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Channel: फ़ेसबुक .....चेहरों के अफ़साने
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हिंदी तो उनका कुत्ता भी लिख लेता है .,

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इस देश में हिंदी को गरियाने , धकियाने , धमकाने वाले लोगों को तलाशने के लिए आपको ज्यादा मेहनत नहीं करनी पडती है । न ही ऐसा है कि वे किसी अहिन्दी भाषी प्रदेश या देश से आते हैं , न न न न वे अंग्रेज , ब्रिटिश  , फ़्रांसीसी आदि भी नहीं हैं , वे आपके हमारे बीच के अपने हमारे मित्र/सखा /दोस्त और परिचित ही हैं । भाषा साहित्य कोई भी बुरी खराब या छोटी बडी नहीं होती । हर भाषा का अपना महत्व , स्थान और मान है , सबको बोलने पढने लिखने और समझने वाले लोग हैं इसलिए हर भाषा का सम्मान किया जाना चाहिए । सबसे जरूरी बात ये कि यदि आपको सम्मान करने से कोफ़्त है तो भी कोई बात नहीं किंतु किसी भाषा का अपमान नहीं किया जाना चाहिए । किंतु यहां ये प्रवृत्ति बहुत तेज़ी से पनप रही है कि किसी एक भाषा की दुम पकड के उसका गुणगान करते हुए दूसरी भाषा को तुच्छ ,घटिया, निम्न साबित किया जाए और सोचिए कि यदि वो भाषा खुद राष्ट्रभाषा हिंदी हो तो । जी हां , ठीक समझ रहे हैं आप , ऐसा लगता है मानो किसी ने खींच के एक चाटा मुंह पर लगा दिया हो । अफ़सोस और खीज़ तब ज्यादा होती है जब वो आपके अपने ही दायरे के हों , फ़ेसबुकिए , ब्लॉगर हों ......देखिए कैसे ,"






Photo: जुलाई 2006 में कादम्बिनी में मेरी एक कविता छपी थी जिसका रेम्युनरेशन 200 रुपये का चेक आया था. जिसे मैंने कैश न करा कर संभाल कर रख दिया था. बात दो सौ रुपये की नहीं है बात उस इज्ज़त की है जो कादम्बिनी ने दी. आज कोई कागज़ खोजते हुए यह चेक मिला. मुझे आज तक जितने भी चेक पत्रिकाओं से मिले हैं.. उन्हें मैंने कभी कैश नहीं कराया. ना ही कभी अपने अडोस-पड़ोस में किसी को दिखाया. लोग मज़ाक उड़ाते. पिछले पंद्रह सालों में अब तक जितने भी चेक मुझे मिले हैं सब ऐसे ही संभाल कर रखे हैं... क्यूंकि जो अमाउंट टोटल में बनती है वो ऐसा लगता है कि मेरा ही मज़ाक उड़ा रही है. मुझे क्लास बहुत पसंद है जिस तरह लौरेटो, ला-मार्टिनियर, कार्मल,के.वी., और नैनीताल/शिमला के स्कूलों में पढ़ी लड़कियों का एक क्लास होता है उसी तरह की क्लास पत्रिकाओं में ही छपना पसंद करता हूँ. और जितनी भी क्लास पत्रिकाएं हैं वो पैसा नहीं देतीं. अजीब अजीब पत्रिकाओं और अखबारों में तो मेरा जैंगो (माय लवली डौगी)  भी कविता कर के छपता था. कुछ भी कहो अंग्रेज़ी में कम अज़ कम क्लास तो है और पैसा भी डॉलर्स ($) में. अब तो मैं हिंदी में लिख कर हिंदी पर एहसान करता हूँ..

ये हमारे फ़ेसबुक और हिंदी ब्लॉगर मित्र डॉ.महफ़ूज़ अली जी के कुछ हालिया फ़ेसबुक अपडेट्स हैं जिन्हें पढ कर सच में दुख और अफ़सोस हुआ , आपको कैसा लगा ????

आज चेहरों ने फ़िर कुछ कहा है

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ज़िन्दगी ..................तुम्हे मुझसे गिला और मुझे तुमसे ,फिर भी मुझे तुम्हारी जरुरत है और तुम्हे मेरी !!!!



  • मीडिया पोंकर रहा था - भीड़ नदारद! अब अचानक अण्णा का जादू चलने लगा? क्या जंतर मन्तर पर चाट पकौड़ी खाने जा रहे हैं लोग?




दिल की बात किसके साथ ?
माँ के साथ , पत्नी के साथ या दोस्त के साथ


उसको थी पसंद शानो-शौकत
मुझे लगा, शायद वो मेरी सादगी पे मरती है
उसको थी पसंद, दौलत, पैसा
मुझे लगा उसे सिर्फ चाहिये मेरे जैसा
उसको थी आती, बातें बनानी
मुझे लगा, वो कहती है दिल की
वो तब भी जी सकती थी मेरे बिना,
मुझे लगा वो अब भी करती है याद मुझे...(क्रमशः )

  • टीम अन्ना सरकार की तरह कुटिल नहीं है ....उसकी बातों में कोई फेर नहीं है .....उसको बैकफुट पर लाने के लिए फेर ढूंढे जा रहे है या आयतित किये जा रहे है.....जैसा कोई भूखा बिना किसी भूमिका के दो रोटी मांगता है ठीक अन्ना टीम भी भ्रष्टाचार पर अंकुश और शमन के लिए जनहित में लोकपाल ही तो मांग रही है कोई दिल्ली का ताज तो नहीं ....


पिछले 55 साल से रोज पूजा करता हूं, क्योंकि मेरा यकीन है पूजा पर... जब तक जरूरत होगी टीम अन्ना के पक्ष में सड़कों पर उतरता रहूंगा- अनुपम खेर


मुझे डर है अब तिवारी जी गुस्से में आकर कहीं "आल इंडिया पापा कांग्रेस"की स्थापना न कर दें ( दरसल वे पहले भी अपनी एक अलग कांग्रेस बना चुके हैं... 'तिवारी कांग्रेस' )



  • जो लोग इस आन्दोलन को अभी-भी हलके में ले रहे हैं ... वे संभल जाएं ... इस बार भ्रष्टाचारियों के दांव-पेंच काम नहीं आएंगे ... अन्ना और जनता की जीत होगी ... जय हो ! विजय हो !!

    एक शेर -
    इस बार, लड़ाई... आर-पार की है
    मारेंगे या मर जाएंगे, जय हिंद !!


  • आज समुद्रतट पर गई थी... विशालकाय सागर के सामने ऐसा लगता है हम अस्तित्वविहीन हैं...इन्सान तो सिर्फ कण मात्र है इस प्रथ्वी पर..लेकिन वो हमेशा अपने आप को superior समझता है ...


गुटखा पर प्रतिबंध शराब पर क्यों नहीं ?

क्योंकि गुटखा गरीब खाता है शराब अमीर पीता है ?



तीन दिन वॉक पर नहीं जाओ तो क्या वजन बढ़ जाता है क्या ?



यह आंदोलन है "जनलोकपाल"के लिए, "भीड"के लिए नही । इस आंदोलन का एकमात्र मकसद है "जनलोकपाल"पास करवाना, "भीड"जुटाना नहीँ ॥
फिर 'भीड'को लेकर इतनी हाय-तौबा क्यूं ??
जिसे 'भीड'की इतनी ही पडी है और बस 'भीड'की ही तलाश है, वो एक 'बंदर'और 'डमरु'लेकर सडक किनारे बैठ जाए..भीड खुद-व-खुद खिँची चली आएगी !!!


गीत मेरे, सन्नाटे चीर जायेंगें, तनहाई में ये तेरे संग गायेंगे, गुनगुनाना जब फुसफुसा के इन्हें, तराने लबों पे तेरे तैर जायेंगें, जो न मुस्कुरा उठो गीत मेरे गा कर, जो तडप उटे न दिल गजल मेरी गा कर, तय है कि गीत मेरे तुझे शायर करेंगें, जब जब भी याद मेरे शेर करोगे, जिंदा हम तेरे वजूद में उतर आयेंगें, क्या हुआ जो हमको तुम न पा सके, जो चलोगे राह मेरी, तुममें सदा हम ही नजर आयेंगें

कुछ बातें ख़ामोशी में ही अच्छी लगती हैं .... जैसे 'हम'और 'तुम' .....




मैं बनूँ खुशबू पारिजात की
महकी-महकी खुली पात की
साँसों में तेरी समाई रहूँ
ख्वाबों में तेरे छाई रहूँ
-अर्चना


हाथों में आने से पहले नाज दिखाएगा प्याला,
अधरों पर आने से पहले अदा दिखाएगी हाला,
बहुतेरे इनकार करेगा साकी आने से पहले;
पथिक,न घबरा जाना,पहले मान करेगी मधुशाला।
(बच्चन)
……………आज भी ताजा है बात।नहीं ?

जिन्दगी और मौत दोनो सहमेँ सहमेँ से हैँ ... दम निकलने न पाये तो मैँ क्या करुँ ...।

दीवारों पे कुछ लिख कर छोडा है

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ABP News

आप सभी को ABP Newsकी तरफ से क्रिसमस की शुभकामनाएं..!!

आप सभी को @[153808061303123:274:ABP News] की तरफ से क्रिसमस की शुभकामनाएं..!!

 

 

बेचैन आत्मा shared चित्रों का आनंद's photo.

पानी में सीप जइसे प्यासल हर आत्मा
प्यास बुझी कउने जल से ? ...केहू जाने ना।
ओहरे...

चित्रों का आनंद's photo.

 

 

Anshu Mali Rastogi

सो जा प्यारे नहीं तो ईमानदार आ जाएंगे।

 

 

Awesh Tiwari

आज मिल गए हौजखास चौराहे से पहले की लालबत्ती पर अजहर और आलिया ,एक के पैर में स्टील के जूते तो एक के पास दो बैसाखियाँ ,दोनों अपने कई पहियों वाले स्कूटर पर |भीड़ में तेजी से नई इनफिल्ड से आगे बढ़ रहे एक लड़के ने पटरी से थोडा आगे खड़े एक बच्चे को जैसे ही धक्का मारा ,अजहर तेजी से चिलाया अब्बे साले रुक तो ..आवाज का जोर देखने लायक था ,खैर बच्चे को चोट नहीं आयी ,अजहर की आवाज ने थोडा काम किया आगे खड़े ट्रेफिक पुलिस वाले ने बाकी बचा काम पूरा कर दिया गया |बड़ा शहर कमजोर और ताकतवर का फासला कम कर देता है |

 

 

 

Darpan Sah

खुद को ताउम्र सहन करना
बने रहना ख़ुद के साथ हमेशा
कभी खुद को भूला न पाए
कभी खुद की याद न आये
अपने को खोजना दरअसल घुप्प अँधेरे में सुई खोजने नहीं
वो है अँधेरा खोजना
अपना होना बाकी सब की अनुपस्थिति मात्र है
इससे अधिक कुछ नहीं
इतना सा भी नहीं
कान बंद करके सुना जा सकता है जिसे
आँख बंद करके देखा जा सकता है उसे
महसूस किया जा सकता है जिसका स्पर्श
सारी सम्वेदनाओं को नकार के
असत्य है ये कथन कि मैं उदास हूँ
मैं खुद को खुद ही उदास करता हूँ,
मेरे पास मेरा कोई विकल्प नहीं
मृत्य भी नहीं
आत्महत्या करना भी खुद की उम्मीद करना ही है
अपने को स्वीकारना.
कुछ लिखने या कहने से अधिक बड़ी अभिव्यक्ति
रोना और चार सौ कविताएँ पढना
अन्यथा कुछ भी तो न पढ़ता
और अगर पढ़ता तो
कोई कविता अधूरी पढ़े बिना नहीं छोड़ता
और जब मैं अपने को जानने के बावज़ूद
प्रेम कर सकता हूँ अपने से
तो कोई कारण नहीं कि फिर मैं किसी और से प्रेम न करूं.
बाकी सब तो फिर भी अपेक्षाकृत कम 'मैं'हैं.

 

 

Parveen Chopra

जहाँ तक मुझे याद है लगभग 30 वर्ष पहले के दिनों में घर में एक अदद कमबख्त टेलीफोन की डायरेक्टरी होना एक अच्छा खासा स्टेटस सिम्बल हुआ करता था चाहे घर में किसी को देखनी आये या न आये.....इतनी हिमाकत की डायरेक्टरी में अपना या अपने बापू का नाम देख कर मेट्रिक की मेरिट लिस्ट वाली सूची भी छोटी दिखती थी......इस विषय पर कल विस्तार से लिखूंगा.....अपने यादों के झरोंखों से कुछ इसमें दराज करवाना हो तो बतायेगा।

 

 

Gyan Dutt Pandey

आज कोहरा कम है। माल गाड़ियां कुछ ठीक चलने की सम्भावना है। गाना गुनगुनाने का मन हो रहा है।
वर्ना आई-बकुली हेराई हुई थी!

 

 

 

Sangita Asthana

खुदा हमको ऐसी खुदाई न दे कि अपने सिवा कुछ दिखाई न दे

 

 

Baabusha Kohli

बीती रात लाल टोपी वाला बाबा मेरे तकिये के पास बड़ा क़ीमती तोहफ़ा रख गया. इस तोहफ़े को 'सबक'कहते हैं.
माँ ने कहा - "ब्रह्म मुहूर्त में मिला सबक तेरे जीवन के युद्ध का ब्रह्मास्त्र बने, बाबुषा ! "
कल मेरी 'बड़ी रात'थी. आज मेरा 'बड़ा दिन'है.
[25 दिसम्बर, 13 की डायरी]

 

 

 

Shailja Pathak

बहुत सर्दी है
मखमल के पुराने शाल में
इया अपने को लपेटती
लिपट जाती कम्बखत बेटे की याद
बुझती बोरसी की आग
फिर से सुलग जाती
इया कोई गीत गुनगुनाती
दूर निर्जन रास्तों पर
दौड़ते पैरों के निशाँ है
फिर भागता शहर भी है आगे
एक दस्तक की आस में इया
बार बार बंद सांकल खोलती
उदासी बंद हो जाती
उनकी चुनौटी की डिबिया में
सफेदी बनकर
दर्द बेजुबान होता है इया
लाल बोरसी के करीब रखी हथेलियाँ
अब नही जलती
फफोले सखत पर्दों में है .....

 

 

 

Reeta Vijay

लोकप्रियता की खातिर अपने सिद्धांत न बेचें वरना आप पूरी तरह से दिवालिया हो जाएंगें !!!

 

 

Rashmi Prabha

कुछ लोगों के रिव्यु से मैं इस निष्कर्ष पर आई हूँ कि कुछेक लोग दिमाग से फ़िल्म या जीवन को नहीं देखते, गन्दगी को वे घृणित भाव से नहीं देखते - अचानक मुझे ऐसे लोगों में दिलचस्पी हुई … दिलचस्पी यानि अच्छा लगा कि ये ज़िन्दगी को कितने समभाव से हाहाहाहाहा करके गुजार लेते हैं - प्रॉब्लम तो तब होगी न जब दिमाग लगाया जाए और उसे सॉल्व करने के लिए अपनी जगह से उठा जाये !!!

 

 

Amitabh Agnihotri

दामन पे न कोई छींटे,न खंजर पे कोई दाग फ़राज़ !!!!
तुम क़त्ल करते हो , या कि करामात करते हो ?????

 

 

अरुन शर्मा अनन्त

मौत के साथ आशिकी होगी,
अब मुकम्मल ये जिंदगी होगी,
उम्र का ये पड़ाव अंतिम है,
सांस कोई भी आखिरी होगी,
आज छोड़ेगा दर्द भी दामन,
आज हासिल मुझे ख़ुशी होगी,
नीर नैनों में मत खुदा देना,
सब्र होगा अगर हँसी होगी,
आखिरी वक्त है अमावस का,
जल्द हर रात चाँदनी होगी.

 

 

Niraj Mishra

भूख ही सबसे बड़ा धर्म है, सबसे बड़ा देवता है
कलीमुद्दीन तो भूख की भट्ठी में
खाक हो गया था
..............................नागार्जुन

 

 

Lalit Joshi

कौन कहता है आसमाँ पर छेद नहीँ होता
ओजोन परत को एक दफा देख तो लो यारोँ
:))

रिपब्लिक बातें ……….

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गणतंत्र दिवस की 65 वीं वर्षगांठ पर आप सबको बहुत बहुत बधाई और शुभकामनाएं ………

 

 

 

निरुपमा मिश्रा

गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं ,,,,
देश के लिए भी मशविरा करिये,
गुलामी का जख्म नही हरा करिये

शह और मात के खेल तबाहियाँ,
दाँव-पेंच से तो कभी डरा करिये
मत दान में देना देश की अस्मत
फैसला अब तो सही खरा करिये

जान दे दी देशहित में शहीदों ने,
देश के लिए ही जिया-मरा करिये

कैसे दिखेगी ऐसे जमीनी हकीकत,
कभी धरती पर भी उतरा करिये
-------- निरुपमा मिश्रा "नीरु"

गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं ,,,,<br /><br />देश के लिए भी मशविरा करिये, <br />गुलामी का जख्म नही हरा करिये <br /><br />े<br />शह और मात के खेल तबाहियाँ, <br />दाँव-पेंच से तो  कभी डरा करिये<br /><br />मत दान में देना देश की अस्मत<br />फैसला अब तो सही खरा करिये<br />े<br />जान दे दी देशहित में शहीदों ने, <br />देश के लिए ही जिया-मरा करिये<br />े<br />कैसे दिखेगी ऐसे जमीनी हकीकत, <br />कभी धरती पर भी उतरा करिये <br /> -------- निरुपमा मिश्रा "नीरु"

 

 

 

Dhiru Singh

दूरदर्शन देख रहा हूँ । आज तक मिले सुर मेरा तुम्हारा की टक्कर का एक भी गीत न बन सका । न जाने क्यों ?

 

 

Era Tak

जुल्मों को तेरे हम हँस हँस के सह गये
अब इससे ज्यादा क्या शराफ़त होती है

 

 

Santosh Jha

मेरी आन तिरंगा है
मेरी जान तिरंगा है
मेरी शान तिरंगा है
अभिमान तिरंगा है
स्वाभिमान तिरंगा है

 

 

Shyamal Suman

तहे दिल से तमन्ना है तिरंगा के तरानों का
सभी लोगों को मिल पाते नये अवसर उड़ानों का
मगर अफसोस कितने घर में चूल्हे भी नहीं जलते,
वतन सबका बराबर है नहीं बस कुछ घरानों का

 

 

Geeta Shree

Dushyant Yaad Aa rahe hain gour farmaayiye. Shubhraatri.

 

 

Gyan Dutt Pandey

भारत एक येड़ा प्रधान देश है। जिसपर नॉन येड़ाओं का शासन है।

 

 

Mverma Verma

लोग 'आँख लगने'को
कहते हैं सो जाना
पर
जबसे आँख लगी है
तड़प रहा हूँ मैं सोने को

 

 

Abhay Tiwari

जनता अपना भला नहीं जानती। वो जिस मुद्दे को अहमियत दे रही है, वो असली मुद्दा नहीं है। असली मुद्दा हम जानते हैं। पर जनता हमारी बात नहीं समझती। जनता को शिक्षित करने की ज़रूरत है। जब तक जनता शिक्षित नहीं होती तब तक मैं जनता का विरोध करता हूँ।

 

 

Divya Shukla

न जाने क्या सोच के मुस्कराती
तो कभी आँखे छलछला जाती
दूर छितिज को ताकती नितांत अकेली
वो जीती है कल्पनाओं में वो निजपल
जो कभी आये ही नहीं जीवन में
-----दिव्या

 

सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी

मित्रों, आज खूब नारा लगाइए, शपथ लीजिए, भाषण सुनिए-सुनाइए, झाँकी देखिए और पिकनिक मनाइए। कल से फिर काम पर लगना है। आपके लिए गणतंत्र दिवस शुभ हो। हार्दिक शुभकामनाएँ।

 

 

Vivek Rastogi

क्या बिना नहाये गणतंत्र दिवस देखना/ शामिल होना - अपराध है, कहीं भी संविधान में ऐसा लिखा है ?

 

 

Harpal Bhatia

सौ में सत्तर आदमी फ़िलहाल जब नाशाद है
दिल पे रख के हाथ कहिए देश क्या आज़ाद है।# वंदे मातरम्

 

 

Girish Pankaj

बुलंदी पर रहो बेशक धरा पर भी नज़र रखना
यहीं आना है इक दिन ध्यान में तुम ये खबर रखना
जो कहते हो उसे तुम आचरण में भी रखो साथी
ज़माना सिर बिठाएगा हमेशा ये हुनर रखना
अन्धेरा लाख आ जाये मगर टिकता नहीं ज़यादा
ज़रा-सा हौसला रखना, खयालों में 'सहर'रखना
यहाँ हिम्मत है किसकी जो डिगा दे तुमको ईमाँ से
अरे फौलाद हो तुम, एक फौलादी ज़िगर रखना
हमेशा मैं ही मैं करते हुए यह ज़िंदगी कब तक ?
तुम्हारे साथ हैं माँ-बाप उनकी भी फिकर रखना

रूबरू-हूबहू चेहरे …….

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दोस्तों को पढना जितना भाता है , उन्हें सराहना जितना पसंद आता है उतना ही उनकी कही लिखी को संजोने/सहेज़ने में आनंद आता है । इसीलिए मैंने इसके लिए ये खास कोना बना रखा है , गाहे बेगाहे इस पन्ने पर चुन कर कुछ मोती जो फ़ेसबुक पर जडे होते हैं उन्हें यहां चुन कर सज़ा लेता हूं और इस अंतर्जालीय पन्ने को भी यादगार बना के रख लेता हूं , आज फ़िर कुछ दोस्तों के स्टेटस अपडेट्स को मैंने संभाल कर एक ब्लॉग पोस्ट की शक्ल दे दी है , देखिए …………………….



Anulata Raj Nair .

खिलखिलाती ये लडकियाँ camera देख कर संजीदगी से पोज़ दे रही हैं
ईर्ष्या होती है कभी कभी इनके स्वच्छंद जीवन से ......बस्तर की लोक नर्तकियों के साथ- लोकरंग में !!

खिलखिलाती ये लडकियाँ camera देख कर संजीदगी से पोज़ दे रही हैं :-)<br />ईर्ष्या होती है कभी कभी इनके स्वच्छंद जीवन से ......बस्तर की लोक नर्तकियों के साथ- लोकरंग में !!

