar
sajaye maut Ajay ji ....
q ki esse jo ensaan ke roop me darinde hain unke man me kuch to dar paida hoga.
Nivedita Srivastava
सिर्फ मृत्यु दंड ...... क्योंकि ऐसा करने से किसी और को ऐसी हरकत करने का साहस नहीं होगा और न्याय व्यवस्था पर भी विश्वास बहाल होगा ...... इसमें भी मैं विशेषकर नाबालिग मान कर कम सजा पाए को तडपा - तडपा कर ....
Sumit Saxena
मेरा मानना है कि इन चारो को बीच चौराहे पर लटकाकर गोली मार देनी चाहिए जिससे कि जो देखे वह भी एक बार गलत काम करने से सोंच में पड़ जायेगा
Ranjana Singh
ऐसों को दिए जाने लायक सजा का प्रावधान अपने देश की संविधान में है ही नहीं
Darshan Kaur Dhanoe
मृत्युदंड XXXXX
Pooja Singh
mrityudand... kyunki ye ajiwan karawas me to ye log aish karte hain....free me khana, free me rahna... aur jo aise darinde hain unhe koi pachhtawa kabhi nahi hoga...
Harish Sharma
Aisi saja jo ouro ke liye bhi sabak ban jay - inhe beech chourahe par gaad kar aam public se pitwa pitwa kar marva do.
Pallavi Saxena
bilkul denge ji aap likhiye to sahi ...
Shikha Varshney
life imprisonment till death... (उम्र कैद बा मुशक्कत) फांसी तो मुक्ति है.
निन्दक नियरे राखिये
मृत्युदंड छोड़कर कुछ भी. सीधी बात! जो जीवन दे नहीं सकता, वो जीवन ले भी नहीं सकता
इन प्रतिक्रियाओं के अलावा इसी फ़ैसले के बाद और पहले आई और प्रतिक्रियाएं कुछ यूं रहीं
Vineet Kumar
मैं ऐसे दर्जनों न्यायप्रिय चेहरे को दानता हूं दो स्त्री आवाज को कुचलने का कोई मौका नहीं छोडते लेकिन बात-बात पर फांसी से कम तो न्याय ही नहीं लगता
दिनेशराय द्विवेदी
अभी देश में यह मुद्दा है ही नहीं कि फाँसी की सजा दंडसूची में होनी चाहिए या नहीं। अभी तो वह सर्वोच्च दंड है। इस मामले में इस से कम दिया नहीं जा सकता था। इस कारण जो हुआ वह ठीक है। मुझे लगता है कि अभी जो परिस्थितियाँ हैं उन में फाँसी के दण्ड को दण्ड सूची से हटाना मुद्दआ नहीं बन सकता। अभी तो समाज खुद कितना न्यायपूर्ण है? जब समाज एक स्तर तक न्यायपूर्ण होगा तो फाँसी की सजा को दण्ड सूची से हटाना मुद्दआ बन सकता है औऱ उसे वहाँ से हटाया भी जा सकता है।
Avinash Chandra
आज सभी देश की न्याय प्रणाली की गौरव गाथा गा रहे हैं। कोई कह रहा है अब भी देश में कानून जिंदा है, कोई कहता है देश में कानून निष्पक्ष है...
कुछ दिनों पहले नाबालिक बलात्कारी को बाल सुधार गृह भेजे जाने के निर्णय पर यही लोग देश की न्यायिक प्रणाली पर लानत भेज रहे थे???
Ghughuti Basuti
ओह, निर्भया के अपराधियो, तुमने उसे ही नहीं थोड़ा हमें व हमारी आत्मा को भी मारा है। तुम्हें फाँसी की सजा मिलने पर हमारा संतुष्ट होना यही सिद्ध करता है। तुम हम सबके भी अपराधी हो। काश, तुमने मनुष्य योनि में जन्म न लिया होता। काश, किसी स्त्री ने तुम्हें अपने गर्भ में न पाला होता। तुम मॉन्स्टर किसी स्त्री के पुत्र, भाई, पति या पिता न होते। ताकि कोई स्त्री तुम्हारा पक्ष लेकर और तुम्हारे लिए टसुए बहाकर स्त्री जाति को और अधिक क्षोभ और लज्जा का पात्र न बनाती।
Mukesh Panjiyar
मेरी मानो तो मौत से भी भयानक सजा मिलना चाहिए था उन चारो दानवों को . मगर क्या इससे उन लुच्चे लफंगे गली के कुत्तों को कोई फर्क पड़ेगा . आँखों में एक्सरे मशीन लगा कर लड़कियों को घूरने वाले , फब्तियां कसने वाले उन कमीनों को कोई फर्क पड़ेगा ?
मुझे नहीं लगता हैं .
दामिनी बलात्कार केस में जो फैसला आया है वो सभी पिता और भाई के लिए बहुत बड़ी जीत है मगर आधी .
जब तक गलियों में मुहल्लों में स्कुल कॉलेज सार्वजनिक स्थलों पर इनको चिन्हित कर के पुलिस में शिकायत दर्ज नहीं कराई जायेगी तब तक कुछ नहीं बदलने वाला .
साथ ही लड़कियों को भी तैयार रहना पड़ेगा विरोध करने के लिए चाहे वो बात से हो या लात से हो .
ऐसे कितने वाकये हैं जिसमें लड़कियाँ अपने परिवार के सदस्यों से उन पिल्लों की शिकायत नहीं कर पाते हैं क्यों की उन्हें डर रहता है खुद के पाबन्दी का भी और पिल्लों से भी .
इस लिए हमें अपने घर से ही इसकी शुरुआत करनी होगी अपने बहन को बेटी को बताना होगा की हर परिस्थिति में हम उनके साथ हैं .
तब जा कर कुछ बदल सकता है और जीस दिन हमारी बेटियां उन नामुरादों को सबक सिखायेगी उस दिन हमें पूरी जीत मिलेगी .
मैं सभी क्रांतिकारी संग मिडिया एवं सोशल मिडिया तथा सामाजिक संगठन का तहे दिल से शुक्रिया अदा करता हूँ की उनलोगों के बदौलत ही हम आज एक परिवर्तन कर सके .
Amit Kumar
जैसे कोई बेहतर लिबास हो वैसे ही ये सजा इन घटिया लोगों पर खूब अच्छी लग रही है..मानवता का यैसा भी पैरोकार नहीं की दरिंदो के लिए मौत दूभर लगे.. बल्कि आगे के अपील के लिए इन्हें कोई वकील न मिले वैसा कुछ हो ..लेकिन कोई बेगैरत तो निकल ही आएगा
Haresh Kumar
गैंगरेप के चारों आरोपियों को जिला अदालत के द्वारा फांसी की सजा देने का अभी फैसला आया है, ये फिर उच्च न्यायालय में जायेंगे फिर सुप्रीम कोर्ट जायेंगे और फिर राष्ट्रपति के पास जायेंगे। सारा मामला इसे अधिक से अधिक दिन तक खींचने का है।
फ़ेसबुक पर आजकल
Ranjana Singh
आयं पिरिया मैडम, ई जो राते दिने भोरे भिनसारे 24*7,सवा सौ करोड़ जनता तक हक़ पहुँचाऊ प्रोजेक्ट में भाई लोग आपको रगेदे हुए हैं, "पांच सौ करोड़ के इमेज बिल्डिंग कॉन्ट्रैक्ट"में से आपको आपका वाजिब हक़ दिया है कि नहीं उन्होंने ??
देख लीजिये, न दिया हो तो आप अपना हक़ लीजियेगा जरूर..
अरुण अरोरा
राहुल ने हड़ौती क्षेत्र में कहा कि गरीबी के पीछे सबसे बड़ा कारण बेरोजगारी नहीं वरन निरंतर बीमारी है। गांधी ने कहा कि मजदूरों से पूछिए कि वे इलाज पर कितना खर्च करते हैं। कांग्रेस इस समस्या को पूरी तरह से खत्म करने के लिए प्रतिबद्ध है आने वाले सालो में हम आपको रोटी देंगे लेकिन रोजगार नहीं ... ना आपके पास इलाज करने का पैसा होगा ना आप बीमार .. क्योकि बीमारी केवल मानसिक स्थिती है ......
Sangita Puri
मानव जब जंगल में रहते थे , उस समय भी उनकी जन्मपत्री बनायी जाती , तो वैसी ही बनती , जैसी आज के युग में बनती है। वही बारह खानें होते , उन्हीं खानों में सभी ग्रहों की स्थिति होती , विंशोत्तरी के अनुसार दशाकाल का गणित भी वही होता , जैसा अभी होता है। आज भी अमेरिका जैसे उन्नत देश तथा अफ्रीका जैसे पिछड़े देश में लोगों की जन्मपत्र एक जैसी बनती है। लेकिन क्या उन जन्मपत्रियों को हर वक्त एक ढंग से पढा जा सकता है ??