 

DrKavita Vachaknavee

बचपन में कई बार अपना स्कूल एक कारा लगा करता था और हम में उससे छूट निकलने की होड़ मची रहती थी।
पर इस आयु में आकर लगता है हमने स्वयं को स्वयं ही कितनी काराओं में बंद कर लिया है और छूट कर जाने के लिए कोई खुला स्थान नहीं। छूटने की होड़ करने वाले भी नहीं हैं।

 

 

डॉ. सुनीता

बसंत की दस्तक
दिल-दिमाग खेत-खलिहान की ओर
जंगल के उबड़-खाबड़ रास्ते
नहीं दीखते शहर में चहुओर
जहाँ तक दृष्टि जाती है
कुहरे की कलुषित मानसिकता की कालिमा
और दिखावटी/बनावटी जिन्दगी के पैरहन
पागल बने जीवन में
अकुलाहट पैदा करने की आहट
पपीहे की लुप्त आवाजें
सरसों से गेहूं की शिकायत
चने का केराय से रार
अरहर का गन्ने से करार
टुकड़े-टुकड़े में यादें दस्तक दे रहीं हैं
शब्द मौन व्रत धारण किये रहे
बावजूद वक्त ने लिख दिए
स्नेह की पहली पाती...!!!
...बस ऐसे भटकते गलियों में...
डॉ.सुनीता

 

 

 

Chandi Dutt Shukla

लिखना, तुम्हें भूलकर तुम तक पहुंचने की साधना है

 

 

किरण आर्य

आईने का सच
बर्दाश्त करना
कब होता है
आसान
आईना
दिखाता है सब
बिना लीपापोती के
पूरी साफ़गोई के साथ.....है ना ...........किरण आर्य

 

 

Anju Sharma

प्यार करने वालो की किस्मत ख़राब होती है,
हर वक़्त इन्तहा की घडी साथ होती है ,
वक़्त मिले तो रिश्तो की किताब खोल के देख लेना ,
दोस्ती हर रिश्ते से लाजवाब होती है ..

 

Rashmi Mishra

कमाल है तेरी यादों का .......कि, मुझे याद आने का शुक्रिया.....
दीद का सुकूं तो मिला ना मुझे,
तेरी गुफ्तगू का ही शुक्रिया.....

 

 

डॉ. सरोज गुप्ता

दिल्ली ऎसी नहीं है ,,,दिल्ली नस्लवादी नहीं है। ………मेरे पूर्वोतर के बहन -भाई ,बेटे -बेटियों इस वारदात के कारणों को क्षेत्रवाद से नहीं जोड़े। ………… दिल्ली सबके लिए एक है ,उसकी एकता ,मित्रता ,भाईचारे को किसी एक घटना से जोड़कर दिल्ली पर कीचड ने उछाले। ……………… मौत दुर्भाग्यपूर्ण है ,,,दिल्ली ने सबको अपनी पलकों की छाँव में बिठाया है। नस्लवाद जाति ,क्षेत्र ,धर्म में नहीं व्यक्ति विशेष के दम्भ में है। …… नेताओं के तो खून में बहता है यह नस्लवाद पर एक दुकानदार को अपनी दुकानदारी से मतलब होता है ,दोनों और से किसी में भी सहनशक्ति होती तो यह दुर्घटना नहीं घटती !

 

 

Shiv Mishra

पत्रकार: "उपाध्यक्ष बनकर क्या उखाड़ लिए?"
राहुल जी: "गड़े मुर्दे."

 

 

Kamna Tak

मैं अकेली नहीं !
उसके आने के बाद कोई भ्रम नहीं
लगने लगा मैं किसी से कम नहीं
ऐसा भी नहीं, अब कोई गम नहीं
मगर आँखें कभी होतीं नम नहीं !
*****
किसी ने चौसर पर फिर बाजी सजायी है
हम भी खेलेंगे, आवाज हमने लगायी है
वो फेंट रहे हैं मोहरें शकुनि के अंदाज में
मगर जानते नहीं अब बारी मेरी आयी है.
- कामना
(कल की कविता का अगला भाग है यह. कुछ शालीन मित्रों ने पूछा है कि 'वो'नया 'नाम'कौन है. बताऊंगी, लेकिन यही अपनी वाल पर- व्यक्तिगत नहीं,सार्वजनिक. कोई पूछे तो)

 

शेइला गुड्डो दादी

कोहरे में लिपटी सहर की धूप गुलाबी सी लग रही है. लिथुआनिया में क्लैपेडा के पास ली गई ये तस्वीर इवेग्निजस ने भेजी है.
ये तस्वीर भी इवेग्निजस ने ही भेजी है. वे कहते हैं, "ये सुबह की ओस की बूंदे हैं."
जॉर्जिया के निनोट्समिंडा शहर में ली गई ये तस्वीर बोरिस कर्स्ल्यान ने भेजी है. इस बार इस दक्षिणी देश में ख़ूब सर्दी पड़ी है.
(चित्र वा टिप्णी बी बी सी से अनुसरण)

 

Richa Pandey

दर्द की झोली यूँ ही भारी ना थी
इतनी नमीं थी वहाँ कोई जगह खाली ना थी
खुद से परेशान हूँ आईने से सवाल क्या पूछूं
तूफानों में जीती हूँ वहाँ हरियाली ना थी
ऋचा

 

 

Richa Srivastava

 

दोस्तों..पिछले दिनों मेरे पडोसी पलाश दा मिले।मनमौजी,अलमस्त,शम्मी दी के चिर प्रतीक्षित,चिर प्रेमी,चिर कुंवारे पलाश दा हम सब के प्रिय हैं। कुछ अस्वस्थ से दिख रहे थे,सो हमने इलाज के लिए मुफ्त की सलाह दे डाली। वो बोले."एई दीदी मनी...की बोलून....हमरा इलाज तो दुनियां का कोई डॉक्टर नहीं करने सकता।"हमने पुछा कि ऐसा क्यूँ कह रहे है दा??बोले..ओहो..जब हमारा एक्स रे और ecg रिपोर्ट डॉक्टर देखा तो बेहोश हो गया।"अरे,,वो क्यूँ"?हमने भी बेहद आश्चर्य से पुछा।तो पलाश दा मीठी हंसी हँसते हुए बोले"ओहो दीदी मनी,तुमि ना बुझलम..अरे मेरे हार्ट के एक्स रे में तुमारी शम्मी दी की फोटो प्रिंट होकर निकली..और ecg के ग्राफ में तुम्हारी शम्मी दी का नाम....अब बोलो doctor बिचारा क्या करने सकेगा...हा!हा!हा!.....................
तब से मैं सोच में पड़ी हूँ की ये इश्क की इन्तहा है,या कल्पनाशक्ति की पराकाष्ठा।
आप का क्या ख़याल है दोस्तों???

 

 

Baabusha Kohli

ख़ाक करो हमें तो फिर ख़ाक उड़ा दिया करो...

 

Vandana Gupta

मन
एक प्यासा कुआँ
जिसकी मुँडेर पर
कोई राहगीर नहीं ठहरता अब
बस इसी तरह
कुछ शब्द ठिठके खड़े हैं
ख्यालों की जगत पर
जाने किस बसंत के इंतज़ार में ?
और ठिठुरन है कि बढती ही जाती है अकडाव की हद तक ………………

 

सनातन कालयात्री

बीते सप्ताह का प्रश्न: आप परफेक्शनिस्ट क्यों हैं?
उत्तर: मेरा कोई इष्ट नहीं, मैं नास्तिक हूँ।
प्रतिप्रश्न: नहीं, नहीं... वह नहीं। मेरा मतलब था कि स्माल डिटेल्स पर भी इतना ध्यान, नाइस प्रेजेंटेशन, क्यों?
उत्तर: ऐसा इसलिये है कि मुझे अपनी सीमायें, कमजोरियाँ पता हैं और मैं उन्हें कभी भूलता नहीं। आप जिसकी प्रशंसा कर रहे हैं, वह असल में उन्हें छिपाने का सायास यत्न भर है।
प्रत्युत्तर: यू आर डिफिकल्ट!
________________
�:(

 

Meena Pandey

औरत
---------
केवल ऊपर वाला
नहीं लिखता
तकदीर औरत की,
नीले आकाश के नीचे भी
लिखी-पढ़ी-बोली
जाती है औरत,
खुली किताब होकर भी
अक्सर
बंद किताबों में
सबसे ज्यादा।
- मीना पाण्डेय

 

 

Shyamal Suman

टूटे हैं कई सपने साकार हो गए
हालात जो भी सामने स्वीकार हो गए
अंजाम सुमन इश्क में गम ही सदा मिले
दौलत समझ के प्यार को बेकार हो गए

 

 

Avinash Das

मैंने तो सर दिया, मगर जल्‍लाद
किसकी गर्दन प यह बवाल पड़ा
ख़ूब रू अब नहीं हैं गंदुम गूं
"मीर"हिंदोस्‍तां में काल पड़ा
[ख़ूबरू = अच्‍छी सूरत वाले, गंदुमगूं = गेहुंआ रंग]

चेहरे की किताब से

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    Abhishek Kumar

    २३ मार्च

    उसकी शहादत के बाद बाकी लोग

    किसी दृश्य की तरह बचे

    ताज़ा मुंदी पलकें देश में सिमटती जा रही झांकी की

    देश सारा बच रहा बाकी

    उसके चले जाने के बाद

    उसकी शहादत के बाद

    अपने भीतर खुलती खिडकी में

    लोगों की आवाजें जम गयीं

    उसकी शहादत के बाद

    देश की सबसे बड़ी पार्टी के लोगों ने

    अपने चेहरे से आंसू नहीं,नाक पोंछी

    गला साफ़ कर बोलने की

    बोलते ही जाने की मशक की

    उससे सम्बंधित अपनी उस शाहदत के बाद

    लोगों के घरों में, उनके तकियों में छिपे हुए

    कपड़ों की महक की तरह बिखर गया

    शहीद होने की घडी में वह अकेला था इश्वर की तरह

    लेकिन इश्वर की तरह वह निस्तेज न था

    - पाश

    २३ मार्च<br /><br />उसकी शहादत के बाद बाकी लोग<br />किसी दृश्य की तरह बचे<br />ताज़ा मुंदी पलकें देश में सिमटती जा रही झांकी की<br />देश सारा बच रहा बाकी<br /><br />उसके चले जाने के बाद<br />उसकी शहादत के बाद<br />अपने भीतर खुलती खिडकी में<br />लोगों की आवाजें जम गयीं<br /><br />उसकी शहादत के बाद <br />देश की सबसे बड़ी पार्टी के लोगों ने <br />अपने चेहरे से आंसू नहीं,नाक पोंछी <br />गला साफ़ कर बोलने की <br />बोलते ही जाने की मशक की <br /><br />उससे सम्बंधित अपनी उस शाहदत के बाद <br />लोगों के घरों में, उनके तकियों में छिपे हुए <br />कपड़ों की महक की तरह बिखर गया<br /><br />शहीद होने की घडी में वह अकेला था इश्वर की तरह <br />लेकिन इश्वर की तरह वह निस्तेज न था <br /><br />- पाश

     

     

     

    Vani Geet

    गणगौर के सोलह दिनों की पूजा चल रही है , रोज मिलना सखी सहेलियों से , आधे घंटे का पूजन और एक घंटे की गप्पे , एक दूसरे से हंसी मजाक , छीटाकशी, चुहलबाजी , शैतानियों से लगी रौनक के बीच अपने पुराने भूले बिसरे किस्से याद करते हुए किसी ने रोचक किस्सा सुनाया . उसको याद कर कल से हंसी के कई दौरे पड़ चुके ---

    हुआ यूँ कि हमारी एक सखी "जीमन "में अपने दोनों छोटे बच्चों के साथ गयी थी, पंगत में बैठकर पत्तल दोनों में परोसा जाने वाला खाना परोसने वालों की फुर्ती पर निर्भर करता है , सो कई बार पत्तलें खाली भी रह जाती है . परोसने वाले का इन्तजार करते उसने पास ही बैठे अपने छोटे बेटे की पत्तल से रसगुल्ला उठा कर खा लिया , अब तो छोटे महाराज पसर गए . खड़े होकर जोर- जोर से चिल्लाकर रोने लगे , मेरी मम्मी ने मेरा रसगुल्ला खा लिया . बेचारी उससे चुप बैठ जाने की मिन्नतें कर शर्मिंदा होती रही , मगर बेटेलाल गला फाड़ कर पूरी पंगत को सुना कर ही माने ... आखिर जब उनकी पत्तल में रसगुल्ला परोसा गया , तब शांत हुए !!

    उस समय उनकी स्थिति का अंदाजा लगाया जा सकता है , मगर इस समय खुल कर हंसा जा सकता है !!

     

     

    Abhishek Cartoonist

    जैसे ही टिकट कटा रो पड़े , आँखों का मोतिया ठीक हो गया … असली -नकली साफ़ साफ़ दिखाई देने लगा .....

     

     

    Dipak Mashal

    सालों पहले सुना ये गीत याद आता है आज फिर-

    'भगत सिंह सुखदेव राजगुरु पहन वसंती चोले

    रात मेरे सपने में आये आकर मुझसे बोले

    व्यर्थ गया बलिदान हमारा व्यर्थ गया बलिदान

    हम भी अगर चाहते तो सम्मान माँग सकते थे

    फाँसी के तख्ते पर जीवनदान मांग सकते थे

    लेकिन कुछ न माँगा हमने माँगा हिंदुस्तान

    व्यर्थ गया बलिदान हमारा व्यर्थ गया बलिदान'

     

     

      दिनेशराय द्विवेदी

       

      पाश ... एक स्मरण ...

      'पाश'एक कवि थे, उन की कविताओं में ही नहीं, उन के दिल में और रोम रोम में क्रान्तिकारी परिवर्तन की लहर दौड़ती थी। उन्हों ने अपनी पत्रिका एण्टी 47 के माध्यम से खालिस्तान विरोधी प्रचार अभियान छेेड़ा और अन्ततः महज 39 साल की उम्र में 23 मार्च 1988 को उनके ही गांव में खालिस्तानी आतंकवादियों की गोली का शिकार हुए।

      नौ सितंबर 1950 को जन्मे पाश का मूल नाम अवतार सिंह संधु था। उन्होंने महज 15 साल की उम्र से ही कविता लिखनी शुरू कर दी और उनकी कविताओं का पहला प्रकाशन 1967 में हुआ। उन्होंने सिआड, हेम ज्योति और हस्तलिखित हाक पत्रिका का संपादन किया। पाश 1985 में अमेरिका चले गए। उन्होंने वहां एंटी 47 पत्रिका का संपादन किया। पाश ने इस पत्रिका के जरिए खालिस्तानी आंदोलन के खिलाफ सशक्त प्रचार अभियान छेडा। पाश कविता के शुरुआती दौर से ही भाकपा से जुड गए। उनकी नक्सलवादी राजनीति से भी सहानुभूति थी। पंजाबी में उनके चार कविता संग्रह.. लौह कथा, उड्डदे बाजां मगर, साडे समियां विच और लडांगे साथी प्रकाशित हुए हैं। हिन्दी में इनके काव्य संग्रह बीच का रास्ता नहीं होता और समय ओ भाई समय के नाम से अनूदित हुए हैं। पंजाबी के इस महान कवि की महज 39 साल की उम्र में 23 मार्च 1988 को उनके ही गांव में खालिस्तानी आतंकवादियों ने गोली मारकर हत्या कर दी। पाश धार्मिक संकीर्णता के कट्टर विरोधी थे। धर्म आधारित आतंकवाद के खतरों को उन्होंने अपनी एक कविता में बेहद धारदार शब्दों में लिखा है- मेरा एक ही बेटा है धर्मगुरु वैसे अगर सात भी होते वे तुम्हारा कुछ नहीं कर सकते थे तेरे बारूद में ईश्वरीय सुगंध है तेरा बारूद रातों को रौनक बांटता है तेरा बारूद रास्ता भटकों को दिशा देता है मैं तुम्हारी आस्तिक गोलियों को अ‌र्ध्य दिया करूंगा..।

       

       

        Santosh Jha

         

        अजब मुकाम पे ठहरा हुआ है काफिला जिंदगी का

        सुकून ढूँढने निकले और नींद ही गंवा बैठे

         

       

          Sonal Rastogi

           

          शहर की सबसे मजबूत लड़की अक्सर रोती है छिपकर क्योंकि रोना कायरता है और उसने किया है हासिल तमगा बहादुरी का, उसके चेहरे पर होनी चाहिए रूखी मुस्कान और दम्भ क्योंकि वीरता के तमगे अट्टहास के साथ जंचते है स्मित के साथ नहीं

          उसकी पीठ कलफ लगी है अकड़ी हुई क्योंकि बहादुरी के साथ अकड़ सहजता से आती है।

          Sonal Rastogi

           

           

          Vandana Gupta

          Vandana Gupta

           

          इश्क की जुबाँ से

          *************

          इश्क की जुबाँ से काला धागा उतरता ही नहीं

          जाने किस मौलवी ने बाँधा है

          कौन सा मन्त्र फूँका है

          जितना खोलने की कोशिश करूँ

          उतना ही मजबूत होता है

          सुना है

          काले धागे में बंधे ताबीज़ों की तासीर

          परेशान आत्माओं की मुक्ति का

          या फिर नज़र न लगने का सन्देश होती हैं

          और

          इश्क की नज़रें भला कब उतरी हैं

          इश्क में तो जिए या मरें

          आत्माएं न कभी मुक्त हुयी हैं

          शायद इसीलिए

          इश्क की जुबाँ पर काले धागों की नालिश हुयी है

           

           

            Abhay Tiwari

            मंद बयार है और अमवारी में पेड़, फलों के बोझ से झुक गए हैं।

            लेकिन कुछ लोग कह रहे हैं कि आंधी चल रही है। सुन रहे हैं कि पटापट गिर रहे हैं न जाने कितने कच्चे और खट्टे आम।

             

             

            Anshu Mali Rastogi

            जसवंतजी, प्लीज न रोएं। टिकट कटने को बेहद सहजता से लें। यह राजनीति है, राजनीति। यहां अक्सर ऐसा ही होता है। यों करें, कोई दूसरा दल ज्वाइन कर लें। इन दिनों हर दल की लाइनें खुली चल रही हैं। उम्मीद है, आपको ठीक-ठाक जगह मिल जाएगी। आपके कने अनुभव की कमी थोड़े न है!

             

             

             

            Suresh Chiplunkar

            अमर शहीद भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को विनम्र श्रद्धांजलि के साथ दिन की शुरुआत...

            ==============

            (हे वीरों... दुःख की बात ये है कि आज भी भगत सिंह की तस्वीर लगाकर कुछ दल्ले, "बहुत क्रांतिकारी, बहुत ही क्रांतिकारी"के नारे लगा रहे हैं, वो भी कान में फुसफुसाकर... - हम "वाकई शर्मिंदा हैं.. बहुत ही शर्मिंदा...")

            सुप्रभात मित्रों...

            अमर शहीद भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को विनम्र श्रद्धांजलि के साथ दिन की शुरुआत... <br /><br />==============<br />(हे वीरों... दुःख की बात ये है कि आज भी भगत सिंह की तस्वीर लगाकर कुछ दल्ले, "बहुत क्रांतिकारी, बहुत ही क्रांतिकारी" के नारे लगा रहे हैं, वो भी कान में फुसफुसाकर... - हम "वाकई शर्मिंदा हैं.. बहुत ही शर्मिंदा...") <br /><br />सुप्रभात मित्रों... <br />.<br />.<br />.

             

             

              Geeta Shree

              नदी करवट लेती है रह रह कर,

              बल पड़ते हैं पानी के पेट में,

              पानी की नाजुक कोख से टीसें गुजरती हैं,

              मुझे डर लगता है अमृत मांगने से !!

              (गुलजार)

               

               

              Shyamal Suman

              पाँच बरस के बाद ही, उनसे होती भेंट।

              मेरे घर की चाँदनी, जिसने लिया समेट।।

             

             

            Mani Yagyesh Tripathi

            2 hrs·

            ध्वनि तरंगो की ताल पर आप हैं विविध भारती के साथ और अगली फरमाइश आई है बारमेंड से जसवंत सिंह, अमृतसर से नवज्योत सिंह सिद्धू, लखनऊ से लालजी टंडन और इलाहाबाद से केशरी नाथ त्रिपाठी जी की,
            गाने के बोल हैं "गैरों पे करम अपनों पे सितम ऐ जान-ए-वफा ये ज़ुल्म न कर"
            इसे डेडिकेट किया है भारतीय जनता पार्टी को

             

             

             

            Pramod Tambat

             

            कांग्रेस भाजपा तो के उम्मीदवारों की तो पूछिए ही मत 'आप'जैसी पार्टियों के उम्मीदवार करोड़पति है। ये संसद में क्या खाक 32 रुपये रोज़ कमाने वालों की नुमाइंदगी करेंगे? देश का वर्तमान राजनैतिक परिदृश्य अमीरों के आपसी संघर्ष को दर्शाता है जिसमें शामिल होकर मध्यमवर्ग, उच्च मध्यमवर्ग हीजडों की तरह ताली बजा रहा है, असल गरीब आम जनसाधारण तो जीने के लिए कल भी एडिया रगड़ रहा था, आज भी रगड़ रहा है और कल भी रगड़ेगा।

             

             

            Manorma Singh

             

            तेईस साल की उम्र क्या होती है, भगत सिंह का जब भी जिक्र होता है उनका ध्यान आता है तो तेईस साल की उम्र भी सामने घूम जाती है , अभी के तेईस साल के लड़कें लड़कियां क्या करते हैं, उनके समय के तेईस साल के लड़कें क्या करते होंगे? मस्ती, हंसी-ठट्टा , दोस्तों के साथ अड्डेबाज़ी , उनकी माँओं का उनके पीछे पीछे होना और उनके पिता का उन्हें नालायक समझना ! लेकिन वो अपनी उम्र से कितना आगे थे, क्या कद था उनकी छोटी सी ज़िन्दगी के विशाल किरदार का! क्या फलक था उनका, क्या दृष्टि थी उनके पास, अपना देश, समाज , धर्म, दुनियां की तमाम क्रांतियों सब पर उनके विचार कितने गंभीर, जिम्मेदार और अपने समय से आगे ! एक ओर तेईस साल के भगत तो दूसरी ओर उनके जैसा कोई नहीं मिलेगा! उनकी बातों की धार और इंक़लाब ---

            क्रांति मानव जाति का एक अपरिहार्य अधिकार है. स्वतंत्रता सभी का एक कभी न खत्म होने वाला जन्मसिद्ध अधिकार है. श्रम समाज का वास्तविक निर्वाहक है!
            ज़िन्दगी तो अपने दम पर ही जी जाती हे … दूसरो के कन्धों पर तो सिर्फ जनाजे उठाये जाते हैं .”
            निष्ठुर आलोचना और स्वतंत्र विचार ये क्रांतिकारी सोच के दो अहम लक्षण हैं.
            व्यक्तियों को कुचल कर उनके विचारों को नहीं मार सकते.
            मैं इस बात पर जोर देता हूं कि मैं महत्त्वाकांक्षा, आशा और जीवन के प्रति आकर्षण से भरा हुआ हूं पर जरूरत पड़ने पर मैं ये सब त्याग सकता हूं, और वही सच्चा बलिदान है!
            जो व्यक्ति विकास के लिए खड़ा है उसे हर एक रूढ़िवादी चीज की आलोचना करनी होगी, उसमें अविश्वास करना होगा तथा उसे चुनौती देनी होगी!
            प्रेमी, पागल, और कवी एक ही चीज से बने होते हैं।
            राख का हर एक कण मेरी गर्मी से गतिमान है मैं एक ऐसा पागल हूँ जो जेल में भी आज़ाद है.
            और आखिर में …
            क्रांति की तलवार विचारों की सान पर तेज़ होती है !

             

             

            अंजू शर्माfeeling meh

             

            या इलाही ये माज़रा क्या है!!!!!!!! गौर कीजिये जब काम बहुत हो और जरूरी हो तो नेट नखरे जरूर दिखाता है! कई जरूरी काम हो नहीं पाये और कई अधूरे रह गए.......

            फ़ेसबुक पर केवल बेसिर-पैर की बातें …..

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            Ajit Gupta

            मैंने देखा है कि फेसबुक पर कुछ लोगों की कभी कोई पोस्‍ट नहीं आती लेकिन आपकी पोस्‍ट पर ऊल-जलूल लिखने के लिए सबसे पहले आ धमकते हैं। आप कैसी भी बात लिखें लेकिन ये लोग छिछालेदारी करने से बाज नहीं आते, ऐसा लगता है कि ऐसे लोग फेसबुक पर केवल इसीलिए हैं कि वे बिना सर-पैर की बातें कर सकें। उनका अपना कोई भी दृष्टिकोण या विचार नहीं है। इसलिए ऐसे लोगों को अपने साथ जोड़कर रखना मुझे उचित नहीं लग रहा है। क्‍या ऐसे लोगों को ब्‍लाक कर दिया जाए?

             

             

            प्रवीण 'सुनिये मेरी भी'

            एक मित्र ने पोस्ट लगाई और अनेकों अन्यों की तरह मुझे भी टैग कर दिया उसमें, एक फोटो थी तीन सिगरेट पीती लडकियों की और उन (नई सदी की नारी) पर एक कविता... उन लड़कियों को दुश्चरित्र बताती टिप्पणियों की भीड़ लग गई... मुझे याद आये अपने गाँव, जहाँ औरतें हुक्का गुड़गुड़ाती हैं, घर के पुरुष सदस्यों से माँग/ मँगवा कर बीड़ी पीती हैं और कोई तम्बाकू पीने की वजह से उनके चरित्र पर लांछन नहीं लगाता... वैसे यह कौन सी मानसिकता है मित्रों, कि सिगरेट पीता लड़का तो माचो हीरो या इंटेलेक्चुअल और सिगरेट पीती लड़की दुश्चरित्र ?

             

             

            Padm Singh

            अमेठी और राय बरेली वालों ने तो 'हाइली क्वालिफाइड'सांसदों को चुन कर दिल्ली भेजा था लेकिन

             

            संतोष त्रिवेदी

            सुनते हैं कि कबीर और तुलसी के नये उत्तराधिकारी आ गए हैं। अब समाज और देश का विकास होकर रहेगा

             

             

             

            अनूप शुक्ल

            सभी का खून शामिल है यहां की मिट्टी में,
            किसी के बाप का हिन्दुस्तान थोडी है।

            -राहत इन्दौरी

             

             

            DrArvind Mishra

            कबीर और तुलसी कितना पढ़े थे भाई जो आज भी उनके बिना कोई सिलेबस पूरा नहीं होता ?
            मसि कागज़ छुयो नहीं कलम गही नहि हाथ
            बुद्धि विवेक भैया लोगों औपचारिक शिक्षा का मुहताज नहीं है !

             

             

             

            Lalit Sharma

            देखा गया है कि चाय से अधिक गरम केतली होती है। मंत्री बनने के बाद उसके भाई-भतीजे रिश्तेदार उससे बड़े मंत्री हो जाते हैं और यहीं से भ्रष्टाचार की शुरुवात होती है। नमो ने माना है कि समस्त भ्रष्टाचारों की जड़ भाई-भतीजावाद है, उन्होने ने अपने मंत्रियों को जो निर्देश दिए वो काबिल-ए-तारीफ़ हैं। अब देखना है कितने मंत्री इस निर्देश पर अमल करते हैं।

             

             

             

            टी एस दराल

            हमे तो समझ मे नहीं आता कि :

            * ये टैग करना क्या होता है ?
            * लोग टैग क्यों करते हैं ?
            * इसके क्या फायदे या नुकसान हैं ?

            ज़रा बताइये तो !

             

             

            दिनेशराय द्विवेदी

            बात ये नहीं कि बीजेपी में कोई अच्छा शिक्षाविद नहीं है। पर ज्यादा पढ़ा लिखा खुराफात भी ज्यादा करता है। खुराफाती शिक्षाविद से बारहवीं पास शिक्षामंत्री बेहतर है।

             

             

            Shivam Misrafeeling human

              "मैं झुक गया तो वो सज़दा समझ बैठे;
            मैं तो इन्सानियत निभा रहा था,
            वो खुद को ख़ुदा समझ बैठे।"

             

             

            Ashok Gupta

            फैजाबाद अयोध्या ...भगवान् राम की नगरी ...कभी बिजली जाती नहीं | आएगी तब न जायेगी ...काश !.............................................................................

             

             

            अनूप शुक्ल

              "हमारे देश की शिक्षा नीति रास्ते में पड़ी कुतिया है। इसे जब किसी का मन आता है, दो लात लगा देता है।"

            -स्व. श्रीलाल शुक्ल लिखित उपन्यास 'रागदरबारी'से

             

             

            Raja Kumarendra Singh Sengar

              स्मृति ईरानी की शैक्षिक योग्यता पर उठे विवाद को सार्थक दृष्टि से देखने की जरूरत है..
            यदि उनकी शैक्षिक योग्यता मंत्री पद के अथवा मानव संसाधन मंत्री हेतु उपयुक्त नहीं है तो......
            अब राष्ट्रपति... राज्यपाल.... मंत्रियों... सांसदों... विधायकों आदि सहित अन्य संवैधानिक पदों हेतु शैक्षिक योग्यता का... अधिकतम आयु का निर्धारण किया जाना चाहिए....
            राजनैतिक सुधार हेतु एक कदम इस ओर भी उठाया जाना चाहिए....

             

             

            Prabhat Ranjan

            बड़े-बड़े घोटाले पढ़े-लिखे लोगों ने ही किए हैं!

             

             

            श्याम कोरी 'उदय'

             

            "यदि स्मृति ईरानी अंगूठा छाप होतीं तब भी बहस का कोई औचित्य नहीं होता क्योंकि हमारे संविधान में ये कहीं नहीं लिखा है कि कोई अंगूठा छाप मंत्री या प्रधानमंत्री नहीं बन सकता !"

             

             

             

            Shyamal Suman

             

            सभी के जिन्दगी में इक मुहब्बत की कहानी है
            कोई बनता कभी राजा कोई राजा की रानी है
            मगर होते सुमन घायल मुहब्बत में सभी कैसे
            निशाना भी लगाते फिर दिखाते यह निशानी है

             

             

             

            Vineet Kumar

             

            मेरी मां की बेनिटी बॉक्स खरीदी नहीं होती. ग्रोवरसन्स नाम की ब्रा की एक कंपनी होती जो कि अभी भी है..उसके बेहद खूबसूरत और मजबूत डब्बे होते. मां की बिंदी, छोटा सा आइना, फ्रेस्का टेलकम पाउडर, आइब्रो और साथ में बिको टर्मरिक की ट्यूब होती.
            मां जब शाम को घर का सारा काम करके सिंगार करती तो आइब्रो छोड़कर बाकी चीजें मुझे भी लगाती.

            शाम को जब मैं दोस्तों के साथ खेलने जाता जिसमे कि एकाध लड़के को छोड़कर मेरी बहनें और उनकी सहेलियां ही होती तो सब यही कहती- तुमने भी विक्को लगाए हैं. दूसरी कहती- इसकी मम्मी ने लगा दिए हैं. लेकिन कोई नहीं कहता कि इसने लड़कियोंवाली क्रीम लगाए हैं. विक्को लड़कियोंवाली क्रीम नहीं थी..मेरी तो छोड़िए, पापा काम काम भी इसी बेनिटी बॉक्स से चल जाता, बस अलग से ओल्ड स्पाइस की जरूरत पड़ती..

            आज सैन्दर्य प्रसाधन के दम पर मर्द बनाने/दिखने की जो होड़ है और अपने को लड़कियों से अलगाने और उसके लिए नयनचारा( eye candy) बनने की बेचैनी, सोचता हूं तो लगता है- हमारा बचपन कितना प्रोग्रेसिव रहा है.

             

             

            Khushdeep Sehgal

             

            देश में ऐसी कोई बाध्यता नहीं है कि मंत्री बनने के लिए किसी न्यूनतम शैक्षणिक योग्यता की ज़रूरत होती है...इसलिए स्मृति ईरानी का एचआरडी मंत्री बनना सांविधानिक दृष्टि से गलत नहीं है..लेकिन यहां इससे बड़ा सवाल ये है कि स्मृति ने चुनाव आयोग को अपनी शिक्षा को लेकर दो अलग अलग बातें बताई हैं...2004 में उन्होंने दिल्ली में चांदनी चौक से लोकसभा चुनाव लड़ा था तो अपने हलफनामे में कहा था कि उन्होंने दिल्ली यूनिवर्सिटी के स्कूल ऑफ कॉरेस्पॉंडेस से 1996 में बीए कम्पलीट किया था...अब 2014 में स्मृति ने अमेठी से चुनाव लड़ा तो अपने हलफनामे में कहा कि उन्होंने 1994 में दिल्ली यूनिवर्सिटी के स्कूल ऑफ ओपन लर्निंग से बीकॉम का पार्ट वन (फर्स्ट ईयर) पूरा कियां था...पार्ट वन कोई डिग्री नही होती, इसलिए इस हिसाब से उनकी शैक्षणिक योग्यता बारहवीं है...खैर उनके मंत्री बनने पर कोई सवाल नहीं, सवाल इस बात पर कि उनकी कौन सी बात सच है...2004 वाली या 2014 वाली...अगर कोई एक बात गलत है तो उन्होंने चुनाव आयोग को गलत जानकारी देने का अपराध किया है...अब इस पर चुनाव आयोग ही कोई फैसला ले सकता है....

             

             

            ऋता शेखर 'मधु'

             

             

            पलकों तले ख्वाब सजाए रखना
            कोमल जज्बात जगाए रखना
            यथार्थ का धरातल है बड़ा कठोर
            अशकों के मोती छुपाए रखना
            सबकुछ ही मिले मुमकिन तो नहीं
            जो मिल गया वो बचाए रखना
            समुन्दर में लहरें आती ही रहेंगी
            मजबूती से साहिल टिकाए रखना
            आँधियों ने किसी को भी छोड़ा नहीं
            दीपक की लौ को जलाए रखना
            ......ऋता

             

            पलकों तले ख्वाब सजाए रखना<br />कोमल जज्बात जगाए रखना<br />यथार्थ का धरातल है बड़ा कठोर<br />अशकों के मोती छुपाए रखना<br />सबकुछ ही मिले मुमकिन तो नहीं<br />जो मिल गया वो बचाए रखना<br />समुन्दर में लहरें आती ही रहेंगी<br />मजबूती से साहिल टिकाए रखना<br />आँधियों ने किसी को भी छोड़ा नहीं<br />दीपक की लौ को जलाए रखना<br />......ऋता

             

             

             

            Sumit Pratap Singh


            स्मृति ईरानी के कम उम्र पर कैबिनेट मंत्री पद सँभालने को लेकर चर्चा का बाज़ार गर्म है। लोगों को यह आपत्ति है कि उनकी बजाय किसी बूढ़े खूसट को यह पद क्यों नहीं सौंपा गया। कुछेक उनके 12वीं पास होते हुए भी कैबिनेट मंत्री बनने पर तंज कस रहे हैं। मैंने कई ऐसे लोग देखे हैं जो कम आयु व कम पढ़े-लिखे होकर भी अपनी कार्यकुशलता से लोगों को अचंभित करते हैं। स्मृति ईरानी को हमने संसद व विभिन्न टी.वी. चैनलों पर वक्तव्य देते हुए अथवा बहस में भाग लेते खूब देखा व सुना है। आप ही बताइए क्या वो किसी भी कोण से मंत्री पद संभालने में अक्षम दिखीं। कुछेक सेक्युलर मानसिकता के मूर्ख मानव अपने-अपने दलों का मोदी नामक सुनामी में सफाया होने के उपरांत खीजकर स्मृति ईरानी को मंत्री पद दिए जाने को मोदी जी व स्मृति के बीच गलत सम्बन्ध होने का हवाला दे रहे हैं। यह उनकी सड़ी मानसिकता को प्रदर्शित करता है। जैसा वे अपने आकाओं को अब तक देखते आये हैं वैसे ही उन्हें सभी जन दिखाई देते हैं। नमो को चाहनेवालों से निवेदन है कि वे इन मूर्खों के बहकावे में न आयें। हमने नमो पर इतना विश्वास करके उन्हें देश की सत्ता की चाबी सौंपी है तो इतना यकीन भी रखें कि वो जो फैसला लेंगे वह अपने देश के लिए उचित ही होगा।

             

             

            Anshu Mali Rastogi

             

            बाबा जो इत्ते दिनों से दिखाई नहीं दे रहे हैं, कहीं खुद भी डिग्री की जुगाड़ में तो नहीं लगे हैं। इत्ता बड़ा संस्थान चला रहे हैं, कल को किसी ने डिग्री मांग ली तो?

             

             

            Pramod Tambat

             

            देश में सबसे दयनीय हालत यदि किसी क्षेत्र की है तो वह शिक्षा का क्षेत्र है। मानव संसाधन मंत्रालय में किसी अनुभवहीन व्यक्ति को बिठाना न केवल अदूरदर्शितापूर्ण निर्णय है बल्कि यह भाजपा के उन पढ़े-लिखे, अनुभवी और कई दशकों से विरोध की राजनीति कर रहे उन लोगों का भी अपमान है जो शिक्षा के क्षेत्र को शायद कई गुना ज्यादा बेहतर तरीके से समझते है। देश की कीमत पर किसी को उपकृत किया जाना कुछ पचा नहीं साहब।

             

             

            Renu Roy

             

            बिछी थी बिसात,हम खेलते चले गये...
            उफ़ ये जिंदगी ,हमें शतरंज सी लगी ..

             

             

            Srijan Shilpi

             

            जहां तक मैं समझता हूं कि स्मृति ईरानी ने इस बार के लोक सभा चुनाव में अपनी शैक्षणिक डिग्रियों के बारे में सही जानकारी दी है. फिर वह चुनाव हार भी गई.

            ऐसे में उनपर आरोप क्या बनता है? और यदि आरोप सच भी होता तो चुनाव आयोग इस मामले में हारे हुए उम्मीदवार के खिलाफ क्या कार्रवाई कर सकता था!

            जब चुनाव में उम्मीदवारों द्वारा भरे जाने वाले शपथ-पत्रों को ऑनलाइन किए जाने की व्यवस्था नहीं थी, जब उनकी छानबीन नहीं की जाती थी तो उम्मीदवार अपने विवरणों को भरने के मामले में सतर्क नहीं होते थे.

            अब यदि इस चुनाव में सभी उम्मीदवारों द्वारा भरे गए शपथ पत्रों की तुलना पिछले चुनावों के दौरान भरे गए उनके शपथ पत्रों के ब्यौरों के साथ किया जाए, तो ज्यादातर मामलों में विसंगतियां नजर आ जाएंगी, फिर एक Pandora's box खुल जाएगा और किसी समाधान तक पहुंचा नहीं जा सकेगा.

            शैक्षणिक योग्यता से अधिक संपत्ति, मुकदमे और पत्नी संबंधी विवरण के मामले में विसंगतियां अधिक गंभीर प्रकृति की होती हैं.

            आशा है कि इस तरह के विवाद उठने के बाद उम्मीदवार अब शपथ पत्र दायर करते समय अपने सही विवरण देने के प्रति अधिक सचेत रहेंगे.

            फ़ेसबुकिया फ़ागुन

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            ताऊ टीवी चैनल से ताऊ जी से मिला होली का पिरसाद …..ग्रहण करिए

            पिछले कुछ सालों में होली के आसपास लकडी पानी बचाने का घनघोर नारा लगाने का रिवाज़ चल निकला है , तो इसका भी तोड है न म्हारे फ़ोडू के पास , देखिए हमारे सूरमाओं ने होली पे हो हल्ला मचा के रख दिया है ..झेलिए इस फ़ेसबुकिया फ़ागुन को …………….

              
          • DrKavita Vachaknavee
            रंगों से खेले लगभग 15 वर्ष हो गए.... और चाह कर भी खेलना संभव नहीं। यहाँ तो अभी कल व परसों भी हिमपात का दिन है।
            होली आप सब के जीवन में अनन्त खुशियों के रंग भरे।
            अपने मित्रों परिजनों के साथ आप सौ बरस और रंग खेलें और आप पर बीस-पचास रंग हर बरस डलते रहें ... :) रंग भरी शुभकामनाएँ
              
          • Mridula Shukla
            सुबह से होली की धूम रही
            हम एक दुसरे के गालों पर लगा कर
            काले, हरे ,सियाह रंग
            एक दुसरे के चेहरों को कर बदरंग
            नाचते रहे ढोलकी की थाप पर
            ढोलकी भी गाता रहा
            "चिपका ले सैयां फेविकोल से "
            और बेचारा फाग
            दूर उदास खड़ा हमें देखता रहा
            मैंने बात की तो कहने लगा .......................
            अफ़सोस करूँ ये की मुझे भूल गए सब
            या यूँ कहूं की लोग मुझे जानते नहीं
            फाग .....(फागुन मैं होली पर गाया जाने एक विशेष गीत )
            मृदुला
              
          • अजय कुमार झा
            पी के भांग , खा के पुआ , इससे पहिले कि हम हो जाएं लमलेट , और हो जाए लेट,
            आप सबको होली ही रंगारंग मुबारकबाद है हो , अब चाहे घोलट जाए इंटरनेट ,
            साला पिछली तीन दिन से नाटक पसारे हुए ससुरा ..........
              
          • देवेन्द्र बेचैन आत्मा
            होली खेलकर आये तो देखा फेसबुक इतना धीमा चल रहा है कि एक फोटो लोड करने मे आधा घंटा लग जा रहा है। बोर हो गये अपन तो..:(
              
          • Sangita Puri
            बिहार और झारखंड में नॉनवेज खाने की होली आज है .. पूए और मिठाई खाने की कल
          • Anup Shukla
            "रंग बरसे भीगे चुनर वाली"इतने दिनों से बज रहा है कि सही में ऐसा होता तो गोरी को डबल निमोनिया हो गया होता। :)
               
                  • Vandana Singh
                    एक बर्फीली परत हट जाए तो नव निर्माण या नव सृजन की सम्भावना अवश्यम्भावी है ।
                    क्या सचमुच....?
                    शायद होली का उत्सव ऐसी संभावनाओं का आधार है... जिसमें संभावनाओं और संबंधों की पुनर्स्थापना और नव स्थापना के साथ साथ स्वय पर आच्छादित हिम आवरण को त्याग कर एक संतुलन और तादात्म्य स्थापित किया जा सकता है । जीवन में रंग भरे जा सकते हैं ।
                    रंगोत्सव की अशेष शुभकामनाएं.....
                      
              • Chandi Dutt Shukla
                तमाम शोर, हुल्लड़, उल्लास और जोश के बीच उदासी कहीं दूर नहीं जाती। नीचे की ओर मुंह धंसाकर दिल के किसी कोने में कैद भर हो जाती है। जैसे ही, बैठे, अकेले - यादें, तनहाई और उदासी ख़तरनाक तरीके से तलवारें घुमाते आ जाते हैं, कतरा-कतरा चीरने :(
                      •   
                        Pramod Mishra
                        नशेड़ियो आज 28 तारीख की सुबह हो गई होली गई अब तो होश में आ जाओ
                         
              • DrArvind Mishra
                होली के फुटकर संस्मरण
                बात अंतर्जाल युग की ही है। मौसम भी कुछ ऐसा ही खुशनुमा था . एक शहर में कुछ काम था -पहुंचा तो मित्रों ने एक गेट टुगेदर रख लिया . कई उपस्थित हुए मगर किसी की अनुपस्थिति प्रमुख बन गयी .उनका कहना था कि उन्हें लोगों की भीड़ में मिलना पसंद नहीं ....बात आयी गयी हो गयी -फिर बहारे आयीं तो मैं अकेला उसी शहर पहुंचा . वे तब भी नहीं आयीं -फिर बात आयी गयी हुई . काफी बाद में उनसे मैंने पूछा क्या इतना विश्वास नहीं है मुझ पर तो बताया कि नहीं मुझ पर तो पूरा विश्वास है मगर उन्हें खुद पर ही भरोसा नहीं था -कहीं भटक जातीं तो ? लीजिये अब इस बात का भी कोई जवाब है ! :-) इस तरह एक फलसफे का अंत हो गया! :-)

                हिंदी हैं हम ………………फ़ेसबुकनामा

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                FB 712 - 14 सितम्बर - 'हिन्दी दिवस'है !

                 

                Amitabh Bachchan

                FB 712 - 14 सितम्बर - 'हिन्दी दिवस'है !

                 

                ऋता शेखर 'मधु'

                हिन्दी भाषा...

                हिन्दी भाषा में उगी, कविताओं की पौध

                सजे हुए हैं शाख पर, पन्त गुप्त हरिऔध

                पन्त गुप्त हरिऔध, महादेवी जयशंकर

                जायसी कालिदास, रहीम सुभद्रा दिनकर

                तुलसी जी के राम, कृष्णलीला कालिन्दी

                पा उन्नत साहित्य, फूलती फलती हिन्दी

                *ऋता शेखर 'मधु' *

                 

                 

                Kajal Kumar

                इस देश के लि‍ए हिंदी बहुत ज़रूरी है ...

                (जब तक कि‍ मैं ढंग की अंग्रेज़ी बोलना न सीख जाउं)

                 

                 

                Kamlesh Bhagwati Parsad Verma

                हम हिंदी क्यूँ बोलें ??

                जब हिंदी बोलने वालों को निम्न समझ के "महाराष्ट्र'पंजाब"में उनको एक नये उपनाम से बुलाया जाता है।

                जबकि ये लोग अपनी खुद की मार्तु भाषा को बोल चाल के अलावा कहीं भी सम्मान नही देते।

                फिल्मे टीवी सीरियल या गीत ये और इनकी औरतें बच्चे सब हिंदी ही देखतें हैं।

                यह मेरा पंजाब में रह कर 30 साल के अनुभव के आधार पर लिख रहा हूँ।

                यह व्यवहार यहाँ के समाज की विकृत मानसिकता का द्योतक है।।

                 

                 

                डॉ. सुनीता

                सम्पूर्ण देशवासियों को हार्दिक शुभकामनाएँ !!!

                हिंदी दिवस की पूर्व संध्या पर...मुझे याद है आज तक अंग्रेज़ी को छोड़कर बाक़ी कई भाषाओं को लिखना-पढ़ना बेहद पसंद रहा है...मेरी नज़र में मेरी सबसे बड़ी उपलब्धि है... 'ब्रेल'और 'खरोष्ठी'लिपि लिखना और पढ़ना है...भाषा कोई भी हो आदर सम्मान किया जाना चाहिए... लेकिन अपने माँ का निरादर बेहद निंदनीय है...हर भाषा से प्यार कीजिए मगर अपनी माँ को उपेक्षित करके नहीं...