Isht Deo Sankrityaayan
बिलकुल ठीक कह रहे हैं जेठमलानी. केवल आसाराम की पीड़िता ही नहीं, वसंत विहार वाली और यहां तक कि वह 5 साल की वह बच्ची भी मानसिक रोगी थी जो हैवानियत की शिकार हुई. अव्वल तो वो सभी बच्चियां-लड़कियां-स्त्रियां मानसिक रोगी ही हैं जो बलात्कार या छेड़छाड़ की शिकार हुईं या हो रही हैं या होंगी. मानसिक रूप से सबसे ज़्यादा स्वस्थ वही लोग हैं जो बलात्कार या छेड़छाड़ जैसे महान कार्य करते हैं. जेठमलानी तो पता नहीं साबित कर पाएंगे या नहीं, मुजफ्फरनगर गए माननीयों ने इसे साबित भी कर दिखाया
Baabusha Kohli
आ ! मैं अपनी साँसों से तेरे लिए उमर बुन दूँ. सूरज मुझको ला दे साजन, अपने माथे पर जड़ लूँ...
[मौत से डरी लड़की का बयान]
Dipak Mashal
आज फिर हमारे अंधे क़ानून को असाम के पाँच अवयस्कों ने सामूहिक रूप से मुँह चिढ़ाया। इन जन्मजात शैतानों ने दुष्कर्म के लिए फिर एक दस साल की बच्ची को निशाना बनाया।
जहाँ के युवा सेक्स को 'शुद्ध देसी रोमांस'और विकृत मानसिकता दिखाने को 'ग्रैंड मस्ती'मानने लगे हों, जहाँ माँ-बाप पर बनने वाले अश्लील चुटकुलों का दखल सुपरहिट फिल्मों तक में हो गया हो, वहाँ की असलियत के बारे में अंदाज़ा लगाने की जरूरत ही नहीं क्योंकि उस समाज का आइना ही उनकी सूरत दिखा रहा है।
जहाँ के युवा आधुनिकता के नाम पर अपने कोटों में पश्चिम के लोफर और बिगडैल युवाओं की असभ्यताओं की जेबें जोड़ने को आमादा हों, वहाँ क्या उम्मीद करें और कैसे? ये तक नहीं सोचते कि जहाँ के जैसा वो बनना चाहते हैं वहाँ भी सभ्य समाज में वह सब मान्य नहीं जो वो सीख रहे हैं।
मैंने पहले भी कहा था और फिर कह रहा हूँ कि दिल्ली में हाल ही में फाँसी की सजा सुनाये गए दरिंदों के रोने-कलपने और जिंदगी के लिए गिड़गिड़ाने की फुटेज बनाई जावें और इन अपराधों के परिणाम से डराने के लिए विभिन्न चैनलों पर इन्हें विज्ञापनों की तरह चलाया जावे। हो सकता है कोई फर्क पड़े। माइनरों पर नया क़ानून तो ये लोग बनाने से रहे, क्योंकि माइन और माइनरों से सरकार को बड़ा लगाव है।
Manish Seth
इश्क के नशे में डूबा...............तो ये जाना....
इश्क में पिट जाओ तो किसी को ना बताना....:)))))
Shekhar Suman
आप सभी को विश्वकर्मा जयन्ती की शुभकामनाएँ... असली इंजीनियर डे तो आज है जी... मेरा निक नेम भी इन्हीं इंजीनियर के नाम पर पड़ा था....
अंजू शर्मा
काश कुछ इलाज़ कर पाती इन जेठमलानियों जैसों की मानसिक बीमारी का.....मैं भी उन हजारों लाखों करोड़ों महिलाओं जितनी ही बेबस हूँ जो सिर्फ घृणा से थूक सकती हैं पर कुछ कर नहीं सकती....
Hareprakash Upadhyay
क्या एक जातिहीन और नास्तिक समाज हमारे वर्तमान समाज से बेहतर नहीं होगा? यह मेरी एक सहज जिज्ञासा है, जिसका उत्तर मैं अपने सभी सुधी मित्रों से जानना चाहता हूँ। अगर आपको लगता है कि जातिहीन और नास्तिक समाज ज्यादा श्रेयस्कर है, तो उस दिशा में किस तरह बढ़ा जा सकता है- कृपया व्यावहारिक सुझाव दें।
Harish Sharma
कुछ उजाले की चकाचौंध से डरते हैं,
कुछ अँधेरे में परछायिओं से डरते हैं,
हम भी हैं तनहा अपनी रहबर निहारते,
पर जाने क्यूँ आपकी अंगडायिओं से डरते हैं !
कुछ को ख्वाब देख के जीने की आदत है,
कुछ को मैखाने में पीने की आदत है ,
हम हैं परेशां दीवानापन की आदतों से,
पर जाने क्यों शादी की शहनाईयों से डरते हैं!!
इंतजार कर रहा हूँ जुश्तजू जो है ,
इज़हार भले ही न करूँ आरज़ू तो है ,
कुछ मोहबत में किस्से सुने हैं ऐसे ,
हम अभी से आपकी तनहायिओ से डरते हैं !!
Deepa Sharma
राहुल के भाषण का इंतज़ार
12 पार्टियां कर रही है
लेकिन......
राहुल का भाषण देना
मुस्किल ही नहीं नामुमकिन है
Era Tak
आपके बोले हुए शब्द ...फिर आप तक वापस आयेंगे इसलिए हमेशा अच्छा और मीठा बोलें ~ET~ _/\_
Ajay Singh Sishodiya
मुझे आज भी याद है ..जब मै पहली बार हाई स्कूल जाने के लिये बड़ी ही उत्सुक था ...आपस मे दोस्तो के साथ चर्चाये गर्म थी ....तब मेरे बाबूजी ने एक ही बात कही ......'अब बाहर की दुनिया देखोगे, पर याद रखना घर मे तुम्हारी भी बहने है और बाप का सम्मान' ! उस समय इन बातो का अर्थ नहीं समझ पाया था ...पर आज यही मेरा सबक है .....और गुरुमंत्र भी ! अजय'शिशोदिया'
Ajit Gupta
एक बात बताए कि किसान हमें रोटी देता है या हम किसान को रोटी देते है?
Vm Bechain
कुछ भी शांत नही है ,,
न देश,
,न सियासत,
, न दिल
, न दिमाग,
,न धडकन
और
न ही मन,
,,,,,,,,,,एक अजीब सी बेचैनी ने घेर रखा है,,
,,मुझे और मेरे वतन को,,,,
,,,,राम जाने कब,,,,,शकुन नसीब होगा,,,,,,,,,,,ऐसे थोड़े होता है ,,,,,,,,,,,,,,,?
![]()
अजय कुमार झा
खडी खबड : दंगा इतना बडा था और दिल्ली को बताया तक नही : पी एम
कम से कम बता देते तो मैं ये तो कह देता : ठीक है

हर चेहरा कुछ कहता है …….
किसी अनंतमूर्ति ने कहा कि लोकतंत्र के डर से वह देश छोड़ देगा.
आपको क्या लगता है ? कि वो सचमुच चला जाएगा (?)
यदि हॉं तो like दबाऐं
यदि नहीं तो comment दिखाएं
यदि गीदड़भभकी है तो share चटकाएं
यदि बुद्धीजीवी बन रहा है तो kick लगाऐं (लेकिन ज़ुकरबर्ग ये ऑप्शन कब लाएगा रे)
Priyanka Rathore
समझ सके तो समझ ज़िन्दगी की उलझन को
सवाल उतने नहीं है, जवाब जितने हैं.............
जाँ निसार अख़्तर
Pushkar Pushp
मुजफ्फरनगर दंगे का असर अब वहां की अर्थव्यवस्था पर पड़ने वाला है। इस कड़ी में 'चीनी उद्योग'पर सबसे ज्यादा असर पड़ेगा। क्योंकि जाट और मुस्लिम दोनों ही मुजफ्फरनगर चीनी उद्योग के लिए बेहद अहम् है। जाट लोगों के पास जमीन है तो मुस्लिम लोगों के पास श्रम शक्ति। अब यदि पलायन कर गयी मुस्लिम आबादी वापस नही लौटती है तो वहां के चीनी उद्योग की अर्थव्यवस्था चरमरा सकती है। अर्थव्यवस्था हिन्दू - मुस्लिम में भेद नहीं करती लेकिन राजनीतिज्ञ .............
Ratan Singh Bhagatpura
समय के साथ सामंतवाद ने भी अपना रूप बदल लिया पहले शासक का बेटा वंशानुगत आधार पर शासक बनता था,
अब जनता शासक नेताओं के वंशजों को चुनकर शासन सौंपती है मतलब अब सामंतवाद ने लोकतांत्रिक रूप धारण कर लिया !!
Sonali Bose
चांदनी उतारी है आज खुश्क कलम में, निगाहोँ में ढाला है आसमानी नूर
हर हर्फ़ में ज़ाहिर है तुम्हारी ही चाहत, आज लिखती हूँ पूरी क़ायनात में तुम्हेँ
........सोनाली......
निरुपमा सिंह
छाया बन के बादल कि दरिया उमड़ पड़ा
मैं बहती चली गई .. वो समंदर हो गया !!
Piyush Pandey
लंच बॉक्स को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मिली ख्याति ऑस्कर में उसका दावा मजबूत कर सकती थी लेकिन भारत की तरफ ऑस्कर में नामांकन गुजराती फिल्म द गुड रोड को मिला है। द गुड रोड भी शानदार फिल्म है, जिसे राष्ट्रीय पुरस्कार मिल चुका है लेकिन लंच बॉक्स को भेजा जाना चाहिए था। अंतरराष्ट्रीय सिनेमा में इरफान की पहचान भी फिल्म के लिए मददगार हो सकती थी। लेकिन, इस बार बड़ी गलती हुई है
Vaibhav Kant Adarsh
फिल्म "शोले"रमेश सिप्पी और जावेद-सलीम से
पूछना चाहूँगा जब रामगढ़ गाँव में
बिजली नहीं थी तो पानी टंकी में पानी कैसे भरते थे
Mukesh Kumar Sinha
रिश्ते रिस-रिस कर दर्द देते हैं.........
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उफ़्फ़!! ए जिंदगी !! क्यों नखरे करती हो...................
Rashmi Mishra
सौरमंडल मे सूर्य तो एक ही जगह स्थित है, घूमती तो पृथ्वी है. और जब धरती सूरज से मुख फेरती है तो उस ओर अँधेरा होता है.
उसी प्रकार जब हम 'उससे'* मुह फेरते हैं तभी हमारे जीवन मे अन्धकार होता है...!
( उससे* , यानी परमात्मा, ईश्वर, खुदा आदि... परमात्मा के रूप और भी हैं, आप जो माने... 'तुझमे रब दीखता है , यारा मैं क्या करूँ..'एक ये भी सही....)
अरुण अरोरा
ऑस्कर के लिए भेजी गई गुजराती फिल्म 'द गुड रोड' | '
सेकुलरो ने नाराजगी दिखाते हुए देश छोड़कर जाने की धमकी दी
Gyan Dutt Pandey
सवा करोड़ में कश्मीर सरकार गिराई जा सकती है तो नुक्कड़ के मशहूर दक्खीलाल कचौड़ीवाले अमरीका सरकार गिरा सकते होंगे।
Amitabh Meet
चाचा आज भोरे भोरे कहिन हैं :
"हो गई है ग़ैर की शीरीं बयानी, कारगर
इश्क़ का उस को गुमाँ हम बेज़बानों पर नहीं"
Geetam Shrivastava
अपना फोटो लगाके लोग 40 लोगों को क्यों टैग करते हैं समझ नहीं आता.
श्याम कोरी 'उदय'
उफ़ ! गुमशुदगी दर्ज करा दी है किसी ने.. हमारे नाम की
सिर्फ हुआ इत्ता कि हम तपते बदन बाहर नहीं निकले ?
Vineet Kumar
तुम्हारी मां की बड़ी याद आती है शांतनु..उर्मि जब मोबाइल पर शांतनु से बात कर रही थी तो लग रहा था, अब रो देगी..पास अगर शांतनु होता तो पक्का रुला देता..वो बस इतना कहता- देख,देख..अब रोई उर्मि. अब रुकेगी नहीं और उर्मि पहले तो गला दबा दूंगी तेरा कहती और फिर सचमुच रोने लग जाती. लेकिन
पिछले चार दिनों से मुंबई में फंसा शांतनु फोन पर ऐसा नहीं कर सकता था.उसने पलटकर पूछा- तेरी सास तुझे याद आ रही है और मैं नहीं ?
शांतनु, सच कहूं..तुम जब भी मुझसे दूर होते हो, तुम्हें मिस्स तो करती हूं लेकिन मांजी की बहुत याद आती है. तुम्हारा कहीं जाना होता कि इसके पांच-सात दिन पहले से मेरे साथ होती. इस बीच तुम कब चले जाते, बहुत पता नहीं चलता. रात होते अपने कमरे में जाती तो देखती कि उन्होंने ऑलआउट लिक्विड हटाकर मच्छरदानी लगा दी है और फिर..आ उर्मि, जरा मूव लगा दूं, घंटों कम्पूटर पर आंख गड़ाए बैठी रहती है.
अच्छा तो सासू मां की याद इसलिए ज्यादा आती है कि वो सेवा-सत्कार करती थी...सेवा-सत्कार वैसे मैं भी तो कम नहीं करता..सेल्फिश उर्मि..सेल्फिश,सेल्फिश......
चेहरों की चुटकियां …………..
Shweta Sharma added a new photo.
बहुत ग़मगीन है ..
मामला बहुत संगीन है
सुना है बड़ी मेहनत से इस्तीफा लिख कर लाये थे
अगले ने फाड़ दिया ...
भ्रष्टाचारयुक्त सघन वातावरण में लालबहादूर शास्त्री निर्मलता का अनुभव देते है. विश्वास करना कठीन होता है कि उनका सम्बन्ध इसी कांग्रेस पार्टी से था. आज अखबार में शास्त्रीजी पर कोई विज्ञापन नहीं दिखा. क्या सरकारों की आँखों में अभी इतनी शर्म बची है कि वे ईमानदार प्रमं से कतरा रहे है. अगर ऐसा है तो समझिये उम्मीद अभी बची हुई है. गाँधी विरोधी तो मिल जाएंगे, शास्त्री विरोधी कम ही होंगे. अतः एक आध फोटो उनकी भी छपनी चाहिए, आज के दिन. #2 अक्टूबर
गाँधी के महिमा मंडन से ज्यादा ज़रूरी है गाँधी का पुनर्मूल्यांकन.
छोटा था लेकिन वो लोगों कद में बहुत बड़ा था/
छोटे छोटे कदम थे लेकिन डग में बहुत बड़ा था....
'जय जवान जय किसान'के अमर नायक लालबहादुर शास्त्री की स्मृति को प्रणाम!
'वो '
जानती थी,
'वक़्त'अपने घर लौट कर नहीं आता,
'उस'मोहिनी सी सूरत को,
अपनी आँखों में भर लेना चाहती थी वो,
उसे पता था,
'बेशक'वापसी के 'वादे हजार'थे,
'लेकिन'कोई रास्ता न था ...
चाहे, अनचाहे ,
'वो'
रोज ही दर्द बन कर,
उसकी आँखों से छलक पड़ता था,
उसका लौट जाना,
कभी मंजूर नहीं किया उसने,
जाने कितनी ही रातें
गुजारती रही वो,
उसकी हथेली की छुअन
अपनी हथेली पर महसूस करते,
अपनी बंद पलकों में
उसके सपने बुनते ...!!ANU!!
तेरे वादे पर हम ने भरोसा किया …,
कुछ तो उल्फत का तुम भी हक निभाया करो …;
हम भी हमराज़ हैं तुम भी हमराज़ हो …,
दिल की बात हमसे ना छुपाया करो ..!!!
युद्ध, त्रासदी और विनाश घातक रूप से सम्मोहित करने की क्षमता रखते हैं। दो महायुद्धों को झेल चुके यूरोप के साहित्य और कलाकर्मियों की रचनाओं में यह सम्मोहन प्रचुर उपलब्ध है।
लालू प्रसाद यादव को कैदी नंबर 3312 मिला!
सेकुलर होने के नाते उन्होंने जेल प्रशासन से 786 नंबर देने का आग्रह किया।
आज एक दिन,
अच्छा देखें!
अच्छा सुनें!
और अच्छा लिखें!
फेसबुक पर पेज बनाना चाहो तो क्या कैटेगरी चुने , ना हम पब्लिक फिगर हैं , ना रजिस्टर्ड राईटर… ब्लॉगर या होममेकर /गृहिणी का भी एक ऑप्शन होना चाहिए था !
किसी को सजा देनी हो तो उसकी सबसे प्रिये चीज़ उससे अलग कर दो.... बंदा किश्तों मे मर जायेगा..!
(ऐसे 'मर्डर'सिर्फ ईश्वर करते हैं, ये उनके न्याय का तरीका है...)
सच तो ये है कि मनमोहन अभी तक ये नहीं समझ पाये हैं कि 'देहाती औरत'कहकर नवाज शरीफ ने उनकी बेइज्जती की है या तारीफ...