                 

                 

                Prakash Govind

                ========================

                ABP न्यूज़ द्वारा

                हिन्दी दिवस पर ब्लॉगरों का सम्मान

                ========================

                दिल्ली के मुकेश तिवारी को राजनीतिक मुद्दों पर लेखन के लिए

                ------------------------------------------------------------------------------

                इंदौर के प्रकाश हिंदुस्तानी को समसामयिकी विषयों पर लेखन के लिए

                ------------------------------------------------------------------------------

                दिल्ली के प्रभात रंजन को हिंदी साहित्य और समाज पर लेखन के लिए

                ------------------------------------------------------------------------------

                दिल्ली की फिरदौस खान को साहित्य के मुद्दों पर लेखन के लिए.

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                फतेहपुर के प्रवीण त्रिवेदी को स्कूली शिक्षा और बच्चों के मुद्दों पर लेखन के लिए

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                लंदन की शिखा वार्ष्णेय को महिला और घरेलू विषयों पर लेखन के लिए

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                मुंबई के अजय ब्रह्मात्मज को सिनेमा व लाइफस्टाइल पर लेखन के लिए

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                दिल्ली की रचना को महिलाओं से जुड़े मुद्दों पर लेखन के लिए

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                अलवर के शशांक द्विवेदी के विज्ञान के मुद्दों पर लेखन के लिए

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                दिल्ली के पंकज चतुर्वेदी को पर्यावरण मुद्दों के लेखन के लिए

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                Manisha Pandey

                इंसानी दिमाग की किसी भी तरह की बैरीकेडिंग, चौकीदारी खतरनाक है, फिर चाहे चौकीदार दक्षिण खेमे का सिपाही हो, चाहे वाम खेमे का। दिल, दिमाग और अंतरात्‍मा की आजादी में ही उसकी मुक्ति है। हर चश्‍मे से ऊपर उठकर जीवन को देखना, समझना और सबसे पहले खुद को समझना।

                 

                 

                Richa Srivastava

                दोस्तों ,, "हिंदी दिवस"तो हो लिया!!! आइये किसी दिन "फेसबुक"दिवस मनाते हैं। तारीख आप लोग निर्धारित कर के सूचित करिये !!

                 

                 

                Kailash Sharma

                माथे की बिंदी

                देश का मान हिंदी

                सदा चमके.

                ***

                अपना देश

                अपनी ही हो भाषा

                वक़्त की मांग.

                ....कैलाश शर्मा

                 

                 

                Awesh Tiwari

                जानेमन ,तुम्हारा प्यार हिंदी है |

                 

                 

                Anshu Mali Rastogifeeling awesome

                अभी जब मैंने पनबाडी से सिगरेट मांगी तो उसने देने से मना कर दिया। बोला- सर, आज 'हिंदी डे'। आप 'सिगरेट'नहीं 'धुम्रदंडिका'बोलकर मांगे, तभी मिलेगी।

                 

                 

                संजीव तिवारी

                हिन्दी हैं हम ... 'हिन्दी भारत की राजभाषा होगी'. 14 सितम्बर, 1949 को संविधान सभा के द्वारा एकमत से यह संकल्प पारित किया गया. राष्ट्रभाषा प्रचार समिति वर्धा के अनुरोध पर 1953 से इस दिन को पूरे भारत में हिन्दी दिवस के रूप में मनाया जाता है. यह राजनीति को आइना दिखाने का दिन है. 'बिजराने'का दिन है, तुम्हारे नहीं चाहने के बाद भी हमारी हिन्दी समूचे विश्व में छा रही है. @तमंचा रायपुरी

                 

                 

                Sanjay Bengani

                दिमाग को तेज करना है? तो हिन्दी में पढ़िये.

                -यह क्या तुक हुई?

                है ना तुक. बिलकुल है.

                जब आप हिन्दी में पढ़ते है तब आपके दिमाग के दोनो भाग सक्रिय रहते है, ऐसा देवनागरी लिपि में लगने वाली मात्राओं की वजह से होता है, जो दाएं-बाएं और ऊपर-नीचे लगती है. इस कारण पढ़ते समय दिमाग के दोनो हिस्सों को तालमेल के साथ सक्रिय रहना पड़ता है.

                जब हम हिन्दी में पढ़ रहे होते हैं दिमाग के बाएं भाग में इंसुला, कुजिफोर्म गायरस तथा फ्रंटल गायरस सक्रिय होते हैं और दाएं भाग में मिडल फ्रंटल गायरस और ऑक्सिपिटल क्षेत्र सक्रिय होते हैं. जबकि रोमन लिपि में पढ़ते समय केवल मिडल-फ्रंटल गायरस ही सक्रिय रहता है, क्योंकि रोमन सपाट एक तरफ पढ़ी जाती है.

                कहना का तात्पर्य यह है कि बुद्धू मत बनो, हिन्दी पढ़ो

                 

                 

                Anju Sharma

                हिंदी मातृभाषा है। कॉमर्स की पढ़ाई और कार्यक्षेत्र की भाषा अंग्रेज़ी रही है। हिंदी कैसे छूटती सारी भरपाई पढ़कर पूरी होती रही। हिंदी से जुड़ाव का असर बच्चों पर भी पड़ा। दोनों बच्चों विशेषकर छोटी बेटी की हिंदी बहुत अच्छी है। आज सुबह से छोटी बेटी शुद्ध हिंदी के वाक्य बोलकर 'हिंदी दिवस'मना रही है। जैसे घर में होनेवाले पेंट का रंग चुनने में हो रही बहस में उसने कहा, 'आप कृपया अपनी बात का आशय स्पष्ट करें।'या 'ओह, फिर से धूल होगी। अर्थात हमारा सफाई का प्रयास तो व्यर्थ ही रहा।'उसकी हिंदी सुनकर सब लोग हंस रहे हैं और मैं समझ नहीं पा रही कि शुद्ध हिंदी बोलती बिटिया की बलैयां लूँ या हिंदी पर हँसे जाने पर दुखी होऊं।

                 

                 

                Sangita Puri

                अपनी भाषा, अपने ज्ञान विज्ञान, अपनी चिंतन शैली, अपनी चिकित्‍सा प्रणाली के नष्‍ट भ्रष्‍ट किए जाने का जिन्‍हें अफसोस नहीं, वही इनकी तुलना उनभाषा, उन विज्ञानों, उन चिकित्‍सा प्रणालियों से यदा कदा करते रहते हैं , जिनके विकास के लिए पूरा विश्‍व तत्‍पर है, अपनी मां और भाई बहन गरीब हो तो अमीर मां की गोद में बैठ कर अमीर भाई बहन बना लेना कोई बहादुरी का काम तो नहीं ... बहादुरी तो अपनी मां और भाई बंधु को अमीर बनाने में है ... अपने देश की व्‍यवस्‍था सुधारिए और इसपर गर्व कीजिए !!

                 

                 

                Rekha Joshi

                हिंदी भाषा में बस रही हमारी जान है

                हिंदी भाषा नही यह हमारी पहचान है

                मिले सदा सम्मान हमारी मातृ भाषा को

                हमारे भारत की आन बान और शान है

                रेखा जोशी

                 

                 

                Alankar Rastogi

                "अच्छा हुआ हिंदी दिवस छुट्टी के दिन पड़ा वरना न जाने कितने बच्चे आज के दिन भी अंग्रेजी स्कूलों में हिंदी बोलने की सज़ा पा जाते."

                 

                 

                Vijay Sappatti

                दोस्तों , मेरे लिए तो रोज ही हिंदी दिवस है . हिंदी बोलता हूँ , हिंदी सुनता हूँ , हिंदी लिखता हूँ , हिंदी पढता हूँ .. हिंदी ही के चलते , लेखन में थोडा सी जगह मिली है . मैं अहिन्दी भाषी हूँ और हिंदी में लिखता हूँ , यही मेरे लिए सबसे बड़े गर्व की बात है . और हां , एक बात और हिंदी में ही सपने देखता हूँ !

                 

                 

                Jitendra Jeetu

                हिंदी के लेखकों को अन्य देसी- विदेसी भाषाओ में पढ़कर हिंदी में लिखना चाहिए। ताकि हिंदी में पाठकों को अच्छा साहित्य उपलब्ध हो सके। प्रकाशकों को इन्हें छापने में उसी तरह तत्परता दिखानी चाहिए जैसी वे अंग्रेजी में दिखाते हैं। हिंदी पुस्तकों के प्रचार- प्रसार के लिए मोबाइल कंपनियों से सहयोग लेना चाहिए। एक मोबाइल केसाथ एक किताब हिंदी में मुफ्त। सरकार के लिए भी गुंजायश है। वह प्रधान मंत्री जन धन योजना की तर्ज पर पुस्तक तन- मन-धन योजना चालू कर सकती है। 500 रूपए से ऊपर खाता खोलने पर साथ में एक किताब। सरकार अपनी खाद्य योजना में किताब भी शामिल करे। पढना भी तो भूख ही है।

                आम जनता भी कुछ करे। पुस्तक को सीधे प्रेम से जोड़ दें। जिससे प्रेम करें उसेखूब पुस्तकें भेंट करें। प्यार भी परवान चढ़ेगा और हिंदी पुस्तक पढने की संस्कृति भी। पुस्तके तो हिंदी में ही होंगी न!

                इसकी अलावा काफी कुछ अपनी हिंदी के लिए किया जा सकता है। लेकिन सभी बातें सिर्फ हिंदी दिवस पर ही क्यों??? पूरा वर्ष हिंदी के उत्थान के लिए नहीं है ??

                 

                 

                अजय कुमार झा

                हिंदी दिवस की बहुत बहुत बधाई और शुभकामनाएं मित्रों , बनिस्पति इसके कि पिछले दिनों प्रशासन की सर्वोच्च संस्थाओं में से एक न्यायपालिका ने हिंदी को फ़िलहाल हाशिए पर रहने देने का ही निर्णय सुनाया , बनिस्पत इसके कि पिछले ही दिनों सर्वोच्च प्रशासनिक पदों के लिए भी हिंदी के साथ दोयम दर्ज़े का व्यवहार होता रहा , बनिस्पत इसके कि पिछले दिनों तो खूब पिटती पिटाती रही है हिंदी और हिंदी वाले भी , अब अपनी सुन लीजीए , बनिस्पत इसके कि , लगभग तीन वर्ष पहले कार्यालय में राजभाषा हिंदी से संबंधित सारे काम काज देखने का भार मुझे अतिरिक्त भार के रूप में दिया गया था ..इत्ता अतिरिक्त हो गया कि ............ आज तक एक भी काम आधिकारिक रूप से करने को मुझे दिया ही नहीं गया , अलबत्ता अपनी धुन में लगे सरकारी कागज़ों में धर धर के हिंदी बिखेरी अब भी बिखेर रहे हैं , तो इत्ते सारे बनिस्पतों के बावजूद हिंदी दिवस की जय हो .......क्यों ...क्योंकि अबकि अपना सबसे बडा मंत्री जबरदस्त हिंदियास्टिक व्यक्ति हैं ..और फ़िर आज तो हिंदी अंतर्जाल के पुराने पथिक हिंदी ब्लॉगरों को एक टीवी चैनल सार्वजनिक रूप से लोगों से रूबरू करवाते हुए उन्हें सम्मानित करने जा रहा है , अब से ठीक आधे घंटे के बाद ..............तो हिंदी जिंदाबाद , ब्लॉगिरी जिंदाबाद ,ब्लॉगर जिंदाबाद ..सबको ढेरम ढेर शुभकामनाएं जी

                न कागज़ गीला होता है न स्याही सूखती है!..(फ़ेसबुकनामा)

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                Rahul Singh

                अपने आसपास ही क्‍या-क्‍या नहीं.

                Indian Cormorant<br />Shankar Nagar, Raipur, Chhattisgarh<br />15 September 2014

                 

                 

                 

                Anshu Mali Rastogi

                बरसों पहले हमारे मोहल्ले में एक सज्जन रहा करते थे नाम था- तोतापरी।

                 

                 

                अजय त्यागीfeeling उलझन

                 

                आय का क्या अर्थ होता है? खर्च या बचत?

                 

                 

                   

                Mukesh Kapil

                आज का दिन काफी अच्छा जा रहा है ।

                1 थोक महंगाई दर पिछले पांच साल में सबसे कम ।

                2 खाप वाले बाबा जी ने दो बच्चो का फरमान दिया ।

                3 गूगल का नया फ़ोन आया

                4 कोंग्रेस के चाउ चाऊ प्रवक्ताओ से छुटकारा मिला।

                5 शाम तक डीजल भी शायद सस्ता हो जाए ।

                बस एक बुरी खबर एक लडकी ने पापा के पेट में चाक़ू मारा ।

                 

                 

                  

                Sonal Rastogi

                तन्हाई गुनाह है या सज़ा ?

                 

                 

                 

                Isht Deo Sankrityaayan

                हिंदी घरों-बजारों से लेकर दफ्तरों-कचहरियों तक सब फैल जाएगी गुरू जी. बस एक काम करिए. हिंदी माता को तनी कविता-कहानी से ऊपर उठाइए. कुछ ऐसा करिए कि हिंदी में विज्ञान, तकनीक, अभियंत्रण, विधि, वाणिज्य आदि उपलब्ध हो सके. ताकि हिंदी पढ़े-लिखे बच्चे भी सम्मानजनक रोज़गार पा सकें. जब हिंदी में इन विषयों पर किताबै नईं है तो बेचारे ऊ अंगरेजी के शरण में जाते हैं और जब उहां अपने को कमजोर पाते हैं तो अपना मत्था पीट लेते हैं. पहले हीन भावना से ग्रस्त होते हैं और फिर अपने मां-बाप और हिंदी को कोसते हैं. तो अगर आप चाहते हैं कि हिंदी आगे बढ़े तो उठिए. हमें मालूम है कि आप ज्ञान-विज्ञान में मौलिक कुछ नहीं कर सकते, तो उठिए अनुवादै करिए. बिना किसी शर्त के. कम से कम कितबिया त ढंग की आ जाएं. उठिए-उठिए. हिंदी को आप बहुत खा चुके. इतना खाए हैं कि अकेले आप ही उसको चर-खा के खत्म होने के करीब पहुंचा चुके. अब ज़रा हिंदी की खाना शुरू करिए.

                 

                 

                 

                Kajal Kumar

                9 hrs· Edited·

                जि‍स स्‍टेटस में भाषाई व्‍याकरण की अशुद्धि‍यां होती हैं,

                उसे तो लाइक करने की भी इच्‍छा नहीं होती (कमेंट की कौन कहे)

                 

                 

                अरुन शर्मा अनन्त

                एक शे'र कुछ ऐसा हुआ.

                जिंदगी ठुकरा चला हूँ,

                मौत के सँग ब्याह करके,

                अरुन शर्मा अनन्त

                 

                 

                टी एस दराल

                अब एक फ़ेसबुक अवॉर्ड भी घोषित किया जाना चाहिये !

                ज़रा बताएं , कौन कौन हैं उम्मीदवार , ईनाम पाने के हकदार ?

                 

                 

                Shivam Misrafeeling concerned

                सलमान खान BigBoss 8 में हवाई जहाज चलाएंगे।

                इस खबर से फुटपाथ वाले खुश हैं और

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                बुर्ज खलीफा वाले दहशत में हैं।

                 

                 

                Shailja Pathak

                प्रेम सांवली लडकी के गुलाबी गाल

                प्रेम गुलाबी आँख के आसमानी सवाल

                प्रेम नरम होठ पर खारा समय है

                प्रेम अंगूठी में कसकता मेला है

                प्रेम लम्बे बालों की रेशमी उलझन

                प्रेम हथेली पर जड़ा चुबंन है

                प्रेम घड़ी की नोक पर चुभता हुआ समय है

                प्रेम तुम्हारा जाता हुआ लम्बा रास्ता

                मेरे इंतजार की ढहती धंसती पगडण्डी

                प्रेम खतम हुई बात पर बोलती तुम्हारी आँखें है

                प्रेम तुम पागल हो को मानती मेरी मुस्कराहट

                 

                 

                Sangita Puri

                यह सत्‍य है कि मच्‍छर के काटने से मलेरिया होता है ... पर कभी मच्‍छरों के बीच सोए रात भर मच्‍छर काटते व्‍यक्ति में भी मलेरिया के लक्षण नहीं दिखते .. और जिसे याद भी नहीं हो कि मच्‍छर ने उसे काटा है मलेरिया हो जाता है ... इसमें H2O की तरह आप कार्य कारण संबंध कैसे दिखाएंगे ... पर यह आधुनिक विज्ञान की बात है तो मानेंगे ही ... और परंपरागत विज्ञान को गणित और भौतिकी जैसे विषयों के मापदंड पर कसेंगे !!

                 

                 

                बेचैन आत्मा

                दर्द की

                बदकिस्मती देखिये

                ढरक जाता है

                फेसबुक में चुपके से

                न कागज़ गीला होता है

                न स्याही सूखती है!

                 

                 

                Manisha Pandey

                जनता के सिर से अच्‍छे दिनों का भूत उतर गया क्‍या ?

                इतनी जल्‍दी ?

                 

                 

                Mani Yagyesh Tripathi

                ईश्वर ने मनुष्य के शरीर में किडनी दो शायद इसलिए दी हैं ताकि एक को बेच के आईफोन 6 ले सकें

                 

                 

                Sujata Tewatia

                चुस्त टीशर्ट मे जब वह आया

                उसके चेहरे पर से गायब था आदमी

                कुहनी मारकर वे मुझे बोलीं-

                बड़ा औरतबाज़ है ,

                बच कर रहना ,

                तुम्हें औरत होने की तमीज़ नही है।

                और इस तरह धकिया दिया उन्होंने

                भाषा मे बनती औरत को

                थोड़ा और नीचे

                और निश्चिंत हो गईं

                कि अब कुछ गलत नहीं हो सकेगा ।

                लेकिन

                औरत होने की शर्मिंदगी लिए बिना वे

                कभी वापस नहीं जा सकीं घर

                ठीक वैसे जैसे हर सुबह लौटती थीं

                एक ग्लानि लिए घर से ।

                 

                 

                 

                अजय कुमार झा

                कयामतें दस्तक देने लगी हैं यदाकदा अब तो ,

                मिट जाने से पहले बस्तियों को खबरदार किया जाए ,

                कहर टूटा है कुछ हमारे जैसे इन्सानों पर फ़िर एक बार,

                कुछ की जाए तदबीर ऐसी ,हर एक को मददगार किया जाए

                .

                तुम्हारा चेहरा मैं रोज़ पढता हूं ………….

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                  फ़ेसबुक पर साथी दोस्त मित्र सक्रिय रहते हैं , अपने अपने मिज़ाज़ और अपने अपने अंदाज़ में , दोस्तों को पढने का भी अपना ही एक मज़ा है और फ़िर इसे तो मुखपुस्तक कहा जाता है , तो मैं इन चेहरों को रोज़ पढता हूं और उनमें से कुछ चुनिंदा को यहां इस कोने पर सहेज़ लेता हूं , देखिए आप भी इन दिलचस्प अभिव्यक्तियों को …………

                  अर्चना चावजी

                  ये बनाया Jyotsana Shekhawatमेडम ने ....

                  ये बनाया Jyotsana Shekhawat मेडम  ने ....

                   

                   

                  Geeta Shree

                  ना मैं सपना हूं ना कोई राज हूं,

                  एक दर्द भरी आवाज हूं..."

                  -दुश्मन हैं हजारो यहां जान के,

                  जरा मिलना नजर पहचान के..

                  कई रुप में है कातिल..."

                  बताइए किस गाने का अंतरा है??

                   

                      Ranjana Singh

                      भैंसिया को चाहे केतनो रगड़ के गमकौआ साबुन सैम्पू से नहलाके, एसनो पौडर काजल लाली लगाके एकदम साफ़ झकाझक संगमरमर के फर्श पर बैठाय दो, छूटते ही वो कादो कीचड में लोटांने निकल जाएगी।

                      जय हो लोकतंत्रीय भैंस/मतदाता की(स्पेशली फ्रॉम उत्त पदेस) !!!

                       

                       

                      Anjule Elujna

                      मौसम बदल गए तो जमाने बदल गए,

                      लम्हों में दोस्त बरसों पुराने बदल गए।

                      दिन भर जो रहे मेरी मोहब्बत की छांव में,

                      वो लोग धूप ढलते ही ठिकाने बदल गए।

                      कल जिनके लफ्ज-लफ्ज में चाहत थी, प्यार था,

                      लो आज उन लबों के तराने बदल गए।

                      एक शख्स क्या गया मेरा शहर छोड़ के,

                      जीने के सारे ढंग पुराने बदल गए।

                      अब वो न वो रहा है, ना मैं ही मैं रहा,

                      सारे ही जिंदगी के फसाने बदल गए।

                      - अज्ञात

                      (शायर का नाम पता हो तो कमेंट बॉक्स में बताते जाईयेगा)

                       

                       

                      Anshu Mali Rastogi

                      जिनपिंग ने मोदी से इच्छा जाहिर की है, एक बार वे भी Comedy Nights with Kapil में जाना चाहते हैं।

                       

                       

                      Anju Choudharyfeeling crazy

                      तैरते तिनके झुलाती धार है

                      डूबता कंकड़ बहुत लाचार है

                      अमीरों और सौन्दर्य की दुनिया में

                      क्यों लगता है यारों बाकि सब बेकार हैं

                      ******:)

                      एवें ही एक ख़याल दिमाग का (मैं तो ऐसी ही हूँ :P)

                       

                       

                      Anulata Raj Nair

                      बुन रही हूँ ज़िन्दगी

                      कि दुःख का ताना और सुख का बाना है

                      तागे टूट टूट जाते हैं...

                      ताने बाने एक से हों

                      तब न मुकम्मल हो कताई !

                      ~अनुलता ~

                       

                       

                      Chandidutt Shukla Sagar

                      - अगर भाषा की बाजीगरी ही सब कुछ होती तो निर्मल वर्मा यकीनन प्रेमचंद और मंटो से बड़े रचयिता होते। इसका मतलब ये नहीं कि निर्मल अच्छे लेखक नहीं हैं, लेकिन उनकी ताकत अलग तरीके की है और लिखने-पढ़ने के इलाके भी हैं ज़ुदा!

                      - कहना ज़रूरी नहीं होता। कभी-कभी सिर्फ दिखा भर देने से बहुत कुछ कहना मुमकिन हो जाता है।

                      - हम अपने समय पर गहरी नज़र रखें और उसे लिख पाएं तो वह लिखना सार्थक है।

                      - नए नज़रिए के बिना कुछ भी लिखना खुद को ही दोहराने जैसा है...

                      __________ हां, मुंबई में भागती लोकल के बीच भी ऐसी बातचीत मुमकिन है !

                       

                       

                      Isht Deo Sankrityaayan

                      मोदी जी उधर सौ सैनिक घिरे हुए हैं और इधर आप प्रोटोकॉल तोड़ने जा रहे हैं. यानी आप फिर उसी रीति-नीति पर आ गए. पहले 'हिंदी-चीनी भाई-भाई'फिर तिब्बत और 62 का मामला. मने ई पटेल की धरती से नेहरू........ क्या ज़रूरत थी यार!