बिना कहे तो वो कभी समझा नहीं
अब कहने पर समझ ले तो गनीमत ...era ~ET~
भला हो सरकार का नोटों पर बापू के फोटो है , वर्ना लोग आज याद नहीं कर पाते की ये अख़बार में छपी फोटो किसकी है ! गाँधी जयंती की शुभकामनाये !
विशेष - ठेके बंद है पर दारू मिल रही है !
यार ये दीपक चौरसिया तो बिल्कुल चिरकुट सा लगता है
अरे कोई तो इसे बताओ कि गरिमा भी एक शब्द होता है
जय जवान, जय किसान... जय हिन्द... शास्त्रीजी पर गर्व है।
ऐसे सशक्त नेतृत्व की आवश्यकता है। बिना रीढ़ वाली व्यवस्था से मन उचाट हो गया है।
बतकही ……..
फेसबुक पर बड़े लोगों की पहचान क्या है पता है आपको , चलिए मैं बताता हूँ आपको:--
अपने किसी बेकार पोस्ट पर भी हजारो like और सैकड़ों comments की उम्मीद और दुसरे के अच्छे पोस्ट को भी नज़रअंदाज़ कर देना । फेसबुक पर बड़े लोगो की पहचान है ।
आँसुओं को पी रहा हूँ
कौन मुझसे पूछता अब किस तरह से जी रहा हूँ
प्यास है पानी के बदले आँसुओं को पी रहा हूँ
जख्म अपनों से मिले फिर दर्द कैसा, क्या कहें
आसमां ही फट गया तो बैठकर के सी रहा हूँ
चाहने वाले हजारों जब तेरे शोहरत के दिन थे
वक्त गर्दिश का पड़ा तो साथ में मैं ही रहा हूँ
बादलों सा नित भटकना अश्क को चुपचाप पीना
याद कर चाहत में तेरी एक दिन मैं भी रहा हूँ
क्या सुमन किस्मत है तेरी आ के मधुकर रूठ जाता
देवता के सिर से गिर के कूप का पानी रहा हूँ
सादर
श्यामल सुमन
फैलिन तूफ़ान शाम तक उड़ीसा, आंध्र के तटों तक पहुँचेगा!
तब तक झान्सराम को मीडिया ट्रायल से छुटकारा मिलने के आसार नहीं.
सचिन के सन्यास की खबर से लोग ऐसे दुःखी हो रहे हैं जैसे UPA 3 की सरकार बन गयी हो....
दिल्ली डायरी -26
अभी थोड़ी देर पहले घर पहुंचा हूँ |दरवाजे पर भीड़ थी ,एक ऑटो उसमे बैठे तीन श्वेतवर्ण विदेशी ,गेट पर दो लड़कियां तीन लड़के ,जिनमे से एक नाइजीरियन और बाकी हिन्दुस्तानी ,सभो मूक और बधिर |मैं अन्दर जाने की जगह न होने की वजह से अपनी गाडी पर बैठा बाहर खड़ा रहा ,इन सबके चेहरे बता रहे थे कि ये विदाई का समय है ,मेरी दरवाजे पर उपस्थिति उन्हें और उनके आंसुओं को परेशान कर रही थी |खैर मैंने इशारे से कहा मुझे घर के भीतर जाने की जल्दी नहीं है |कुछ समय बाद ऑटो बढ़ा और फिर घर में साथियों को छोड़ वापस लौट रहे इन युवाओं ने आंसुओं के साथ मेरे लिए रास्ता छोड़ दिया ,मगर इन सबके बीच वो स्याही के रंग की नाइजीरियन लड़की अभी भी सीढ़ियों पर बैठी है ,न जाने क्यों |दिल्ली में दो तरह के लोग हैं एक वो जिन्हें जाना ही है दूसरे वो जिनकी किस्मत में इन्तजार करना ही लिखा है |
कल गाँव जाने की सोच रहा ,सारी ट्रेने भरी हुई है ,न जाने कैसे जाऊँगा ?समझ नहीं पा रहा |दोस्त नाराज रहते हैं कि फोन नहीं उठाता ,मैं उन्हें कैसे समझाऊं ,फोन से मेरा रिश्ता बहुत खराब है ,अक्सर चार्ज करना ही भूल जाता हूँ |आजकल क्रोध जल्दी आता है सोच रहा हूँ कि सम्यक रहकर हम क्रोध को कम कर सकते हैं ,पर सम्यक रहे क्यों ?
"कुछ ऐसी भी गुज़री हैं तेरे हिज्र में रातें
दिल दर्द से खाली हो मगर नींद न आए"
फ़िराक़ कुछ ज्यादा ही याद आते हैं। फैज़ और साहिर दोनों से पहले। जब भी भुलाने लगती हूँ खुद को तो फ़िराक़ जैसे आके याद दिला जाते हैं।
वह दिन दूर नहीं, … जब फेसबुक, ब्लॉग, ट्विटर, इत्यादि लोगों की प्रसिद्धि व व्यक्तित्व की पहचान व पैमाने बनें … ???
अगर आज की युवा पीढ़ि टीवी फिल्मो की गुलाम ना होती तो आज "प्रेम"का सही मतलब "शारीरिक आकर्षण"ना होकर "इंसानियत"होता।feeling शर्मसार
जो लोग मनमोहन को शांति का नोबेल मिलने की उम्मीद लगाए बैठें थे, उन्हे पता होना चाहिए नोबेल, शांति के लिए दिया जाना था, सन्नाटे के लिए नहीं।
महजनेन येन गतः सः पन्था..कु और सु संस्कार ऊपर से नीचे प्रसारित होता है.
क्या लालू या इन जैसों को सजा केवल इस कारण होनी चाहिए कि इन्होंने किसी घोटाले को अंजाम दिया था ?
नहीं...
इन जैसों को कठोरतम दण्ड इसलिए मिलना चाहिए क्योंकि इन्होने पूरी एक संस्कृति को नष्ट भ्रष्ट किया,जिन्होंने यह कल्पना से परे कर दिया कि ईमानदार कभी तरक्की कर सकता है चैन से जी सकता है,बिना घूस दिए कोई सरकारी काम हो सकता है,जघन्यतम अपराध से पहले एक बार ठिठका डरा जा सकता है,हिन्दू मुसलमान ब्राह्मण यादव धोबी दुसाध आदि आदि बन नहीं,एक भारतीय नागरिक बन रहा जिया जा सकता है.
यूँ अपने संविधान में अभी इसकी व्यवस्था नहीं और न ही न्यायलय को यह ज्ञात है कि एक राजा जिसके संरक्षण में अपहरण उद्योग,भ्रष्ट,निरंकुश,अत्याचारी तंत्र फले फूले, अनाचार इतने गहरे पैठ जाए कि वह लोगों का संस्कार बन जाए,उसे कितनी और कैसी सजा देनी चाहिए, इसके लिए जनता को ही आगे बढ़कर यह तय करना होगा कि ऐसे राजाओं/नेताओं का क्या करना है .
दुर्गाष्टमी,महानवमी और विजय दशमी पर सभी मित्रों को ह्रदय से मंगलकामनाएं----
अन्तर की शक्तियों को जगाने की रात है ।
श्रद्धा से शीश अपना झुकाने की रात है ।
देकर के अर्घ्य अश्रुओं का,हाथ जोड़कर
सच्चे ह्रदय से मॉं को मनाने की रात है ।।
-----मनोज अबोध
दिल्ली में कार चालकों की ड्राइविंग का तरीका देखकर आप आसानी से अनुमान लगा सकते है कि कौन कौन कार चालक बाइक से कार में अपग्रेड हुआ है !!
दरअसल दिल्ली में बाइक सवारी छोड़ कार सवारी में अपग्रेड हुए ज्यादातर लोग बाइक चलाना तो छोड़ देते है पर ट्रेफिक में बाइक इधर उधर कर घुसेड़ने वाली आदत नहीं छोड़ते और कार को ऐसी ऐसी जगह घुसेड़ने लगते है जैसे वे बाइक चलाया करते थे !!
'मोबाइल'टॉयलेट में गिर जाए तो निकाल लेना चाहिए या फ्लश कर देना चाहिए !!
तेरी यादों से रोशन हैं ये दुनीयाँ मेरी
हर राह पर उजाला ही नज़र आता हैं
मन जो चाहे वो हो तो अच्छा ना हो तो बहुत अच्छा क्योकीं मेरा अच्छा भगवान मुझसे बेहतर जानता हैं
हम इतने मूर्ख भी नहीं कि देश-काल की सीमाओं को न देखें और सिर्फ एक ही बात को आधार बनाकर किसी के पूरे जीवन और काम को रिजेक्ट कर दें। जैसेकि मान लीजिए कि अगर उन लेखक की अपनी ही जाति में अरेंज मैरिज हुई थी तो इसे लेकर मैं कोई बिलकुल जजमेंटल नहीं होऊंगी। उस वक्त ऐसा ही होता था। वो समय-समाज दूसरा था। आपके विचार जो भी हों, लेकिन आप बहुत कुछ प्रैक्टिस नहीं कर पाते क्योंकि वक्त उसकी इजाजत नहीं देता। जैसे अभी मेरे ही विचार तो जाने क्या-क्या हैं, लेकिन मैं सबकुछ प्रैक्टिस कहां करती हूं।
एक उदाहरण तो मेरे घर पर ही है। पापा एकदम भयानक वाले मार्क्सवादी थे, लेकिन 1978 में 29 साल की उम्र में शादी उनकी भी अरेंज ही हुई थी और वह भी ब्राम्हण लड़की के साथ। मैं कभी-कभी उन्हें चिढ़ाती और कभी सीरियसली इस बात पर नाराज होती कि आपने ऐसा किया कैसे। पापा का जवाब सिंपल था - "जिस तरह के सामाजिक-आर्थिक परिवेश से मैं आया था, मेरे आसपास कोई लड़की नहीं थी।"प्रेम तो छोडि़ए, पापा की तो कभी कोई महिला मित्र भी नहीं थी। और ये शादी भी लगभग पकड़कर करवा दी गई थी। उन्होंने मां की एक फोटो तक नहीं देखी थी शादी से पहले। हम आज भी पापा को चिढ़ाते हैं, "यू आर सच ए ड्राय मैन। नॉट एट ऑल रोमांटिक। जिंदगी में कभी कोई गर्लफ्रेंड नहीं। धरती पर आपका जीवन व्यर्थ है।"साठ साल के बूढ़े अब्बा को ये ज्ञान उनकी बेटियां दिया करती हैं।
उनकी अपनी जिंदगी में जो भी हुआ हो, दीगर बात ये है कि अपनी लड़कियों के साथ उन्होंने क्या किया। आप जरा मेरे घर जाकर कोई दुबेजी, तिवारी जी दूल्हा उनकी बेटियों के लिए सजेस्ट करके तो आइए और देखिए क्या होता है। वो आपको चौराहे तक खदेड़ देंगे। वो कल्पना नहीं कर सकते कि हाथ जोड़कर, सिर झुकाकर और माथे पर भगवा साफा बांधकर अपनी बेटियों का कन्यादान करें। खुद पंडिताइन से ब्याह करने वाले वो ऐसे शख्स हैं, जिनसे उनकी बेटियां अपने ब्वायफ्रेंड और रिलेशनशिप डिसकस करती हैं। जिन्होंने अपनी अस्सी साल की बूढ़ी मां के लाख रोने-धोने के बावजूद काम वाली का बर्तन अलग रखने से मना कर दिया, "मेरे घर में ये नहीं चलेगा, आप बेशक इस घर में न रहें।"बुढ़ापे में दादी का धर्म भ्रष्ट हुआ सो अलग।
सो इन नट शेल मेरे कहने का अर्थ ये है कि अगर किसी ने सारे प्रगतिशील दावों और लेखन के बावजूद अपनी जिंदगी में कास्ट सिस्टम को फॉलो किया, बेटे-बेटियों की अपनी जाति में शादी की, दहेज लिया और दहेज दिया, बेटे के चक्कर में ढेरों बेटियां पैदा कीं तो ये बात माफी के लायक कतई नहीं है। आप अपनी जिंदगी में नहीं कर पाए, लेकिन अपनी बच्चों की जिंदगी में बहुत आसानी से कर सकते थे।
आपने नहीं किया क्योंकि दरअसल भीतर से आप बहुत बड़े जातिवादी और मर्दवादी हैं। अंतरजातीय विवाह का समर्थक न होना घोर रिएक्शनरी एटीट्यूड है।
नॉट एक्सेप्टेबल बॉस। ये चलने का नहीं।
खबर है की महारानी एलिजाबेथ दितीय के खाते में मात्र नौ करोड़ 75 लाख रुपल्ली ही रह गये है लिहाजा ब्रिटिश सरकार ने उनकी तन्खवाह में 22 फीसद इजाफे की घोषणा की है..
एक व्यक्ति ने टैक्सी ली और ड्रायवर को एक स्थान का नाम बताकर चलने को कहा। जब टैक्सी अपनी रफ्तार से चलने लगी तो पिछली सीट पर सवार व्यक्ति ने कुछ पूछने के लिए ड्रायवर की पीठ पर धीरे से हाथ रखा।
हाथ रखते ही अचानक टैक्सी का संतुलन बिगड़ा और वह लहराने लगी। बड़ी मुश्किल से एक्सीडेंट होते होते बचा। इस पर सवार व्यक्ति बहुत शर्मिन्दा हुआ और ड्रायवर से बोला- माफ कीजिए, मुझे नहीं पता था कि मेरे हाथ रखने से आप इतने विचलित हो जाएंगे।
ड्रायवर- नहीं, आपकी गलती नहीं है। दरअसल टैक्सी चलाने का यह मेरा पहला दिन है। इससे पहले मैं पिछले 17 सालों से मुर्दाघर का वाहन चलाता था। ...
प्रिय दीपिका पादुकोण जी,
निवेदन यह है की हमे लगता है की एक
आप ही हैं जो इस देश की जनता को ख़ुशी दे सकती है.
क्यूँ की सबसे पहले आप शाहरुख़खान के साथ फिल्म
बनाये उसके बाद उसकी लगातार कई पिक्चरें पिट गयी
युवराज सिंह की जिंदगी में आई उस वक़्त उसके
करियर की वाट लग गयी थी .....
फिर आप बी एस एन एल में आई ...उस वाक्क्त
बी एस एन एल की भी वाट लग गयी ....
फिरआप किंगफिशर में आई तो खबर आ रही है
की किंग फिशर बर्बाद हो गया है एवं बंद होने
की कगार पर है ....
सो हमारा आपसे अनुरोध हैकी कृपया आप
Congress में शामिल हो जाएँ बड़ी मेहरबानी होगी
आपके जवाब की प्रतीक्षा में समस्त देशवासी.
प्रेम ,
तरल है
पलती है उसमें ,
एहसासों की सुनहरी मछलियाँ !
जब देना होता है प्रेम को आकार
रख देनी होती है
इन मछलियों के मुख में अग्नि
और बहा देना होता है
इन्हें ऐसी जगह
जहाँ का खारापन
दे जाता उन्हें एक नया जीवन !
मुखाग्नि उगली जाती हैं
समुद्र धरातल में, और ;
उठ आती है विशाल लहरें
जो दावानल की भूख लिए
खा जाती हैं किनारे बैठे हर विकल्प को ...
तब ;
हवाएं जान जाती है कि
लहरें उठाना अब उनका काम नहीं
आश्वस्त हो ,खेलने चली जाती है
पहाड़ी की मंदिर में..
एक बार फिर बज उठती है घंटियाँ....
और ;
तुम कहते हो ..........
“आरती का वक़्त हो गया “!!!
आखिर बात क्या है भाई ???
1-अचानक ओपिनियन पोल पर रोक की वकालत क्यों ...
2-नेहरू और इंदिरा गांधी के कारनामे दिखाने के कारण (और आडवाणी की तारीफ के कारण) एबीपी न्यूज़ वाला शो 'प्रधानमंत्री'के प्रसारण पर रोक....
3-पेड न्यूज़ पर रोक लगाने संबंधी अध्यादेश का ड्राफ्ट तैयार है ...
4-न्यूज़ चैनलों के लिए एड्वाइज़री जारी ...
5-बार बार सोशल मीडिया पर अंकुश लगाने की भरसक कोशिश...
.... आखिर बात क्या है भाई ??
हकीकत खुराफात में खो गई....
ये उम्मत रवायात में खो गई..... !!!!!
.........................................................इकबाल
रंज इसका नहीं कि हम टूटे, चलो अच्छा हुआ भरम टूटे
आई थी जिस हिसाब से आँधी, उसको देखो तो पेड़ कम टूटे
[ पता नहीं किसका, पर बब्बर शे'र है. ]
नेता और डाइफ़र में क्या समानता है ? दोनो को सही समय पर नही बदला गया तो बहुत गन्दगी फ़ैल जाती है ।
शुद्ध गंवई माहौल! पड़ोस में मेहरारुओं में कजिया हो रही है। जानदार दबंग भाषा का प्रयोग।
हम फ़ेसबुकिये भी कितने पागल हैं ,
जो भी खाते हैं , जो भी करते हैं !
वो खाने से पहले , करने से पहले ,
फ़ेसबुक पे स्टेटस अपडेट करते हैं !