                       

                       

                      Santosh Jha

                      अरे भाई श्री राजनाथ सिंह जी को लव जिहाद का मतलब समझ में आया की नहीं ?

                       

                       

                      Pramod Mishra

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                      कौन हे अपना कौन पराया देखा सब संसार

                      वक्त आये बुरा तो पड़ोसन भी देती हे मार !!

                       

                       

                      सतीश आहुजा

                      दरअसल चीन के राष्ट्रपति जिनपिंग बस यह खुलासा करने भारत आए हैं कि........

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                      असल में भारत में चाइनीज़ फ़ूड की लॉरियों पर जो बन्दे चाऊमीन बना रहे हैं उनमें से 99% नेपाली हैं, चीनी नहीं

                       

                       

                      आचार्य रामपलट दास

                      इधर देखना फिर उधर देखना

                      मेरी छत सुबह दोपहर देखना

                      दिखाना कि यों जैसे देखा न हो

                      झुकाकर तुम्हारा नज़र देखना

                       

                       

                      हंसराज सुज्ञfeeling चिंतन

                      (10) बुद्धि अंतर........

                      नकारात्मक वाणी :-

                      यह उचित अवसर नहीं, जिसका मुझे इंतज़ार है।

                      सकारात्मक वाणी :-

                      यही वो अवसर है जिसे मैं अनुकूल बना सकता हूँ।

                       

                       

                      ब्रजभूषण झा

                      इश्क लडाने या करने के लिये लडकियों की कमी नहीं है, लेकिन ये ज़रूरी नहीं कि जो लडकी तुमसे इश्क करे वह शादी भी करेगी. इश्क का तअल्लुक दिलों से होता है और शादी का तनखाहों से. जैसी तनखाह होगी वैसी बीवी मिलेगी..

                      डा. राही मासूम रज़ा

                      (टोपी शुक्ला से...)

                       

                      Shahnawaz Siddiqui

                      उप-चुनाव के 'नतीजों'को 'अच्छे दिनों'से जोड़ कर नहीं देखना चाहिए... ज़रूरी तो नहीं कि हवा हमेशा सुखद ही लगे!

                       

                       

                      वसुन्धरा पाण्डेय

                      रिश्ते जिंदगी के साथ-साथ नहीं चलते....

                      रिश्ते एक बार बनते हैं फिर जिंदगी साथ चलती है .. .. !

                       

                       

                      Rekha Joshi

                      मत कर तू अभिमान बंदे जीवन है छलावा

                      करनी अपनी छुपा कर मत करना तुम दिखावा

                      जीवन में जैसा करे गा वैसा ही भरे गा

                      पाये सब कर्मो का फल काहे का पछतावा

                      रेखा जोशी

                       

                       

                       

                      Sagar Suman

                      खनक उठती उमीदो की मुझे अब भी सताती है

                      मेरे खेतों को बारिश भी यहाँ अक्सर रुलाती है

                      यहाँ होती सहर फांको बता दो वक़्त की रोटी

                      तुम्हे देखे बिना हमको नहीं अब नींद आती है

                       

                       

                       

                      मनीष के झा

                      बहुत हो गयी दूसरों की नौकरी अब तो गावं वापस लौटकर किसान बन जाने का दिल करता है

                       

                       

                      Nand Lal

                      कल के चुनाव परिणाम के बाद प्रकाश झा की फ़िल्म चक्रव्यूह फ़िल्म का यह गाना बार- बार होठो पर मचल रहा है जिसे जनता की प्रतिक्रिया कह सक्ते है । क्रिया की प्रतिक्रिया को ही गुजरात माडल कहते है "भइया देख लिया है बहुत तेरी सरदारी रे , अब तो अपनी बारी रे न्। महंगाई की महामारी ने हमरा भट्ठा बिठा दिया , चले हटाने गरीबी, गरीबो को हटा दिया , शर्बत की तरह देश को गटका है गटागट-आम आदमी की जेब हो गयी है सफ़ाचट । बिड़ला हो या टाटा , अम्बानी को या बाटा , अपने-अपने चक्कर में देश को है बाटा, हमरे ही खून से इनका ईंजन, चले है धक्काधक , अब तो नही चलेगी तेरी ये रंगदारी रे , अब तो हमरी बारी रे न"और गोरख पाण्डेय का वो मशहूर अभियान गीत जिसे"इंडियन ओसन "पाप ग्रुप ने भी गया "जनता के चले पलटनिया , हिलेले झकह्जोर दुनिया"पर यार इस देश की जनता क्या वाकई इतनी नाराज है , मोदी जी से जनम दिन की खुशी छीन ली । अब किस मुह से चीनी राषट्रपति का स्वागत करेंगे और किस कलेजे से अमेरिका में भाषण देंगे ।

                       

                       

                       

                      ऋता शेखर 'मधु'

                      काग़ज़ की कश्ती में बादशाहत का ताज था|

                      बचपन की हस्ती में मुस्कुराहट का नाज था|

                      शनै शनै ये ताजो'नाज छूटते चले गए,

                      अब वक्त की रवानगी में अनुभव का राज था|

                      *ऋता शेखर 'मधु'*

                       

                       

                      Ghughuti Basuti

                      आसमान में उड़ने वाले धरती पर उतारे जाएँगे!

                      कभी सोचा न था कि पाकिस्तानी राह दिखाएँगे!

                       

                      दिनेशराय द्विवेदी

                      उन्हों ने अपने अंगरेज गुरुओं से सीखा कि रियाया को धर्म और मजहब के नाम पर लड़ा कर कैसे राज किया जाता है। पर वे भूल गए कि अंग्रेजों को चुनाव नहीं लड़ने पड़ते थे।

                       

                       

                      Amitabh Meet

                      आह ! और अब ये मेरा तकियाकलाम सा ही समझिये ....... सुकून यहीं हैं ……

                      'छत पर, आकाश अगोरते ..........

                      "हारे को हरिनाम"………

                      कभी तो सुनेगा, जब नामे "हरि"रखिस है ???

                       

                       

                      Sunita Samant

                      बनना काफ़िर मंजूर है लेकिन....

                      सज़दे उसके नहीं जो रब नहीं मेरा

                       

                       

                      Richa Srivastavafeeling confused

                      कुछ साल पहले हम लोग सिक्किम और अरुणांचल प्रदेश घूमने गए थे। वहां के बच्चे छोटी छोटी टोलियों में ये नारा लगाते घूम रहे थे

                      चाईना का माल लेना नहीं

                      लेने के बाद धोना नहीं

                      धोने के बाद रोना नहीं।

                      आज हमारे देश में चीनी निवेश और चीनी राष्ट्रपति के आगमन की बड़ी चर्चा है ,,तो जाने क्यों ये नारा मेरे कानों में गूँज रहा !!!!

                       

                       

                      Beji Jaison

                      मैं इतनी बार तुमसे इस फूल का जिक्र सुन चुकी थी. चूँकि मैं इसे पहचानती नहीं थी, मेरी कल्पना में हर बार इसे नया रूप मिलता. मैं इसकी पँखुडियों के बारे में सोचती. कभी इसकी गँध के बारे में. तुमने कहा कि पूरा आसमान इन फूलों से खिला हुआ सा था. मैं बादल को इन फूलों के आकार में सोचती. इतने दुर्लभ इन फूलों के साथ उनसे भी दुर्लभ तुम्हारी याद के बारे में सोचती. मैं पूरे साल में उनका एक बार खिलना देखती. तुम्हारी आँखों में आई उस खुशी को पकड़ती. फिर उनका सिंहपर्णी के फूलों की तरह बिखर कर उड़ जाना देखती. हर सफेद फूल में मैं एक झलक इनकी देखती. मोगरा, चम्पा, चमेली, पारिजात... कभी कपास के फूलों में तो रजनीगँधा की खुशबू में. मेरी कल्पना के खाके में इनका आकार बनता बिगड़ता.

                      आज इसका पौधा मेरे हाथ आया. गमले में लगाते हुए कोई रंग रूप मन में नहीं था. था तो बस तुम्हारी आँखें, तुम्हारी नज़र और तुम्हारा सुकून.

                      सुकून जो शायद मेरे फूल के खिलने के इंतज़ार भर करने से हासिल था.

                    व्हाट्स ऑन योर माइंड ????

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                    अनूप शुक्ल

                     

                    "हरिशंकर परसाई को मुकम्मल जानना आसान नहीं है। इसका दावा करना भी असम्भव है। इसमें समाजशास्त्र , सौंदर्यशास्त्र और आलोचना-कर्म की बहुतेरी जटिलतायें हैं।"

                    -ज्ञानरंजन

                     

                     

                    Brajrani Mishra

                    घुघनी+पूड़ी+ठेचा=उत्तम आहार...

                     

                     

                    Rashmi Prabha

                    ई लोगों ने प्रधानमंत्री मोदी के सफाई अभियान की आलोचना की
                    - सब दिखावा है !
                    दिखावा ही सही …
                    आपने और हमने क्यूँ नहीं किया ?
                    हम तो गंदगी फैलाते हैं
                    हमारा तठस्थ कार्य यही है
                    कहीं भी पान का थूक
                    कागज़ के टुकड़े
                    केले के छिलके फेंककर
                    हम शान से आगे बढ़ जाते हैं
                    अपरोक्ष रूप से यही तठस्थ संस्कार
                    अपने आनेवाले कल को देते हैं …
                    मोदी ने बच्चों को एक उचित मार्ग दिखाया
                    'दिखावा है'कहकर
                    अपने बच्चों को बड़बोला ना बनायें
                    एक बार झाड़ू उठायें
                    प्रदूषण को दूर भगायें

                     

                     

                    Vibha Shrivastava

                    ३२ तो केवल न्यूज़ में है .... असल में कितने होंगे ये तो बलि लेने वाली माई ही जानती होगी....

                     

                    Rompi Jha

                    पटना, पटना, पटना....
                    हर तरफ़ से पटना ही पटना, चूहा, दारू, घूस, मुआवज़ा, राजनीति....

                    ओफ्ह!
                    मानव! तुम मानवों की मदद करना!

                    अब सारे रावण जल गए, कोई नहीं आएगा मदद को! सारे रावण लिख्खाड़ होकर फ़ेसबुक पर आ गए साइबर रावण बनकर ।

                     

                     

                    Manjit Thakur

                    राखी सावंत, शाहिद कपूर चुंबन, कॉमिडी शोज़ और बिग बॉस के क्लिप दिखाने वाले नीच स्तर के चैनलों ने कभी भी इस बात पर विमर्श किया कि एक सूबे का मुख्यमंत्री दस साल तक पब्लिक ब्रॉडकास्टर पर बैन क्यों था। नामुरादो तुम रावण लाइव दिखाओ, साई बाबा को दीवार पर दिखाओ, हनुमान के आंसू दिखाओ...पुनर्जन्म की कहानियां, स्वर्ग की सीढ़ी...भूत-प्रेत की कहानियां दिखाओ...बिना ड्राइवर की कार...हर सुबह राशिफल दिखलाओ...कोई प्रश्न नहीं पूछ सकता। लेकिन किसी चैनल को क्या दिखाना है यह उसके ऊपर छोड़ दो।

                     

                     

                    सुनीता शानू

                    सच ही कहा है...
                    राम तुम्हारे युग का रावण अच्छा था।
                    दस के दस चेहरे सब बाहर रखता था।।
                    -प्रताप सोमवंशी

                     

                     

                    Satish Pancham

                    खादी !

                    आनंदम्......आनंदम्....!

                     

                     

                    Gyan Dutt Pandey

                    घर में छुट्टियाँ बिताना आनन्द से मायूसी की ओर एक यात्रा है। उसके अंत में एक मायूस आनन्द हाथ लगता है।

                     

                    सु- मनreading मन

                    हायकु

                    गम की आँधी
                    झर रहे सुमन
                    जीवन तरु ।

                    सु-मन

                     

                     

                    Anshu Mali Rastogi

                    कभी अपने 'गिरेबान'में भी निगाह डालकर देखिए, वहां भी बहुत कुछ 'वायरल'होता हुआ-सा नजर आएगा।

                     

                     

                    Neeraj Badhwar

                    भगवान राम के समय अगर प्रतिभा पाटिल राष्ट्रपति होती तो आज तक रावण की दया याचिका उनके पास सुरक्षित होती और हम कभी भी दशहरा न मना पाते।

                     

                     

                    आचार्य रामपलट दास

                    आदर्शों के देश में , संघर्षों की बात
                    चन्दा की अठखेलियाँ , पानी भरी परात ।

                     

                     

                    दिनेशराय द्विवेदी

                    जला कर तालियाँ बजाने को ही सही
                    हम हर साल हजार रावण बनाते हैं...

                     

                     

                    Anita Maurya

                    जब भी जी चाहा,
                    ढेरों इलज़ाम धर दिया,
                    जब भी जी चाहा,
                    सर पर बिठा लिया..
                    'सच्ची कहो न',
                    'ये'कैसी प्रीत है 'पिया' !!अनुश्री!!

                     

                     

                    Sagar Naharfeeling sad

                     

                    उफ उफ! धर्म के नाम पर इतनी जीव हत्या सिर्फ एक दिन में! खासकर मंदिरों के अन्दर-बाहर!
                    मन इतना खराब है कि शुभकामनाएं देने वाले कितने सारे मित्रों से बचता रहा कि कहीं उन पर गुस्सा ना निकल जाए।

                     

                     

                     

                    अजय कुमार झा

                    इस देश को सम्मोहित कर सकने की हद तक मोटिवेट करने वाली शख्सियतों की बहुत जरूरत रही है हमेशा से , शायद यही वजह है कि परिवर्तन को तत्पर आज का भारत हर नई सोच , नए विकल्प , नए प्रयास को न सिर्फ़ पूरी संज़ीदगी से ले रहा है बल्कि उसे भली भांति आत्मसात करने का मन भी बना रहा है । ऐसे में ये निश्चित रूप से बहुत ही अच्छी बात है कि सभी क्षेत्रों के अगुआ लोग अपने अपने स्तर से आम जनमानस को प्रेरित करने में लगे हैं , अभी हाल ही में नवनियुक्त प्रधानमंत्री का देश को स्वच्छ बनाने के लिए नागरिकों के योगदान का आह्वान फ़िर आमिर खान जैसे लोकप्रिय और प्रयोगधर्मी अभिनेता का सत्यमेव जयते जैसे सार्थक कार्यक्रम के माध्यम से देश के सामने खेल और खिलाडी की भावना की शक्ति और प्रयोग की पहचान , इसी देश के गुमनाम हीरोज़ से मुलाकात , लोगों को बेहतर और सकारात्मक सोचने के लिए विवश कर रहा है , खेल , राजनीति, सिनेमा , कैरियर , ............बदलाव सबमें दिख रहा है

                    चेहरों की बातें .......

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                    फ़ेसबुक पर दोस्त/मित्र/सखा/सहेलियां कमाल के दिलचस्प शब्द, भाव , पंक्तियां , मुक्तक , छंद , शेर , और जाने किन किन विधाओं में खुद को अभिव्यक्त करते हैं उन्हें यहां एक ब्लॉग पोस्ट में सहेज़ते रहने के ख्याल से शुरू किया गया था ये ब्लॉग , लीजीए पढिए आज की कुछ चुनिंदा अभिवक्तियां ...........


                    Neeraj Badhwar क्रिसमिस पर तोहफे बांटने आए सैंटा को उस वक्त हार्ट अटैक आ गया जब राहुल गांधी ने उससे पूछा...अकेले आए हो, बंता कहा हैं?

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                    भाने लगी है मुझको ये कायनात आजकल
                    हो जाती है ज़िंदगी से मुलाकात आजकल।
                    फ़िजाओं में नए गीत बिखरे हैं
                    बहकने लगे हैं मेरे ख़यालात आजकल।
                    रंग सपनों में भर रहे हैं नए
                    मुस्कुराने लगे हैं मेरे ये जज़्बात आजकल।
                    चल पड़े हैं कदम एक नई म॔ज़िल की तरफ
                    तल्ख जमीं पे भी हो रहे मखमली एहसासात आज कल ।

                    भाने लगी है मुझको ये कायनात आजकल हो जाती  है ज़िंदगी से मुलाकात आजकल। फ़िजाओं में नए गीत बिखरे हैं बहकने लगे हैं मेरे ख़यालात आजकल। रंग सपनों में भर रहे हैं नए मुस्कुराने लगे हैं मेरे ये जज़्बात आजकल। चल पड़े हैं कदम एक नई म॔ज़िल की तरफ तल्ख जमीं पे भी हो रहे मखमली एहसासात आज कल ।

                    एक मद्धम सी आंच..... और सीला सीला सा अँधेरा.... शायद कोई ख्याल कहीं सांस ले रहा है!!

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                    शादी कोई बेगानी नहीं होती, अगर अबदुल्ला उमर अबदुल्ला हो, तो।
                    उनकी शादी में खास थे, इनकी शादी में भी खास हैं।
                    उमर अबदुल्ला बेगानी शादी में अबदुल्ला का मुहावरा बदल देंगे जी।

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                    अगर नहीं होती गुफा मैं

                    तो बन जाती नदी एक दिन।

                    जितना डरती रही

                    उतना ही सीखा प्यार करना

                    और गुम्फित हो जाना।
                    गुफाएँ कहीं चलती नहीं
                    इसलिए अगर नहीं होती लता मैं
                    तो बाढ हो जाती क्या एक दिन?
                    एक परी या तितली या पंखुरी
                    सूने गर्भगृह की पवित्र देहरी पर पड़ी हुई।
                    कभी नहीं हो पाती मैं
                    जैसे हो सकती हूँ आज !

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                    गरीब को क्या जवाब दूँ कि वो वोट किसे दे ?

                    गंभीर प्रश्न पूछ लिया गया आज सुबह मुझसे। बहुत सोचकर कह रही हूँ "आप अपना बहुमूल्य मत उसे दें जो वही खाए जो आपको खिलाए , वहीँ पढ़े जहाँ आपको पढ़ाए , वहीं इलाज करवाये जहाँ खुद करवाता हो।

                    और जवाब न मिले तो ये सोचें कि संविधान के अनुसार आपका भी वही मत मूल्य है जो मेरा है और आपकी ही तरह मैं भी असहाय हूँ पर चुप नहीं।

                    जय भारती !

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                    मिसरा जी कह रहे हैं कि मोदी नेपाल और भूटान में भी सरकार बना देंगे..!

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                    20 वर्षो मैं आर्थिक उदारवाद अपने रंग दिखने लगा है , असमान आर्थिक विकास , हद से अधिक महंगाई , आउटसोर्सिंग और आईटी जॉब मैं कमी और ले ऑफ. जीवन शेली तो अमरीकन हो गई है पर समाज और मानसिकता तो हिदुस्तानी ही है ! ३५-40 की उम्र मैं नौकरी मैं अस्थिरता और ई एम् आई की टेंशन ! आगे की राह आसान नहीं !

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                    - जब रोम जल रहा था, तब नीरो बंशी बजा रहा था.
                    - जब भारत महंगाई के बोझ से दबा कुंकुंआ रहा था, तब मालिक ढांढस बंधा रहे थे - अभी और बढ़ेगी.
                    - जब भारत आतंकवाद, बेकारी, महंगाई... से चीख रहा था, तब विद्वान ज्ञान दे रहे थे हमारे पास कोई जादू की छड़ी नहीं है.

                    - अब
                    जब असम जल रहा है, तो बड़े साहब मौज मना रहे हैं.
                    दोपाए गैंडे जनता को रौंद रहे हैं और बड़े साहब हाथी पर चढ़कर गैंडे देख रहे हैं.

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                    शान्ति का भ्रम है
                    इकरंगा आकाश
                    ज्यादा हँसी, दहलाती है दिल
                    चौराहों से प्रेम नहीं, चौराहों पर होना
                    कपड़ों के पास जुबान नहीं पर बोलती है त्वचा
                    सूखे हुए कपड़े खरखरा जाएँ तो चुभते हैं दिल तक !

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                    • बीजेपी का गुड गवर्नेन्स, चुनाव हारने वाली पार्टियों के "गुड़- गोबरनेंस"के दर्द को और बढ़ा गया।

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                      सवेंदनाओ के वेग में जली मोमबत्ती के कतरे
                      बेदर्द जमाना उसके जलने का हिसाब मांगती फिरे 

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                      मसोड़ से बैठे रहते हैं खादी भण्डार वाले। सामान बेचने में तनिक भी उत्सुकता नहीं होती उनमें। समझे गान्धी बाबा?!

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                      जि‍स हि‍साब से एअर-ट्रैफ़ि‍क बढ़ रहा है,

                      एअर-होस्‍टेस मुस्‍कुरा के नमस्‍ते करने के बजाय

                      प्राइवेट बसों के कंडक्‍टरों की तरह धकि‍याया करेंगी -'अबे जाके जल्‍दी से अपनी सीट पे मर.'

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                      दिलों की बस्तियां उजड़ गयी राहे मुहब्बत में
                      फिर भी चैन किसे आराम कहां...
                      मंजुषा

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                      बनारस में स्वच्छता अभियान के पक्ष मे मोदी जी ने अपने ससंदीय क्षेत्र में झाड़ू लगाकर सफाई का अभियान चलाया --एक सराहनीय प्रयास है ---
                      लेकिन फेसबुकीया तालिबानीयो ने उसे -----दिखावे का अभियान बताया। जो सरासर अशोभनीय है । हलांकि मैं भी कुछ मुद्दों पर नरेंद्र मोदी का धुरविरोधी रहा हूँ ।
                      -------अच्छे काम की शरूआत मे मेरा उनको समर्थन हमेशा रहेगा ------
                      _____________________________________

                      आज के लिए इतना ही , फ़िर मिलेंगे दोस्तों  के अपडेट्स के साथ 

                    फ़ेसबुक की कथा बातें

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                      इसमें कोई संदेह नहीं कि व्हाट्स एप्प ने सोशल नेटवर्किंग साइट्स में खुद को सांझा करने के अन्य सभी प्लेटफ़ार्मों को पीछे छोड दिया है किंतु , फ़ेसबुक अब भी रत्ती भर भी निष्क्रिय नहीं हुआ है इसलिए हमारी मित्र मंडली में कही सुनी बातों को यहां इस ब्लॉग पोस्ट पर सहेज़ लेते हैं , देखिए आज की किस्सागोई :

                                          Rashmi Prabha

                                          बेटे के पास हूँ, यहाँ नेट चल नहीं रहा तेजी से,

                                          ठंड इतनी कि सुबह कुहरे में आती है …मैं बोलती हूँ रोज

                                          गुड मॉर्निंग फेसबुक

                                                      Su Diptifeeling curious

                                                      ये ढेर सारी सुन्दर स्त्रियों की तस्वीरों वाली फेक आईडीज़ से मुझे रोज़ रिक्वेस्ट क्यों आ रहे हैं बरखुरदार? क्या मैं इतनी सुन्दर दिख रही हूँ कि रियल न लगकर खुद भी फेक का ही अहसास कराऊँ?