अभी 1000 पन्ने तो इस भ्रम पर ही लिखे जाने की जरूरत है कि "औरत ही औरत की दुश्मन है।"
पता नहीं लोग मूर्ख हैं या मक्कार, जो इतने कॉन्फिडेंस के साथ ऐसा झूठ फैलाया करते हैं। अच्छा ही है, औरतें आपस में ही लड़ती रहेंगी तो आपके ऊपर सवाल नहीं उठेगा।
बात उसकी मुझे कभी रास नहीं आती !
यही बात सोच वो मेरे पास नहीं आती !!
अभी ६ तारीख को पटना आ रहा था तो हाजीपुर से गायघाट तक १२ किलोमीटर की दूरी छः घंटे में तय की थी , इतने से कम समय में पैदल भी आया जा सकता था . मैं उनलोगों से खुशनसीब था , जो पटना से आ रहे थे और बसों में , ट्रकों में , ऊपर नीचे लदे -फदे थे - क्योंकि बस की पहली सीट पर मुझे आरामदायी जगह मिल गई थी .उन लोगों से भी, जो छः घंटे की यात्रा में अपने अपने 'इमरजेंसी काल'को अपने चेहरे पर न आने देने के असफल प्रयास कर रहे थे . इंजीनियरिंग के एक छात्र को तो कंडक्टर से पानी का बोतल लेकर गंगा -ब्रीज के किनारे बैठना ही पड़ गया . इस यात्रा में भांति -भांति के अनुभव हुए . जाम में अपने बस को आगे ले जाने के लिए प्रयास रत अपने उत्साही सहयात्री पर दूसरे बस वाले ने बस चढ़ा देने की असफल कोशिश की , सहयात्री बस का वायपर पकड़कर बचा और वायपर तोड़ डाला . फिर उस बस के दो -तीन स्टाफ उसे देख लेने हमारी बस पर आये . गाली -गलौच और सिफारिशों का धौस शुरू हुआ . बीच में सहयात्री की पत्नी भी दबंगई के साथ आ भीड़ी और उन्होंने ललकारा , 'मैं भी रंगदार खानदान में ही पैदा हुई हूँ .'मामला सुलटा था लेकिन थोड़ी देर के लिए . सहयात्री ने अपने किसी रिश्तेदार एस पी को फोन किया और पटना में पुलिस की सहायता माँगी , चेकपोस्ट पर . उसने कहा कि स्नैचिंग का केस भी ठोक देंगे . यह सब देखते -सुनते पटना पहुंचा . हाजीपुर के गांधी सेतू ( ९ किलो मीटर ) को पार करने में हर दिन ही लोगों को कम से कम चार घंटे लग रहे हैं . बिहार में होना आपको अनेक अनुभवों से संपृक्त कर देता है .. है न ...!
शब्द शब्द झर गया
कोई अम्बर भर गया
मेरा ह्रदय गह्वर तो
बस मौन ही रह गया
मेरे पत्थरों को गुमान है, मेरे हाथ से वो चले नहीं
मेरे दुश्मनों को ये नाज़ है, कभी वार खाली नहीं गया
सुनीता भास्करमहात्मा गाँधी की हत्या के उपरान्त सरदार पटेल ने वह सब किया जो कि आर एस एस के लिए परिस्तिथियों को अनुकूल बनाने के लिए किया जा सकता था.पटेल की ही निगरानी के दौर में मीरबा की छोटी पुरातन मस्जिद जिसे बाबरी मस्जिद भी कहा जाता है, में रहस्यमय ढंग से राम की मूर्तियों को रख दिया गया, जहाँ से ये फिर कभी हटाई नहीं जा सकी..इस तरह कांग्रेस के व्यावहारिक सम्प्रदायवाद ने आर एस एस के सुनियोजित सम्प्रदायवाद का मार्ग प्रशस्त्र किया. .... (बीसवीं सदी की राजनीति में भारत) एक पुराने लेख में एजाज अहमद
तुम गिराते रहे हर बार, उठ के चलता रहा हूँ मै ,
ऐ तूफानों ! अब तो अपनी औकात में रहा करो !!
सुनो...तुम्हें जवाब नहीं देना तो मत दो ....मेरे प्रश्नों के सिरे ..चूहों की तरह कुतरा मत करो............
जुग जुग जिय तू ललनवा भवनवा क भाग जागल हो ............चलो मान लिया की तुम्हारी जीने से भाग्य जगता है..बाबा पिताजी के बाद तुम मेरे भाई मेरे बेटे ..तुम सबके लिए जीने की दुवायें दिल से ..
पर हमें मारने के कितने षड्यंत्र ..हमारी इक्छायें बाल्टी के पानी में रेत सी सतह में क्यों ..तुम्हारी पाल वाली नावं ...जो हवा के साथ दिशा बदल दे..तुम जो करो वो सही .हमारे करने के पहले ही तय है की ये गलत ही होगा ...ऐसा क्यों ?तुम्हारे हाथ में ताबिजो में गंडो में बंधी कितनी मनौतियाँ ..हमारे लिए क्रूर योजनायें ..समय ऐसा की लड़की बचाओ का नारा बन गया ..तुम इन्सान बचे रहो तो बचा भी लो बेटी ..
लड़कियों के लिए बस उस बिचारी चिड़िया वाला गाना ही क्यों जो अपने मन के पंख से उड़ेगी बाबा के आम के पेड़ पर बैठेगी ओर अपने भाई को फलता फूलता देखेगी ....सुपरमैन बना हुवा बैग लड़का ..बार्बी डॉल वाला लड़कियां ऐसा क्यों ?मांगलिक कुंडली वाली लड़कियां ...काले रंग वाली ..कम पढ़ी लिखी ...गरीब ..ये सिर्फ लड़कियां नही हमारी संताने हैं ...
बड़का जिला के पुराने अस्पताल में जन्मने से पहले मार डालने के बाद जीप में पीछे की सिट पर डाल कर आप अपनी औरत को घर की आग में झोकतें हैं बिना उसके आंसू पोछे की पिछले चार महीने से वो अपने अनदेखे बच्चे से अपना दर्द बाँट कर खुश थी .......पुण्य के इतने त्यौहार ..पाप के कितने कीड़े इन्सान के ही दिमाग में ना..........
लड़की अपने भैया को धूप से बचाती है ..अपनी इत्ती सी कमर में उसे लाड से उठाती है हाथ का टाफी बाबु खाता है लड़की आँखों से लार गिराती है बाबू की पप्पी लेती है मीठी हो जाती है ..यही लड़की ना ....
कोई हमको दस-बीस साल के लिये प्रधानमंत्री बना दे तो हम देश की तस्वीर बदल के धर देंगे । माने बदलने की गारण्टी है सुधारने की नही
मुझे पता नहीं है, किसी मित्र को पता हो तो कृपया जरूर बताएं- क्या मार्क्स की माँ भी छठपूजा करती थी, क्या प्रसाद में अफीम रखा जाता था? अगर नहीं तो कुछ मार्क्सवादी छठपूजा में भी अफीम क्यों ढूंढ लेते हैं? इसे भी मातृसत्तात्मक-पितृसत्तात्मक माइंडसेट से क्यों व्याख्या करते हैं. हमारे लिये छठपूजा माँ और छठी-मैया का आशीर्वाद है, बस!
कांग्रेस का कहना है सी बी आई समवैधानिक संस्था है .. बस उस रेजोल्यूशन का ड्राफ्ट राहुल जी से गुस्से में फट गया था .
बेचारा 'तोताराम' ... ५० साल की नौकरी के बाद पैंशन का सपना तो टूटा ही मासिक वेतन भी खटाई मे न पड़ जाये ... अब सुप्रीम कोर्ट की शरण मे गए है |
दिल्ली मुंबई में नये फैशन की जानकारी चाहे मॉडलों के कैटवाक से हो या कॉलेजों में नये सत्र से, लेकिन मेरे यहां तो आज भी फैशन का नया ट्रंड छठ के घाट पर ही दिखता है। सही में इस जाडे का फैशन दिखाने की परंपरा इस बार भी कायम रही। गुनगुनी ठंड ने सहयोग भी खूब किया।
भगवान हो या ना हो सूर्य तो हैं, और वो हैं तो हम हैं, ये जीवन है, ये दुनिया है। छठ पूजा मेरी नजर में बहुत हद तक वैज्ञानिक है, और इस तरह से मेरा सबसे पसंदीदा त्यौहार, और कृतज्ञता एवं महानता बिहार की, देते वक्त सब पूजा करता है लेकिन बिहार जाते समय भी करता है, बांकी बचपन से जो यादें, जो उत्साह जो उल्लास जुडी है इस पर्व से , उसके बारे में क्या कहना उसको तो बस वही समझ सकता है जिसने महसूस किया है!!!:))
गेहूँ
उगाने में खेत को
जरूरत होती है
पसीने की बूँदे ,
और उस मेहनत को
महसूस कराने वाली
शब्द वेदना
हो सकती है
कविता ,
जिसे रचा नहीं जा सकता,
सिवा महसूस करने के !
किसी भी पोस्ट में मोदी का नाम लिख भर तो दो
विरोधी और समर्थक दोनों ही में जम कर हिट
सिर्फ इस तरह के उपदेश देने से काम नहीं चलेगा कि दहेज़ और बारातों का चलन लड़की वालों पर ज़ुल्म है, बल्कि मज़हब के रहनुमाओं को निकाह पढ़ाते समय इस तरह की बातों के होने पर निकाह पढ़ाने से इंकार करने जैसे सख्त़ कदम उठाने पड़ेंगे।
तभी जाकर समाज में इनकी हकीक़त रूबरू होगी और जो लोग इसके ख़िलाफ़ हैं वह खुलकर सामने आ पाएंगे। ज़िम्मेदारियों से कब तक बड़ी-बड़ी बातें करके पीछा छुड़ाएंगे???
अब पेट फट जायेगा । रिज़र्व बैंक आफ़ लबरा ! लबरा मतलब झूठा । ये क्या होता है । उनके पास एक से एक झूठ है । नया नया । जैसे रिज़र्व बैंक के पास हमेशा नया नोट होता है न वैसे ही रिज़र्व बैंक आफ़ लबरा के पास होता है । उँ जब बोलेगा नया झूठ बोलेगा । नाम ? अब इ तुम मत लिख देना । राजनीति में कौन हो सकता है ।
चेहरे जो बयां करते हैं ....
चेहरों की बतकही …………
भविष्य उन निरक्षर लोगों का है, जो लाइक बटन में दक्ष होंगे!
Neeraj Badhwar
अब ममता दुआ कर रही होंगी कि काश कलाम माओवादी होते तो 'लड़ने'के लिए तैयार हो जाते!
कितनी अजीब बात है, जिन व्यक्तियों के पीछे हम अपने जीवन के सबसे खूबसूरत क्षण बर्बाद कर देते हैं, हम अक्सर उन्ही को याद किया करते हैं
फेसबुक अब केसबुक में तब्दील हो रहा है. कई ऐसे मामले सामने आ रहे हैं जिसमें फेसबुक की वजह से पति - पत्नी के बीच तलाक की नौबत आ गयी. इसके अलावा ऐसे मामलातों की तो भरमार है जिसमें रियल लाईफ की दोस्ती वर्चुअल स्पेस यानी फेसबुक पर आकर खत्म हुई.
15-6-2012 लंगड़ा आम देसी स्वाद मीठा तेज — in Yamunanagar, Haryana.
अब इश्क में दिल से ज्यादा मोबाइल की सुननी पड़ती है.
अब भरोसा करें भी तो किस पर,
यहाँ तो हम भरोसे के मारे हुए है .
लड़ाई के मैदान में ही हमेशा बहादुरी देखने को नहीं मिलती है। यह आपके दिल में भी देखने को मिल सकती है , अगर आपमें अपनी आत्मा की आवाज को आदर देने की हिम्मत जग जाती है।
मगर नहीं बन पातीं पत्थर, कागज ,मिटटी , हवा या खुशबू ज़िन्दगी की
ना पत्थर बनी
ना कागज ना मिटटी
ना हवा ना खुशबू
बस बन कर रह गयी
देह और देहरी
जहाँ जीतने की कोई जिद ना थी
हारने का कोई गम ना था
एक यंत्रवत चलती चक्की
पिसता गेंहू
कभी भावनाओं का
कभी जज्बातों का
कभी संवेदनाओं का
कभी अश्कों का
फिर भी ना जाने कहाँ से
और कैसे
कुछ टुकड़े पड़े रह गए
कीले के चारों तरफ
पिसने से बच गए
मगर वो भी
ना जी पाए ना मर पाए
हसरतों के टुकड़ों को
कब पनाह मिली
किस आगोश ने समेटा
उनके अस्तित्व को
एक अस्तित्व विहीन
ढेर बन कूड़ेदान की
शोभा बन गए
मगर मुकाम वो भी
ना तय कर पाए
फिर कैसे कहीं से
कोई हवा का झोंका
किसी तेल में सने
हाथों की खुशबू को
किसी मन की झिर्रियों में समेटता
कैसे मिटटी अपने पोषक तत्वों
बिन उर्वरक होती
कैसे कोरा कागज़ खुद को
एक ऐतिहासिक धरोहर सिद्ध करता
कैसे पत्थरों पर
शिलालेख खुदते
जब कि पता है
देह हो या देहरी
अपनी सीमाओं को
कब लाँघ पाई हैं
कब देह देह से इतर अपने आयाम बना पाई है
कब कोई देहरी घर में समा पाई है
नहीं है आज भी अस्तित्व
दोनों है खामोश
एक सी किस्मत लिए
लड़ रही हैं अपने ही वजूदों से
मगर नहीं बन पातीं
पत्थर, कागज ,मिटटी , हवा या खुशबू ज़िन्दगी की
यूँ जीने के लिए मकसदों का होना जरूरी तो नहीं ...........
मुझे 3 जी का डोंगल वाला नेट लेना है... इस्तेमाल 3 से 5 GB ... कौन सा वाला बेहतर रहेगा ?
Manaash Grewal
“अक़्सर ऐसा होता है कि हमें अपने ढ़ोंग का अहसास नहीं हो पाता। हम अपनी गंभीरता के आवरण को बनाए रखने के लिए और बढ़ती उम्र की नैतिकता के नाम पर प्रेम कविताओं को पसंद करने या उन पर टिपण्णी करने से बचना चाहते हैं। लेकिन क्या प्रेम से बचा जा सकता है? जब हम समाज की अराजकताओं पर प्रहार करते हैं, समाजवाद के निर्माण का स्वप्न देखते हैं और जब अपने बचपन एवं युवावस्था को एक आह लेकर याद करते हैं, तो साथ ही हम स्वीकार कर रहे होते हैं; -प्रेम और उसकी सार्वभौमिकता को। दरअसल यह एक किस्म की ग़ुलामी है जिसका हमें भान नहीं हो पाता। मैं अपनी आवारगी और मुक्तता से दुआ करूंगा कि कोई भी उम्र मुझे प्रेम की सराबोरिता से दूर ना करें। यही प्रेम है, मेरी आज़ादी है और सार्वभौमिकता की तरफ़ बढ़ते मेरे क़दमों की आहट भी। क्योंकि हर एक महान रचना के पीछे, एक उतनी ही विशाल और महान चाहत छुपी होती है। मृत्यु जो सार्वभौमिकता की दास है, न केवल उसे उसकी दासता से मुक्त करवाना है बल्कि यह भी पता लगाना है कि आखिरकार मृत्यु जैसी विशाल रचना के पीछे कौनसी और किसकी चाहत काम कर रही है? दलित के झोपड़े से लेकर दूर कहीं अनंत में किसी तारे के सुपरनोवा विस्फोट का प्रेम ही सार है।”
-- मनास ग्रेवाल।
Suman Pathak
सब कुछ है पास ..
फिर भी इंतज़ार क्या है..
यूँ दूर कुछ धुन्ध सा..
दिखता क्या है...
मंज़िल नहीं है मेरी ..
मन की कोई ख्वाहिश..
सफ़र में ये तमाशा क्या है...
डोकरा तुमने ठीक नहीं किया :(
Ratnesh Tripathi
मन की प्रशन्नता जब द्वन्द के बादल से टकराती है
बहुत सारे अर्थ अनर्थ हो जाते हैं
इस जड़वत हो चुके संसारी रिश्तों में
घुटने लगता है मन
खोजता है फिर वो टकराहट
जिससे की टूट जाए ये रिश्ते
और बरस पड़े बादल
ताकि बह जाएँ संसारी रिश्ते
और ..........जन्म ले नया कोंपल
ताकि मन फिर प्रसन्न हो सके
और द्वन्द जड़वत हो जाये .....................रत्नेश
धारावाहिक 'अफसर बिटिया'का नाम बदलकर 'जासूस बिटिया'कर देना चाहिए. BDO मैम आजकल कुछ ज्यादा ही जासूसी करने लग गयी है. ऐसी जासूसी किसी BDO के द्वारा पहले नहीं देखी. अब धारावाहिक के निर्देशक अति कर रहे हैं.