                                                                  Isht Deo Sankrityaayan

                                                                  आतंकियों के परिजनों ने कहा कि आतंकियों पर गोली न चलाएं, हम उनका आत्मसमर्पण करवा देंगे. कर्नल एमएन राय ने उनकी बात मान ली और उन्हें शहीद होना पड़ा. यही आतंकियों के परिजन, भाड़े के टट्टू कहते हैं कि अफस्पा हटाओ और हम उन्हें सिर पर उठाए फिरते हैं - पांच साल से भूख हड़ताल पर, आठ साल से अनशन पर, दस साल से धरने पर...... इन तक रोटी पहुंचनी ही क्यों चाहिए?

                                                                              Prabhat Ranjan

                                                                              इस बार संकल्प के साथ मनोहर श्याम जोशी की साहित्यिक जीवनी लिखने का काम शुरू किया है. उनके बारे यह तथ्य है कि 'हमलोग'के माध्यम से उन्होंने भारत में टेलिविजन धारावाहिक लेखन की शुरुआत की. उनके इस असाधारण कैरियर के बारे में हिंदी में न के बराबर लिखा गया है. यही नहीं 'कुरु कुरु स्वाहा'के रूप में हिंदी का पहला उत्तर आधुनिक उपन्यास भी उन्होंने ही लिखा था. दुआ कीजिए कि हिंदी के चौखटे तोड़ने वाले उस विराट लेखक के व्यक्तित्व पर यह मुकम्मल किताब इस बार पूरी हो जाए.

                                                                                          टी एस दराल

                                                                                          हमने देखा है कि :

                                                                                          जब कोई पुरुष अपनी प्रोफ़ाइल फोटो बदलता है तो ९०% लाइक्स और कमेंट्स पुरुषों के ही होते हैं !

                                                                                          लेकिन जब कोई महिला अपनी फोटो डालती है तो भी ९०% लाइक्स और कमेंट्स पुरुषों के ही होते हैं !

                                                                                          समझ मे नहीं आता कि तारीफ़ करने मे महिलाएं इतनी कंजूस क्यों होती हैं !

                                                                                          या फिर पुरुषों की पसंद का थ्रेशहोल्ड लेवेल बहुत कम होता है !

                                                                                          Bs Pabla

                                                                                          Neerajकी इस बात से पूर्णतया सहमत हूँ कि नूज़ चैनल्स को शहीदों के बिलखते बच्चों की तस्वीरें नहीं दिखानी चाहिए

                                                                                          इतना हौसला नहीं है हममें

                                                                                          यह तो आतंकियों की हौसला अफजाई है

                                                                                                      Shivam Misrafeeling सूत्रों से मिली जानकारी।

                                                                                                      ओबामा साहब ने मोदी जी को ACP प्रद्युम्न से सिफारिश करने के लिए कहा है ताकि दया FBI वालों को दरवाज़ा तोड़ने की 'अपनी कला'सिखा सके।

                                                                                                                  Vani Geet

                                                                                                                  अब ये तय कैसे हो कि सबसे अच्छा मित्र कौन. . .

                                                                                                                  Close friend

                                                                                                                  Best friend

                                                                                                                  Good friend

                                                                                                                  1

                                                                                                                  Shikha Varshney

                                                                                                                  तड़ तड़ा तड़ाक की जोरदार आवाज के साथ

                                                                                                                  खिड़की के शीशों से टकरातीं हैं बारिश की बूँदें

                                                                                                                  जैसे कहतीं हैं "उपस्थित", जताती हैं अपना अस्तित्व,

                                                                                                                  और फिर विनम्रता से, फिसल कर हो जातीं हैं लुप्त।

                                                                                                                  पर छोड़ जातीं हैं अपने निशाँ, साफ़ शीशे की शक्ल में.

                                                                                                                  (शिखा वार्ष्णेय)

                                                                                                                  एक ताज़ा तस्वीर, एक ताज़ा ख़याल...

                                                                                                                  तड़ तड़ा तड़ाक की जोरदार आवाज के साथ <br />खिड़की के शीशों से टकरातीं हैं बारिश की बूँदें <br />जैसे कहतीं हैं "उपस्थित", जताती हैं अपना अस्तित्व, <br />और फिर विनम्रता से, फिसल कर हो जातीं हैं लुप्त। <br />पर छोड़ जातीं हैं अपने निशाँ, साफ़ शीशे की शक्ल में. <br />(शिखा वार्ष्णेय) <br />एक ताज़ा तस्वीर, एक ताज़ा ख़याल...

                                                                                                                              Vandana Gupta

                                                                                                                              बेचैनियों के नाम पते नहीं होते

                                                                                                                              जो खोजने को भेजे जा सकते खोजी दस्ते

                                                                                                                              और हर बार इश्क की खुमारी हो जरूरी तो नहीं न .............

                                                                                                                                          Ranjana Singh

                                                                                                                                          हिंदी पुनः भारत माता के भाल की बिंदी होने की ओर,

                                                                                                                                          नारी गौरव की प्रतिस्थापना का पुनीत प्रयास,

                                                                                                                                          दूरदर्शन की दुर्दशा का अंत,

                                                                                                                                          जनसामान्य के स्वाभाव में स्वच्छता के भाव जगाने और स्थायीकरण का प्रयास,

                                                                                                                                          सरकारी कार्यालयों को अकर्मण्यता मुक्त करने का प्रयास....आदि आदि...

                                                                                                                                          राष्ट्र के प्रगति के साथ साथ गौरव प्रतिस्थापन की ओर किये जाने वाले पुनीत और उत्साहजनक प्रयास हैं ये।कालान्तर में इसके शुभ परिणाम सुस्पष्ट दिखने लगेंगे।

                                                                                                                                    • सनातन कालयात्री

                                                                                                                                      भीतर निर्मम वस्तुनिष्ठा हो और स्वयं का विश्लेषण एक निष्पक्ष न्यायाधीश की तरह चलता रहे तो बहस, तर्क वितर्क, शास्त्रार्थ, डिबेट आदि व्यर्थ हैं। ये समय नष्ट करने के कारण भर हैं। संसार में सबके पास अपने पक्ष में तर्क हैं और हर उस तर्क के सामने उतना ही शक्तिशाली वितर्क खड़ा है। डिबेट और सिद्ध करने की कौन कहे, इलहामी भी कर लेते हैं

                                                                                                                                       

                                                                                                                                       

                                                                                                                                       

                                                                                                                                      आज के लिए इतने ही कतरे पर्याप्त हैं , मिलते हैं फ़िर कुछ दोस्तों के रोचक अपडेट्स के साथ ………………………………..कीप ब्लॉगिंग , कीप स्माइलिंग

                                                                                                                                    चेहरे छुट्टी कहां करते हैं …….

                                                                                                                                    $
                                                                                                                                    0
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                                                                                                                                    हां सच ही तो कहा है मैंने , ये चेहरे कहां छुट्टी करते हैं , दिन रात , सुबह शाम कुछ न कुछ बयां करते ही रहते हैं , जो लब बोलें तो कहानी खामोश रह जाएं तो अफ़साना । फ़ेसबुक इन चेहरो के कहने ;सुनने का अनोखा मिलन स्थल है । अलग अलग मूड में अलग अलग शैली में , अलग अलग तेवर और अंदाज़ में दोस्त जो भी कहते हैं मैं उन्हें सेह्ज़ लेता हूं इन पन्ने के लिए , कल होकर जब कोई दीवाना इस डायरी के पन्ने पलटेगा तो जाने कितने ही दोस्तों के कहे अनकहे , समझे अनबूझे किस्से और अफ़साने देख पाएगा , देखिए आप भी ………….


                                                                                                                                    image



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                                                                                                                                    तस्‍वीर (गूगल से नहीं) खुद क्लिक की हुई.
                                                                                                                                    तस्‍वीर (गूगल से नहीं) खुद क्लिक की हुई.


                                                                                                                                    • Reeta Vijay
                                                                                                                                      गलती किसी की नही होती गलत वक्त मे किए गये गलत फैसले इन्सान को गलत बनाके गलत राह पर छोड़ देते हैं !!!


                                                                                                                                    • Manoj Kumar Jha
                                                                                                                                      पलकों को जिद है बिजलियाँ गिराने की
                                                                                                                                      मुझे भी जिद है वही आशियाँ बनाने की
                                                                                                                                      अगर तुमको जिद है मुझको भुलाने की
                                                                                                                                      तो मुझे भी जिद है तुमको अपना बनाने की


                                                                                                                                    • आचार्य रामपलट दास
                                                                                                                                      रोशनी के लिए घर जलाने पड़े
                                                                                                                                      रूठकर यों इधर से उजाला गया



                                                                                                                                    • Pushkar Anand
                                                                                                                                      उत्तर प्रदेश के दंगो पर राजनीति नहीं होनी चाहिए..! राजनीति करने के लिए गुजरात के दंगे हैँ..!



                                                                                                                                    • Ashvani Sharma
                                                                                                                                      वो सवाल थी
                                                                                                                                      जवाब गायब थे
                                                                                                                                      वो जवाब थी
                                                                                                                                      सवाल गायब थे


                                                                                                                                    • Raghvendra Awasthi
                                                                                                                                      जितना सरल रहने की कोशिश करो
                                                                                                                                      इम्तिहान उतने ही कठिन होते जाते हैं
                                                                                                                                      राघवेन्द्र ,
                                                                                                                                      अभी-अभी

                                                                                                                                    • Rajeev Kumar Jha
                                                                                                                                      हम उस खिलौने की तरह थे और वो उस बच्चे की तरह,
                                                                                                                                      .......जिन्हें प्यार तो था हमसे, मगर सिर्फ खेलने की हद तक..!!


                                                                                                                                    • Danda Lakhnavi
                                                                                                                                      दोहों के आगे दोहे.............
                                                                                                                                      ====================
                                                                                                                                      अंट-संट लफ़्फ़ाजियाँ, हलचल...ऊंटपटाँग।
                                                                                                                                      राजनीति में देखिए, लाल किले के स्वाँग॥
                                                                                                                                      ====================
                                                                                                                                      सद्भावी- डॉ० डंडा लखनवी


                                                                                                                                    • प्रफुल्ल कोलख्यान
                                                                                                                                      ....
                                                                                                                                      फुत्कार उठती है जगत-व्यापी लपट
                                                                                                                                      खंडित महाकाल के अग्नि-गर्भ से
                                                                                                                                      जिसके भीतर
                                                                                                                                      कभी मंदिर बनता है
                                                                                                                                      कभी मस्जिद
                                                                                                                                      कभी गुरुद्वारा
                                                                                                                                      तो कभी गिरजा
                                                                                                                                      अजीब चक्कर है
                                                                                                                                      जैसे जाल में
                                                                                                                                      फँसे परिंदे
                                                                                                                                      फरफराते हैं पंख
                                                                                                                                      पुतलियों में थरथराते हैं प्राण
                                                                                                                                      सोचता है दिमाग
                                                                                                                                      पर स्वार्थ के अवगुंठनों को तोड़
                                                                                                                                      उठता नहीं है हाथ
                                                                                                                                      न्याय-अन्याय
                                                                                                                                      उचित-अनुचित
                                                                                                                                      ज्ञान-अज्ञान
                                                                                                                                      सारे द्वंद्व जल रहे हैं एक साथ
                                                                                                                                      .....


                                                                                                                                    • Kajal Kumar
                                                                                                                                      आडवाणीश्री और सचि‍न को समझना चाहि‍ए,
                                                                                                                                      ज़ि‍द की भी एक उम्र होती है, गांगुली न बनें


                                                                                                                                    • Sonali Bose
                                                                                                                                      "ठहरा है दिल में वो एक हसरत सा बन के.......कि नज़रोँ में है वो एक अश्क़ सा बन के?
                                                                                                                                      लिखती हूँ जिसे तनहाईयोँ में... है कौन ये मेरे जैसा, मिलता है क्यूँ वो अजनबी बन के?''
                                                                                                                                      ...........सोनाली......


                                                                                                                                    • Ashok Kumar Pandey
                                                                                                                                      अपनी ही किसी रचना का यह हिस्सा यों ही
                                                                                                                                      प्लीज़ अनीता...ताने मत दो यार.’ मैं जैसे उठने लगा तो उसने हाथ पकड़कर बिठा लिया. ‘अब अकड़ मुझ पर ही दिखाओगे पंडित जी. लड़कियों के साथ रिक्शे से घूमोगे और पकडे जाने पर थोड़ा टार्चर की इज़ाज़त भी नहीं दोगे तो यह तो ज़ुल्म है जहाँपनाह.’ उसकी आँखें इस क़दर शरारत से भरी हुईं थीं कि मुझे हंसी आ गयी और मैंने उसका हाथ अपने हाथों में लेना चाहा तो उसने सीधे मेरी आँखों में देखते हुए कहा, ‘यह अफसर नहीं मजूर की बेटी का हाथ है साहब. हर किसी के हाथ में यों ही नहीं जाता रहता. और जहां जाता है किसी और के लिए जगह नहीं छोड़ता. आज के बाद उस चुड़ैल के साथ घूमते-फिरते देखा न तो वहीँ चौराहे पर ऐसा तमाशा करुँगी कि एस डी एम साहब ट्रांसफर करा के झाँसी चले जायेंगे.’
                                                                                                                                      कितनी धोखादेह होती हैं आँखें!


                                                                                                                                    • सुनील कुमार प्रेमी
                                                                                                                                      कोई पागल हुआ जाता है किसी की चाह में..और वो दुआ माँगती है कि कब इसे पागलखाने में जगह मिलेगी..

                                                                                                                                    • Mayank Saxena
                                                                                                                                      आप राजेश को भी मार देते हैं और इसरार को भी...आप का गुस्सा इस बात का है कि आप के किसी अपने की जान ले ली गई...और इसीलिए आप किसी और के अपने की जान ले लेते हैं...आप का गुस्सा इसलिए ज़्यादा है कि जिस पर आप गुस्सा हैं उस का मज़हब आप से अलग है...इसलिए आप इंसानियत की हदें पार कर किसी की जान ले लेते हैं...इसके बाद आपको अपने मज़हब पर गर्व होता है...कोई हर हर महादेव का नारा लगाता आता है...तो कोई नारा ए तक़बीर लगाता है...सभी के हाथ खून से रंगे होते हैं और उन में बंदूकें और खंज़र होते हैं...लानत है आपके ऐसे मज़हब पर जो आपको इंसान तक बनना न सिखा पाया...चले हैं आप हिंदू और मुसलमां होने...मुजफ्फरनगर में जो कुछ हो रहा है, उसके पीछे सियासत है...2014 के चुनाव हैं...आप सब ये जानते-समझते हैं....लेकिन फिर भी आप के दिलों में इतनी हैवानियत है कि आप इंसान का ख़ून बहाने का लालच छोड़ नहीं पाते हैं...आप बाद में कह देंगे कि आप को बहकाया गया था...ज़रा सोचिए रोज़मर्रा की ज़िंदगी में तो आप बड़े चालाक हैं...आखिर कैसे कोई आपको किसी खास मौके पर बहका सकता है...जी हां, आप दरअसल अंदर से ऐसे ही हैं...कोई नेता आपका फ़ायदा नहीं उठाता है...आप ऐसे मौकों पर धर्म की आड़ लेते हैं...एक नागरिक के तौर पर दरअसल आप सियासतदानों से अलग नहीं हैं...सियासतदान आप से ही सीखते हैं...और आपको ही संतुष्ट करने के लिए मज़हब की सियासत करते हैं...दिक्कत तो आपके साथ ही है...बाद में सियासत को मत कोसिएगा...क्योंकि हाथ तो आप सभी के रंगे हुए हैं...इंसानियत के ख़ून से...


                                                                                                                                    • Vijay Krishna Mishra
                                                                                                                                      मनमोहन सिंह जी अपनी 'खुली किताब'कृपया कर बंद कर लें, आपकी सरकार की काली करतुते हर कोई पढ़ रहा है ,,,,,,...


                                                                                                                                    • Ajit Singh
                                                                                                                                      बचपन में एक चुटकुला सुना था। एक बड़ा होनहार लड़का था ....... उसने एक ही essay याद किया था .......my favourite teacher .........पर exam में essay आ गया .......बगीचे की सैर ...........पर लड़का बड़ा होनहार था सो उसने essay कुछ यूँ लिखा ....एक दिन मैं सुबह बगीचे में सैर करने गया . वहाँ देखा की जित्तू मास्साब भी सैर करने आये हुए थे ......और जित्तू मास्साब मेरे फेवरिट टीचर है ........और फिर हो गया शुरू और उसने पूरा फेवरिट टीचर वाला इससे चेप दिया ........... hahhhaaaa ....बढ़िया चुटकुला है .....पर चुटकुला है ........पर आज NDTV ने इस से भी ज़्यादा मजेदार चुटकुला सुनाया ............आज एक कार्यक्रम आ रहा था ....महिला सशक्तिकरण पे .......लाडली बिटिया पे ......हमारी बेटियाँ वगैरा वगैरा .............सो हमारे होनहार बच्चे के तरह NDTV ने कार्य क्रम कुछ यूँ दिखाया की 2002 में गुजरात में दंगा हुआ .......और इस इस तरह मुसलामानों को मारा गया .......और फिर इस तरह उन बेचारों को शरणार्थी बन के राहत शिविर में रहना पडा ........इस से होनहार बेटियों की पढाई छूट गयी .....फिर फलानी संस्था ने NGO बना के लड़कियों को पढ़ाना शुरू किया ...एक कोई मास्टर है ....कालिदास .......उसने केंद्र सरका की किसी योजना के तहत ट्रेनिंग ले के लड़कियों को पढ़ाना शुरू किया .......फलानी संस्था मदरसा चलाने लगी .......राज्य सरकार ने कुछ नहीं किया ........जुहा पूरा की गलिया टूटी हुई है .....सडकें गंदी हैं ......मोदी के राज्य में मुसलामानों का शोषण हो रहा है ....बेचारे मुसलामानों पे अत्याचार हो रहा है ........... मुसलामानों का सामाजिक बहिष्कार हो रहा है ......दबा के रखते हैं मुसलामानों को .......

                                                                                                                                    फ़ेसबुकिया फ़ागुन

                                                                                                                                    $
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                                                                                                                                    पिछले कुछ सालों में होली के आसपास लकडी पानी बचाने का घनघोर नारा लगाने का रिवाज़ चल निकला है , तो इसका भी तोड है न म्हारे फ़ोडू के पास , देखिए हमारे सूरमाओं ने होली पे हो हल्ला मचा के रख दिया है ..झेलिए इस फ़ेसबुकिया फ़ागुन को …………….

                                                                                                                                      
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                                                                                                                                    रंगों से खेले लगभग 15 वर्ष हो गए.... और चाह कर भी खेलना संभव नहीं। यहाँ तो अभी कल व परसों भी हिमपात का दिन है।
                                                                                                                                    होली आप सब के जीवन में अनन्त खुशियों के रंग भरे।
                                                                                                                                    अपने मित्रों परिजनों के साथ आप सौ बरस और रंग खेलें और आप पर बीस-पचास रंग हर बरस डलते रहें ... :) रंग भरी शुभकामनाएँ
                                                                                                                                      
                                                                                                                                  • Mridula Shukla
                                                                                                                                    सुबह से होली की धूम रही
                                                                                                                                    हम एक दुसरे के गालों पर लगा कर
                                                                                                                                    काले, हरे ,सियाह रंग
                                                                                                                                    एक दुसरे के चेहरों को कर बदरंग
                                                                                                                                    नाचते रहे ढोलकी की थाप पर
                                                                                                                                    ढोलकी भी गाता रहा
                                                                                                                                    "चिपका ले सैयां फेविकोल से "
                                                                                                                                    और बेचारा फाग
                                                                                                                                    दूर उदास खड़ा हमें देखता रहा
                                                                                                                                    मैंने बात की तो कहने लगा .......................
                                                                                                                                    अफ़सोस करूँ ये की मुझे भूल गए सब
                                                                                                                                    या यूँ कहूं की लोग मुझे जानते नहीं
                                                                                                                                    फाग .....(फागुन मैं होली पर गाया जाने एक विशेष गीत )
                                                                                                                                    मृदुला
                                                                                                                                      
                                                                                                                                  • अजय कुमार झा
                                                                                                                                    पी के भांग , खा के पुआ , इससे पहिले कि हम हो जाएं लमलेट , और हो जाए लेट,
                                                                                                                                    आप सबको होली ही रंगारंग मुबारकबाद है हो , अब चाहे घोलट जाए इंटरनेट ,
                                                                                                                                    साला पिछली तीन दिन से नाटक पसारे हुए ससुरा ..........
                                                                                                                                      
                                                                                                                                  • देवेन्द्र बेचैन आत्मा
                                                                                                                                    होली खेलकर आये तो देखा फेसबुक इतना धीमा चल रहा है कि एक फोटो लोड करने मे आधा घंटा लग जा रहा है। बोर हो गये अपन तो..:(
                                                                                                                                      
                                                                                                                                  • Sangita Puri
                                                                                                                                    बिहार और झारखंड में नॉनवेज खाने की होली आज है .. पूए और मिठाई खाने की कल
                                                                                                                                  • Anup Shukla
                                                                                                                                    "रंग बरसे भीगे चुनर वाली"इतने दिनों से बज रहा है कि सही में ऐसा होता तो गोरी को डबल निमोनिया हो गया होता। :)
                                                                                                                                       
                                                                                                                                          • Vandana Singh
                                                                                                                                            एक बर्फीली परत हट जाए तो नव निर्माण या नव सृजन की सम्भावना अवश्यम्भावी है ।
                                                                                                                                            क्या सचमुच....?
                                                                                                                                            शायद होली का उत्सव ऐसी संभावनाओं का आधार है... जिसमें संभावनाओं और संबंधों की पुनर्स्थापना और नव स्थापना के साथ साथ स्वय पर आच्छादित हिम आवरण को त्याग कर एक संतुलन और तादात्म्य स्थापित किया जा सकता है । जीवन में रंग भरे जा सकते हैं ।
                                                                                                                                            रंगोत्सव की अशेष शुभकामनाएं.....
                                                                                                                                              
                                                                                                                                      • Chandi Dutt Shukla
                                                                                                                                        तमाम शोर, हुल्लड़, उल्लास और जोश के बीच उदासी कहीं दूर नहीं जाती। नीचे की ओर मुंह धंसाकर दिल के किसी कोने में कैद भर हो जाती है। जैसे ही, बैठे, अकेले - यादें, तनहाई और उदासी ख़तरनाक तरीके से तलवारें घुमाते आ जाते हैं, कतरा-कतरा चीरने :(
                                                                                                                                              •   
                                                                                                                                                Pramod Mishra
                                                                                                                                                नशेड़ियो आज 28 तारीख की सुबह हो गई होली गई अब तो होश में आ जाओ
                                                                                                                                                 
                                                                                                                                      • DrArvind Mishra
                                                                                                                                        होली के फुटकर संस्मरण
                                                                                                                                        बात अंतर्जाल युग की ही है। मौसम भी कुछ ऐसा ही खुशनुमा था . एक शहर में कुछ काम था -पहुंचा तो मित्रों ने एक गेट टुगेदर रख लिया . कई उपस्थित हुए मगर किसी की अनुपस्थिति प्रमुख बन गयी .उनका कहना था कि उन्हें लोगों की भीड़ में मिलना पसंद नहीं ....बात आयी गयी हो गयी -फिर बहारे आयीं तो मैं अकेला उसी शहर पहुंचा . वे तब भी नहीं आयीं -फिर बात आयी गयी हुई . काफी बाद में उनसे मैंने पूछा क्या इतना विश्वास नहीं है मुझ पर तो बताया कि नहीं मुझ पर तो पूरा विश्वास है मगर उन्हें खुद पर ही भरोसा नहीं था -कहीं भटक जातीं तो ? लीजिये अब इस बात का भी कोई जवाब है ! :-) इस तरह एक फलसफे का अंत हो गया! :-)

                                                                                                                                        तो देखें , कि चेहरे क्या बयां करते हैं

                                                                                                                                        $
                                                                                                                                        0
                                                                                                                                        0


                                                                                                                                        हो सकता है आने वाले पांच सौ सालों के बाद हिस्ट्री की क्लास मे हम जैसे लोगों की बात हो..और हमे "इंटरनेट एडिक्टेड"जेनेरेशन के नाम से जाना जाये..



                                                                                                                                        बहुत सिसकी थी
                                                                                                                                        रोई
                                                                                                                                        तडफी थी

                                                                                                                                        और
                                                                                                                                        ले आयी थी

                                                                                                                                        सुई धागा
                                                                                                                                        बड़े इत्मीनान से..

                                                                                                                                        उस मासूम को
                                                                                                                                        बोलो

                                                                                                                                        फूट चुके गुब्बारे सिले नहीं जाते!!

                                                                                                                                         

                                                                                                                                        JDU को लेकर कांग्रेस के अरमान उस छिछोरे लड़के की तरह है जो एक शादीशुदा महिला को चाहता है और मन ही मन दुआ कर रहा है कि उसका तलाक हो जाए।

                                                                                                                                         


                                                                                                                                        अंत समय जब आएगा,
                                                                                                                                        साथ नहीं कुछ जायेगा।
                                                                                                                                        दौड़-दौडकर माया जोड़ी
                                                                                                                                        हाथ रिक्त रह जायेगा :-(

                                                                                                                                         


                                                                                                                                        अभी तो आग़ाज-ए-इश्क़ है जानां, अंजाम अभी बाकी है,
                                                                                                                                        गुजारने हैं कई सारे दिन अभी, कई सुहानी शाम अभी बाकी है ।।

                                                                                                                                         

                                                                                                                                         


                                                                                                                                        फिर तेरी ज़ुल्फ़ों की छाँव में हर शाम होती
                                                                                                                                        गर ज़िन्दगी सिर्फ़ चिनारों का साया होती

                                                                                                                                         

                                                                                                                                        देखते ही देखते दुनिया ना जाने ,
                                                                                                                                        कहाँ से कहाँ निकल जाती है |
                                                                                                                                        यहाँ कौन है __
                                                                                                                                        जो किसी के बोझ को अपना समझ कर उठती है ?

                                                                                                                                        हम आज अजनबियों के उड़ानों से ही भ्रमित है |
                                                                                                                                        सभी यहाँ अपनी खुशी को ले कर परेशान है |

                                                                                                                                        वही तुम वही हम फिर भी सब बदला सा है |
                                                                                                                                        ना जाने कहाँ खो गया वो अपनापन और
                                                                                                                                        ना जाने कहाँ खो गयी वो हमारी पहचान !
                                                                                                                                        शायद येही तरक्की का आयाम है | - लिली कर्मकार

                                                                                                                                         

                                                                                                                                        परिंदे को शिकारी ने ये कह कर कैद में डाला
                                                                                                                                        चहकने की इजाजत तो है, पर आवाज मत करना.....
                                                                                                                                        .
                                                                                                                                        शुभ रविवार मित्रों....

                                                                                                                                         

                                                                                                                                        मैंने सब कुछ दे दिया अब हो गया अनाम
                                                                                                                                        एक शाम लिख दो कभी तुम मेरे भी नाम.

                                                                                                                                         

                                                                                                                                        पूछ लीजिये बेशक किसी से भी बेचैन
                                                                                                                                        इन्सान मात खाता है सदा एतबार में

                                                                                                                                         

                                                                                                                                         


                                                                                                                                        हिंदी फ़िल्मों में, ढलती उम्र के हीरो की फ़िल्मेंं जब फ़लाॅप हाने/कम मिलने लगती हैं तो वो मूर्ख अपने बचेखुचे पैसों से फ़िल्मों बनाने लगता है

                                                                                                                                         



                                                                                                                                        छोटे पहलवान ने घंटो दिमाग दौडाया
                                                                                                                                        सोचा आज सुधार दूंगा माँ बेटे को ...
                                                                                                                                        कई घंटे मुगदर घुमाया
                                                                                                                                        सोच सोच कर दिमाग का दही कर दिया '
                                                                                                                                        फिर प्लास उठाया,
                                                                                                                                        सोचा बिजली ही उड़ा देता हो उसके घर की
                                                                                                                                        अकड़ता हुआ पहुचा
                                                                                                                                        वो जो दिख गए सी बी आई को बगल में दबाये '
                                                                                                                                        पैर छूकर नवाजिश की चला और चुपचाप चला आया

                                                                                                                                         


                                                                                                                                        दिल के छाले
                                                                                                                                        न कोई मरहम
                                                                                                                                        सहते दर्द.

                                                                                                                                        ...(हाइकु)

                                                                                                                                         


                                                                                                                                        दिल के किसी कोने में, वो प्यार आज भी है,
                                                                                                                                        सावन की बूंदों में, वही खुमार आज भी है,
                                                                                                                                        'बेशक'जिंदगी तेरे साथ की मुहताज नहीं,
                                                                                                                                        'पर दिल'तेरे एहसासों का तलबगार आज भी है ... !!अनु!!

                                                                                                                                         

                                                                                                                                         आज के लिए इतना ही , फ़िल मिलेंगे कुछ चेहरों और उनकी गुफ़्तगू से ...........

                                                                                                                                        तुम लिखो फ़ेसबुक , हम ब्लॉग लिखेंगे ..

                                                                                                                                        $
                                                                                                                                        0
                                                                                                                                        0

                                                                                                                                        रविवार की सुबह सुबह जब इतनी बेहतरीन बातों को पढने , उस पर कुछ कहने का अवसर मिले तो समझ जाना चाहिए कि सचमुच इतवार  ! तेरा कहना ही क्या ……। उनमें से कुछ के शब्दों को हमेशा की तरह सहेज़ कर रख लिया है मैंने , देखिए आप भी

                                                                                                                                         

                                                                                                                                      • सनातन कालयात्री

                                                                                                                                        नेता साले हरामखोर तो हर जगह हैं लेकिन क़्वालिटी और विजन का अंतर है। हैदराबाद और लखनऊ के विकास के अंतर प्रमाण हैं।

                                                                                                                                      • Gunjan Shrivastava

                                                                                                                                        मदर्स डे पर सारी दुनिया में कुछ लोग ग्रीटिंग्स खरीदते रहे ...और कुछ उसकी आलोचना करते रहे ....वहीँ एक दिल वाले ने बच्चों की मम्मा को प्यार से एक मोगरे का गजरा देकर निहाल कर दिया .. :)

                                                                                                                                      • Amrendra Nath Tripathi

                                                                                                                                        फेसबुक पर ब्लॊकी-करण के अपने झाम, झटके और रोमांच हैं।

                                                                                                                                        अक्सर आपके स्टेटस पर दो आदमी संवाद कर रहे होते हैं, जो एक दूसरे को ब्लॊक किये होते हैं। ब्लॊक-संवाद टाइप का। आप पर जिम्मेदारी होती है कि आप दोनों लोगों की ब्लॊक-मानसिकता की कद्र करते हुए उन्हें एक दूसरे की बात संप्रेषित करें। ऐसा करते हुए आपका रवैया निहायत ‘गैरजानिबदाराना’ होना चाहिए नहीं तो आप उनमें से किसी की भी ब्लॊक-मानसिकता के शिकार हो सकते हैं।

                                                                                                                                        ब्लॊकी-करण को एक उपयोगी और पसंदीदा कार्यवाही समझने वाले लोग अनिवार्यतः एक और प्रोफाइल रखते हैं। यानी दो प्रोफाइल, एक जिससे ब्लॊक करना है और दूसरी जिससे ब्लॊक किए लोगों को देखते रहना है। और काम की बात दिख जाने पर ‘मित्रों से सूचना मिली/जानकारी पहुँची/ऐसी चर्चा है’ - ऐसा लिखते हुए आपको यथोचित जवाब भी देना है। यह आपका ब्लॊक-धर्म है। इस तरह आप जिसे ब्लॊक किए होते हैं, उसके और नजदीक चले जाते हैं। यह ब्लॊक-मित्रता भी कम प्रगाढ़ नहीं होती।

                                                                                                                                      • Kumud Singh

                                                                                                                                        तिरहुत से दिल्‍ली तक के लोगों को न्‍योता दिया गया। करीब 5 लाख लोगों के लिए खाना तैयार हुआ। करीब 200 रसोइए ने खाना तैयार किया। करीब 10 एकड में पंडाल लगाये गये::::::इन वाक्‍यों को पढ कर ऐसा नहीं लग रहा है जैसे हम किसी राजा महाराजा के घर में हो रहे किसी समारोह का ब्‍योरा पढ रहे हैं। कल जब इस प्रकार की जानकारी मिली तो हमें भी यही लगा, लेकिन----।

                                                                                                                                      • Dinesh Aggarwal

                                                                                                                                        अभी तक रहा, खास लोगों का ही देश यह,

                                                                                                                                        आओ आम आदमी का, देश ये बनायें हम।

                                                                                                                                        सोते हैं अभी भी आम आदमी अनेकों यहाँ,

                                                                                                                                        मित्रों आओ मिलकर, उनको जगायें हम,

                                                                                                                                        लूटा देश को हमारे, भ्रष्ट राजनेताओं ने,

                                                                                                                                        सत्ता से हटाके इन्हें, जेल पहुँचायें हम।

                                                                                                                                        अब तक नहीं आम आदमी की कदर जो,

                                                                                                                                        उसी आम आदमी की, सत्ता यहाँ लायें हम।।.

                                                                                                                                      • DrAmit Varshney

                                                                                                                                        खुद पर विजय प्राप्त करना लाखों शत्रुओं पर विजय पाने से बेहतर है

                                                                                                                                          • Mukesh Tiwari

                                                                                                                                            रात है रात बहुत रात बड़ी दूर तलक

                                                                                                                                            सुबह होने में अभी देर है माना काफ़ी

                                                                                                                                            पर न ये नींद रहे नींद फ़क़त नींद नहीं

                                                                                                                                            ये बने ख़्वाब की तफ़सील अंधेरों की शिकस्त ....(साभार पहल ९२ से)

                                                                                                                                          • विपिन राठौर

                                                                                                                                            काश! आज के दिन की तरह हरदिन मां को प्यार और सम्मान मिलता।

                                                                                                                                          • Krishnanand Choudhary

                                                                                                                                            खतरा ऐसे लोगोँ केँ सिर पर सदैव मंडराता रहता है , जो उससे डरते हैँ ।

                                                                                                                                          • Manoj Kumar Jha

                                                                                                                                            माँ तुझे प्रणाम....... मैं जो कुछ भी हूँ और जो कुछ बनना चाहता हूँ, उसके लिए अपनी देवी स्वरूपा (गोलोकवासिनी ) माँ का ऋणी हूँ,

                                                                                                                                          • Dev Kumar Jha

                                                                                                                                            भुने हुए आलू और धनिया की चटनी... वाह... कोई जवाब नहीं भाई..... खुद की बनाई हो तो फ़िर तो कहना ही क्या..

                                                                                                                                            • Aradhana Chaturvedi

                                                                                                                                              (प्यार, मोह और असमंजस)

                                                                                                                                              मैं प्यार करती हूँ तुमसे

                                                                                                                                              जब छोड़कर जाना चाहोगे, जाने दूँगी,

                                                                                                                                              पर प्यार करती रहूँगी

                                                                                                                                              किसी और को चाहूँगी, तब भी चाहूँगी तुम्हें,

                                                                                                                                              तुम्हारे बगैर भी जिऊंगी, तुम्हें याद करते हुए।

                                                                                                                                              पर तुम्हें...मुझसे मोह है,

                                                                                                                                              इसलिए तुम मुझे कभी छोड़ न पाओगे,

                                                                                                                                              तुम जुड़े रहोगे मेरे साथ यूँ ही

                                                                                                                                              जब हमारे बीच प्यार नहीं रह जाएगा तब भी,

                                                                                                                                              और मैं न रहूँ..., तो जाने क्या होगा?

                                                                                                                                              कभी सोचती हूँ मेरा प्यार बेहतर है

                                                                                                                                              कभी मन कहता है तुम्हारा मोह भला।

                                                                                                                                            • Shekhar Suman

                                                                                                                                              एक बार बहुत पहले इक्जाम देने बोकारो गया था... दिन भर कुछ खास खाया नहीं था, स्टेशन पर एक जगह जलेबी बिकती दिखी... हमने उससे पूछा ताज़ी है, उसने बोल ताज़ी के चक्कर में कहाँ पड़े हैं भैया गरम खोजिये गर्म मिलेगी...

                                                                                                                                            • दिनेशराय द्विवेदी

                                                                                                                                              पिछले दो मिनट में कोयल की पाँच कुहुक सुनाई दे चुकी हैं। मतलब? अख्तर खान अकेला के स्टेटस नाजिल हो रहे हैं।

                                                                                                                                            • Kajal Kumar

                                                                                                                                              बेचारे इमरान खान को सिर फुड़वा के भी कोई फ़ायदा नहीं हुआ ,

                                                                                                                                              नवाज़ शरीफ़ के भागों छीका फूटने की ख़बरे आने लगी हैं (मुशर्रफ़ का भगवान मालिक)

                                                                                                                                            • Neeraj Badhwar

                                                                                                                                              पाकिस्तान से मिले रहे ताज़ा रूझानों के मुताबिक पाक तालिबान, लश्कर ए तैयब्बा से सात के मुकाबले तीन बम धमाकों से आगे चल रहा है।

                                                                                                                                            • Suman Pathak

                                                                                                                                              ख़ुशी में हूँ या ग़म में हूँ ... नहीं पड़ता फरक कोई ...

                                                                                                                                              मगर भर आती हैं आँखें ... जो माँ कहती है "कैसी हो" ...

                                                                                                                                              --

                                                                                                                                            • Awesh Tiwari

                                                                                                                                              फेसबुक से अच्छे दोस्त फूलपुर इलाहाबाद के है ,मिलने पर पान भी खिलाते हैं दूर होने पर फोन भी करते हैं |

                                                                                                                                            • Brajrani Mishra

                                                                                                                                              माँ तो बस माँ होती है

                                                                                                                                              बच्चों की जहाँ (जहान) होती है..

                                                                                                                                            • Rekha Srivastava

                                                                                                                                              आज सभी माँओं को मेरा बहुत बहुत नमन ! जो अपनों के साथ है उन्हें भी जो अपनों से दूर कहीं वृद्धाश्रम में , किसी अस्पताल में या फिर किसी और के पास है उन सभी को .

                                                                                                                                              माँ सिर्फ एक होती है और वह हर हाल में वन्दनीय ही होती है . उसके दोषों को खोजने का हक हमें नहीं है क्योंकि वह हमारे तन , मन की निर्मात्री होती है और अपने खून से सींच कर हमें जन्म देती है. उसके दूध के कर्ज से तो उऋण होना संभव ही नहीं है. आज का दिन माँ के पास न भी रहें , मजबूरी होती है लेकिन कम से कम उसको जैसे संभव हो बात जरूर करें .

                                                                                                                                            • Saroj Singh

                                                                                                                                              ट्राफिक सिग्नल पर...

                                                                                                                                              फूल,खिलौने बेचते बच्चे

                                                                                                                                              कार के शीशे पोछते बच्चे

                                                                                                                                              अपने बच्चों की मानिंद

                                                                                                                                              अपने क्यूँ नजर नहीं आते

                                                                                                                                              शायद ,एक "माँ"होके भी

                                                                                                                                              मुझे "माँ"के मायने नहीं आते !

                                                                                                                                              s-roz

                                                                                                                                            • Piyush Pandey

                                                                                                                                              कमाल करती है उसकी बातों की लज़्ज़त

                                                                                                                                              नमक खिला देती है चीनी का नाम लेकर :-)

                                                                                                                                            • Mani Yagyesh Tripathi

                                                                                                                                              पाकिस्तान से चुनावी रुझान में इमरान खान और नवाज शरीफ कुछ यूँ आगे पीछे चल रहे हैं जैसे विवाह में चार फेरे में वर आगे और बाकी के तीन फेरे में कन्या आगे... ;)

                                                                                                                                            • Kavita Vachaknavee

                                                                                                                                              यदि आप एक रंग होते तो कौन-सा रंग होना चाहते ?

                                                                                                                                            • चलत मुसाफ़िर

                                                                                                                                              ई लो भैया, संडे का पेसल चुटकुला … आजम की तलाशी में अमेरिका का नुकसान। अगर अमेरिका को पता होता तो इन्हें नहीं करता कच्छा उतार हलकान। मिल गया मिल गया नया फ़ार्मुला, जब जब अमेरिका का करना हो नुकसान, तब तब नेता जी की तलाशी कराओ श्रीमान ………

                                                                                                                                            • Manish Seth

                                                                                                                                              कैसे ये कहे तुम से ह्मे प्यार है कितना ...

                                                                                                                                              आँखों की तलब बढती देखे तुम्हे जितना ....:)))

                                                                                                                                            • Mayank Priyadarshi

                                                                                                                                              फेसबुक वैचारिक अखाडा है...लोगोँ के विचारोँ की उठा-पटक चलती रहती है !!

                                                                                                                                            • Bimal Raturi

                                                                                                                                              तुम ने तो सोचा होगा, मिल जाएँगे बहुतेरे चाहने वाले................

                                                                                                                                              ये भी ना सोचा कभी कि, फर्क होता है चाहतों में भी !!

                                                                                                                                            • कवि शैलेश शुक्ला

                                                                                                                                              अगर देश के सभी वर्तमान और भूतपूर्व मुख्य मंत्रियों, मंत्रियों, सांसदों, विधायकों, सचिवों,संयुक्त सचिवों और अन्य वरिष्ठ अधिकारीयों की समप्त्तियों को निष्पक्ष जाँच की जाए तो......?????

                                                                                                                                            • विशाल तिवारी

                                                                                                                                              देश के प्रधानमंत्री की कथित ईमानदारी दूसरों के बईमान कंधों की मोहताज बन कर रह गई है .

                                                                                                                                            • Rajani Morwal

                                                                                                                                              बेजान से इस शहर में

                                                                                                                                              लंबीं घुमावधार सड़कों पर

                                                                                                                                              सासाें का भ्रम तोड़ती

                                                                                                                                              तेज रफ़्तार कारें अगर न होतीं ?

                                                                                                                                              सहरा की रेत में दफ़्न

                                                                                                                                              होने का गुमां लगता़़़ ़ ...........दुबई के नाम......रजनी मोरवाल ११ मई

                                                                                                                                            • मुख-पुस्तक के कुछ मुखडे ……..

                                                                                                                                              $
                                                                                                                                              0
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                                                                                                                                                वो कहते हैं कि एक रोटी कम खाओ और एक मील रोज और चलो तो दस साल ज्यादा जियोगे। आईडिया बुरा नहीं है!

                                                                                                                                              • सनातन कालयात्री
                                                                                                                                                कल घंटा भर एक सज्जन को सुनने के पश्चात अचानक यह अनुभव किया कि पूर्वार्द्ध में जिन माँगों को लेकर वे बहुत ही अधीर थे, उत्तरार्द्ध में उन सबको एक एक कर खारिज कर दिये। मैं केवल उतना ही बोला जितना कि वार्तालाप के जारी रहने के लिये आवश्यक हो और आवश्यक रुचि भी दिखाई। जाते समय बहुत ही संतुष्ट दिखे जब कि मैं अब तक शॉक में हूँ कि वे किस लिये आये थे? कहीं सज्जनता में मैं टाइमपासी का शिकार तो नहीं हो गया!

                                                                                                                                              • Neeraj Badhwar
                                                                                                                                                क्या पवन बंसल का भांजा आडवाणी साहब का 'पीएम इन वेटिंग'कंफर्म करवा सकता है?

                                                                                                                                              • Prashant Priyadarshi
                                                                                                                                                सिनेमा अच्छी होनी चाहिए, मशालेदार तो चिली चिकेन भी होता है!!!

                                                                                                                                              • Abhishek Kumar
                                                                                                                                                निमिषा : तुम जब से ब्लॉग बनाये हो तो कुछ भी लिख देते हो और हमको कभी समझ में नहीं आता... ट्रैफिक के शोर में प्यार के तीन शब्द???...हे भगवान..इसका मतलब क्या हुआ?क्यों लिखे थे ये? कौन बोलता है ये शब्द...और कैसा कौन सा शब्द....ट्रैफिक में तो खाली होर्न सुनाई देता है...तुम शब्द कहाँ से सुन लेते हो भैया?..तुम्हारा ब्लॉग सब कैसे पढ़ लेता है..ये सब फ़ालतू बात को पढ़कर तुम्हारा ब्लॉग पर इत्ता लोग कुछ कुछ लिखता भी है....हमको तो टाईम बर्बाद करना लगता है...
                                                                                                                                                मैं : तुमको समझ में नहीं आएगा बाबु....अभी तो तुम बच्ची हो न रे..
                                                                                                                                                निमिषा : हम अभी अभी बड़े हुए हैं..हमको पता चल जाएगा तुम बताओ चुपचाप
                                                                                                                                                मैं : तुम अभी बड़ी हुई है या बड़ी हो रही है?
                                                                                                                                                निमिषा : चुप रहो...हम बड़े हो नहीं रहे..(फिर कुछ देर सोचकर कहती है)हम बड़े हो चुके हैं..हम अकेले ऑटो पे बैठ कर जा सकते हैं....वहां(वनस्थली, उसका कॉलेज) सारा काम अकेले करते हैं...और भी बहुत कुछ करते हैं तो हम बड़े हो चुके हैं तुम हमको बच्ची मत बोलो नहीं तो बात नहीं करेंगे.
                                                                                                                                                __________________________________________
                                                                                                                                                (पिछले साल की एक बात)


                                                                                                                                              • Prabhat Ranjan
                                                                                                                                                जिस आदमी के नेता बनने की खबर मात्र से एक पार्टी में इस कदर अफरा-तफरी मच गई हो, सोचिये अगर वह कहीं धोखे से प्रधानमन्त्री बन गया तो देश का क्या हाल होगा!