बहुत कुछ मीडिया के तात्कालिक-दिखाऊ भावुक-वायवीय संस्कारों से प्रेरित होकर हिन्दी की वर्तमान दशा से दुखी को 'हा हिन्दी, हा हिन्दी'का रूदन सुनने में आता रहता है. अक्सरहा लगता है कि यह पढ़े लिखों की चोचलेबाजी भी है, जो खुद अपने बच्चों का भविष्य अंगरेजी माध्यम में देखते हैं, और उपदेश हिन्दी-हित का देते हैं. इसमें मुझे मध्यवर्गीय उत्तरभारतीयों का दोहरा चरित्र दिखता है जिसकी चिंता और कर्म/व्यवहार में धरती और आकाश के बीच का अंतर होता है. लेकिन वह दूर क्षितिज में दोनों के मिलने की काव्यात्मक कल्पना में खुश रहता है, खुद को मागालते में रखे वह इसी खुशी की जद्दोजहद में लगा रहता है! (हिन्दी को कैरियर के रूप में लेने वाले भी इस निष्कर्ष से बावस्ता होते रहते हैं कि 'हिन्दी पढ़ के कौन अपना भविष्य बर्बाद करे!, जिसमें सच्चाई भी है) देखने में आता है कि हिन्दी न आकाश तक छहर सकती है न धरती पर पसर सकती है, यह इसका दुर्भाग्य है. आकाश पर अंगरेजी है और धरती पर लोकभाषाएं. जो धरती पर लोकभाषाएं हैं वे इसके(हिन्दी के) क़दमों के नीचे हैं और यह खुद अंगरेजी के क़दमों के नीचे है. दुर्भाग्य से यह त्रिशंकु स्थिति में है, और कर्मनाशा में नहाना अपन का धर्म/दायित्व/जरूरत/नियति/खुशी!(जो भी शब्द दे लीजिये)
कुछ गलबतियां
आज दोस्तों की बतकहियां , गलबतियां ,चुहल , चुटकियां , कहा सुना सब दिखाते हैं आपको देखिए ……………….
अगर यह संशय हो कि फ़लाने नेता सेकुलर हैं या नहीं, तो उनका डीएनए टेस्ट करवा लेना चाहिये - कोर्ट के आदेश पर। शायद उससे तय हो सके!
बरसात की फ़ूहारों से बीज जाग उठे, अंगडाई ली और कोपलें फ़ूट पड़ी। इस हफ़्ते में धरती हरियाली की चादर ओढ कर सावन की प्रतीक्षा करगी। जब सावनी हिंडोले डलेगें, सावन की फ़ूहारों के साथ पींगे मार मार कर झूलना होगा………… सुप्रभात मित्रों
Animal Farm में कम्युनिस्ट कुशासन के बारे में पढ़ा था - All are equal but some are MORE EQUAL.
अब पूँजीवाद प्रतीक फेसबुक सुझा रहा है - All are friends but some are CLOSE FRIENDS. बोले तो 'more friends' ... मलाई काटने वाले एक ही भाषा बोलते हैं।
इस वक्त बनारस पर आधारित शानदार कार्यक्रम डीडी भारती पर देख रहा हूँ। केदारनाथ सिंह दिख चुके हैं, रांड़, सांड़, सीढ़ी, बीएचयू भी दिख चुके हैं....देखते हैं आगे और कौन नजर आते हैं।
Sudha Upadhyaya
नहीं
जानती कौन हूँ मैं ...
रुदाली या विदूषक ,
मृत्यु का उत्सव मनाती ,
बुत की तरह शून्य में ताकते लोगों में संवेदना जगाती
इस संवेदन शून्य संसार में मुझी से कायम होगा संवाद
भाषा की पारखी दुनिया में मैं तो केवल
भाव की भूखी हूँ .....
फिर फिर कैसे संवाद शून्य संवेदन में भर दूं स्पंदन .....डॉ सुधा उपाध्याय
Mausam mastana....... Chal kahi door nikal jaayein.....
फेसबुक के प्रेमी भी क्या खूब हैं दिन भर इसकी या उसकी दीवार पर चढ़ते-उतरते रहते हैं...बढ़िया है..
चैन से जीने के लिए..."नहीं" बोलना सीखना बहुत ज़रूरी है...हम लोगो का लिहाज करते हुए कभी कभी ना करने में बड़ा हिचकते हैं...ऐसे में लोग हमारा फायदा उठाने लगते हैं... :(
आँखों की नमी का सबब ना पूछो तो बेहतर
भाप की बूंदे है जो पलकों पे उभर आती है
ज़रा मिले तन्हाई तो मचलती है ऐसे
कोरों को छोड़ कर गालों पर उतर जाती है ...सोनल रस्तोगी
जेबकतरे पहले जेबकतरे ही हुआ करते थे। अब तो वे सभी व्यवसायों में पैठ गये हैं। और कुछ तो उल्टे उस्तरे से मूड़ने की काबलियत रखते हैं!
डा.बी. आर. अम्बेडकर ने कहा था ''कांग्रेस एक धर्मशाला के सामान है,जो मूर्खों ,धूर्तों, मित्र और शत्रु, साम्प्रदायिक और धर्मनिरपेक्ष, सुधारवादी और कट्टरपंथी, पूंजीवादी और पूंजीवाद विरोधी सभी लोगों के लिए खुली हुई है.''
राष्ट्रपति पद को लेकर प्रणव मुखर्जी को मिल रहे समर्थन पर डा. अम्बेडकर की उक्ति सटीक बैठ रही है ....
कथित "हिन्दु हृदय सम्राट" माननीय बाला साहेब ठाकरे ने "हिन्दु और राष्ट्रवादी" विचारों को ताक पर रख कर पिछले राष्ट्रपति चुनावों में संकिर्ण क्षेत्रियवाद के तहत 'मराठी'व्यक्ति का समर्थन किया. और देश ने सबसे बेहुदा राष्ट्रपति झेला. एक बार फिर ठाकरे वैसा ही करने जा रहे है. ठाकरे जी, प्रणव जीते या हारे, इतिहास में आप किस तरफ दिखाई देंगे इस पर विचार किया है?
किसी का भी लिया नाम तो आयी याद तू ही तू...
सड़कों पर भागमभाग किसी को सबर नहीं।
काफी दिनों से धीरेश सैनी की खबर नहीं।
बड़बड़ाहटों में छिपे हुए हैं टोटके फिजूल के।
दो अरब से ऊपर हाथ है पर एक नजर नहीं।
मत पूछ कि क्या हाल है मेरा तेरे आगे ...ये देख कि क्या रंग है तेरा मेरे आगे ...
गज़ब कि..........तेरे मेरे रिश्तों से ज़माना अनजान है
शायद आँखें उसकी खुली नहीं और बन्द..दोनों कान हैं
Suresh Chiplunkar
मित्रों… राष्ट्रपति चुनाव में जैसी राजनीति(?) हुई है, वह 2014 का स्पष्ट संकेत है…। और जैसा कि नज़र आ रहा है निम्न दो स्थितियों में से आप कौन सी स्थिति पसन्द करेंगे???
1) 180-190 सीटों के साथ भाजपा "अपनी हिन्दूवादी शर्तों" के साथ सत्ता का दावा पेश करे, जिसे साथ आना हो आए वरना भाड़ में जाए (अर्थात 180-190 सीटों के साथ भाजपा विपक्ष में बैठे… )
2) नीतीश, शरद यादव और मुलायम जैसे "लोटे" कांग्रेस के समर्थन से (यानी सोनिया के तलवे चाटते हुए) सत्ता में दिखाई दें… ताकि जल्दी ही मध्यावधि चुनाव हों…
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प्रमुख सवाल यह है कि, क्या नरेन्द्र मोदी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित करके, जद(यू) जैसे सेकुलर भाण्डों को लतियाकर, भाजपा 180 सीटें भी नहीं ला सकेग़ी???
और मान लो कि "हिन्दुत्ववादी राजनीति" करके यदि 180 सीटें आ गईं तो क्या तब भी भाजपा "अछूत" ही रहेगी???
फ़ेसबुक पर होती बातें
ये एक चालीस का लोकल नहीं है ..........
.Twitter तो .एक चालीस का लोकल है सरबा ....एक कोमा का भी बढोत्तरी होते ही आपको ...कान के नीचे कट्टा लगा के कहेगा ....आप एक ठो कौमा फ़ालतू लगाए हैं ...आप चतुर नहीं है ..और ढेर चतुर बनिए :) । मन तो करता है कै बार कि कहें । काहे बे ई एक सौ चालीस का लिमिट कोन हिसाब से डिसाइड किए हो बे । फ़ेसबुक में ई लफ़डा नय है , इसलिए मित्र सखा दोस्त सब एक से एक अभिव्यक्ति देते हैं , बानगी देखिए
कुछ तुम कहो , कुछ हम सुनें .........
मैं शायर बदनाम .... मैं चला ... मैं चला ... राजेश खन्ना को समर्पित
![]() |
राजेश खन्ना (29 December 1942 - 18 July 2012) |