                                                                                                                                              • Amitabh Meet
                                                                                                                                                शेर मेरे भी हैं पुरदर्द, वलेकिन 'हसरत' !
                                                                                                                                                'मीर'का शेवा-ए-गुफ़्तार कहाँ से लाऊँ ?

                                                                                                                                              • Suresh Chiplunkar
                                                                                                                                                जो "बुद्धिजीवी"आज नरेंद्र मोदी और भाजपा का रास्ता रोकने की कोशिश कर रहे हैं...
                                                                                                                                                यही लोग कल UPA-3 के भ्रष्टाचार और आतंकवाद पर घड़ियाली आँसू भरे स्टेटस लिखते दिखाई देंगे...
                                                                                                                                                ============
                                                                                                                                                नोट :- बुद्धिजीवी = अपनी बुद्धि बेचकर (या गिरवी रखकर) जीविका कमाने वाले...
                                                                                                                                                सुप्रभात मित्रों...

                                                                                                                                              • Vani Geet
                                                                                                                                                यह पहेली भी खूब रही कि नदी ने पत्थरों को तराशा या नदी को पत्थरों ने किनारों में बाँधा !

                                                                                                                                              • Vandana Gupta
                                                                                                                                                यूँ तो पी जाती गरल भी
                                                                                                                                                और रह जाती ज़िन्दा भी
                                                                                                                                                मगर
                                                                                                                                                बरसेगी कभी तो कोई बूँद मेरे नाम की
                                                                                                                                                इस आस में युग युगान्तरों से बैठी है
                                                                                                                                                मेरी प्यास .....ओक बन ...........मोहब्बत के मुहाने पर
                                                                                                                                                क्योंकि
                                                                                                                                                ये कोई सूदखोर का ब्याज नहीं जो चुकाने पर खत्म हो जाये
                                                                                                                                                मोहब्बत की किश्तें तो जितनी चुकाओ उतनी ही बढा करती हैं

                                                                                                                                              • Sunita Shanoo
                                                                                                                                                कुछ देर उनसे बात हो
                                                                                                                                                ख्वाबों में ही सही,
                                                                                                                                                बस मुलाकात हो
                                                                                                                                                सुप्रभात दोस्तों

                                                                                                                                              • Anup Shukla
                                                                                                                                                फ़ेसबुक पर किसी भी स्टेटस पर आत्मविश्वासपूर्वक सटीक टिप्पणी/लाइक करने का एकमात्र उपाय है कि आप टिप्पणी/लाइक करने के तुरंत बाद उस पोस्ट को पढ़ना शुरु कर दें। पहले पढ़कर टिप्पणी/लाइक करने में पढ़ने के साथ आपका आत्मविश्वास कम होता जायेगा।

                                                                                                                                              • Suman Pathak
                                                                                                                                                पहले लगता था ..
                                                                                                                                                अपनी इच्छाओं को मारकर एक खुबसूरत रिश्ता तो बनाया जा सकता है पर एक खुबसूरत ज़िन्दगी नहीं ..
                                                                                                                                                पर अब लगता है कि अपनी इच्छाओं के साथ जीकर खुश होने से अगर अपनों को दुःख पहुंचे तो शायद उस ख़ुशी का भी कोई महत्व नहीं ...
                                                                                                                                                सच है के इन्सान को कुछ सीखने के लिए दूसरों के पास जाने की ज़रुरत नहीं ... समय के साथ हर ज्ञान खुद बा खुद इन्सान में आ जाता है .. ..

                                                                                                                                              • Deepti Sharma
                                                                                                                                                यू. पी. बोर्ड दसवीँ में तीन लाख 42 हज़ार छात्र हिन्दी में फेल ।
                                                                                                                                                उफ़...

                                                                                                                                              • Kajal Kumar
                                                                                                                                                लगता है कि‍ आडवाणी, केंद्र के केशुभाई बनने की तैयारी में हैं

                                                                                                                                              • Kailash Sharma
                                                                                                                                                कितना सूना है घर का हर कोना,
                                                                                                                                                एक आवाज़ को तरसता है.
                                                                                                                                                ....कैलाश शर्मा



                                                                                                                                              • Vivek Singh
                                                                                                                                                आडवाणी जी का नाम प्रधानमंत्रियों की लिस्ट में यूँ ही लिखवाकर मामला रफादफा क्यों नहीं कर देते.......

                                                                                                                                              • Abhishek Cartoonist
                                                                                                                                                आदमी का उतावलापन तो देखो ... ज्येष्ठ माह में ही बरसात मांग रहा है ..... हे भगवान् !

                                                                                                                                              • देवेन्द्र बेचैन आत्मा
                                                                                                                                                आज सुबह चार बजे उठे। आस पास के पाँच और लोगों को जो रोज मार्निंग वॉक करने जाते हैं, जुटाकर तीन मोटर साइकिल से सूर्योदय से पहले दशाश्वमेध घाट गये। दशास्वमेध से तुलसी घाट तक पैदल वॉक किया। खूब जमकर फोटोग्राफी करी। गंगा स्नान किया। तैराकी की। (अधिक नहीं तैर पाया..चलने के बाद थक चुका था। :( ) नहाकर बाबा विश्वनाथ का दर्शन किया। दर्शन के बाद चौक चौराहे में कचौड़ी-जिलेबी का नाश्ता किया, मगही पान जमाया और साढ़े नौ बजे तक सारनाथ वापस।
                                                                                                                                                कोई लाख कहे गंगा घाट पर खूब गंदगी है, गंगा मैली हो गई है लेकिन आज भी सूर्योदय से पहले घाटों पर टहलने और गंगा स्नान करने में जो आनंद है उसे शब्दों में व्यक्त नहीं किया जा सकता। ऑपरेशन 'सुबहे बनारस'सफल रहा।

                                                                                                                                              • Girish Mukul
                                                                                                                                                मेरे महबूब का साथ मिला जब से मुझे
                                                                                                                                                मेरे होने का एहसास मिला तब से मुझे !
                                                                                                                                                दूर आती पाजेब की सुन के छन छन-
                                                                                                                                                उसके आने का आभास मिला तब से मुझे !!

                                                                                                                                              • Ajit Wadnerkar
                                                                                                                                                दूषत जैन सदा शुभगंगा।
                                                                                                                                                छोड़ हुगे यह तुंग तरंगा।।
                                                                                                                                                महाकवि केशवदास की उक्त पंक्ति का भाव है कि जैनी अगर गंगा की निन्दा करते हैं तो करते रहें, सिर्फ इसी वजह से क्या हम उत्ताल लहरों वाली गंगा को पूजना छोड़ देंगें? मैं नहीं जानता कि जैन वांङ्मय की किस धारा में गंगा की निन्दा है। हाँ, गंगा तीरे यानी काशी में तेईसवे तीर्थंकर पार्श्वनाथ हुए थे। अहिंसा विचार के मद्देनज़र देखे रामायण का एक प्रसंग है कि तो वनगमन के दौरान सीता ने गंगा पार करते वक्त भयवश देवी गंगा यह प्रार्थना की थी कि सकुशल लौट आने पर वे उन्हें मांस का चढ़ावा देंगी। क्या यह वजह है निन्दा की ? जैन, बौद्ध और अनादि काल से चले आ रहे जातियों के सांस्कृतिक संघर्ष में न जाने कितनी हिंसा हुई, लहू से गंगा गाढ़ी नहीं हुई, बल्कि हिंसा की गहनता को तरह बना दिया। सागर की अतल गहराई में पहुँचा दिया। गंगा तो आज खुद हिंसा की शिकार है। हजारों साल पहले की पुण्य सलिला की निंदा भी क्या हिंसा नहीं ? अगर हिंसा ही वजह थी तब आज की गंगा को प्रदुषित करने वाले तमाम धर्मावलम्बियों के विरुद्ध कैसी कार्रवाई होनी चाहिए?

                                                                                                                                              • Xitija Singh
                                                                                                                                                देवदार पुकार रहे हैं ... :)))))))))))))) — feeling excited at off to SHIMLA ... .

                                                                                                                                              • Awesh Tiwari
                                                                                                                                                मैदान चाहे क्रिकेट का हो या फिर राजनीति का ,विदाई एक ही तरीके से होती है ,आडवाणी को देखकर मुझे गांगुली और अजहर याद आ रहे हैं

                                                                                                                                              • Geeta Gaba Geet
                                                                                                                                                मेरे महबूब का साथ मिला मुझे जब से
                                                                                                                                                खुश रहने के बहाने मिले तब से ..

                                                                                                                                              • Bhawesh Jha
                                                                                                                                                हम भी तम्हें उँचाइयों पर दिख गए होते..
                                                                                                                                                अगर हम भी थोड़ा-सा बिक गए होते

                                                                                                                                              • Mayank Saxena
                                                                                                                                                कभी बारिश, कभी मिट्टी में मैं सन जाता हूं
                                                                                                                                                तुम्हारे पास आ के बच्चा बन जाता हूं
                                                                                                                                                हज़ार बार मैं इनकार करता हूं सबको
                                                                                                                                                तुम्हारी आंख झपकने से ही मन जाता हूं
                                                                                                                                              • जब दर्द अल्फ़ाज़ बन जाते हैं

                                                                                                                                                $
                                                                                                                                                0
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                                                                                                                                                 उत्तराखंड आपदा

                                                                                                                                                 

                                                                                                                                                 

                                                                                                                                                  • Arun Chandra Roy
                                                                                                                                                    यदि हम वाकई उत्तराखंड के हादसे से चिंतित हैं, विचलित हैं तो बिजली की खपत तुरंत कम कर दीजिये ताकि देश को नदियों पर बाँध बनाने की जरुरत ही न पड़े . उर्जा आधारित अर्थव्यवस्था से प्रकृति को अंततः नुक्सान ही है. अभी उत्तराखंड है , कल हिमाचल होगा परसों कश्मीर .... अपना ए सी बंद कीजिये, टीवी वाशिंग मशीन सब रोकिये . बल्ब भर से काम चलाईये . सोच कर देखिये, कल यदि टिहरी बाँध को कुछ हुआ तो दिल्ली के पांच मंजिले मकान तक डूब जायेंगे . यह सबसे उपयुक्त समय है स्वयं जागने का और सरकारों को जगाने का. सरकारी दफ्तरों, कारपोरेट कार्यालयों , बंगलो में सेंट्रली ए सी के खिलाफ विरोध कीजिए .. वरना राजधानी और शहरो की सुविधों की कीमत पहाड़ो को चुकानी होगी .
                                                                                                                                                   

                                                                                                                                                   

                                                                                                                                                        • दिनेशराय द्विवेदी
                                                                                                                                                          "साम्यवादी शासन"शब्द को सारी किताबो से मिटा दो। ऐसी कोई चीज नहीं होती। यह शब्द पूंजीवादी सिद्धान्तकारों की देन है। सारे साम्यवादी विचारक पूंजीवाद से सर्वहारा तानाशाही के दौर से गुजरते हुए साम्यवादी समाज की ओर जाने की बात करते हैं। वर्गीय समाज में कोई भी जनतंत्र अधूरा सच है। उस की कोई भी व्यवस्था शोषक वर्गों के लिए जनतंत्र और शेष के लिए तानाशाही होती है। कोई भी कथित जनतंत्र जनता का जनतंत्र नहीं हो सकता है, और न है। पूंजीवाद के सामंतवाद के साथ समझौते के दौर में पूंजीवाद ने स्वयं अपने विकास को अवरुद्ध किया है। इस कारण अब पूंजीवाद के विकास और सामन्तवाद को पूरी तरह ध्वस्त करने की जिम्मेदारी भी सर्वहारा और उस के मित्र वर्गों के जिम्मे है। यही कारण है कि "जनता की जनतांत्रिक तानाशाही"जैसीा राज्य व्यवस्था का स्वरूप सामने आया है। राज्य के इस स्वरूप मे उपस्थित 'पूंजीवादी सामंती व्यवस्था के शोषकों पर जनता के श्रमजीवी वर्गों की तानाशाही"को पूंजीवाद संपूर्ण जनता पर तानाशाही कहता है। आज बहुत लोग यही कह रहे हैं जो नयी बात नहीं है। यह पूंजीवादी प्रचारकों की ही जुगाली है। दुनिया में कहीं भी साम्यवादी वर्गहीन समाज स्थापित नहीं हुआ है। पर उस की स्थापना उतनी ही अवश्यंभावी है जितना की इस दुनिया में पूजीवाद का वर्चस्व स्थापित होना अवश्यंभावी था।
                                                                                                                                                         

                                                                                                                                                         

                                                                                                                                                              • Swati Bhalotia
                                                                                                                                                                तुम्हारे शब्दों के बीच होती है सड़कें
                                                                                                                                                                मैं बसा लेती हूँ शहर पूरा
                                                                                                                                                                उन शहरों में होते हैं तुम्हारे सामीप्य से भरे घर
                                                                                                                                                                तुम्हारे शब्दों के बीच होती हैं नौकाएँ
                                                                                                                                                                मैं बाँध लेती हूँ नदी पूरी
                                                                                                                                                                उन नदियों में होती है रवानगी तुम तक पहुँच आने की
                                                                                                                                                                तुम्हारे शब्दों के बीच होती हैं सीढियाँ
                                                                                                                                                                मैं चढ़ती जाती हूँ पेड़ों से भी आगे
                                                                                                                                                                उन पत्तों के बीच होते हैं ताज़ा लाल सेब जिन्हें पीछे छोड़ देती हूँ मैं
                                                                                                                                                                तुम्हारे शब्दों के बीच होता है प्रेम-स्पर्श
                                                                                                                                                                मैं भर लेती हूँ हर हिस्सा अपना
                                                                                                                                                                उन पलों में बरस जाती है सिहरन तुम्हारे होठों के पँखों पर
                                                                                                                                                               

                                                                                                                                                               

                                                                                                                                                                      • Kajal Kumar
                                                                                                                                                                        मध्‍यवर्ग के पास जैसे-जैसे पैसा आ रहा है, धार्मि‍क पर्यटन खूब बढ़ रहा है.
                                                                                                                                                                        लोग पहले , जीवन में एक बार हो आने की अभि‍लाषा पालते थे, अब हर साल चले रहते हैं
                                                                                                                                                                       

                                                                                                                                                                       

                                                                                                                                                                      • Shashank Bhardawaj
                                                                                                                                                                        चुन्नू की माय नहीं रही..छोर गयी हमर साथ भगवान शंकर के द्वार पर...
                                                                                                                                                                        बोल था इ 65 साल की उमर मे कहा जाओगी केदारनाथ..बहुत पहाड़ है...दिक्कत होगी..नहीं मानी जिद कर गयी ...
                                                                                                                                                                        हम तो बाबा के दर्शन को जाएँगी ही...
                                                                                                                                                                        का करते
                                                                                                                                                                        दूनो बुढा बुढही चले...
                                                                                                                                                                        बोल वहा खच्चर ले लेते हैं...पर न मानी बोली तीरथ यातरा पर आये हैं...बाबा अपने पंहुचा देंगा ...शंकर..शंकर का जाप करते करते चढ़ ही गए...भगवान के द्वारे....
                                                                                                                                                                        केदारनाथ मंदिर मे दर्शन कर ही रहे थी की...पता नहीं का हुवा.कहा से जलजला आया....
                                                                                                                                                                        बह गयी...बहुत कोशिश की हाथ न छूटे...छूट गया..........................
                                                                                                                                                                        चली गयी........................................................
                                                                                                                                                                        अब हमहू जयादा दिन के नहीं हैं..चले जायेंगे ...भगवान शंकर के ही पास..............
                                                                                                                                                                        उस बुढिया के बिना मन नहीं लगता है बिटवा...........................
                                                                                                                                                                      •  

                                                                                                                                                                         

                                                                                                                                                                      • Sunil Mishra Journalist
                                                                                                                                                                        पहाड़, जंगल काट कर घर बनाते है...नदी, तालाब, समंदर पाट कर घर बनाते है...
                                                                                                                                                                        ऐसे घर से बेघर होना ही पड़ता है........................दुनिया भर के शास्त्र बताते है.
                                                                                                                                                                      •  

                                                                                                                                                                         

                                                                                                                                                                      • Prem Chand Gandhi
                                                                                                                                                                        अगर देश के तमाम मंदिरों में बेवजह जमा पड़े सोने और चांदी के आभूषणों को नीलाम कर देवभूमि उत्‍तराखण्‍ड के पुनर्निर्माण लगा दिया जाए तो किसी के सामने हाथ फैलाने की ज़रूरत नहीं पड़ेगी। आखिर देवी-देवताओं का धन देवी-देवताओं के ही काम नहीं आएगा तो फिर किसके काम आएगा... आस्‍थावान लोगों को भी इससे शायद ही कोई आपत्ति होगी...
                                                                                                                                                                        यह बात मैं इसलिए कह रहा हूं कि पिछले दिनों राजस्‍थान के एक प्रसिद्ध मंदिर के प्रबंधन से जुड़े व्‍यक्ति ने बताया कि मंदिर के पास हज़ारों टन सोना-चांदी है, लेकिन सरकार इसे बेचने नहीं देती।
                                                                                                                                                                      •  

                                                                                                                                                                         

                                                                                                                                                                      • Rajbhar Praveen Kumar
                                                                                                                                                                        इंसान अकेलापन भी तभी महसूश करता है जब उसे किसी के साथ रहने की आदत पड़ चुकी होती है.....!!
                                                                                                                                                                      •  

                                                                                                                                                                         

                                                                                                                                                                         

                                                                                                                                                                        • सतीश पंचम
                                                                                                                                                                          डीडी नेशनल पर पहाड़ी इलाके में बनी फिल्म नमकीन देख रहा हूँ। नदी और उस पर बने पुल को देख जेहन में फिल्म की बजाय हालिया आपदा कौंध जा रही है कि - यह पुल या इस जैसा पुल भी बह गया होगा, वह दुकान भी :(
                                                                                                                                                                        •  
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                                                                                                                                                                          काम वही जो मन भाता है,
                                                                                                                                                                          राग हृदय का गहराता है,
                                                                                                                                                                          बच्चों को समझो, ओ सच्चों,
                                                                                                                                                                          लिखा नहीं पढ़ना आता है।
                                                                                                                                                                        •  

                                                                                                                                                                           

                                                                                                                                                                        • Neeraj Badhwar
                                                                                                                                                                          मोदी की आलोचना इसलिए हो रही है कि वो उत्तराखंड क्यों गए, राहुल की इसलिए कि वो क्यों नहीं गए। बेहतर यही होगा कि हर नेता प्रभावित इलाके के आधे रास्ते से यू टर्न लेकर लौट आए।
                                                                                                                                                                        •  

                                                                                                                                                                           

                                                                                                                                                                          • Prashant Priyadarshi
                                                                                                                                                                            ना किसी की आंख का नूर हूँ , न किसी के दिल का करार हूँ ,
                                                                                                                                                                            जो किसी के काम ना आ सके , मैं वो एक मुश्त -ए -गुबार हूँ..
                                                                                                                                                                          •  

                                                                                                                                                                             

                                                                                                                                                                          • Prashant Priyadarshi
                                                                                                                                                                            ना किसी की आंख का नूर हूँ , न किसी के दिल का करार हूँ ,
                                                                                                                                                                            जो किसी के काम ना आ सके , मैं वो एक मुश्त -ए -गुबार हूँ..
                                                                                                                                                                          •  

                                                                                                                                                                             

                                                                                                                                                                            • Ankur Shukla
                                                                                                                                                                              पुनर्वास का मतलब यह नहीं है कि दान किया और मुह फेर लिया। उजड़ो को बसाने के लिए उनकी दैनिक आमदनी को जिंदा करना होगा। सैलाब आने से पहले ईश्वर की बड़ी कृपा थी इनपर। पर्यटन वृक्ष को हरा -भरा करने के लिए उसकी जड़ को मजबूत करना ज़रूरी हो गया है. जड़ मज़बूत होगी वृक्ष हरा-भरा होगा, तभी तो फल मिलेगा। जय शिव
                                                                                                                                                                            •  

                                                                                                                                                                               

                                                                                                                                                                              • Amitabh Meet
                                                                                                                                                                                बरहमी का दौर भी किस दरजा नाज़ुक दौर है
                                                                                                                                                                                उन के बज़्म-ए-नाज़ तक जा जा के लौट आता हूँ मैं
                                                                                                                                                                              •  

                                                                                                                                                                                 

                                                                                                                                                                                • Arvind K Singh
                                                                                                                                                                                  सेना और अर्ध सैन्य बलों के जवानों को सलाम..
                                                                                                                                                                                  पूरे देश से सेना के लिए दुआएं दी जा रही हैं...हमारी सेना जिन पर भारत के नागरिकों के टैक्स की एक लाख करोड़ रुपया से अधिक राशि हर साल खर्च होती है..कारगिल तो अपनी ही जमीन से पाकिस्तानियों को निकालने की जंग थी..बाकी लंबे समय से सेना आंतरिक सुरक्षा और प्राकृतिक आपदाओं में लोगों की मदद करती है...उनके पास ऐसी आपात हालत से निपटने के लिए तमाम साधन, संसाधऩ और विशेषज्ञता है...बेशक प्राकृतिक आपदाओं में भारतीय सशस्त्र सेनाओं और हमारे अर्ध सैन्य बलों के जवानों ने ऐतिहासिक भूमिका हर मौके पर निभायी है...मैं कई बार सोचता हूं कि अगर ऐसी आपदाओं में सेना और अर्धसैन्यबलों के जवानों को नहीं लगाया जाये आपदा प्रबंधन की राज्य सरकारों की टीम के भरोसे तो शायद ही कोई पीडित बच सकेगा...उत्तराखंडजैसी जगहों पर प्रमुख सामरिक सड़कों को बनाने का काम सीमा सड़क संगठन के जो मजदूर करते हैं, उनकी भूमिकाओं को भी कमतर आंकना ठीकनहीं...उनके बदौलत ही जाने कितने लोग बाहर आ सके है...इन सबको सलाम...
                                                                                                                                                                                •  

                                                                                                                                                                                   

                                                                                                                                                                                   

                                                                                                                                                                                  अजय कुमार झा

                                                                                                                                                                                   

                                                                                                                                                                                  प्राकृतिक आपदाओं पर कभी किसी का जोर नहीं रहा , और न ही रहेगा , हां जिस तरफ़ से प्राकृतिक आपदाओं की रफ़्तार पूरे विश्व में बढ रही है उससे ये ईशारा तो मिल गया है कि भविष्य की नस्लें ही वो नस्लें होंगी जो अपनी और धरती की तबाही के मंज़र की गवाह बन पाएंगी , खैर ये तो जब होगा तब होगा , मगर जिस देश में अरबों खरबों रुपए के घोटाले होते हों , उस देश के लोगों द्वारा अब तक वो मुट्ठी भर लोग नहीं पहचाने चीन्हे जा सके जो कम से कम ऐसे समय पर जान भी बचा पाने लायक माद्दा नहीं रखते ...साठ साल का समय कम नहीं होता .......अफ़सोस कि भ्रष्ट राजनीतिज्ञों की जो फ़सल आज लहलहा रही है उसे इसी समाज ने , हमने , आपने अपने हाथों से बोया है ।

                                                                                                                                                                                  Viewing all 79 articles
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